भूख मिटाकर दो रोटी में, जीने की क्षमता रखता हूँ,
अपमानों का घोर हलाहल पीने की क्षमता रखता हूँ।
मन को तुच्छ प्रलोभन पर मैंने बहुधा फटकारा है,
स्वार्थ प्रेरणा मुखरित जब भी, जी भर के धिक्कारा है।
संशय के क्षण में डूबी पीड़ाओं को स्वीकार किया,
निश्छल भाव छ्ले जाने का दुख भी अंगीकार किया।
क्रोध रोक कर, हृदय बसे अंगारों को जलते देखा,
क्षमताओं को बाट जोहते, अकुलाते, ढलते देखा।
किस ढाँचे में ढला मन मेरा, कौन दिशा मेरा जीवन,
किसकी आहुति बन कर प्रस्तुत, जीवन के सब आकर्षण।
यह सब किसके लिये, बताओ कौन भला यह समझेगा,
पागलपन की संज्ञा देकर, मौन सभा में भर देगा।
घोर निराशा बीच संग में रात रात कोई जगता है,
वह विराग का राग छेड़ता, उत्सव जैसा लगता है।
नहीं व्यक्त जो सत्य, उसी को जीवन में ले आया हूँ,
किसके आलिंगन में छुपने छोड़ सभी को आया हूँ।
अतिसुन्दर , सद्गमय की उत्कृष्ट प्रेरक कृति।
ReplyDeleteदेवासुर संग्राम हो रहा नित प्रति हर युग में हर बार ।सही-गलत की समझ कठिन है ज्यों हो दो- धारी तलवार ।
ReplyDeleteहुआ पराजित नर षड् - रिपु से नित्य निरन्तर बारम्बार । लक्ष्य हेतु तत्पर है फिर भी उसे चुनौती है स्वीकार ॥
सुंदर अभिवक्ति.
ReplyDeleteॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
नयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
ReplyDeleteजिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 22/05/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...]
सादर...
चर्चाकार कुलदीप ठाकुर
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Har satyanisht karmhari ki antarvyatha. Antrsangharsh
ReplyDeleteHar satyanisht karmhari ki antarvyatha. Antrsangharsh
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteअतिसुन्दर.....
ReplyDeleteनहीं व्यक्त जो सत्य, उसी को जीवन में ले आया हूँ,
ReplyDeleteकिसके आलिंगन में छुपने छोड़ सभी को आया हूँ। ..
वियोगी होगा कोई कवी ...
रागात्मक कविता .. भावनाओं का ज्वार उमड़ उमड़ आता है ...
सब कुछ एक उसी के लिए तो है...
ReplyDeleteमन को तुच्छ प्रलोभन पर मैंने बहुधा फटकारा है,
ReplyDeleteस्वार्थ प्रेरणा मुखरित जब भी, जी भर के धिक्कारा है।
बहुत सुन्दर जोशीली प्रस्तुति
भूख मिटाकर दो रोटी में, जीने की क्षमता रखता हूँ,
ReplyDeleteअपमानों का घोर हलाहल पीने की क्षमता रखता हूँ।
मन को तुच्छ प्रलोभन पर मैंने बहुधा फटकारा है,
बहुत सुन्दर जोशीली अभिव्यक्ति..
जोश से ओत प्रोत। बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteएकदम गीत बना पढ़ डाला यह उत्तम जीवन दर्शन, गाकर पढ़ा गुना और भीतर तक भीग गया मन।
ReplyDelete(किस ढाँचे में ढला मेरा मन, कौन दिशा मेरा जीवन) में (किस ढांचे में ढला मन मेरा, कौन दिशा मेरा जीवन कर दें) गाते समय यहीं पर अटकाव आया था बस।
जी आभार, परिवर्तन कर दिया है।
Deleteजीवन दर्शन और सार्थक चिंतन लिए पंक्तियाँ .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteकौन भला समझेगा !!
ReplyDeleteभावपूर्ण गीत !
यह बेचैनी, यह प्यास और ये तमाम सवाल ही मंजिल की और ले जाते हैं.
ReplyDelete.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteउद्वेलित भावनायें ।
ReplyDeleteकुछ वर्षों में सिमटा जीवन,
ReplyDeleteऔर बहुत कुछ करने का मन,
चलो आज मिल दुख बाँटेंगे,
चुभते काँटों को काटेंगे,
सुख-समृद्धि में खेले यह जग ।
चाह अकेली, हँस लेते सब ।।