है अभी दिन शेष अर्जुन,
लक्ष्य कर संधान अर्जुन ।
सूर्य भी डूबा नहीं है,
शत्रु भी तेरा यहीं है,
शौर्य के दीपक जला दे, विजय की हुंकार भी सुन ।
है अभी दिन शेष अर्जुन ।।१।।
सही की चाहे गलत की,
पार्थ तुमने प्रतिज्ञा की,
अगर निश्चय कर लिया तो, लक्ष्य का एक मार्ग भी चुन ।
है अभी दिन शेष अर्जुन ।।२।।
व्यर्थ का नैराश्य तजकर,
असीमित आवेश भरकर,
करो तर्पित सिन्धु भ्रम के, व्यथाआें के तार मत बुन ।
है अभी दिन शेष अर्जुन ।।३।।
सूर्य मेघों में छिपा था,
काल तेरे हित रुका था,
जीवनी जब तक रहेगी, रहेगा दिन शेष अर्जुन ।
है अभी दिन शेष अर्जुन ।।४।।
जीवन जीने की संदेश देती कविता. सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिनांक 17/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
है अभी दिन शेष अर्जुन,
ReplyDeleteलक्ष्य कर संधान अर्जुन ।
..लक्ष्य पर अडिग बने रहने की प्रेरक प्रस्तुति
काश हम व्यर्थ का नैराश्य ताज पाते
ReplyDeleteतो निश्चित ही इतिहास में अर्जुन की ही तरह देखे जाते
पर लगा लेते है बड़ी बड़ी आशाएं
इसीलिए जीवन के दिन है रोते रोते कट जाते
।।।।
प्रेरक प्रस्तुति
वाह... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआशा ही है जीवन का आधार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ओजपूर्ण स्तुत्य रचना।
ReplyDeleteबेहद ओजस्वी रचना गीता सार की तरह बधाई पाण्डेय जी
ReplyDeleteवाह! सुंदर रचना , समाज में फैली कुरीतियों को चुनौती एवं खुद को साहस देती बेहद ओजस्वी बहुत सुंदर रचना. अच्छे चरित्र को एक नया आयाम देती कविता.
ReplyDeleteसमय तो आखिरी श्वास तक हमारी राह देखता है...सुंदर रचना
ReplyDeleteदृढ़ विश्वास और परिश्रम ही फलीभूत होते हैं।
ReplyDeleteवाह....सुंदर रचना
ReplyDeleteअनुपम भावों का संगम ..... उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteओजपूर्ण रचना........
ReplyDeleteUpyukt sandesho ke saath likhi rachna sarthak.....badhai
ReplyDeleteजीवन का पथ दिखलाती कविता।
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