5.4.14

गाय और आयुर्वेद

एक बड़ी पुरानी कहावत है, हम गाय नहीं पालते, गाय हमें पालती है। हम भी गाय द्वारा ११ वर्ष पालित रहे हैं। गाय का घर में होना स्वास्थ्य के लिये एक वरदान है। खाने के लिये भरपूर दूध, दही, मठ्ठा, मक्खन और घी। खेत के लिये गोबर और ईँधन के रूप में गोबर के उपले। गोमूत्र से कीटनाशक और गाय के बछड़े से खेत जोतने के लिये बैल। खेत में उपजे गेहूँ से ही चोकर, अवशेष से भूसा और सरसों से खली। अपने आप में परिपूर्ण आर्थिक व्यवस्था का परिचायक है, गाय का घर में होना। एक तृण भी व्यर्थ नहीं जाता है गाय केन्द्रित अर्थव्यवस्था में। पहले के समय यही कारण रहा होगा कि देश का किसान कृषिकार्य में केवल अन्न बेचने ही नगर आता था, उसे कभी कुछ खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। किसान सम्पन्न था, कृषिकर्म सर्वोत्तम माना जाता था। 

धीरे धीरे अंग्रेजों ने देश की रीढ़ माने जाने वाले कृषकवर्ग को तोड़ दिया, सहन करने से अधिक लगान लगाकर, भूमि अधिग्रहण कानून बनाकर, उपज का न्यून मूल्य निर्धारित करके और भिन्न तरह के अन्यायपूर्ण कानून बना कर। किसी समय चीन के साथ मिलकर भारत विश्व का ७० प्रतिशत अन्न उत्पादन करता था, अंग्रेजों के शासनकाल उसी भारत में १३ बड़े अकाल पड़े, करोड़ों लोगों की मृत्यु हुयी। कृषिकर्म अस्तव्यस्त हो गया, न खेतों में किसी का लगाव रहा और न ही उसकी संरक्षक गाय को संरक्षण मिला, वह कत्लखाने भेजी जाने लगी। १९४३ के बंगाल के अकाल ने देश को झकझोर कर रख दिया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद प्राथमिकता अन्न उत्पादन पर आत्मनिर्भर बनने की थी, हरित क्रान्ति के माध्यम से हम सफल भी हुये, अन्न आयातक से निर्यातक बन गये। इस पूरी प्रक्रिया में संकर बीज, रासायनिक खाद और कीटनाशक आ गये, गाय केन्द्रित कृषिव्यवस्था बाजार केन्द्रित व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी। तीन चार दशक तक रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग ने भूमि की उर्वराशक्ति छीन ली है, आसपास के जल को भी दूषित कर दिया। साथ ही साथ तीक्ष्ण रासायनों से दूषित खाद्यान्न ने हमारे स्वास्थ्य पर भी अत्यन्त नकारात्मक प्रभाव डाला है। 

कृषि व्यवस्था से गाय की अनुपस्थिति ने न केवल भूमि को उसकी उत्पादकता से वंचित किया, वरन हमारे स्वास्थ्य में भी कैंसर आदि जैसे असाध्य रोगों को भर दिया। यही चिन्ता रही होगी कि विश्व आज प्राकृतिक या ऑर्गेनिक खेती की ओर मुड़ रहा है और इस प्रकार उत्पन्न खाद्यान्न और शाकादि सामान्य से कहीं अधिक मँहगे मूल्य में मिलते हैं।

गाय का पौराणिक चित्र, सब देव इसमें बसते हैं
जो महत्व गाय का हमारी कृषि व्यवस्था में रहा है और जिसके कारण हमारा स्वास्थ्य संरक्षित रहने की निश्चितता थी, वही महत्व गाय का आयुर्वेद में भी रहा है। आयुर्वेद में गाय के सारे उत्पादों को महत्व का माना गया है, दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी, गोमूत्र और गोबर। आयुर्वेद में आठ तरह का दूध वर्णित है और उसमें सर्वोत्तम दूध का माना गया है। यह दूध आँखों, हृदय और मस्तिष्क के लिये अत्यन्त उपयोगी है। दूध रस और विपाक में मधुर, स्निग्ध, ओज और धातुओं को बढाने वाला, वातपित्त नाशक, शुक्रवर्धक, कफवर्धक, गुरु और शीतल होता है। गाय का दूध पचाने में आसान होता है, माँ के दूध के पश्चात बच्चों के लिये गाय का ही दूध सबसे अच्छा माना गया है। देशी गाय का दूध जर्सी गाय से कहीं अच्छा होता है, यह शरीर में प्रतिरोधक क्षमता, बुद्धि और स्मरणशक्ति बढ़ाता है। गाय के दूध में विटामिन डी होता है जो कैल्शियम के अवशोषण में सहायता करता है।

