नयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें... जिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 29/05/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...] सादर... चर्चाकार कुलदीप ठाकुर क्या आप एक मंच के सदस्य नहीं है? आज ही सबसक्राइब करें, हिंदी साहित्य का एकमंच.. इस के लिये ईमेल करें... ekmanch+subscribe@googlegroups.com पर...जुड़ जाईये... एक मंच से...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (30-05-2014) को "समय का महत्व" (चर्चा मंच-1628) पर भी है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यहां मनुष्य जीव को यह अनुभव हो जाएं कि, हकीकत में मैं ईश्वर अंश है यां मैं स्वयं संपूर्ण ईश्वर है जी 🙏 बहुत सुंदर अद्भुत वर्णन किया है आपने स्मृति शब्द का जी
" मुझे तोड लेना वन - माली उस पथ पर तुम देना फेंक ।
ReplyDeleteमातृ - भूमि पर शीष चढाने जिस पथ जायें वीर अनेक ॥"
माखन लाल चतुर्वेदी
नयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
ReplyDeleteजिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 29/05/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...]
सादर...
चर्चाकार कुलदीप ठाकुर
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बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteयूँ ही स्मृति के पुष्प ध्येय की वेदी पर समर्पित होते रहें । आमीन
ReplyDeleteअति सुन्दर...
ReplyDeleteआमीन !!!!
ReplyDeleteस्मृति की शिखा जलती रहे तो मार्ग प्रशस्त हो जाता है, स्मृति लब्ध्वा...
ReplyDeleteस्मृति के पुष्प बिसराने न दे !
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteशीर्ष पर पहुंच कर स्मृति पुष्प कर्मवेदी पर अर्पित!
ReplyDeleteस्मृति की शिखा यूँ ही जलती रहे ..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteगहन सशक्त भाव सुन्दर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteध्येय की वेदी पर कर्म के पुष्प चढाने होते हैं स्मृति के नहीं ...
ReplyDeleteअति सुन्दर.....
ReplyDeletewaah
ReplyDeleteरुको ध्येय की वेदी पर मैं,
ReplyDeleteस्मृति के कुछ पुष्प चढ़ा दूँ
अति सुन्दर........
बहुत सुन्दर शब्द और अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteजहाँ इतनी जागरूकता, इतना कर्तव्य बोध हो, वहां कोई जीवन का पथ भूल कैसे सकता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (30-05-2014) को "समय का महत्व" (चर्चा मंच-1628) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Waaah!! sundar !!
ReplyDeletesunder !!
ReplyDeleteसुन्दर भाव ... कर्म पथ पे जागरूक ही रहना होगा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द सुन्दर भाव
ReplyDeleteयहां मनुष्य जीव को यह अनुभव हो जाएं कि, हकीकत में मैं ईश्वर अंश है यां मैं स्वयं संपूर्ण ईश्वर है जी 🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर अद्भुत वर्णन किया है आपने स्मृति शब्द का जी