मन मूर्छित, निष्प्राण सत्य है,
मर्यादा से बिंधा कथ्य है ।
कह देता था, सहता हूँ अब,
तथ्यों की पीड़ा मर्मान्तक ।
आहत हृदय, व्यग्र चिन्तन-पथ,
दिशाशून्य हो गया सूर्य-रथ ।
क्यों जिजीविषा सुप्तप्राय है, मन-तरंग बाधित क्यों है ।
आग्रह है यदि सत्य-साधना, संशय प्रतिपादित क्यों है ।।१।।
जीवन-व्यवधानों में आकर,
प्राकृत अपना वेग भुलाकर,
क्यों उत्श्रृंखल जीवन-शैली,
सुविधा-मैदानों में फैली ।
समुचाती क्यों समुचित निष्ठा,
डर जाती क्यों आत्म-प्रतिष्ठा ।
दर्शनयुत सम्प्राण-चेतना, मर्यादा-शापित क्यों है ।
आग्रह है यदि सत्य-साधना, संशय प्रतिपादित क्यों है ।।२।।
कह जाते सारे शुभ-चिन्तक,
धैर्य धरो, हो शान्त पूर्ववत ।
समय अभी बन आँधी उड़ता,
पुनः सुखों की पूर्ण प्रचुरता ।
आगत आशा, व्यग्र हृदय, मन,
नीरवता में डूबा चेतन,
सुप्त नहीं हो सकता लेकिन जगना पीड़ासित क्यों है ।
आग्रह है यदि सत्य-साधना, संशय प्रतिपादित क्यों है ।।३।।
नहीं तथ्य लगता यह रुचिकर,
दुख आलोड़ित इन अधरों पर,
खिंच भी जाये यदि सुखरेखा,
सत्य रहे फिर भी अनदेखा ।
कृत्रिम व्यवस्था, सत्य वेदना,
किसके हित सारी संरचना ।
तम-शासित अनुचित तथ्यों में जीवन अनुशासित क्यों है ।
आग्रह है यदि सत्य-साधना, संशय प्रतिपादित क्यों है ।।४।।
दुख तो फिर भी रहा उपस्थित,
मन झेला पीड़ा संभावित ।
कह देता तो कुछ दुख घटता,
बन्द गुफा का प्रस्तर हटता ।
हो जाते बस कुछ जन आहत,
क्यों रहते पर पथ में बाधक ।
यथासत्य रोधित करने हित, मानव उत्साहित क्यों है ।
आग्रह है यदि सत्य-साधना, संशय प्रतिपादित क्यों है ।।५।।
जीवन स्थिर है नियम तले,
उस पर समाज-व्यवहार पले ।
एक वृहद भवन का ढाँचा सा,
पर अन्तर में सन्नाटा सा ।
हर रजनी दिन को खा जाती,
तम की कारा बढ़ती जाती ।
है सुख की चाह चिरन्तन यदि तो मन दुख से प्लावित क्यों है ।
आग्रह है यदि सत्य-साधना, संशय प्रतिपादित क्यों है ।।६।।
badhiya
ReplyDeleteमर्यादा की भी एक सीमा होती है । उसके बाद विद्रोह उपजता है ।
ReplyDeleteसुन्दर और भावप्रणव रचना।
ReplyDeleteगहन भावपूर्ण
ReplyDeleteआड़ोलित=आलोड़ित ?
बहुत आभार, ठीक कर लिया है।
Deleteगहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकभी- कभी संशय से भी राह निकलती है।
ReplyDeleteसुख की राह दुःख के पथ से गुजर कर ही मिलती है...
ReplyDeleteसमुचाती या सकुचाती?
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसर,यह तो अमृत तत्व की खोज है। इसपर मेरा नम्र निवेदन है―
ReplyDeleteअनुभव का ही जलन अभी है
मर्यादा तो शब्द - जाल है
अधर अभी अनजले रहे हैं
संशय ही सच्चा मराल है ।
सर,यह तो अमृत तत्व की खोज है। इसपर मेरा नम्र निवेदन है― - अनुभव का ही जलन अभी है / मर्यादा तो शब्द - जाल है / अधर अभी अनजले रहे हैं / संशय ही सच्चा मराल है ।
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