चला हूँ देर तक, यादें बहुत सी छोड़ आया हूँ ।
अनेकों बन्धनों को, राह ही में तोड़ आया हूँ ।। १।।
लगा था, साथ कोई चल रहा है, प्रेम में पाशित ।
अहं की भावना से दूर कोई सहज अनुरागित ।। २।।
लगा था, साथ तेरे जीवनी यूँ बीत जायेगी ।
मदों में तिक्त आशा, मधुर सा संगीत गायेगी ।। ३।।
लगा था, जब कभी भी दुख निमग्ना ज्वार आयेगें ।
तुम्हारे प्यार के अनुभाव सारे उमड़ जायेगें ।। ४।।
लगा था, राह लम्बी, यदि कभी सोना मैं चाहूँगा ।
कहीं निश्चिन्त मैं, तेरी सलोनी गोद पाऊँगा ।। ५।।
अकेला चल रहा था और सक्षम भी था चलने को ।
लगा कुछ और आवश्यक, अभी हृद पूर्ण करने को ।। ६।।
हुआ पर व्यर्थ का आश्रित, व्यर्थ मैं लड़खड़ाया हूँ ।
चला हूँ देर तक, यादें बहुत सी छोड़ आया हूँ ।। ७।।
बहुत सुन्दर , जीवन इसी गतिशीलता का नाम है
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 16/10/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (16-10-2014) को "जब दीप झिलमिलाते हैं" (चर्चा मंच 1768) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
ReplyDeleteइसी का नाम दुनिया है, सुन्दर रचना.
ReplyDeleteअनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
Behad umda rachna....!!
ReplyDeleteकुछ नैराश्य से भरी हुयी है- ऐसा क्यों??
ReplyDeleteमन के भावों को यथारूप सहेजने के क्रम में सच बाहर आ ही जाता है।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteFull emotional expression ! Pandey ji, I don't know where you have been these days. Once I had called on your Bangalore number, I was told that you are transferred therefrom. A few months ago, an article from your blog was published in Hindustan news paper, I wanted to tell you but could not contact you. but I hope we will be getting good articles on you blog.
ReplyDeleteजी, मैं इस समय वाराणसी में पदस्थ हूँ।
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