जो गायें आलस्य कर बैठी रहती हैं, उनका दूध भी गाढ़ा रहता है, जैसे जर्सी गायें, पर उनमें औषधीय गुण कम रहते हैं। जो गायें चरने जाती हैं, उनका दूध थोड़ा पतला होता है, पर वह बहुत ही अच्छा होता है, उसमें औषधीय गुण अधिक होते हैं। यही कारण है कि सुबह का दूध थोड़ा गाढ़ा होता है, शाम को चर के आने के बाद थोड़ा पलता होता है। हरे पत्ते आदि खाने से वह और भी अच्छा हो जाता है। बकरी छोटी छोटी पत्तियाँ खाती हैं, उसके दूध में औषधीय गुण आ जाते हैं। चरने वाली देशी गाय का सर्वोत्तम होती है।

दही तनिक खट्टा होता है, बाँधने के गुण से युक्त होता है, पचाने में दूध से अधिक गरिष्ठ, वातनाशक, कफपित्तवर्धक और धातुवर्धक होता है। छाछ या मठ्ठा आयुर्वेद की दृष्टि से और भी लाभकारी होता है, यह कफनाशक और पेट के कई रोगों में अत्यन्त प्रभावी होता है। मक्खन आयुर्वेदीय दृष्टि से कई गुणों से पूर्ण रहता है, यह घी जैसा गरिष्ठ नहीं होता है पर रोटी आदि में लगा कर खाया जा सकता है। घी का प्रयोग आयुर्वेद में विस्तृत रूप से किया जाता है। दूध के इस रूप को अधिक समय तक संरक्षित रखा जा सकता है तथा पंचकर्म में स्नेहन आदि से लेकर औषधियाँ बनाने में इसका उपयोग होता है। यही नहीं, भोजन को स्वादिष्ट बनाने के कारण यह प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में खाया जा सकता है। घी सर्वश्रेष्ठ पित्तनाशक माना जाता है।

जो गाय दूध न भी देती हो, वह भी आयुर्वेद की दृष्टि से अत्यन्त लाभदायक है। गोबर को कृषि कार्यों में उपयोग करने के अतिरिक्त गोबर के ऊपर बनायी भस्मों की क्षमता कोयले पर बनायी भस्मों से कहीं अधिक होती है। वहीं दूसरी ओर गोमूत्र का होना हमारे लिये वरदान है। गोमूत्र वात और कफ को तो समाप्त कर देता है, पित्त को कुछ औषधियों के साथ समाप्त कर देता है। पानी के अतिरिक्त  इसमें कैल्शियम, आयरन, सल्फर, सिलीकॉन, बोरॉन आदि है। यही तत्व हमारे शरीर में हैं, यही तत्व मिट्टी में भी हैं, यह प्रकृति के सर्वाधिक निकट है, संभवतः इसीलिये सर्वाधिक उपयोगी भी। देशी गाय, जो अधिक चैतन्य रहती हो, उसका मूत्र सर्वोत्तम है। उसमें पाया जाने वाला सल्फर त्वचा के रोगों के लिये अत्यन्त उपयोगी है। खाँसी के रोगों में भी गोमूत्र बहुत लाभदायक है। टीबी के रोगियों पर किये प्रयोगों से अत्यधिक लाभ मिले हैं, यह शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बहुत अधिक बढ़ा देता है। गोमूत्र के प्रयोग कैंसर पर भी चल रहे हैं। जब शरीर में कर्क्यूमिन नामक रसायन कम होता है तो कैंसर हो जाता है। यह रसायन हल्दी के अतिरिक्त गोमूत्र में भरपूर मात्रा में है। इसका सेवन करने में लोग भले ही नाक भौं सिकोड़ते हों, पर वैद्य आज भी गोमूत्र अपनी विभिन्न औषधियों में देते हैं। आँख और कान के रोगों में गोमूत्र का बहुत लाभ है, क्योंकि आँख के रोग आँख में कफ बढ़ने से होता है। गाय का पंचामृत आयुर्वेद के अनुसार अत्यधिक उपयोगी है। 

