अंग्रेजी फिल्में कल्पनाशीलता के लिये देखता हूँ। पर कौन सी देखनी है, इस पर प्रयोग नहीं करता हूँ, संस्तुतियों पर ही देखता हूँ। ऐसी ही एक फिल्म देखी, हंगर गेम्स। शाब्दिक अर्थ है, भूख के खेल। कहने को तो यह विश्व भूख से गतिमान है, यदि भूख न होती तो संभवतः विश्व में इतनी गतिशीलता भी न होती। भूख अपने आयाम बढ़ाती जाती है, इच्छाओं में परिवर्धित होती जाती है और रचा जाने लगता है, एक रंग बिरंगा विश्व।
तीन भाग लिखे हैं, सूजैन कॉलिन्स ने। दो भागों पर फिल्में बन चुकी हैं, २०१२ और २०१३ में, तीसरे भाग पर २०१४ में फिल्म बन रही है। दोनों फिल्में बहुत लम्बी हैं, लगभग ढाई घंटे की। दोनों चली भी बहुत हैं, १५० सप्ताह से अधिक। पहली फिल्म टीवी पर देखी थी, दूसरी फिल्म दिखाने के लिये पृथु हमें मॉल ले गये, इस शर्त पर कि जहाँ कहीं पर भी कहानी में अटकेंगे, उन्हें बताना पड़ेगा। पृथु तीनों भाग पढ़ चुके थे, देवला को ढंग से समझा चुके थे और आंशिक रूप से हमें बताने का प्रयास भी कर चुके थे। समयाभाव था या ध्यान कहीं और था, सुनने के बाद भी कहानी समझ में आयी ही नहीं। यह संभवतः पहली फिल्म थी मेरे लिये जिसे हम संशयमना थे कि समझ आयेगी या नहीं? हमारी श्रीमतीजी हमारे साथ खड़े रहने के धर्म को निभाने के लिये हमारे साथ चल दीं, यद्यपि उनका मन 'गोरी तेरे प्यार में' देखने का था।
अब तक तो हमें लगता था कि दोनों बच्चे पॉपकार्न और नैचो खाने ही मल्टीप्लेक्स में जाते हैं, इस बार स्थितियाँ पलट थीं। इस बार उन्हें फ़िल्म देखने, समझने और फिर समझाने में पूरी रुचि थी, पॉपकार्न और नाचो का सहारा हमको और श्रीमतीजी को था। सोचा नहीं था पर हॉल पूरा भरा मिला। कभी कभी लगता है कि या तो यहाँ के बच्चों की वैश्विक चेतना पर्याप्त विकसित है या यहाँ के नववयस्कों को अभी तक बाल साहित्य में रुचि है। यह भी संभव है कि हम जैसे अध्ययनशील अभिभावकों से ही आधा हॉल भरा हो।
हंगर गेम्स |
जैसे ही फ़िल्म प्रारम्भ हुयी, पृथु ने भी कमेन्ट्री प्रारम्भ कर दी। उन्हें लगा कि प्रारम्भ में ही विस्तृत पात्र परिचय देने से हमें समझने में सरलता होगी। पास बैठे लोग हमारी ओर मुड़कर ऐसे देखने लगे कि जैसे हम पहली बार ही कोई अंग्रेज़ी फ़िल्म देखने आ रहे हों। अटपटा लगा कि जैसे किसी ने हमारी वर्षों की आंग्ल-तपस्या पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया हो। माना कि यूपी बोर्ड में पढ़े हैं, माना कि लहराती हुयी अंग्रेजी नहीं बघार पाते, माना कि एक एक शब्द न समझ आता हो, पर भावार्थ समझ कर कथा प्रवाह समझने की क्षमता हम भी रखते हैं। हमने पृथु से कहा कि जब कठिनाई होगी तो पूछ लेंगे। हम आँख, कान और ध्यान फैलाकर फ़िल्म देखने में लग गये।
अंग्रेजी फिल्मकारों के साहस को सराहना होगा कि फिल्म की कहानी को उभारने के लिये परिस्थितियों की जो उर्वरा भूमि बनानी होती है, वह पहले पाँच मिनटों में ही बना देते हैं, बात पचे या न पचे। अब काल्पनिकता के लिये इतिहास पर फिल्में तो बनायी नहीं जा सकतीं, तो भविष्य की संरचना की जाती है। युद्ध और तकनीक, दो ऐसे सूत्र हैं जिससे कोई भी काल्पनिक परिस्थिति बनायी जा सकती है। इसमें भी यही होता है। एक दैवीय आपदा के पश्चात १२ निर्धन नगर और उनकी धनाढ़्य राजधानी बचती है। तकनीक की दृष्टि से समाज अत्यधिक उन्नत है फिर भी कार्य मानवीय श्रम से सम्पादित होते हैं, इसका स्पष्ट कारण फ़िल्म में नहीं दिखा।
