-सुंदर रचना... आपने लिखा.... मैंने भी पढ़ा... हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना... दिनांक 08/05/ 2014 की नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है... आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है... हलचल में सभी का स्वागत है...
ढाढ़सी मौसम- काली घटाएँ हौंसला देती हैं बस रसद कम- बरसते कम हैं जी ले लल्ला-जीवन चलता रहेगा बैठ निठल्ला-इन्तजार न कर पानी बरसे-सुख समृद्धि आएगी झम झमाझम। बढ़ती जाएगी ----- इसके लिए मेहनत कर । साथी ने कहा व्याख्या करके दिखाओ तो सोचा आपसे भी बाँट लूँ । ब्लाग बुलेटिन का आभार
हा हा हा , अच्छे दिन आने वाले हैं ।
ReplyDeleteकहाँ से बरसेगा झमाझाम पानी उसे तो हम ही रोक रहें है भाई साहब
ReplyDeleteबढ़िया है ....
ReplyDelete-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 08/05/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
waah ... boondon ka naad .... aur shandon ka khel ... lajawab ...
ReplyDelete" पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश
ReplyDeleteपल-पल परिवर्तित प्रकृति वेष।"
पन्त
☆★☆★☆
वाऽह…!
पानी बरसे
झम झमाझम
:)
शुकुन के पल. सुंदर रचना .
ReplyDeleteढाढ़सी मौसम क्या है? ढाढ़स वाला?
ReplyDeletemastee ka mood
ReplyDelete:) अब ये भी
ReplyDeleteBin mausam barsaat kya suhani lagti hai :)
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बाबा का दरबार, उंगलीबाज़ भक्त और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर झम झमाझम.
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeletenice expression .
ReplyDeleteढाढ़सी मौसम- काली घटाएँ हौंसला देती हैं
ReplyDeleteबस रसद कम- बरसते कम हैं
जी ले लल्ला-जीवन चलता रहेगा
बैठ निठल्ला-इन्तजार न कर
पानी बरसे-सुख समृद्धि आएगी
झम झमाझम। बढ़ती जाएगी ----- इसके लिए मेहनत कर । साथी ने कहा व्याख्या करके दिखाओ तो सोचा आपसे भी बाँट लूँ । ब्लाग बुलेटिन का आभार
बहुत बढिया..
ReplyDeleteऔर खासतौर पर जब इस गर्मी के मौसम में अचानक बादलों के छा जाने से झमझमा हो जाती है तब तो कहना ही क्या।।। बेहतरीन प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteवाह. वाह. बनारस का मौसम उघड गया.
ReplyDeleteवाह बरस गया यहाँ भी :)
ReplyDeleteगंभीर चिन्तन-मनन करने के बाद यह बरसात की झमाझम - बहुत रिलीफ़ मिला होगा ! हमें भी अच्छा लगा .
ReplyDeleteचंद पंक्तियाँ मगर असरदार!
ReplyDeleteबरसो राम धडाके से............।
ReplyDeleteहाहा...खूब कविताएं लिख रहे इस समय :) :)
ReplyDeleteजबरदस्त...
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