कुतर्क हो सकता है कि यदि यह इतना ही उपयोगी होता तो गाय उसे छोड़ती ही क्यों, अपने उपयोग में क्यों नहीं ले आती। गाय को तभी तो माता कहा जाता है, क्योंकि गाय यह मूत्र हमारे उपयोग के लिये ही छोड़ती है। गोमूत्र गाय का प्रमुख उपहार है, दूध तो कुछ दिनों के लिये ही देती है। गोबर से उपले और खाद बनती है। जो गाय चरती है, उसके ही उत्पाद और गोमूत्र उपयोगी होता है। जर्सी गाय के मूत्र में तीन ही पोषक घटक है, जबकि देशी गाय के मूत्र में १० पोषक घटक हैं। कभी गाय का पौराणिक चित्र देखा हो तो गाय के मूत्र में धनवन्तरि, गोबर में लक्ष्मी, गले में शंकर बसते हैं। गोबर की खाद से खेती, उपले से ईँधन। गोबर गैस से ईंधन और गाड़ी भी चलायी जा सकती है। पेस्टीसाइट गोमूत्र से मिलता है। गाय हर प्रकार के विष अपने शरीर में ही सोख लेती है, तभी  गले में शंकर का वास माना गया है। इस प्रकार उसके शरीर से जो कुछ भी प्राप्त होता है, सारा का सारा मानव के लिये अत्यन्त उपयोगी है। गाय का संरक्षण हर प्रकार से आवश्यक है, मैंने पाली है, सच में बहुत अधिक आनन्द मिलता है।

यदि आधुनिकता पोषित रोगों के दुष्चक्र से निकलना है तो गाय को संरक्षित करना पड़ेगा। गाय हमारी सामाजिक व्यवस्था का प्राण है। तभी कहावत याद आती है कि हम गाय नहीं पाल सकते, गाय हमें पालती है। कुछ गायें थोड़ा कम दूध देती हैं। पर जो गाय दूध कम देती है, उसके बछड़े मज़बूत होते है। जो गाय अधिक दूध देती है, उसके बछड़े कमज़ोर होते हैं। गाय पालन के प्रति सबके मन में श्रद्धा है, मैंने अपने परिवार में देखा है, पिताजी में देखा है, सुबह से शाम तक प्रेम से गाय की सेवा करते हैं, घंटों उसके पास बैठे रहते हैं। कहते हैं कि जिस घर में गाय रहती है और जिस किसान के पास गाय रहती है, उन दोनों स्थानों पर भाग्य स्वयं आकर बसता है। काश, हमारी गायों का भी भाग्य सँवरे और वे पुनः हमारा भाग्य सँवारें। इति आयुर्वेद चर्चा।

चित्र साभार - www.swahainternational.org

53 comments:

  1. जब हम छोटे थे तो .... जब गाय को दुहने के लिए मनराज(मेरे दादा का सेवक) बैठते थे तो हम भाई-बहन भी पास बैठ जाते थे ,वे बारी बारी से थन से सीधे हमारे मुंह मे दूध पिला देते थे ..... कहते थे ,लाभदायक है ,खौलाने(औंटने) की जरूरत भी नहीं ..... खौलाने से गुण नष्ट हो जाते हैं

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    1. सीधे हमारे मुंह मे दूध पिला देते थे ..... कहते थे ,लाभदायक है ,खौलाने(औंटने) की जरूरत भी नहीं ..... खौलाने से गुण नष्ट हो जाते हैं

      Reply----धारोष्ण दुग्ध पौष्टिक होता है परन्तु निकालने के पश्चात वर्तन आदि से संक्रमित होने से उसमें बोवाइन वाइरस संक्रमण से काऊ-पोक्स रोग होने के कारण रहते हैं ...जिससे एवं अन्य रोगाणुओं से खौलाने द्वारा बचा जा सकता है ....खौलाने से दुग्ध में उपस्थित जटिल प्रोटीन सरल प्रोटीन में परिवर्तित होजाती है और वह अधिक सुपाच्य होजाता है ..

