7.6.14

प्रयास तुम्हारा

उलझा दी हर डोर, हमें जो बाँध रही थी,
छिन्नित संस्कृति वहीं जहाँ से साध रही थी ।
देखो फूहड़ता छितराकर बिखरायी है,
निशा-शून्यता विहँस स्वयं पर इठलायी है ।

जाओ इतिहासों के अब अध्याय खोज लो,
नालंदा और तक्षशिला, पर्याय खोज लो ।
सपनों और अपनों में झूल रहा जीवन है,
आत्म-प्रेम के वैभव का उन्माद चरम है ।

यदि ला पाना कहीं दूर से समाधान तुम,
तब रच लेना मेरे जीवन का विधान तुम ।
औरों की क्या कहें, स्वयं पर नहीं आस्था,
विश्व भरेगा दंभ तुम्हारे हर प्रयास का ।

25 comments:

  1. श्रेय - प्रेय के बीच कठिन है चल पाना आता है तम ध्येय - मात्र है भटकाना ।
    चञ्चल-मन शावक-सम दौडा जाता है नियति यही है भाग-भाग कर पछताना॥

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  2. सपनों और अपनों में झूल रहा जीवन है,
    आत्म-प्रेम के वैभव का उन्माद चरम है .....गहन भाव

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  3. गहन भाव लिए उम्दा अभिव्यक्ति

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  4. बहुत सुंदर !!

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  5. नालंदा और तक्षशिला अब इतिहास हो गए
    ठेलों और ठेकों में चल ने वाले गुरुकुल ? खास हो गए
    बातें शिक्षा की बेमानी सी लगती है
    देखने को पुराना वैभव यह पीढी तराशती है

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  6. कल 08/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कब होगा इंसाफ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. बहुत ही सशक्त, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  9. औरों का कहें स्वयं पर नही आस्था,
    यही है आज की स्थिति और नियति

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  10. सपनों और अपनों में झूल रहा जीवन है,
    आत्म-प्रेम के वैभव का उन्माद चरम है ।
    .... बेहद गहन भाव लिये सशक्‍त प्रस्‍तुति

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  11. औरों की क्या कहें, स्वयं पर नहीं आस्था,
    विश्व भरेगा दंभ तुम्हारे हर प्रयास का ।
    … बहुत सही....

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  12. बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति...गहन अनुभूति..आभार

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  13. बहुत दिनों बाद पढ पाई हूं ...अच्छा है हमेशा की तरह

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  14. जाओ इतिहासों के अब अध्याय खोज लो,
    नालंदा और तक्षशिला, पर्याय खोज लो ।
    सपनों और अपनों में झूल रहा जीवन है,
    आत्म-प्रेम के वैभव का उन्माद चरम है ।

    सशक्त अभिव्यक्ति!

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  15. जाओ इतिहासों के अब अध्याय खोज लो,
    नालंदा और तक्षशिला, पर्याय खोज लो ।
    सपनों और अपनों में झूल रहा जीवन है,
    आत्म-प्रेम के वैभव का उन्माद चरम है ।

    बहुत सुंदर...

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  16. उम्दा...सार्थक प्रस्तुति...

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  17. औरों की क्या कहें, स्वयं पर नहीं आस्था,
    विश्व भरेगा दंभ तुम्हारे हर प्रयास का ..

    गहरा भाव ... पर स्वयं में आष्टा तो जगानी होती नहीं तो विश्व का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा ...

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  18. आप तो स्वयं के प्रयास पर विश्वास करने वालों में से हैं ...... फिर मन उलझा सा क्यों लग रहा है ?

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    1. yahi main kahne wali thi :)

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    2. कभी कभी सब गड्डमगड्ड सा लगता है, स्थापित प्राचीर टूटती दिखती है, सदियों से स्थापित संस्कृति की प्राचीर। मन तब पुकार उठता है, कोई भी दिशा, कोई भी गति।

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  19. आत्मविश्वास से लकदक व्यक्ति (स्वयं पर नहीं आस्था,), क्यों थके प्रतीत लग रहे हैं।

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  20. सपनों और अपनों में झूल रहा जीवन है,
    आत्म-प्रेम के वैभव का उन्माद चरम है ।
    .... बेहद गहन भाव लिये उम्दा...सार्थक प्रस्तुति...

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  21. ये भाव क्षणिक हैं .... विश्वास औए प्रयास तो आपके व्यक्तित्व से झलकते हैं | शुभकामनाएं

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  22. आप आकर चले भी गए।

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