व्यथा से मुक्त, तेज से पूर्ण,
विजय से मुखमंडल उद्दीप्त ।
नेत्र में अंधकार असहाय,
निश्चय ज्वाला जले प्रदीप्त ।।१।।
भुजायें महाबली उद्दात्त,
कार्य में सकल ओर विस्तीर्ण ।
समय की तालों पर झंकार,
सफलता नाचे सुखद असीम ।।२।।
सदा ही अनुपेक्षित व्यक्तित्व,
विचारों में मेधा का शौर्य ।
वाक् में मधुरस के उद्गार,
तर्कों में अकाट्य सिरमौर्य ।।३।।
तुम्हारी चाल गजों सी मस्त,
शिराओं में सिंहों का वेग ।
क्रोध में मेघों का गर्जन,
सदा ही स्थिर रहे विवेक ।।४।।
सदा ही प्रेम सुधा से पूर्ण,
तुम्हारे हृदयों के आगार ।
लुटाते रहते सुख की धार,
न जाने क्या होता व्यापार ।।५।।
प्रश्नों का विस्तृत उत्तर,
तुम्हारे जीवन का हर कार्य ।
व्यथा के उन मोड़ों का तोड़,
जहाँ पर झुकना है अनिवार्य ।।६।।
आनंद दायक और प्रेरक कविता।
ReplyDeleteउत्कृष्ट ....
ReplyDeleteतुम्हारी चाल गजों सी मस्त,
ReplyDeleteशिराओं में सिंहों का वेग ।
क्रोध में मेघों का गर्जन,
सदा ही स्थिर रहे विवेक ...
बहुत उत्तम ... इतना कुछ हो तो ऐसे में विवेक तो रहना ही चाहिए ...
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमुझे समझ में नहीं आया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteकौन है इतने सारे गुणों को समेटे हुए.
ReplyDeleteबहुत उत्तम ...
ReplyDeletebahut khoob :) ati uttam
ReplyDeleteकोई निकट का ही है...
ReplyDeleteमुझे टिप्पणी करने के लिए सच में कोई शब्द नहीं मिलते। बहुत खूब
ReplyDeleteबे -हद सशक्त ओजपूर्ण रचना शब्द चयन झंकार लिए है टंकार लिए है। आनंद लिए है रसधार लिए है।
ReplyDeleteलगता है जैसे प्रसाद जी की कविता पढ़ रही हूँ ....ओजपूर्ण ,संस्कृतनिष्ठ और प्रवाहमयी ।
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteलयबद्ध ,उत्तम प्रवाह ....!!
ReplyDeleteप्रश्नों का विस्तृत उत्तर,
ReplyDeleteतुम्हारे जीवन का हर कार्य ।
व्यथा के उन मोड़ों का तोड़,
जहाँ पर झुकना है अनिवार्य ।
उत्कृष्टता लिये सशक्त प्रस्तुति
इसका शीर्षक " मेरा परिचय" होना चाहिए था.
ReplyDeleteयह तो आप ही हैं!!!