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  2. अब तक book छापने लायक सामग्री हो गई होगी ...... जनहित के लिए ..... बहुत बहुत बधाई
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (05-04-2014) को "कभी उफ़ नहीं की": चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1573 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चैत्र नवरात्रों की शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. हमारे गॉव में गाय के दूध को " गो-रस" कहा जाता था । गायें ऑगन से लगे हुए कोठे में बँधी रहती थीं ताकि गायों का अविरल दर्शन होता रहे । मेरी नानी मुझे दाल-भात खिलाने के बाद दूध-भात देती थी और जब मैं दूध-भात को खा लेती थी तो मेरी नानी मुझसे कहती थीं कि थाली में थोडा सा पानी डाल-कर धो-कर पी लो , नहीं तो गौ-माता का अपमान होता है , तब से मेरी आदत बन गई है कि दूध-भात खाने के बाद उसे धो-कर पीना है । हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत गो-मॉस को बेच-कर पैसा कमाएगा । आज बडी निर्ममता से प्रति-दिन सहस्त्रों गायों की हत्या की जा रही है और उसे विदेशों में बेच-कर हम गो-मॉस के सबसे बडे निर्यातक बन चुके हैं और ऐसा कहने मात्र से हम साम्प्रदायिक हो सकते हैं , यह बहुत बडी पीडा है ।

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    1. देखते जाओ और पैंसठ सालों में मनुष्य के मांस के भी सबसे बढे निर्यातक हो जाएंगे.....

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  5. आपके ब्लॉग को पढ़ते पढ़ते जीवनशैली में बहुत से बदलाव लाये हैं.... एलोपैथी दवाओं पर निर्भरता को छोड़ आयुर्वेद और होम्योपैथी का ही सहारा लेने का प्रण है यथासंभव...
    शुद्ध दूध के अभाव मे दूध लेना काफी समय से बंद है... कीटनाशक युक्त सब्जियों की आशंका में छत पर ही कुछ जरूरी सब्ज़ियाँ उगाना शुरू की हैं....लगता है स्वयं की कृषि भूमि क्रय कर भविष्य में आर्गेनिक खेती शुरू करनी पड़ेगी...

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  6. बहुत आभारी हूँ आपका कि आपने आयुर्वेद के साथ भारतीय संस्कृति से अपने आलेख के द्वारा परिचय कराया. आपके आलेखों को पढ़ कर ऐसा लगा कि आपने गागर में सागर भरने का कार्य किया है. मुझे पूर्ण विश्वास हैं कि हमलोग आपके पूर्ण ज्ञान से अछूते रह गए अतः आप से अनुरोध है कि जब कभी हमें आयुर्वेद कि सलाह आपसे लेनी पड़ी तो आप अवाश्य मार्ग-दर्शन करेंगे.धन्यवाद.

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  7. सर आपके लेख से मुझे अपना बचपन याद आया ! दुःख इस बात का है कि मैं अपने बच्चे के लिए वह नहीं कर पा रहा हूँ जो हमारे अग्रजों ने हमारे लिए किया! वर्त्तमान में गो-संरक्षण एक सामाजिक विषय न होकर तुच्छ राजनैतिक विषय बन गया है जो दुर्भाग्यजनक है!

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  8. गाय को माँ यूँ ही तो नहीं कहा गया है .
    बहुत ही बढ़िया लाभप्रद जानकारी ....

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  9. इस श्रृंखला से कई लाभदायक जानकारी मिल रही है।

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  10. गाय के माता कहलाने की सम्पूर्ण व्याख्या है इस लेख में , पूर्वज यूँ ही नहीं पूजते रहे !

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  11. गाय में माँ के सारे गुण हैं, नज़र में फर्क के कारण सबको ऐसा नहीं लगता ! मंगलकामनाएं

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. क्या ये श्रृखला यहीं समाप्त हो रही है?इसे अभी जारी रखे।

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  14. गौ का अर्थ ...गाय, पृथ्वी, धरती , बुद्धि, इन्द्रियाँ, समस्त गौवंश, समस्त स्तनपायी जंतु ....

