स्वतः तृप्ति है, प्रेम शब्द में प्यास नहीं है,
मात्र कर्म है, फल की कोई आस नहीं है,
प्रेम साम्य है, कभी कोई आराध्य नहीं है,
सदा मुक्त है, अधिकारों को साध्य नहीं है ।
यदि कभी भी प्रेम का विन्यास लभ हो जटिलता को,
सत्य मानो प्राप्ति की इच्छा जगी है, अनबुझी है ।
प्राप्ति का उद्योग यूँ ही मधुरता को जकड़ता है,
प्रेम तो उन्मुक्तता है, व्यथा शासित तम नहीं है ।।
प्रेम का निष्कर्ष सुख है,
वेदना का विष नहीं है ।
अमरता का वर मिला है,
काल से शापित नहीं है ।।
प्रेम में रची बसी उत्तम रचना
ReplyDeleteMost beautiful treatment of the topic of love.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 21/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
प्रेम की सही परिभाषा. सुंदर रचना.
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ReplyDeleteयदि कभी भी प्रेम का विन्यास लभ हो जटिलता को,
सत्य मानो प्राप्ति की इच्छा जगी है, अनबुझी है ।
प्राप्ति का उद्योग यूँ ही मधुरता को जकड़ता है,
प्रेम तो उन्मुक्तता है, व्यथा शासित तम नहीं है ।।
प्रेम का निष्कर्ष सुख है,
वेदना का विष नहीं है ।
अमरता का वर मिला है,
काल से शापित नहीं है ।।
बिल्कुल सच ....
बहुत शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteकर्म की परेरणा देती हुई।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, पानी वाला एटीएम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमात्र कर्म है, फल की कोई आस नहीं है,--प्रेम का बहुत ही उदात्त रूप है अलौकिक भी क्योंकि लोक में यह प्रेम दुर्लभ है ।
ReplyDelete"prem ka nishkarsh sukh hai " :)
ReplyDeleteBilkul sahi
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुंदर परिभाषा प्रेम की..
ReplyDeleteगीत के लिए नहीं गद्य के लिए, प्रेम की सुंदरता परिभाषित करने के लिए...वाह!
ReplyDeleteशानदार...
ReplyDeleteप्रेम का निष्कर्ष सुख है,
ReplyDeleteवेदना का विष नहीं है ।
अमरता का वर मिला है,
काल से शापित नहीं है ।।
सुन्दर रचना...
प्रेम अपने आप में परिपूर्ण है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteप्रेम ही परमेश्वर है ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
उन्मुक्त प्रेम प्रभु से मिलन।
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