10.9.14

संबंधों के पथ

बड़े अजब संबंधों के पथ,
पल में गदगद, पल में लथपथ,
सारा तो संसार वही है,
दिन वैसा है, रात वही है,
धरती वैसी, वही नील नभ
वही रहे हम, बदले थे कब,
यह रहस्य पर समझ न आये,
कोई यह गुत्थी सुलझाये,
हम भी हतप्रभ, तुम भी हतप्रभ, 
मन ने चाहा, सुधर गया सब।

11 comments:

  1. मन ने चाहा, सुधर गया सब।
    एकदम सही

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  2. सम्बन्धों की दुनियादारी,
    अनुबन्धों की बात करो।
    सपने कब अपने होते हैं,
    सपनों की मत बात करो।।

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  3. रिश्‍तों की परिभाषा यही है।

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  4. बहुत खूब...

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  5. "मन ने चाहा सुधर गया सब ।" वाह सर ! रिसते रिश्तों के लिए राम बाण मलहम आपने तैयार कर दिया । मैं तो कहना चाहूॅंगा ----------- यही मोह आसक्ति यही है / भावों की अभिव्यक्ति सही है / कोई अपना नही पराया / दृष्टि बदलती , रूप वही है ।

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  6. मन ही समस्या है और साध लिया जाये तो समाधान भी।

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  7. वाह! वाह! वाह! बेहतरीन।

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