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  15. यह पूरी श्रंखला ज्ञानवर्धक रही..... आभार आपका

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  16. यही कारण है कि सुबह का दूध थोड़ा गाढ़ा होता है, शाम को चर के आने के बाद थोड़ा पलता
    (पतला )
    होता है। हरे पत्ते आदि खाने से वह और भी अच्छा हो जाता है। बकरी छोटी छोटी पत्तियाँ खाती हैं, उसके दूध में औषधीय गुण आ जाते हैं। चरने वाली देशी गाय का सर्वोत्तम होती है।

    विडंबना है भारत गौ मॉस का सबसे बड़ा नियातक देश बना हुआ है। जबकि गाय कृषि और संस्कृति और अध्यात्म की नींव रही है कृष्ण को गोपाल कहा गया है गोविन्द भी।

    बेहतरीन पोस्ट श्रृंखला को सम्पुष्ट संवर्धित करती हुई आई है।

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  17. तभी तो कहते हैं गाय हमारी माता है :)
    ज्ञानवर्धक !!

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  18. गाय नहीं होगी तो गोपाल कहॉ होंगे फिर गौ-माता के हित में विचार होना चाहिए ।
    गाय दीन-हींन है किसान खेत जर्जर हैं गाय ही समृध्दि है समझ लेना चाहिए ॥

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  19. गाय का अर्थशास्त्र बहुत ही व्यापक है. साधु साधु..

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  20. बहुत ही ज्ञानवर्द्धक आलेख.बदलती जीवन शैली के कारण गाय का दूध सर्वोत्तम औषधि का काम करता है.गाय के दूध का अधिक से अधिक दोहन करने के लिए इंजेक्शनों का प्रयोग उचित नहीं.

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  21. आपकी इस प्रस्तुति को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन जन्म दिवस - बाबू जगजीवन राम जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  22. गाय के बारे में इतना पढ़ा सुना और देखा है कि यह इच्छा भी है कि अपनी ज़िन्दगी में गाय ज़रूर पालेंगे (या गाय माता कि इच्छा हुई तो वो हमें ज़रूर पालेंगे :)).. शहरी ढाँचे में तो यह मुमकिन नहीं हो पा रहा.. लगता है निवास फिर से गाँव की ओर ले जाना होगा! :)

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  23. सुन्दर लेख भाई जी. आपका ये प्रयास बहुत ही सराहनीय रहा ,अब आगे क्या प्लान है ?
    आपके लेखो की ये बात मुझे बड़ी अच्छी लगी कि ये सब बातें जो आजकल के समय कही पढने को नहीं मिलती वो सब बातें आप लेकर आते है. विश्वास है आपकी नयी श्रृंखला जो भी होगी बढ़िया होगी

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  24. No doubt about what you are conveying, even OSHO said Our soul comes from Cow..

    But the million dollar question is, If Cow is so Important and it is so, Why Situations are opposite to it? Why People are not taking interest there....only arm chair comments, will not solve any probs..

    but great write up , PP bhai..as usual! :-)

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  25. आज गाय पालना या घर में रखना आर्थिक दृष्टि से लोगों को महंगा लगता है पर ऐसा सोचने वाले गाय की स्वास्थ्यक दृष्टि से मानव के प्रति उपयोगिता नहीं देखते !!
    काश लोग बाजारवाद से उबर कर गाय के गुण देखें !!

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  26. mukesh Kumar Garg6/4/14 07:52

    sir good morning , it is fact but govt given subsidy to encourage beef meat export and improve such industries

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  27. बहुत उपयोगी और रुचिकर शृंखला रही,हम कितना अपने व्यवहार में ला सकें यह तो स्थानीय सुविधाओं पर निर्भर है .लेकिन इन तथ्यों को कोई नकार नहीं सकता.आपका अध्ययन और लेखन सबके लिए हितकारी और उपयोगी हो कर सार्थकता पा गया - साधुवाद स्वीकारें!

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  28. तभी कहा गया है "गावो विश्व मातर: "

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  29. हम भी गायों की एक पीढी द्वारा पीढी-दर-पीढी पालित रहे हैं. सुबह गाय का ताज़ा दूध शहद के साथ मिलाकर पिलाया जाता रहा. लेकिन इसका प्रतिकूल प्रभाव यह हुआ कि बड़े होने तक दूध पीने की इच्छा ही समाप्त हो गई!

