ना जानू मैं अन्तरतम में,
अवचेतन की सुप्त तहों में,
अनचीन्हा, अनजाना अब तक,
कौन छिपा सा रहता है ?
मन किससे बातें करता है ?
भले-बुरे का ज्ञान कराये,
असमंजस में राह दिखाये,
इस जीवन के निर्णय लेकर,
जो भविष्य-पथ रचता है ।
मन किससे बातें करता है ?
पीड़ा का आवेग, व्यग्रता,
भावों का उद्वेग उमड़ता,
भीषण आँधी, पर भूधर सा,
अचल, अवस्थित रहता है ।
मन किससे बातें करता है ?
निद्रा के एकान्त महल में,
चुपके से, हौले से आकर,
भावों की मनमानी क्रीड़ा,
स्वप्न-पटों से तकता है ।
मन किससे बातें करता है ?
" कोई पास न रहने पर भी जन - मन मौन नहीं रहता ।
ReplyDeleteआप - आप से कहता है वह आप आप की वह सुनता ॥"
पञ्चवटी से - मैथिली शरण गुप्त
Good Morning
ReplyDeleteएक पहेली
जिसका हल आप भी ढूँढने निकले
उम्दा रचना रच लिए
God Bless you
हर घडी हर पल अनहोनी से डरता है
ReplyDeleteजाने मन किस्से बातें करता है
अपनी ही चिंताओं से अपनी आशंकाओं से मरता है
जाने मन किससे बातें करता है
हर घडी हर पल अनहोनी से डरता है
ReplyDeleteजाने मन किस्से बातें करता है
अपनी ही चिंताओं से अपनी आशंकाओं से मरता है
जाने मन किससे बातें करता है
यह दुविधा एक बड़ा प्रश्न है.... संभवतः सभी जूझते हैं इससे
ReplyDeleteमन की चंचलता सुसुप्तावस्था में भी बनी रहती है...यूँ होता तो क्या होता...इसी उधेड़-बुन में...
ReplyDeleteQuite internalisation- Only the aspirants will attain success. Regards.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल jरविवार (22-06-2014) को "आओ हिंदी बोलें" (चर्चा मंच 1651) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर रचना
ReplyDeleteमन को छूती अभिव्यक्ति
सादर -----
ReplyDeleteमन किससे बातें करता है ,पता चल जाए तो क्या बात है। दिवा स्वप्न देखा किया रोज़ ब रोज़
भले-बुरे का ज्ञान कराये, असमंजस में राह दिखाये, इस जीवन के निर्णय लेकर, जो भविष्य-पथ रचता है । मन किससे बातें करता है ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteनिद्रा के एकान्त महल में,
चुपके से, हौले से आकर,
भावों की मनमानी क्रीड़ा,
स्वप्न-पटों से तकता है ।
मन किससे बातें करता है ?
सुन्दर पंक्तियाँ |उम्दा रचना |
परमेश्वर है सखा हमारा
ReplyDeleteनिशि-दिन सँग वही रहता है ।
वह द्रष्टा बनकर हमें देखता
मन उससे बातें करता है ।
बहुत सुन्दर आत्म मंथन ,सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteनौ रसों की जिंदगी !
मन मन से बातें करता है , पर न जाने किस मन से करता है ...
ReplyDeleteप्रश्न हर मन से करता है !
अच्छी रचना !
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन अमरीश पुरी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
ReplyDeleteसदा एक रहस्य बना रहता है।
ReplyDeleteभावों की मनमानी क्रीड़ा,
ReplyDeleteस्वप्न-पटों से तकता है ।
मन किससे बातें करता है ?
.........सुन्दर पंक्तियाँ मन को छूती अभिव्यक्ति :))
जो मन का रचने वाला है
ReplyDeleteजो मन का पालन करता है
शायद उससे ...
मन किससे बातें करता है ? :)
ReplyDeleteयह तो सभी का प्रश्न है. उसी परम की खोज ही जीवन का चरम है.
ReplyDeleteचंचल मन को परिभाषित करती कविता. सुंदर रचना.
ReplyDeleteस्वप्न-पटों से तकता है ।
ReplyDeleteमन किससे बातें करता है ?....बहुत खूब !
मन की बातों का साथी दृश्यमान न होकर भी कितना आकर्षक है। बहुत मनमोहक कविता।
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