लाख चाहकर, बात हृदय की, कहने से हम रह जाते है ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
बहुत चित्रकारों ने सोचा, सुन्दर तेरे चित्र बनाये ,
तेरी आँखों की चंचलता, रंगों से लाकर छिटकायें ।
किन्तु कहाँ, कब रंग मिले थे,
कहीं सभी भंडार छिपे थे,
आवश्यक वे रंग तुम्हारी आँखों में पाये जाते हैं ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।
बहा चलूँ निश्चिन्त, अशंकित, नयनों की सौन्दर्य-धार में,
आकर्षण के द्यूत क्षेत्र में, निज जीवन को सहज हार मैं ।
आशायें टिकती हैं आकर,
आँखें तेरी खुली रहें पर,
सारे जो आधार, तुम्हारे बन्द नयन में छिप जाते हैं ।
तेरी आँखों के अभिवादन, बात हजारों कह जाते हैं ।।