तेरे पथ का हर एक चरण,
गुजरे मधुवन की गुञ्जन में ।
तेरे जीवन की लब्ध पंक्ति,
हरदम भीगी हो चन्दन में ।।१।।
नवहृदय कक्ष की हर धड़कन,
जीवन-सुर की झंकार बने ।
यश-दीप दिशाआें में तेरा,
सौन्दर्य युक्त श्रृंगार बने ।।२।।
लावण्य तुम्हारे जीवन के,
रस-रागों का उत्प्रेरक हो ।
भावों की यह तरल भूमि,
आकर्षण का आधार बने ।।३।।
नव जीवन कक्ष की हर धड़कन
ReplyDeleteजीवन सुर की झंकार बने
यही झंकार तो मनुष्य को जीवीत रखे हुए है
अत्यंत सुन्दर भाव
अमीन !!!
ReplyDeleteभावपूर्ण
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहत सुन्दर प्रार्थना
ReplyDeleteहमारे रक्षक हैं पेड़ !
धर्म संसद में हंगामा
साधू साधू
ReplyDeleteप्रणाम सर। रूप लावण्य, सौन्दर्य ,रस ,भाव और राग तो श्रृंगार के संयोग पक्ष को पूर्णतया आवेशित ,आवेष्टित और गुम्फित कर लिया ।
ReplyDeleteयह कविता पाठकों को मन्त्रमुग्ध कर देने वाली है ।कामना हो तो ऐसी !
शब्दों को दो जब विस्तार
ReplyDeleteतुम अपनी मधुर वाणी में
लहराती स्वर लहरी संग
जीवन फूंकों हर प्राणी में
अद्भुत! अत्यन्त भावपूर्ण।
ReplyDeleteबहत सुन्दर भावाभिव्यक्ति!
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteसुन्दर। हमारी भी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसुन्दर - गीत ।
ReplyDeleteलावण्य से ओत- प्रोत!!!
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