खेलक्षेत्र में संघर्ष |
जो भी हो, वहाँ एक विचित्र प्रथा है। कई वर्ष पहले वहाँ एक विद्रोह हुआ था, जो १३वें नगर ने किया था और उसमें वह नगर तथाकथित रूप से नष्ट हो गया था। वैसा विद्रोह पुनः न हो इसके लिये एक वार्षिक खेल का आयोजन होता है, जिन्हें हंगर गेम्स कहा जाता है। इन खेलों में हर नगर से १२ से १८ वर्ष के बीच के एक लड़के और एक लड़की को लॉटरी के माध्यम से चुना जाता है, इन्हें ट्रिब्यूट या आहुति कहा जाता है। इन्हें एक बड़े से खेलक्षेत्र में छोड़ दिया जाता है, जहाँ पर औरों को मारकर किसी एक को विजयी होकर निकलना होता है। सारे का सारा दृश्य सारे नगरों में सीधा दिखाया जाता है, जिसमें रोचकता के साथ साथ चेतावनी भी रहती है। जो भी जीतता है, उसका सारे नगरों में भ्रमण और सत्कार होता है।
इसमें आधुनिक रियलिटी शो के भी अवयव हैं और मिस यूनिवर्स जैसे आयोजनों के भी। सरकार द्वारा आयोजित बिग बॉस सा लगता है यह खेल जिसमें घर के स्थान पर जीवन से निष्कासित हो जाते हैं प्रतिभागी। जहाँ एक के अतिरिक्त शेष सभी प्रतिभागियों की मृत्यु सुनिश्चित हो, प्रतिभागियों की चयन प्रक्रिया अपने आप में एक पीड़ादायक अनुभव है। खेलक्षेत्र में वीरता और क्रूरता, जीत के पश्चात विजेता का ऐश्वर्य और विजेता के प्रति अन्य नगरों में घृणा का एक भाव, इस फ़िल्म में सभी रसों को भरने का प्रबंध कर जाते हैं।
निर्धनों को उनकी मूल समस्या से ध्यान बटाने के लिये मनोरंजन, नये नायकों का निर्माण आदि ऐसे उपाय हैं जो किसी न किसी रूप में वर्तमान में भी देखे जा सकते हैं। ऐसे उपायों के आयोजनों से न केवल उनकी वास्तविक पीड़ा ढकती होगी वरन विद्रोह के स्वर भी सिमट जाते होंगे। वास्तविकता से ध्यान हटाने के लिये काल्पनिकता में उलझाये रखने के उपक्रम एक दर्दनिवारक की तरह हैं, जब तक रहेंगे, पीड़ा का भास नहीं होगा।
हंगर गेम्स के माध्यम से तन्त्र का अंग होना, विजेता बनकर भ्रमण के समय जनमानस की भावनाओं को समझना, शासकों की इस कुटिल मानसिकता को समझना और उससे स्वयं को और औरों को बाहर निकालना, ये सारे तत्व इन फ़िल्मों की कहानी को जीवन्त बनाये रखते हैं। कथाक्रम कैसे करवट लेता है, इसकी रोचकता ही इसे वर्तमान की एक सफलतम फ़िल्म बनाती है।
कहाँ मैं सोचकर गया था कि फ़िल्म समझ में आयेगी या नहीं, कहाँ एक पल भर के लिये भी स्क्रीन से आँख हटाने का समय ही नहीं मिला। कल्पनाशीलता इस स्तर की कि मैं अभी से इसके तीसरे भाग की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कब आयेगा? कहते हैं कि अक्टूबर तक, हाँ जब आइफोन ६ आयेगा। अरे, इतनी अधिक कल्पनाशीलता और अधैर्य भी ठीक नहीं। वर्तमान में तो पृथु को बहुत धन्यवाद, इतनी अच्छी फ़िल्म बताने, समझाने और दिखाने के लिये।
चित्र साभार - www.dragoart.com, www.forbes.com
जिस विषय वस्तु को आप छूते हैं ,स्पष्ट वर्णन करते हैं .....
