आदर्शों के मरुथल में, जीवन कष्टों का छोर नहीं है,
भ्रष्टाचारी दलदल में आ बचा सके, कोई जोर नहीं है ।
इन दो विषम उपायों से जीवन-रजनी में भोर नहीं है,
मध्यमार्गी पथ असाध्य है, अनुभव-युक्त किशोर नहीं है ।।
अन्तः दीपक जला हुआ है,
राग द्वेष से घिरा हुआ है,
मानव क्या निष्कर्ष निकाले, नियत बुद्धि का ठौर नहीं है ।
मध्यमार्गी पथ असाध्य है, अनुभव-युक्त किशोर नहीं है ।।१।।
संस्कार की सतोपासना,
औ’ समाज की कुटिल वासना,
स्वयं निरन्तर संग्रामित, जीवन निश्चय की ओर नहीं है ।
मध्यमार्गी पथ असाध्य है, अनुभव-युक्त किशोर नहीं है ।।२।।
आदर्शों का ध्येय मिला है,
आत्मोन्नति का पंथ खुला है,
पर समाज में जीवन यह, कटु सम्बन्धों की डोर नहीं है ।
मध्यमार्गी पथ असाध्य है, अनुभव-युक्त किशोर नहीं है ।।३।।
(एक किशोर के रूप में लिखी यह कविता आज पुनः याद आ गयी, पता नहीं क्यों?)
उम्दा रचना
ReplyDelete-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 17/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
किशोर वय में ऐसा अच्छा रचते रहे हो
ReplyDeleteवैसे अब भी किशोर ही हो
बस सोशल मीडिया का चहुं ओर शोर है
जिससे घिरते हुए भी सब तक पहुंच रहे हो
प्रवीण भाई।
प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकिशोर के रूप में लिखी गयी यह रचना .. बहुत ही परिपक्व एवं समर्थ रचना है .. बहुत बधाई ऐसी रचना के लिए.
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteतो किशोरावस्था में भी गंभीर चिन्तन चलता था - पृष्ठभूमि अध्ययन -मनन की रही होगी !
ReplyDeleteउम्दा......
ReplyDeleteभावों का सैलाब उस समय और इस समय ... कोई अंतर नहीं है आपके चिंतन में ...
ReplyDeleteकिशोर अब वय हो चला, चिन्तन में भी, आय़ु में भी।
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ReplyDeleteअन्तः दीपक जला हुआ है,
ReplyDeleteराग द्वेष से घिरा हुआ है,
मानव क्या निष्कर्ष निकाले, नियत बुद्धि का ठौर नहीं है ।
मध्यमार्गी पथ असाध्य है, अनुभव-युक्त किशोर नहीं है ।
बहुत सुंदर
मौलिकता और गम्भीरता का सुंदर सामंजस्य प्रदर्शित करती कविता।
ReplyDeleteकिशोर के रूप में लिखी यह कविता बड़ी गंभीर और परिपक्व है ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .
मध्य मार्ग ही सहज मार्ग है...नो एक्सट्रीम...
ReplyDeleteबहुत उम्दा सृजन ...!
ReplyDeleteRECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
किशोर उम्र में मध्यमार्ग को समझौता-वादी मार्ग समझने की प्रवृत्ति होती है जो तब स्वीकर्य नहीं होती। इसीलिए असाध्य लगती है। उम्र बढ़ने के साथ अनुभव जुटता जाता है और तब यह मध्यमार्ग ही बुद्ध की तरह स्वर्णिम लगने लगता है। किशोरावस्था तो चरम की ओर, एक आदर्श की ओर जाने की जल्दी में होती है।
ReplyDeleteआपकी कविता से तो मैं यही समझ पाया हूँ। पता नहीं कहाँ तक सही हूँ।
आपके शब्द बहुत समर्थ हैं। साधुवाद।
जब संग्राम है स्वयं से तो अनिश्चयता तो तब बढ़ती ही है।
ReplyDeleteKabhi kabarhi tabiyat ijazat deti hai ki baithke kuchh padh sakun....muddaton baad aapke blogpe aayi aur man trupt ho gay!
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन जन्म दिवस - सर चार्ली चैपलिन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteभाषा के रवानी और गेयता लिखे की देखते भी बनती है किशोर व्यय से ही यह व्यसन पाले बैठे हैं ज़नाब। सुन्दर मनोहर पल्लवन कालानुक्रम में विकास की सीढ़ी आप चढ़ते ही जा रहे हैं।
ReplyDeleteकिशोरावस्था में लिखी गयी यह बहुत ही अच्छी कविता है !
ReplyDeleteवैसे लगता नहीं किशोर की कलम से निकली है ]
आपकी कविताएँ हमेशा से प्रभावशाली रही हैं... चाहे किशोरवय की हों या हाल की!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ....
ReplyDeleteकिशोरावस्था में मध्यमार्गी पथ असाध्य ही होता है.
ReplyDeleteकिशोरावस्था में मध्यमार्गी पथ असाध्य ही होता है.
ReplyDeleteकिशोरावस्था की यह प्रौढ़ता कविता को दर्शन देती है !
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित और उत्कृष्ट रचना...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सारगर्भित रचना.....
ReplyDeleteफेसबुक से पता चला कि आज आप का जन्म दिन है। आप के जन्म दिन पर आप को अनेक बधाइयाँ प्रवीण भाई। सदा प्रसन्न रहें और ख़ूब तरक़्क़ी करें। जय श्री कृष्ण।
ReplyDeleteBehaad khoobsurat shaqd :)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना कैशोर्य में परिपक्वता लिये।
ReplyDeleteसुन्दर कविता..
ReplyDeleteआदर्शों का ध्येय मिला है,
ReplyDeleteआत्मोन्नति का पंथ खुला है,
जीवन की जद्दोजहद और मन के दृढ़ भाव ...सुंदर कविता ....!!