उमड़ पड़े अनगिनत प्रश्न,
जब कारण का कारण पूछा ।
जगा गये सोती जिज्ञासा,
जीवन के अनसुलझे उत्तर ।।१।।
दर्शन की लम्बी राहों पर,
चलता ज्ञान शिथिल हो बैठा ।
नहीं किन्तु सन्तुष्टि मिली,
किस हेतु जी रहे जीवन हम सब ।।२।।
प्रसन्नता की सहज पिपासा,
मनुज सदा मधुरस को आतुर ।
सुख के साथ दुखों की लड़ियाँ,
किन्तु कौन यह पिरो रहा है ।।३।।
कृत्रिम सुखों पर ऋण अपार है,
सदा किसी पर ही आधारित ।
सुख की किन्तु प्रकृति शाश्वत है,
फिर भी अर्थहीन अवलम्बन ।।४।।
खोज रहा था, खोज रहा हूँ,
छिपा कहाँ है सुख का उद्गम ।
जहाँ दुखों की काली छाया,
लेश मात्र स्पर्श नहीं हो ।।५।।
मिला नहीं कोई सुख सुन्दर,
पाया बस शापित विषाक्त रस ।
स्वार्थ, लोभ, मद में सब डूबे,
मरु में अमिय कहाँ से लाऊँ ।।६।।
चिन्तन, मनन, गहन कर सोचा,
भौतिक मेरी प्रकृति नहीं है ।
सच पूछो तो सहज प्रकृति में,
अतुल, असीम आनन्द भरा है ।।७।।
कारण का सब स्रोत वही है,
वह सुख है, दुख है जो नहीं वह ।
मात्र वही आस्वादन कर ले,
मरु-मरीचिका सतत व्यर्थ है ।।८।।
आत्मा हैं, स्थूल नहीं हैं,
जीवन कोई भूल नहीं है ।
चक्रव्यूह से कब निकलोगे,
भौतिकता अनुकूल नहीं है ।।९।।
शानदार अभिव्यक्ति ..... उम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteकारण का सब स्रोत वही है,
ReplyDeleteवह सुख है, दुख है जो नहीं वह ।
मात्र वही आस्वादन कर ले,
मरु-मरीचिका सतत व्यर्थ है ।।८।।
बहुत ही सार्थक , यथार्थ शब्द लिखे हैं आपने
उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteयथार्थ शब्द,सुन्दर रचना....
ReplyDeleteआत्मा हैं, स्थूल नहीं हैं,
ReplyDeleteजीवन कोई भूल नहीं है ।
चक्रव्यूह से कब निकलोगे,
भौतिकता अनुकूल नहीं है ।..................यही बात समझनी है सबको। गहन सब कुछ।
बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteसही कहा है..
ReplyDeleteशब्द सामर्थ्य और भाव प्रवणता ही नहीं वरन् जीवन और इसकी अनुभूतियों को आध्यात्मिक परिदृश्य में ह्रदयंगम करने के लिए पर्याप्त आलोक इस कविता में दृष्टिगत है ।अत्यन्त उत्कृष्ट ही नहीं बल्कि अधुना तनाव से मुक्ति के लिए भी एक उपयोगी रचना है । यह मेरा विनम्र मत है । इसे पढ़कर विगत में रची अपनी निम्नांकित पंक्तियाॅं याद आ गईं -
ReplyDeleteसमाधान तो अंतस् में है न कि बाहरी सुख साधन ।
औदार्य,दया,उपकार,क्षमा हैं शान्ति विटप मन है कानन ।।
बहुत सुन्दर अध्यात्म के मर्म को समझाती सार्थक रचना ..
ReplyDeleteयह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें फंसते समय फंसने का भान नहीं होता।
ReplyDeleteJeevan ka Saar ..likha hai apne
ReplyDeleteबौतिकता अनुकूल नही है। हर पल का आनंद उठाना ही जीवन है। जो सामने आये उसे स्वीकारना ही श्रेय है।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
सभी कुछ प्रतिकूल ही है।
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