कहाँ अकेले रहते हैं हम?
अपने से ही सब दिखते हैं,
जितने गतिमय हम, उतने ही,
जितने जड़वत हम, उतने ही,
भले न बोलें शब्द एक भी,
पर सहता मन रिक्त एक ही,
और भरे उत्साह, न थमता,
भीतर भारी शब्द धमकता,
लगता अपने संग चल रहा,
पथ पर प्रेरित दीप जल रहा,
लगता जीवन एक नियत क्रम,
कहाँँ अकेले रहते हैं हम?
औरों से हम क्यों छिपते हैं,
कर लें हृद को रुक्ष, अनवरत,
नहीं वाह्यवत, अपने में रत,
मन में मन के क्रम उलझाये,
सहजीवन के तत्व छिपाये,
नहीं कहीं कुछ सुनना चाहें,
अपनी सुविधा, नियम बनायें,
एकान्ती भावुक उद्बोधन,
मूक रहे वैश्विक संबोधन,
शुष्क व्यवस्था और हृदय नम,
कहाँ अकेले रहते हैं हम?
" अहम् ब्रह्मास्मि ।" मैं ब्रह्म हूँ ।
ReplyDelete" तत्वमसि ।" तुम भी वही हो जो मैं हूँ ।
" अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
ReplyDeleteउदार चरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।"
सुभाषित
सुंदर रचना.
ReplyDeleteमन को छू जाने वाले भावों से बिंधी रचना
ReplyDeleteभीतर भारी शब्द धमकता,
लगता अपने संग चल रहा,
पथ पर प्रेरित दीप जल रहा,
लगता जीवन एक नियत क्रम,
कहाँँ अकेले रहते हैं हम?
वाह !
कहां अकेले रहते हैं हम ?
अति सुन्दर भाव ..
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteकछ न कुछ घेरे ही रहता है ..... सुन्दर कविता है
ReplyDeleteलगता जीवन एक नियत क्रम,
ReplyDeleteकहाँँ अकेले रहते हैं हम?
बहुत सुंदर रचना ...!
RECENT POST आम बस तुम आम हो
एकान्तवास तो जीवन में एक नयी ऊर्जा देता है।
ReplyDeletepraveen bhai zindaabaad :)
ReplyDeleteलगता अपने संग चल रहा,
ReplyDeleteपथ पर प्रेरित दीप जल रहा,
लगता जीवन एक नियत क्रम,
कहाँँ अकेले रहते हैं हम?
sab hamari soch par nirbhar hai .vary nice.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भीतर भारी शब्द धमकता,
ReplyDeleteलगता अपने संग चल रहा,
पथ पर प्रेरित दीप जल रहा,
लगता जीवन एक नियत क्रम,
कहाँँ अकेले रहते हैं हम?
जीवन का नियम यही है ....इस "हम" में "मैं" अकेला है
बेटी बन गई बहू
मन में उतरते भाव ... गेयता और लय .... कमाल की रवानी लिए है रचना ...
ReplyDeleteAti sunder
ReplyDeleteएक सार्थक रचना ………कोई अकेला नहीं सबके साथ सबका " मैं " तो कम से कम होता ही है
ReplyDeletehar pal kuchh na kuchh rahta hai saath .. behad sundar geet hai .
ReplyDeleteभीतर के शब्दों का सुंदर तालमेल
ReplyDeleteलगता है, पर अकेला कोई नहीं - कहीं न कहीं सब परस्पर योजित !
ReplyDeleteअपनी व्यथा , अपना सुख अपने साथ होता ही है !
ReplyDeleteजीवन का अन्तिम निष्कर्ष।
ReplyDeleteकाश अकेले रहना सीख जायें, बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteएकान्ती भावुक उद्बोधन,
ReplyDeleteमूक रहे वैश्विक संबोधन,
बहुत सुन्दर !!
एकांत में भी जीवन अकेला कहाँ रहता है, साथ सपने, कथ्य, सोच, विरह, प्रेम और अनेकों भाव भी होते हैँ, एकांत भी वस्तुतः सिर्फ़ शब्द बनकर रह गया है।
ReplyDeleteबेहतरीन भावों का संगम ....
ReplyDeleteBahut he khoobsoorat kavitaye likhte hai aap
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
आज इतने दिनों पर आया मगर काव्य सुख की झोली भरी पाया
ReplyDeleteआनंदित हूँ!