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  30. बहुत ही उपयोगी पोस्ट | सर आपका बहुत बहुत आभार |

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  31. संजो के रखने वाली पूरी श्रंखला ... शायद इसलिए ही गोऊ माता को धरती माता और जन्म देने वाली माता के सामान कि माना गया है ... आपका आभार इस पोस्ट के लिए ...

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  32. पाण्डेय जी सुधुवाद सटीक बात के लिए और जरूरी ज्ञानवर्धन के लिए भी

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  33. हमारे अपने घर में अबसे छह साल पहले तक गाय रही है। ’दिल्ली जैसी जगह में गाय पाल रखी है लेकिन जगह किराये पर नहीं दे रखी’ जैसे ताने सुनकर भी हमारे पिताजी और हम भाई अपने विचारों पर कायम रहे। फ़िर गाय क्यों नहीं रखी, ये बताने पर पुरुष-नारी मानसिकता वाला नया राड़ा छिड़ जायेगा इसलिये नहीं बता रहा लेकिन यह मान रहा हूँ कि वो समय बहुत सुखद था जब तक गाय ने हमें पाला।

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  34. अत्यंत उपयोगी शृंखला ..

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  35. इसीलिए गाय की इतनी महिमा गायी गई है, लेकिन यह भी सत्य है कि अब इस देश में भी गायों को काटने से कोई नहीं रोक सकता है .. अफ़सोस उपभोक्ता वाद धर्म एवं समाज सब को परे धकेल रहा है .. बहरहाल सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक आलेख ..

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  36. आज भी कच्चे दूध का स्वाद याद आता है सोचता हूँ हमारी आने वाली पीढ़ियाँ क्या वह स्वाद चख पाएंगी

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  37. बहुत ही ज्ञानवर्द्धक आलेख...आभार प्रवीण जी

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  38. हमारे देश में तीन माताएं हैं...पूरा ट्रैंगल है...घर की माता, धरती माता और गऊ माता...धरती, गौ और माता का पोषण करतीं हैं...माता धरती और गऊ की सेवा करती है...और गौ माता बाकी दोनों माताओं का ख्याल रखतीं हैं...

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  39. गायों के पालन की तो कौन कहे, फ़िलहाल तो देश में बची-खुची गायें निर्ममता से काटी जा रही हैं.

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  40. गायों के पालन की तो कौन कहे, फ़िलहाल तो देश में बची-खुची गायें निर्ममता से काटी जा रही हैं

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  41. "तीन चार दशक तक रासायनिक खाद और कीटनाशक के प्रयोग ने भूमि की उर्वराशक्ति छीन ली है, आसपास के जल को भी दूषित कर दिया। साथ ही साथ तीक्ष्ण रासायनों से दूषित खाद्यान्न ने हमारे स्वास्थ्य पर भी अत्यन्त नकारात्मक प्रभाव डाला है। "

    इसी सबके चलते आज हरियाणा जैसे अन्न उत्पादक राज्यों में एक बड़ा कृषि रकबा मिट्टी के अति लवणीय होने की समस्या से जूझ रहा है। सलिनिटी (सैलिनिटी आफ साइल )आज एक बड़ा मुद्दा है।

    रासायनिक खाद कथित उन्नत खेती उन्नत बीज का ही किया धरा है यह सब। रसायन माँ के दूध में भी जगह बनाये हुए हैं सब्ज़ियों और अन्न में भी।

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  42. आजकल एक और वजह है गाय ना पालने की वो है घर में जगह की कमी और गाय हो या कोई भी अन्य पशु उनको पालने के लिये एक व्यक्ति चाहिये ही और आजकल की अधिकतर महिलाये ये सब काम करने में शर्मिंदा महसूस करती है अन्यथा हम भी पाल रहे होते

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  43. बहुत खूब पाण्डेय जी। ज्ञानवर्धक लेख।

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  44. वाह... लाजवाब लेख...बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@भजन-जय जय जय हे दुर्गे देवी

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  45. गाय तो ठीक, बेचारे बछड़े/बैल का महत्व आना चाहिये अर्थव्यवस्था में। बहुत दुर्गति होती है उसकी! :-(

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  46. कहते हैं कि जिस घर में गाय रहती है और जिस किसान के पास गाय रहती है, उन दोनों स्थानों पर भाग्य स्वयं आकर बसता है।....................कितनी लाभदायक बात है। मूर्ख शासक इस बात को क्‍या समझेंगें। आयुर्वेद की चर्चा अत्‍यन्‍त उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक रही।

