लाख चाहकर, बात हृदय की, कहने से हम रह जाते है ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
बहुत चित्रकारों ने सोचा, सुन्दर तेरे चित्र बनाये ,
तेरी आँखों की चंचलता, रंगों से लाकर छिटकायें ।
किन्तु कहाँ, कब रंग मिले थे,
कहीं सभी भंडार छिपे थे,
आवश्यक वे रंग तुम्हारी आँखों में पाये जाते हैं ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
बहा चलूँ निश्चिन्त, अशंकित, नयनों की सौन्दर्य-धार में,
आकर्षण के द्यूत क्षेत्र में, निज जीवन को सहज हार मैं ।
आशायें टिकती हैं आकर,
आँखें तेरी खुली रहें पर,
सारे जो आधार, तुम्हारे बन्द नयन में छिप जाते हैं ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
नयनों की भाषा चित्रों में कैसे समा सकती है...जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं...
ReplyDeleteआवश्यक वे रंग तुम्हारी आँखों में पाये जाते हैं ।
ReplyDeleteतेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
waah !!
बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-11-2014) को "भोर चहकी..." (चर्चा-1813) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteअद्भुत शब्द - चित्र ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुती..
ReplyDeleteआंखों पर ही किताब लिखी जा सकती है।
ReplyDeleteमैं social work करता हूं और यदि आप मेरे कार्य को देखना चाहते है तो यहां पर click Health World in hindi करें। इसे share करे लोगों के कल्याण के लिए।
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