मन की दिशा प्रबल है,
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं,
सत्य सदैव अबल है ।
आज समाज कालिमा पर, क्यों श्वेत रिक्तता पोत रहा है,
अनसुलझे उन संदिग्धों को, सत्य बनाकर थोप रहा है ।
किन्तु विरोध विरल है ।
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, सत्य सदैव अबल है ।।१।।
कुछ विचित्र सिद्धान्त बने हैं, स्रोतों का कुछ पता नहीं है,
धन्य हमारी अन्धभक्तिता, जो होता है वही सही है ।
अब जन पीता छल है ।
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, सत्य सदैव अबल है ।।२।।
सोचो जीवन का रस जाने कहाँ कहाँ पर शुष्क हो गया,
यन्त्रों के अनुरूप बन गया, अर्थहीन, रसहीन हो गया ।
अन्तः बड़ा विकल है ।
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, सत्य सदैव अबल है ।।३।।
चिन्तन आवश्यक है मन का, सत्य कोई सिद्धान्त नहीं है,
होगी परिपाटी वह कोई, परख बिना स्वीकार्य नहीं है ।
सत्य सदा उज्जवल है ।
मात्र विचारों की दो लड़ियाँ, शान्ति सुधा प्रतिफल है ।।४।।
जी चिंतन मग्न हो गया
ReplyDeleteचिंतन की एक नयी धारा बह निकली ।।।
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक भाव
ReplyDeleteश्रद्धेय सर जी , काफ़ी संवेदनशील रचना है ।
ReplyDeleteआपको तथा आपकी रचना , दोनों को नमन ।
.... सुनील
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 30/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 41 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
सुखद समाचार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteAti sunder va ati saarthak prastuti !!
ReplyDeleteतर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, ...तो...सत्य सदैव अबल है ।।३।।
ReplyDelete---सुन्दर ....
चिन्तन आवश्यक है मन का,
तर्क बुद्धि यदि अभिमंत्रित हों ,
सत्य सदैव सबल है |...
---आजकल कहाँ हैं पांडे जी.....
Satu say hai wah sada hee hai
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