बचपन फिर से जाग उठा है,
सुख-तरंग उत्पादित करने,
ऊर्जा का उन्माद उठा है ।
वे क्षण भी कितने निश्छल थे,
चंचलता का छोर नहीं था ।
जीवन का हर रूप सही था,
व्यथा युक्त कोई भोर नहीं था ।।१।।
अनुपस्थित था निष्फल चिन्तन,
शान्ति अथक थी, चैन मुक्त था ।
घर थी सारी ज्ञात धरा तब,
दम्भ-युक्त अज्ञान दूर था ।।२।।
व्यक्त सदा मन की अभिलाषा,
छलना तब व्यवहार नहीं था ।
मन में दीपित मुक्त दीप था,
अन्धकार का स्याह नहीं था ।।३।।
अनुभव का अंबार नहीं यदि,
ऊर्जा का हर कुम्भ भरा था ।
नहीं उम्र के वृहद भवन थे,
हृदय क्षेत्र विस्तार बड़ा था ।।४।।
थे अनुपम वे ज्ञानरहित क्षण,
अन्तः अपना भरा हुआ था ।
आज हृदय है खाली खाली,
ज्ञान कोष में अनल भरा है ।।५।।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन !!
ReplyDelete"ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
ReplyDeleteमगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो क़ागज़ की क़श्ती वो बारिश का पानी। "
जगजीत ने गाया है , पता नहीं क़लाम किसका है ?
कि बचपन हर गम से बेगाना होता है ़़़
ReplyDeleteबचपन के दिन बीतने के साथ ही बहुत कुछ खाली खाली हो ही जाता है....सुन्दर कविता
ReplyDelete-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 01/05/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/04/blog-post_30.html
ReplyDeleteहम क्यूँ बड़े हैं ......
ReplyDeleteऐसा था अपना बचपन।
ReplyDeleteकैसा था सबका बचपन ।
....सफर के दौरान।
तप से तप कर ...
ReplyDeleteजैसे आग में जल कर..
कंचन निखरता है ...
वस्तुतः ज्ञान से ही घट भरेगा और मन अनल शांत करेगा ....!!
सुंदर कविता
अनुभव का अंबार नहीं यदि,
ReplyDeleteऊर्जा का हर कुम्भ भरा था ।
नहीं उम्र के वृहद भवन थे,
हृदय क्षेत्र विस्तार बड़ा था ।।४।।
gahan sundar abhivaykti .badhai
निश्छल और निर्झर बचपन।
ReplyDeleteआओ खेले बचपन बचपन.. निश्छल बचपन।
ReplyDeleteज्ञान तो आ गया पर मस्ती चली गयी :)
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ReplyDeleteव्यक्त सदा मन की अभिलाषा,
छलना तब व्यवहार नहीं था ।
मन में दीपित मुक्त दीप था,
अन्धकार का स्याह नहीं था -----
बचपन का सच ----भावमय और प्रभावपूर्ण रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है----
और एक दिन
कविता पढ़ कर मन में आया कि तब के बचपन में और अब के बचपन में कितना अंतर आ गया है .
ReplyDeleteवाह !! सुबह सुबह इतनी प्यारी कविता !! :)
ReplyDeleteथे अनुपम वे ज्ञानरहित क्षण,
ReplyDeleteअन्तः अपना भरा हुआ था ।
आज हृदय है खाली खाली,
ज्ञान कोष में अनल भरा है ।।५।।
सही बात है..ज्यादा ज्ञानी होके हम अधिक कुटिल और अमानवीय हो गये हैं। सुंदर रचना।
ati sundar...
ReplyDeleteवे क्षण भी कितने निश्छल थे,
ReplyDeleteचंचलता का छोर नहीं था ।
जीवन का हर रूप सही था,
व्यथा युक्त कोई भोर नहीं था ।।१।।
बचपन के रंग ..... बड़े सुहाने उत्कृष्ट भावों का संगम
This is innocent simplicity which is imbued in us always. We know, but don't express due to our conceits. Your words are gem. Regards.
ReplyDeleteमन में दीपित मुक्त दीप था,
ReplyDeleteअन्धकार का स्याह नहीं था -----
बचपन का सच - बड़े सुहाने बचपन के रंग
waah vo bachjpan ke din...
ReplyDeletenaa duniya ka gum tha, na rishton ke bandhan...badi khoobsoorat thi vo zindagani :)
वो कागज की कश्ती , वो बारिश का पानी।
ReplyDeleteकोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन
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