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  47. गौ-भक्त मित्रों एक निवेदन !
    पहली रोटी गाय की --- यह मन्त्र था हमारे पूर्वजो का -- ना की बहुत सारी रोटीया गाय की --
    आप सब को एक बात बतानी आज जरूरी है की अगर आप अपने जन्म दिन या किसी अच्छे खुशी के दिन गौशाला जाकर या किसी पडोशी के यहाँ गाय माता को बहुत सारे रोटियाँ या मिठाईयां खिलाते है तो सावधान !!...
    गाय को एक या दो रोटी ही खिलाएं जलेबी-मिठाई आदि मैदे की बनी चीजे भी सिर्फ स्वाद भर ही दें अधिक मात्र में खिलाने से गौवंश के आतों में फंस कर उनको तखलीख देता है . गौवंश का मुख्य भोजन - हरा-सुखा घास है ना की रोटी या मैदे की बनी वस्तु . जिस प्रकार मनुष्य का भोजन घास नहीं उसी प्रकार गौवंश का भोजन रोटी मैदे वाली वस्तु नहीं .
    '' सनातनी'' गौ चरणों का दास ....श्री गिरधर गोपाल गौशाला समिति देव भूमि उत्तराखण्ड

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  48. सभी गौभक्तों का इस पेज में हार्दिक अभिनंदन है । इस पेज का एकमात्र उद्देश्य गौमाता के दूध-दही, घी, मक्खन एवं गौमूत्र तथा गौमय आदि से निर्मित उत्पादों का हमारे दैनिक जीवन में महत्व बताते हुए गौमाता की रक्षा करने हेतु प्रत्येक सनातनी के मन में गौ माता के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं गौरक्षा हेतु वैचारिक क्रांति का प्रतिपादन करना है । गौमाता के होने से ही हम सभी स्वस्थ, निरोगी एवं दीर्धायु जीवन व्यतीत कर सकते हैं । आज गौमाता पर बहुत बड़ा संकट आया हुआ है । केवल भारतवर्ष में ही कत्ल्खानों में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में गौहत्याएं हो रही हैं । यहाँ तक सुनने में आता है कि कुछ कत्लखानों में तो गौमाता पर पहले खौलता हुआ गर्म पानी छिड़का जाता है ताकि उनका चमड़ा नर्म हो जाए । तत्पश्चात उनके जीते जी ही शरीर से चमड़ा उतारा जाता है ताकि वह अधिक चमड़ा नर्म हो और अधिक से अधिक दाम में बिके । चमड़ा उतारने के बाद उन्हें बहुत निर्दयता से काटा जाता है । आज गौवंश समाप्त होने की स्थिति में आ गया है । एक सच्चे सनातनी होने के नाते गौ माता की रक्षा हेतु कम से कम इतना संकल्प तो ले ही सकते हैं :- १॰ किसी भी प्रकार के चमड़े की वस्तु प्रयोग में नहीं लाएँगे । २. प्रतिदिन भोजन ग्रहण करने से पूर्व गौ माता के लिए कम से कम १ रोटी निकलेंगे । ३. केवल गौ माता का दूध और गौ माता के दूध से निर्मित उत्पाद ही प्रयोग में लाएँगे । ४. प्लास्टिक की थैलियों को कभी भी कूड़ेदान में नहीं डालेंगे क्योंकि पर्याप्त भोजन के अभाव में कुछ गौ माता भोजन की तलाश में कूड़ेदान की ओर चली जाती हैं और वहाँ खाद्य-वस्तुओं के साथ-साथ उनके पेट में प्लास्टिक चला जाता है जिससे कि उनको अत्यधिक पीड़ा सहन करनी पड़ती है । ५. अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएंगे ताकि वातावरण भी शुद्ध हो और साथ ही साथ गौ माता के लिए पर्याप्त चारा सुगमता से उपलब्ध हो सके । आप सबके सहयोग से ही गौरक्षा का दैवी कार्य संभव है । अतः आप स्वयं भी इस कार्य में तन-मन-धन से लगें तथा अपने सभी मित्र-संबंधियों को भी प्रेरित करें । आपका गोवत्स राधेश्याम रावोरिया 9042322241

    https://gokrantimanch.wordpress.com

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