विरह प्रतीक्षा पीड़ा ही है,
आँखे भी अनवरत बही हैं,
मन में जिसका रूप बसाया,
देखो, वह निष्ठुर न आया।
जीवन, पर क्यों रूठ, कहीं अटका अटका सा,
वर्तमान को भूल, कहीं भटका भटका सा।
बहुत हुआ अतिप्रिय, अब तुमको उठना होगा,
छूट गया वह छोड़ पुनः अब जुटना होगा,
नहीं कोई अपना जीवन इतना भी भर ले,
वह अपना क्यों जो अपनों से जीवन हर ले?
मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवह अपना क्यों जो अपनों से जीवन हर ले?
ReplyDeleteसही प्रश्न है।
छूट गया वह छोड़ पुनः अब जुटना होगा,
ReplyDeleteसुंदर भाव....
नहीं कोई अपना जीवन इतना भी भर ले,
ReplyDeleteवह अपना क्यों जो अपनों से जीवन हर ले?
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ शानदार अभिव्यक्ति ...बहुत बहुत बधाई
bahut sahi . lekin yah sochana aasan hai . karna kafi mushkil...
ReplyDeleteसच है. जीवन को हरनेवाला अपना नहीं हो सकता।
ReplyDeleteवाह ..बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या आपने फोंट बदले हैं? ऐसा लगता है जैसे लाइन के उपर लाइन मिल रही है।
ReplyDeleteनिराशा के बादल हटने ही चाहिए ।
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