आनन्द रहित मन की तृष्णा, जब मधु का प्याला कहती है,
जब यादों के मद ज्वारों की, सारी सीमायें ढहती हैं,
जब मेरे सोये अन्तः में इच्छायें रिक्त बहकती हैं,
तब मन रूपी इस सरिता में भावों की धारा बहती है ।
तो उमड़ रही इस धारा से, छन्दों का अमृत कर निर्मित,
मैं उसको जीवन के सुन्दर रस-कलशों में कर एकत्रित,
मन की सारी पीड़ाआें के उपचार हेतु ही रखता हूँ ।
और,
मेरी यह कविता, मेरे ही उन निष्कर्षों की साक्षी है ।।
सुंदर, संक्षिप्त!
ReplyDelete" वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान ।
ReplyDeleteउमड-कर ऑखों से चुप-चाप बही होगी कविता अनजान।"
पन्त
मनोभाव से उपजी कविता. सुंदर रचना.
ReplyDeleteखूबसूरत कथ्य...
ReplyDeleteसुंदर शब्दो की माला
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteउत्तम रचना ....
रह मौन जलन में तपने से
ReplyDeleteभावों मे बहना अच्छा है
अति सुन्दर ....http://pratibimbprakash.blogspot.com/
ReplyDeleteपावन ,पवित्र भाव ....भावपूर्ण सशक्त अभिव्यक्ति ...!!
ReplyDeleteअच्छी कविता है..
ReplyDeleteरस -कलशों मे कर एकत्रित।
ReplyDeleteतो उमड़ रही इस धारा से, छन्दों का अमृत कर निर्मित,
ReplyDeleteमैं उसको जीवन के सुन्दर रस-कलशों में कर एकत्रित,
मन की सारी पीड़ाआें के उपचार हेतु ही रखता हूँ ।
very nice .
वाह .. सुन्दर भाव और समय को जीती हुए भाव ..,
ReplyDeleteछन्दों का अमृत ,
ReplyDeleteसुन्दर रस-कलशों... सुन्दर शब्द संयोजन
new post रात्रि (सांझ से सुबह )
बढिया है :)
ReplyDeleteसुन्दर....
ReplyDeleteबहुत खूब...अक्सर मन की पीड़ाओं का उपचार कुछ ऐसे ही अल्फाज़ों के उगल देने से होता है :)
ReplyDeleteमन के सरिता मे भावोँ क़ी धार कविता बन झरती है !
ReplyDeleteसुन्दर !
'उपचार हेतु' की बात सही है .सारी ही ललित कलाएं उद्वेगों का शमन करती हैं और काव्य-कला उनमें सर्वाधिक प्रभावी,
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए एक खुबसूरत कविता..
ReplyDeleteवाह , नया अंदाज़ !!
ReplyDeleteसुंदर शब्द माला .....
ReplyDeleteवाह .....अनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर
One becomes poet only when he is one with self and fearless to undo all fetishes. Great compilation of words. Regards.
ReplyDeleteतो उमड़ रही इस धारा से, छन्दों का अमृत कर निर्मित,
ReplyDeleteमैं उसको जीवन के सुन्दर रस-कलशों में कर एकत्रित,
मन की सारी पीड़ाआें के उपचार हेतु ही रखता हूँ ।
यही तो है कविता। सुंदर।
कविता की भावभूमि यही है.
ReplyDelete☆★☆★☆
जब मेरे सोये अन्तः में इच्छायें रिक्त बहकती हैं,
तब मन रूपी इस सरिता में भावों की धारा बहती है ।
तो उमड़ रही इस धारा से, छन्दों का अमृत कर निर्मित,
मैं उसको जीवन के सुन्दर रस-कलशों में कर एकत्रित,
मन की सारी पीड़ाआें के उपचार हेतु ही रखता हूँ ।
सुंदर कोमल
भाव और शब्द का सुंदर मिश्रण !
वाऽह…!
आदरणीय प्रवीण पांडेय जी
इस सुंदर मनहर रचना सहित पिछली कुछ पोस्ट्स की काव्य रचनाओं के लिए भी साधुवाद !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार