29.10.14

सत्य सदैव अबल है

मन की दिशा प्रबल है,
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं,
सत्य सदैव अबल है ।

आज समाज कालिमा पर, क्यों श्वेत रिक्तता पोत रहा है,
अनसुलझे उन संदिग्धों को, सत्य बनाकर थोप रहा है ।
किन्तु विरोध विरल है ।
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, सत्य सदैव अबल है ।।१।।

कुछ विचित्र सिद्धान्त बने हैं, स्रोतों का कुछ पता नहीं है,
धन्य हमारी अन्धभक्तिता, जो होता है वही सही है ।
अब जन पीता छल है ।
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, सत्य सदैव अबल है ।।२।।

सोचो जीवन का रस जाने कहाँ कहाँ पर शुष्क हो गया,
यन्त्रों के अनुरूप बन गया, अर्थहीन, रसहीन हो गया ।
अन्तः बड़ा विकल है ।
तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, सत्य सदैव अबल है ।।३।।

चिन्तन आवश्यक है मन का, सत्य कोई सिद्धान्त नहीं है,
होगी परिपाटी वह कोई, परख बिना स्वीकार्य नहीं है ।
सत्य सदा उज्जवल है ।
मात्र विचारों की दो लड़ियाँ, शान्ति सुधा प्रतिफल है ।।४।।

11 comments:

  1. जी चिंतन मग्न हो गया

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  2. चिंतन की एक नयी धारा बह निकली ।।।

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  3. सुन्दर, सार्थक भाव

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  4. श्रद्धेय सर जी , काफ़ी संवेदनशील रचना है ।
    आपको तथा आपकी रचना , दोनों को नमन ।
    .... सुनील

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 30/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 41
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  6. सुखद समाचार

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  8. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।

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  9. Ati sunder va ati saarthak prastuti !!

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  10. तर्क, बुद्धि सब यन्त्र प्राय हैं, ...तो...सत्य सदैव अबल है ।।३।।
    ---सुन्दर ....
    चिन्तन आवश्यक है मन का,
    तर्क बुद्धि यदि अभिमंत्रित हों ,
    सत्य सदैव सबल है |...

    ---आजकल कहाँ हैं पांडे जी.....

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  11. Satu say hai wah sada hee hai

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