2.8.14

अन्तहीन है ज्ञानस्रोत

अगणित रहस्य के अन्धकूप,
इस प्रकृति-तत्व की छाती में ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत,
मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।

विस्तारों की यह प्रकृति दिशा,
आधारों से यह मुक्त शून्य ।
लाचारी से विह्वल होकर,जीवन अपना ले डूबेगा ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।१।।

तू कण कण को क्यों तोड़ रहा,
जाने रहस्य क्या खोज रहा ।
इन छोटे छोटे अदृश कणों में डुबा स्वयं को भूलेगा ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।२।।

कारण असंख्य, कर्ता असंख्य,
मानव हन्ता, ये तत्व हन्त्य ।
कब तक जिज्ञासा बाण लिये, इन सबके पीछे दौड़ेगा ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।३।।

स्थिर न तुझसे विजित हुआ,
चेतन पर फिर क्यों दृष्टि पड़ी ।
जाने किसका आधार लिये, तू चरम सत्य पर पहुँचेगा ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।४।।

अपना प्रवाह न समझ सका,
मन के वेगों में उलझ गया ।
लड़खड़ा रहा तेरा पग पग, बाकी चालें क्या समझेगा ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।५।।

अपने घर में बैठे बैठे,
बाहर दिखता जो, देख रहा ।
अन्तर आकर खोलो आँखें, तब अन्तरतम को जानेगा ।
है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।६।।

28 comments:

  1. ला-जवाब!! अंतरमन की खोज ही यथार्थ खोज है।

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  2. खोज भी अंतहीन और ज्ञान भी अंतहीन ।

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  3. अगणित रहस्य के अन्धकूप,
    इस प्रकृति-तत्व की छाती में ।
    है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत,
    मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।
    अच्छी कविता

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  4. अपने-आप को समझने की प्रेरणा देती कविता. बहुत सुंदर रचना

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 3/08/2014 को "ये कैसी हवा है" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1694 पर.

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  6. हम अपने शुक्ष्म रूप को नहीं जान पाए ।
    ओर विराट रूप जानना कल्पना मात्र है।
    अंत हिन् है ज्ञान स्त्रोत्र। मानव तू क्या क्या ढूंढे गा।
    यथार्त सुन्दर रचना।

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  7. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 04/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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  8. ---क्या बात है ...सुन्दर रचना....
    अन्तर आकर खोलो आँखें, तब अन्तरतम को जानेगा ।..---उसी को तो खोज्रना है
    कारण असंख्य, कर्ता असंख्य,---कर्ता तो असंख्य हैं पर कारण एकही है ... वही है... सबका....

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  9. अन्तहीन है ज्ञानस्रोत ...
    -------.ज्ञान अंतहीन है...स्रोत तो एक वही है ....उसी को खोजे सब मिल जायगा....

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  10. लड़खड़ा रहा तेरा पग पग, बाकी चालें क्या समझेगा ।
    है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा ।।५।।

    ...........ला-जवाब" जबर्दस्त!!

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  11. नेति नेति. अच्छी रचना है.

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  12. बहुत सुंदर रचना......

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  13. है अन्तहीन यह ज्ञानस्रोत, मानव तू क्या क्या ढूँढ़ेगा
    सच मे ग्यान अनन्त आकाश सा है अथाह समुद्र सा न आदि न अन्त्1 सुन्दर कविता के लिये बधाई

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  14. लाजवाब ! हर पंक्ति में गहन गहन सोच परिलक्षित होता है |बधाई इस सोच और सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए |
    : महादेव का कोप है या कुछ और ....?
    नई पोस्ट माँ है धरती !

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  15. वाकई क्‍या-क्‍या ढूंढेगा? पता नहीं चैन से कब बैठेगा? तो पिछले ढाई माह से पद्य-प्रेमी हो गए हैं अाप। चलो अच्‍छा है।

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  16. सत्यं शिवं सुंदरम।

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  17. बहुत सुंदर...

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  18. one person cannot do everything...but each person can do something...

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  19. मानव अपनी खोज जारी रखेगा इस अनन्त ज्ञान सागर में।

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  20. बहुत सुन्दर

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  21. अपना प्रवाह न समझ सका,
    मन के वेगों में उलझ गया ।
    लड़खड़ा रहा तेरा पग पग,
    बाकी चालें क्या समझेगा
    ....वाह...बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...

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  22. अंतहीन सफ़र है खोज का ...

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  23. Gyan ka sagar aur behad khoobsoorat yeh panktiya

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  24. यही बोध हो जाये तो जीवन सफल हो जाए.

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