विधि के हाथ रचे जीवन का, भार उठाये हाथों में,
आहों का उच्छ्वास रोककर, फूली, उखड़ी साँसों में ।
कष्ट हृदय-बल तोड़ रहा, रह शान्त वेदना सहते हैं,
आँखों से पर बह आँसू दो, कई और कहानी कहते हैं ।।१।।
है बाढ़, मड़ैया डूब रही, पुनिया शंकित, चुपचाप खड़ी,
बहता जाता जल वेगवान, कंपित मन, स्थिर हुये प्राण ।
भर आयीं पर आँखें रो रो, याद रहा, बस हुये वर्ष दो,
था निगल गया एक चक्रवात, मेरे नन्हे से कान्हू को ।।२।।
गंगू के खेतों में सूखा, आस वाष्पित, जीवन रूखा,
क्षुब्ध हृदय, विधि का प्रहार, देखे नभ, कोसे बार बार ।
तब जल आँखों में आयेगा, और प्रश्न यही कर जायेगा,
कैसे साहू का कर्ज पटा, बेटी का ब्याह रचायेगा ।।३।।
पुत्र शहीद हुआ सीमा पर, दुख में डूबे थे गंगाधर,
पुत्र गया था माता के हित, गर्वयुक्त था मन जो आहत ।
पर बेटे की सुध धुँधलाये, भीगी आँखें, कौन बताये,
कैसे बीते पुत्रवधू का, खड़ा शेष जीवन मुँह बाये ।।४।।
राधे तपता, जलता ज्वर में, अकुलाता रह रह अन्तर में,
तन की पीड़ा सब गयी भूल, उठता मन में एक प्रश्न-शूल ।
दृगजल बहता, कह जायेगा, यदि नहीं दिहाड़ी पायेगा,
कैसे कल चावल-भात बिना, बच्चों की भूख मिटायेगा ।।५।।
मार्मिक
ReplyDeleteपुत्र शहीद हुआ सीमा पर, दुख में डूबे थे गंगाधर,
ReplyDeleteपुत्र गया था माता के हित, गर्वयुक्त था मन जो आहत ।
@ यही गर्व मातृभूमी पर बलि होने वालों को प्रेरित करता है !!
पर बेटे की सुध धुँधलाये, भीगी आँखें, कौन बताये,
कैसे बीते पुत्रवधू का, खड़ा शेष जीवन मुँह बाये ।।४।।
@ यही विडम्बना है !!
कष्ट ह्रदय बल तोड़ रहा शांत वेदना सहता है
ReplyDeleteजीवन का कडुवा सत्य
हृदयस्पर्शी......
ReplyDeleteव्यथा एक रूप अनेक
ReplyDeleteरोंगटे खड़े हुए
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2014/07/blog-post_5.html
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-07-2014) को "मैं भी जागा, तुम भी जागो" {चर्चामंच - 1666} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन आज की बुलेटिन, ईश्वर करता क्या है - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआँखों से पर बह आँसू दो, कई कहानी कहते हैं ।।१।।
ReplyDeleteजीवन ...व्यथा .... विविध रूप लिए ...हृदयस्पर्शी भाव ....!!
मार्मिक रचना...
ReplyDeleteजीवन की विकट विवशता का उत्कृष्ट कवितामयी निरूपण।
ReplyDelete.अद्धभुत .......मार्मिक रचना...
ReplyDeleteकल 08/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
मार्मिक ... कविता में जीवंत भाव ढल दिए ...
ReplyDelete"चाट रहे हैं जूठी पत्तल कभी सडक पर खडे हुए
ReplyDeleteऔर झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अडे हुए ।"
निराला
विधि के आगे सब बेबस हैं।
ReplyDeleteवाज रे जीवन। विधान के आगे सब कुछ बेकार। दुःख और भावो को बेहद मर्स्पर्शी शब्दों के साथ रखा आपने। बढ़िया
ReplyDeleteसोचना होगा ये आँसू कैसे दूर हो !
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी......
ReplyDeleteबेहतरीन.....मार्मिक रचना
ReplyDeleteदिल को छू गयी..बहुत मार्मिक
ReplyDeleteसभी की अपनी पीड़ा, अपने घाव हैं.
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