ReplyDeleteहार्दिक शुभ कामनाएँ
वैसे तो यही लगता है संसार की गतिशीलता का एक आधार हंगरगेम ही है ।बस यही कि काश मनुष्य की भूख अपने पेट की स्वाभाविक भूख तक ही सीमित होती न कि उसके मानसिक हवस के स्तर की।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और रोचक वर्णन। इमानदारी की बात कहें तो मुझे अंग्रेजी मूवी के डायलॉग समझने में हमेशा कठिनाई होती है।कॉलेज में तो दोस्दोतों से पूछने में थोड़ा संकोच होता था पर अब बच्चे अंग्रेजी मूवी देखते समय मेरे चेहरे पर दिखते तनाव व लाचारी के भाव को भॉपते बिना कुछ पूछे ही व्याख्या करके सहायता करते हैं । सच कहें तो बड़ें होते बच्चों के साथ अंग्रेजी मूवी देखना बहुत सहूलियत व जानकारी वाला अनुभव रहचा है ।
च्स्बिचे तोंल।्
वर्णन इतना रोचक है , अब तो दर्शन भी करना पड़ेगा ।
ReplyDeleteye aapke aalekh ko padhkar hi pata chala ki enlish films kalpnasheelta ke liye bhi dekhi jati hain hame to inme keval vastvikta hi dekhi thi aajtak .thanks to share your thinking here.
ReplyDeleteअंग्रेज़ी फ़िल्में और वासत्विकता ...क्या मज़ाक है जी.....
Deleteएक बार फिर आपने बहुत ही रोचकता से .... फिल्म की खूबियों को बखूबी शब्द दिये हैं
ReplyDeleteइन्हीं कल्पनाशील कथाक्रमों से तो समाज पर द्विअर्थ मानसिकता का बोझ बढ़ता जा रहा है। आप जैसे चुनिंदा ही हैं जो ऐसे कल्पनाशील चलचित्रों का मनोरंजन सूत्र ही पकड़ते हैं। अधिकांश जनमानस वो भी विशेषकर किशोर और युवा इसमें दिग्भ्रमित ही ज्यादा होते हैं।
ReplyDeleteयही तो दुर्भाग्य है देश का बडोला जी......
Deleteफिल्म देखने का मन हो रहा है
ReplyDeleteजबरदस्त फ़िल्मों में से एक है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की कल्पना चावला की 11 वीं पुण्यतिथि पर विशेष बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteवाकई बहुत ही रोचक वर्णन...
ReplyDeleteaap ne aur prithu ne hunger games ke liye ek aur darshak tayaar kar diya hai. main to anytha anjaana hi tha.
ReplyDeleteकेवल इसी कारण से हम आजकल आंग्लभाषा फ़िल्मों को देखने में प्राथमिकता देते हैं :) पर हिन्दी का मोह भी छोड़ नहीं पाते हैं
ReplyDelete" बुभुक्षितः किं न करोति पापम् ।"
ReplyDeleteहंगर गेम्स का क्या यही वास्तविक अर्थ है .... पाप करना ..
