उत्कर्षों को छूती इच्छा,
मात्र कल्पना का आच्छादन ।
निष्कर्षों से शून्य धरातल,
जाने तुमसे क्या पाना है ?
बन्द नयन में मेरे तेरी,
छिपी हुयी है रूप-धरोहर ।
मन में तेरा पूरा चित्रण,
सच में लेकिन क्या जाना है ?
कभी बैठ एकान्त जगह,
तू हँसती है, मैं सुनता हूँ ।
इन स्वप्नों के अर्धसत्य को,
कब तक यूँ ही झुठलाना है ?
अथक कल्पना, अतुल समन्वय,
मन भावों की कोमल रचना ।
इस प्रतिमा में लेकिन जाने,
कैसा रंग चढ़ाना है ?
कल्पनाशील मन क्या क्या रचे ....? यथार्थ हर बार सामने आ जाता है
ReplyDeleteकल्पना के सच को चित्रित करती कविता. सुंदर रचना.
ReplyDeleteआप की ये खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteदिनांक 03/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
आप भी इस हलचल में अवश्य आना...
सादर...
कुलदीप ठाकुर...
Kya baat hai kya baat hai ...meri bhi saheli hai Kalpana lekin aapki Kalpana kuch khaas hai :-)
ReplyDeleteअथक कल्पना व अतुल समन्वय वाले मन भावों की कोमल रचना उतनी ही सुंदर भी है।
ReplyDeleteउत्कर्षों को छूती इच्छा,
ReplyDeleteमात्र कल्पना का आच्छादन ।
निष्कर्षों से शून्य धरातल,
जाने तुमसे क्या पाना है ?
....वाह...लाज़वाब अहसास...बहुत सुन्दर
अथक कल्पना, अतुल समन्वय,
ReplyDeleteमन भावों की कोमल रचना ।
इस प्रतिमा में लेकिन ,
कैसा रंग चढ़ाना है ?
.......... रंगों की खोज में कई बार मन भी रंग जाता है तो बरबस ये प्रश्न उभर आता है अंतस में
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन पूँजी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों का संयोजन
ReplyDeleteसंयोजन में अद्भुत लय भी
लय में गुंफित भाव अनोखे
इस कविता में सब पाना है।
एक अलौकिक सौन्दर्य और माधुर्य है कविता में. राग झिंझोटी की तरह लयबद्ध।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteWaah
ReplyDeleteकल्पना अति प्रिय,प्यारी,सुमधुर।
ReplyDeleteछुते ही उड़ जाती है,परियों की भांति।
अति सुन्दर प्रस्तुति।
अथक कल्पना, अतुल समन्वय,
ReplyDeleteमन भावों की कोमल रचना ।
इस प्रतिमा में लेकिन जाने,
कैसा रंग चढ़ाना है ..
प्रेम के रंगों के सिवा और कोई रंग स्थाई कहाँ होते हैं ... भावपूर्ण रचना ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अति सुंदर प्रस्तुति ,,,,
ReplyDeleteसुन्दर लालित्यमय कविता ...हाँ कुछ शब्द-युग्मों का समन्वय नहीं बैठता....
ReplyDeleteIs komal rachana par kewal prem ka rang chadhana hai
ReplyDeleteकल्पना की अतिशयता, यथार्थ से दूर होती है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2014/07/blog-post_3274.html
ReplyDeleteसुन्दरता के अाकर्षण में अर्धसत्य ही है। यही विचलित करता है।
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteअतुल समन्वय
ReplyDeleteनिष्कर्षों से शून्य धरातल,
ReplyDeleteजाने तुमसे क्या पाना है ?
..लाज़वाब ...बहुत सुन्दर