जीवन के सारे दृश्यों से,रोदन स्वर क्यों फूट रहे हैं ।क्यों नैतिकता के स्थापन,जगह जगह से टूट रहे हैं ।।विचारणीय..... यह हर संवेदनशील मन सोच रहा है
अाज के सर्वाधिक उपयोगी चिन्तन की काव्य रुप में प्रभावकारी प्रसतुति है।
सुन्दर पंक्तियाँ जो प्रेरणा देती हैं:-नैतिकता के प्रहरी जो हैंसदा चुनौती से आहत हैंदुष्ट लगे हैं अपकृत्यों मेंमानव दुष्ट-दलन में रत हैं
nice
इसे और विस्तृत करें
सब के मन में केवल सवाल है
अंधेरों में भी--किरण मौजूद होती है---काले बादलों में इंद्रधनुष होता ही है.प्रश्न जरूरी भी हैं----प्रश्नों में ही उत्तर निहित भी होते हैं.
आधुनिकता की टीस उभर के आती है पंक्तियों में।
बहुत सुंदर ...रक्षाबंधन की शुभकामनायें
beautiful lines
वाह!
शायद कलियुग अपने चरम की ओर बढ़ रहा है..
स्वार्थ की अंधी दौड में सब भाग रहे हैंकिसे फिक्र है मूल्यों की, नैतिकता की।
बहुत सुंदर , मंगलकामनाएं आपको !
मानव चरित्र का ह्रासमान होता जा रहा है।
जीवन के सारे दृश्यों से,रोदन स्वर क्यों फूट रहे हैं ।क्यों नैतिकता के स्थापन,जगह जगह से टूट रहे हैं ।।एकदम सुन्दर
प्रश्न उठने दीजिए। उत्तर कहीं आसपास ही होता है।
जीवन के सारे दृश्यों से,
ReplyDeleteरोदन स्वर क्यों फूट रहे हैं ।
क्यों नैतिकता के स्थापन,
जगह जगह से टूट रहे हैं ।।
विचारणीय..... यह हर संवेदनशील मन सोच रहा है
अाज के सर्वाधिक उपयोगी चिन्तन की काव्य रुप में प्रभावकारी प्रसतुति है।
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ जो प्रेरणा देती हैं:-
ReplyDeleteनैतिकता के प्रहरी जो हैं
सदा चुनौती से आहत हैं
दुष्ट लगे हैं अपकृत्यों में
मानव दुष्ट-दलन में रत हैं
nice
ReplyDeleteइसे और विस्तृत करें
ReplyDeleteसब के मन में केवल सवाल है
ReplyDeleteअंधेरों में भी--किरण मौजूद होती है---काले बादलों में इंद्रधनुष होता ही है.
ReplyDeleteप्रश्न जरूरी भी हैं----प्रश्नों में ही उत्तर निहित भी होते हैं.
आधुनिकता की टीस उभर के आती है पंक्तियों में।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...रक्षाबंधन की शुभकामनायें
ReplyDeletebeautiful lines
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteशायद कलियुग अपने चरम की ओर बढ़ रहा है..
ReplyDeleteस्वार्थ की अंधी दौड में सब भाग रहे हैं
ReplyDeleteकिसे फिक्र है मूल्यों की, नैतिकता की।
बहुत सुंदर , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteमानव चरित्र का ह्रासमान होता जा रहा है।
ReplyDeleteजीवन के सारे दृश्यों से,
ReplyDeleteरोदन स्वर क्यों फूट रहे हैं ।
क्यों नैतिकता के स्थापन,
जगह जगह से टूट रहे हैं ।।
एकदम सुन्दर
प्रश्न उठने दीजिए। उत्तर कहीं आसपास ही होता है।
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