Delete....रोचकता से किया फिल्म का वर्णन ......कुछ समझ में आया ....कुछ नहीं भी ....किन्तु हम संगीत वाले बस इतना ही कह सकते हैं ....अगर संगीत की भूख है ...तभी उसकी साधना की जा सकती है ........!!ज्ञान ही साधना का मार्ग है ...!!संगीत जितना साधते जाते हैं ,उतना ही अज्ञान से दूर होते जाते हैं ...!!Thought provoking article indeed ..!!
ReplyDeleteBahut sundar prastuti …
ReplyDeleteअंग्रेजी फिल्मों के बारे में अपनी भी समझ भोंदी है :-)
ReplyDeleteगोरी तेरे प्यार में.... वसंत पर देखी जा सकती है।
देखिये...देखिये ...समझ की क्या आवश्यकता है.....
Deleteअंग्रेजी फ़िल्में में आंग्लभाषा का उच्चारण समझना ही एक टेढ़ी खीर रहती है बाकी तो उनकी कोई सानी नहीं है -
ReplyDeleteहंगर गेम्स के बारे में मुझे पता नहीं था ! आभार!
इसका स्पष्ट कारण फ़िल्म में नहीं दिखा।..........तर्क एवं कारण ढूंढना हो तो अंगरेजी फ़िल्में न देखें ....एक सर्कस समझ कर देखें....
ReplyDeleteहमें भी देखनी है ये फ़िल्म ..... सुंदर एवं रोचक वर्णन
ReplyDeleteसुन्दर नज़र है पृथु की नज़रिया भी विकसित है। बधाई। आभार आपकी टिप्पणियों का।
ReplyDeleteजे बात हमने भी जे वाली हिम्मत आज तक अभी तक तो नहीं दिखाई है , किसी दिन कर ही डालते हैं रुकिए
ReplyDeleteकल 03/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बेहतरीन जानकारी मिली इस फिल्म के बारे में |आभार सर जी |
ReplyDeleteआजकल के बच्चों की नॉलेज इस मामले में हमसे कहीं आगे है.. मेरी बिटिया भी अंग्रेज़ी साहित्य, अंग्रेज़ी संगीत और अंग्रेज़ी फ़िल्में देखती है... उसने रेकमेंड भी किया था, मगर देख नहीं पाया! देखता हूँ!
ReplyDeleteaapka blog mshahoor ho rha hai pravin ji ! akhbaron men bhi aapko pdha hai ! mera blog fir se mil gya hai aik kahani hai...jo hans men chhpi hai ...kbhi fursat men dekhiyega !
ReplyDeleteदेखते हैं :)
ReplyDeleteफिल्म की समीक्षा भी इतनी रोचक ....
ReplyDeleteरोचक ... फिल्म अभी तक नहीं देखी ... पर अब लगता है जरूर देखूंगा ... आपका सजीव चित्रण जो देख लिया ...
ReplyDeleteसटीक वर्णन किया आपने.
ReplyDeleteरामराम.
धन्यवाद आपको भी इतनी अच्छी फिल्म का विश्लेषण करके उत्सुकता जगाने के लिए। अंग्रेजी में हाथ जरा तंग है फिर भी देखना पड़ेगा। बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।
ReplyDeletebahut hi spasht va rochak varnan hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
प्रभावशाली और रोचक
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई ----
आग्रह है--
वाह !! बसंत--------
शुक्रिया आपकी निरंतर उपस्थिति का।
ReplyDeleteफिल्म की समीक्षा भी आपने बेहद दार्शनिक अंदाज में की है..और आपकी रचनाओं में समाहित यही दर्शन आपको सबसे अलग बनाता है...
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी निरंतर उपस्थिति का हृदय से आभार।
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