्येय जीवन का नियत करना स्वयं, राह में काँटों की गिनती भूलकर, एक राही खुद बनाए मंज़िलें, राहों को भी शर्मा दे जो उसके हौंसले, वो शख्स जिसे खुद दुनियाँ करती नमन!
ध्येय चाहे कितना मुश्किल हो मगर, पथ में भी कंटक लाख आएँ मगर, राहों को मोड़ मंज़िल का नज़ारा पाएगा, अनन्त सुख जीवन का वहीं मिल जाएगा!
अब त्याग भ्रम कर ले शपथ, ऐ दृढ़निश्चयी अब कर ले हठ, ना त्याग मान ना कर अभिमान, बस पग बढ़ा औ छू जरा, है धरा छोटी थोड़ा सा हैआसमॉ, आकाश नाप धरती को बाँध, करता अजब जो है विकट, देता चुनौती ध्येय तेरा दूसरों को, गर ध्येय पथ का कर्म है ये निष्कपट!
वाह ...पर ये निर्णय है कठिन, मानो सब कुछ ही चाहिए हमें
ReplyDeleteमन के द्वंद से मुक्त होने पर ही सफलता के मार्ग-प्रसस्त होते है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteध्येय दोनों हो ,बस ताल-मेल हो
ReplyDeleteउच्छृंखल हो उडूं जब,
मन में डोर की गहन जकड़ हो। । बहुत सुन्दर ...
या दोनों ही मिलते हैं या एक भी नहीं..
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteध्येय की सुचिता हो किन्तु अभिव्यक्ति स्पष्ट होनी चाहिये।
ReplyDeleteध्येय को निश्चित करना और हासिल करना भी एक ध्येय ही है . किस तरह नियत हो ध्येय , यह भी ध्येय !
ReplyDeleteमार्ग वही जो सबके लिए सुखद हो !
लक्ष्य हमेशा बडा बनाना प्रभु ही उस तक पहुँचाएगा ।
ReplyDeleteउस पर सदा भरोसा करना नट - वर ही पार लगाएगा ।
उन्मुक्त छन्द आपके अभिव्यक्ति की शैली तो
ReplyDeleteना थी मगर बहुत सुंदर बन पड़ी है.
्येय जीवन का नियत करना स्वयं,
ReplyDeleteराह में काँटों की गिनती भूलकर,
एक राही खुद बनाए मंज़िलें,
राहों को भी शर्मा दे जो उसके हौंसले,
वो शख्स जिसे खुद दुनियाँ करती नमन!
ध्येय चाहे कितना मुश्किल हो मगर,
पथ में भी कंटक लाख आएँ मगर,
राहों को मोड़ मंज़िल का नज़ारा पाएगा,
अनन्त सुख जीवन का वहीं मिल जाएगा!
अब त्याग भ्रम कर ले शपथ,
ऐ दृढ़निश्चयी अब कर ले हठ,
ना त्याग मान ना कर अभिमान,
बस पग बढ़ा औ छू जरा,
है धरा छोटी थोड़ा सा हैआसमॉ,
आकाश नाप धरती को बाँध,
करता अजब जो है विकट,
देता चुनौती ध्येय तेरा दूसरों को,
गर ध्येय पथ का कर्म है ये निष्कपट!
नियत करना तो चाहिए, पर यह कठिन बहुत है.
ReplyDeleteपैर धरती पर रहते हुए गगन को छूने की कोशिश होनी चाहिए
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