बड़े अजब संबंधों के पथ,
पल में गदगद, पल में लथपथ,
सारा तो संसार वही है,
दिन वैसा है, रात वही है,
धरती वैसी, वही नील नभ
वही रहे हम, बदले थे कब,
यह रहस्य पर समझ न आये,
कोई यह गुत्थी सुलझाये,
हम भी हतप्रभ, तुम भी हतप्रभ,
मन ने चाहा, सुधर गया सब।
मन ने चाहा, सुधर गया सब।
ReplyDeleteएकदम सही
सच कहा....
ReplyDeleteसम्बन्धों की दुनियादारी,
ReplyDeleteअनुबन्धों की बात करो।
सपने कब अपने होते हैं,
सपनों की मत बात करो।।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteरिश्तों की परिभाषा यही है।
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDelete"मन ने चाहा सुधर गया सब ।" वाह सर ! रिसते रिश्तों के लिए राम बाण मलहम आपने तैयार कर दिया । मैं तो कहना चाहूॅंगा ----------- यही मोह आसक्ति यही है / भावों की अभिव्यक्ति सही है / कोई अपना नही पराया / दृष्टि बदलती , रूप वही है ।
ReplyDeleteमन ही समस्या है और साध लिया जाये तो समाधान भी।
ReplyDeleteवाह! वाह! वाह! बेहतरीन।
ReplyDeleteBahut khoob!
ReplyDeleteयही गृहस्थी है :)
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