सुखी पलों की आस लगाये,
कुछ लोगों के संग बिताये,
माह, दिवस बिन आडम्बर के,
प्राय ही कष्टों से लड़ के,
बिन प्रयास बढ़ जाते थे पग,
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।१।।
किन्तु लगा सब हुआ निरर्थक,
श्रम निष्फल, देखें हैं अब तक,
दुखी दुखी चेहरे मुरझाये,
जाने कितना बोझ उठाये,
मानो पीड़ा बरसाता नभ ।
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।२।।
कुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
और बहुत कुछ करने का मन,
चलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
चुभते काँटों को काटेंगे,
सुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।३।।
तनाव भरी दुनिया में अब हंसी बची कहाँ
ReplyDeleteस्वर्ग वह जगह हंसी मिल जाये जहाँ
सब अपनी अपनी संचित खुशियाँ के साथ जी रहे
रोज रोज हम सभी ग़मों के आंसू पी रहे
काश कोई तो मसीहा आये
जो दिखावे की ही सही लबों पर हंसी चिपका जाये
हँसी के लिए एक अंतरा मेरी और से-
ReplyDeleteअन्ना के संग ठानी रार
बेदी से भी की तकरार
aap बनाया फेरा झाड़ू
बने जबरिया आज तिहाड़ू
अजब गजब के करते करतब
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।३।।
मैं बहुत ज़ोर - ज़ोर से हँस रही हूँ । वाकई सिध्दार्थ ने सब को हँसा दिया ।
Delete:)
Deleteइसी दुविधा को जी रहे हैं हम सब.....
ReplyDeleteविवशता : सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteएवरी बडी सेज़ आई एम फाइन...मुस्कराते रहिये...अमूमन हम वो नहीं कर पाते जो दिल से करना चाहते हैं...इसलिए खुश रहना ज़रूरी है...हर हाल में...
ReplyDeleteवैसे प्रवीण जी ! ठोकर खाने की स्वतंत्रता हम सब को है ।
ReplyDeleteस्वयं खुश रहें, दुनिया खुशहाल लगेगी।
ReplyDeleteचाह अकेली हंस लेते सब। कौन मित्रवत हो हंसेगा कब।
ReplyDelete''कुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
ReplyDeleteऔर बहुत कुछ करने का मन'
बहुत खूब अभिव्यक्ति.
कई लोगों के मन की व्यथा कह गयी यह कविता!
बहुत खुब प्रवीण भाई।
ReplyDeleteकुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
ReplyDeleteऔर बहुत कुछ करने का मन,
चलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
चुभते काँटों को काटेंगे,
सुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।३।।
BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI .BADHAI
बहुत सुंदर......
ReplyDeleteचलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
ReplyDeleteचुभते काँटों को काटेंगे,
मंगलकामनाएं आपको !
सुन्दर सी अभिलाषा ,पर बहुत कुछ किया जाना अभी शेष है ।
ReplyDeleteसुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
ReplyDeleteचाह अकेली, हँस लेते सब ।।
नेक चाहत है ! लेकिन मंज़िल अभी दूर है !
नेक चाहत ही, जीने की कला है।
ReplyDeleteKya Baat hai :-)
ReplyDeleteफूलों के साथ कांटे ना हों तो फूलों को की पहचान ही खत्म हो जाएगी.
ReplyDeleteजीवन दो किनारों के बीच धारा है---बहते रहिये,चलते रहिये
Bahut sundar kavita ! :)
ReplyDeleteकाँटों को काटने की चाह.… वाह.
ReplyDelete