नहीं और कुछ ज्ञात मुझे, पाता प्रियतम, सुध खोता हूँ ।
फल बरसायें यज्ञ तुम्हे, आहुति बन प्रस्तुत होता हूँ ।।
फूल सदृश लगते काँटे,
श्रृंगारित तुमको कर पाता ।
आँसू भी अमृत बन जाते,
तेरी पीड़ा यदि पी जाता ।
तेरा मन कूजे उत्श्रंखल, मैं व्यथा अनवरत ढोता हूँ ।
फल बरसायें यज्ञ तुम्हे, आहुति बन प्रस्तुत होता हूँ ।।१।।
प्रेम नहीं व्यापार-जगत,
इसमें देना ही देना है ।
हृदय-तरी, प्रियतम शोभित,
फिर बड़े यत्न से खेना है ।
सींच रहा मन-भावों से, मैं बीज प्रेम के बोता हूँ ।
फल बरसायें यज्ञ तुम्हे, आहुति बन प्रस्तुत होता हूँ ।।२।।
त्याग, समर्पण में जीवन,
थक सकता है, खो सकता है ।
प्रत्याशा या अभिलाषा,
मन अकुलाये, हो सकता है ।
हो न प्राप्त अधिकारों को, यह आशा हृदय सँजोता हूँ ।
फल बरसायें यज्ञ तुम्हे, आहुति बन प्रस्तुत होता हूँ ।।३।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. बधाई
ReplyDeleteआंसू भी अमृत बन जाते
तॆरी पीड़ा अगर पी पाता
सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 18/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteगुनना पड़ेगा इस भाव को।
ReplyDeleteप्रेम तो बलिदान ही माॉगता है।
ReplyDeleteadnhut...bhavnapoorna sundar rachna...
ReplyDeleteआहुति बन प्रस्तुत होता हूं .......त्याग की परम पराकाष्ठा है महाराज ..बहुत ही अच्छे और प्रभाव डालने वाली पंक्तियां ...छाए रहिए
ReplyDeleteसाधुवाद सर ! त्याग की पराकाष्ठा की यह भावपूर्ण काव्यमय प्रस्तुति अत्यन्त सुन्दर और अनुकरणीय है । वास्तव में------ समाधान तो अन्तस् में है / न कि बाहरी सुख साधन /त्याग दया उपकार क्षमा / हैं शान्ति विटप , मन है कानन ।
ReplyDeleteत्याग की पराकाष्ठा ही तो है प्रेम...सुंदर भाव !
ReplyDeleteMarmsparshi...bhawpurn rachna....badhaayi va shubhkamnaayein...
ReplyDeleteMarmsparshi...bhawpurn rachna....badhaayi va shubhkamnaayein...
ReplyDelete" जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहिं ।
ReplyDeleteप्रेम - गली अति सॉकुरी ता में दो न समाहिं ॥ "
कबीर
आहुति बन प्रस्तुत होता हूं .....त्याग की पराकाष्ठा सुंदर भाव !
ReplyDeleteप्रेम में देना ही देना होता है-पूर्ण समर्पण ।
ReplyDeleteसमर्पण ही प्रेम है
ReplyDeleteप्रेम में बस समर्पण ही समर्पण ।।।
ReplyDeleteअद्भुत भाव