मेरी कविता है आज दुखी,
शायद मेरी ही गलती है ।
कुछ है स्वभाव भी रूखा सा,
कुछ रागें क्षुब्ध मचलती हैं ।।
मैं कृतघ्न हूँ, सुख की मदिरा,
खुद ही पीकर मस्त हो गया ।
सुख-यात्रा में छोड़ तुझे,
तेरे संग केवल दुख बाँटे हैं ।।
असह्य वेदना के घावों ने,
आश्रय तुझसे ही पाया है ।
मेरी एक सिसकी ने तेरा,
ढेरों अश्रु बहाया है ।
पर तूने जाने कितने सावन एकाकी ही काटे हैं ।
मैं कृतघ्न हूँ, जीवन में तेरे संग केवल दुख बाँटे हैं ।।१।।
गोद तुम्हारी मेरे सर की,
चिन्ता सब हर लेती है ।
तेरे वक्षस्थल की धड़कन,
प्रबल सान्त्वना देती है ।
पंथों के दिग्भ्रम में तेरे ही शब्द मुझे थपकाते हैं ।
ना जाने क्यों, जीवन में तेरे संग केवल दुख बाँटे हैं ।।२।।
अब लगता तेरे संग बैठूँ,
मैं बचे हुये सब दिन काटूँ ।
तेरे मधुवन में आकर के,
मिलजुल कर सारे सुख बाटूँ ।
बस तेरे दूर चले जाने के, कल्पित भाव सताते हैं ।
करना प्रायश्चित क्योंकि तेरे संग केवल दुख बाँटे हैं ।।३।।
(बहुत दिन हुये, लेखन से विशेषकर कविता से दूर हूँ, पूर्वव्यक्त भय मन में उभर आया)
शब्दों की इस थपकी से दूरी का भय सभी को लगता है ..... मनोभावों का सटीक रेखांकन
ReplyDeleteबस तेरे साथ दुःख ही बांटे है ...शायद हर दुखी मन की यही अभिव्यक्ति है .....भावपूर्ण मन को झकझोर देने वाली अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकविता कुछ नाराज सी है :-)
ReplyDeleteदुख की तन्मय अभिव्यक्ति कविता बन जाती है ,छिपी रहती है अंतर्मन में प्रकट होने की राह देखती. आपसे नाराज़ कैसे हो सकती है वह !
ReplyDeleteकल्पित भाव बस सताते है पर कुछ समझ न पाते हैं..
ReplyDeleteसुख के सब साथी , दुःख में केवल मेरी कविता. सुंदर भावपूर्ण कविता.
ReplyDeleteसुख और दुःख बांटने के लिए ही है...वो लोग सफल हैं जो दूसरों के दुःख-सुख बाँटने को तत्पर रहते हैं...
ReplyDeleteतुम अपने रंज-ओ-ग़म परेशानी मुझे दे दो...
सुन्दर रचना भाव...
भावमय करती अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteआपने महसूस किया तो दुःख ही बांटने का एहसास कम हो गया ... अब सुख दुःख दोनों मिल कर बाँटें ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ..
बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDelete" हर ज़हर पीती रही ये अक्षरों वाली गली पर सदा अक्षत रखी है गीत की गंगा-जली ।
ReplyDeleteसूर कह लो मीर कह लो या निराला या ज़िगर हर ज़ुबॉ में जी रही है दर्द की वंशावली ।
कौन बॉचे इस शहर में सतसई सौन्दर्य की ये शहर हल कर रहा है भूख की प्रश्नावली ।"
अशोक चक्रधर
मन की व्यथा कविता भी भर पाती है
ReplyDeleteभाव संसार का लक्ष्य होती हैं कविताएं।
ReplyDeletewaah ... bahut he achi
ReplyDeleteआप कविता नियमित लिखा करिये प्लीज । पढ़कर बहुत अच्छा लगता है.
ReplyDeleteअब लगता तेरे संग बैठूँ,
ReplyDeleteमैं बचे हुये सब दिन काटूँ ।
तेरे मधुवन में आकर के,
मिलजुल कर सारे सुख बाटूँ ।
बस तेरे दूर चले जाने के, कल्पित भाव सताते हैं ।
करना प्रायश्चित क्योंकि तेरे संग केवल दुख बाँटे हैं ।।३।।
आपका प्रायश्चित करना पाठकों के लिए भी सुखद रहेगा और आपको भी संतुष्टि मिलेगी ,कविता नाराज तो होगी ही मना लीजिये.....और और मनाने का ये प्रयास भी बहुत पसंद आया ,खेद है की ब्लॉग पर काफी दिनों बाद आना हुआ .
बहुत- बहुत बधाई आपको
विचलित मन का भाव अगर जब
ReplyDeleteऐसे ही टकराएंगे ,
ह्रदय अथाह सागर से तब-तब
यूँ ही सुन्दर कविता आएंगे। ।
कविता से दूरी सचमुच असहय होती है।
ReplyDeleteकविता की नियति ही वेदना की अभिव्यक्ति है जो आपने भलीभाँति कविता में ही व्यक्त करदी है ।
ReplyDeleteकविता यूँ भूली न जायेगी ....
ReplyDeleteबस तेरे दूर चले जाने के, कल्पित भाव सताते हैं ।
ReplyDeleteकरना प्रायश्चित क्योंकि तेरे संग केवल दुख बाँटे हैं। . बहुत बढ़िया
दुःख में इंसान बहुत कुछ सोचता है जो उसके सबसे करीब रहता है उसे ही याद बहुत करता है... .दुःख में कविता बहुत याद आती है
कविता से दूर यानी जिन्दगी से दूर...सुन्दर भाव..
ReplyDeleteमन की व्यथा कविता भी भर पाती है...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteदुख और वेदनाकी कविताही सब से मीठी होती है। लेकिन आनंद की उर्मी भी भावों में बहाती है।
ReplyDeleteअपनी जड़ से कटने की पीड़ा को अभिव्यक्त करती कविता।
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