दो खुशी के पल मिलें,
तो मुक्त हो बाँहें खिलें ।
सत्य है इन ही पलों के,
हेतु जीवन जी रहा है ।।१।।
अपेक्षित तो बहुत कुछ है,
दृष्टि में पर्याप्त सुख है ।
किन्तु यह निष्ठुर व्यवस्था,
भाग अपना माँगती है ।।२।।
क्यों नियम के शासनों में,
रूढ़ियों के तम घनों में ।
मुक्ति की उत्कट तृषा में,
घुट गयी स्वच्छन्दता है ।।३।।
शक्ति से है, दोष ऊर्जित,
अहम् में सारल्य अर्पित ।
काल ही निर्णय करेगा,
लोक जिस पथ जा रहा है ।।४।।
व्यर्थ ही सब लड़ रहे हैं,
घट क्षुधा के भर रहे हैं ।
पर खुशी की पौध केवल,
प्रेम के जल की पिपासी ।।५।।
क्यों नियम के शासनों में,
ReplyDeleteरूढ़ियों के तम घनों में ।
मुक्ति की उत्कट तृषा में,
घुट गयी स्वच्छन्दता है
x x x
काल ही निर्णय करेगा,
लोक जिस पथ जा रहा है
भाई
इन उद्गारों को अब पुस्तकाकार रूप में आ जाना चाहिये. टुकउ़ों में पढ़ने में मजा नहीं आता.
भावना जो मन में पलती
ReplyDeleteदेखते हैं नयन उसको ।
आज - अब ही है हमारा
कल की है परवाह किसको ?
बहुत ही भावभरी कविता
ReplyDeleteआपकी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - पुण्यतिथि श्री श्रद्धाराम फिल्लौरी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteपर खुशी की पौध केवल,
ReplyDeleteप्रेम के जल की पिपासी
सार्थक सार .....
सार्थक भावभरी कविता......
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण .
ReplyDeleteमृग तृष्णा से ही शक्ति, अहम् सभी आकार लेते हैं।
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteकल 27/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
सार्थक सुन्दर भाव..आभार
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteव्यर्थ की उलझन है , द्वेष है ...पर निकल कहाँ पाते हैं हम सब .....
ReplyDeleteसरल जीवन ..बहुत सुंदर भाव ....!!
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
ReplyDeleteकाल ही निर्णय करेगा,
ReplyDeleteलोक जिस पथ जा रहा है
बहुत ही ऊर्जा लिए हुए हैं आपकी रचना के शब्द
सुंदर रचना !!
ReplyDeleteपर खुशी की पौध केवल,
ReplyDeleteप्रेम के जल की पिपासी
… सच ख़ुशी प्रेम से ही मिल सकती है
बहुत सुन्दर
Bhut sundar...
ReplyDeleteजीवन दर्शन के सरल प्रश्न को उकेरती कविता।
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