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इन्स्क्रिप्ट में ही टाइप करें

आज भी बहुत से ब्लॉगर ऐसे हैं जो अभी भी अंग्रेजी आधारित हिन्दी टाइपिंग करते हैं। यही क्या कम है कि वे अन्ततः हिन्दी में लिख रहे हैं, माध्यम जो भी हो, पढ़ने को तो हिन्दी मिल रही है। पहले मुझे लगता था कि कैसे अपनी भाषा लिखने के लिये दूसरी भाषा का आश्रय ले लेते हैं ब्लॉगर? कैसे वही शब्द लिखने के लिये अधिक श्रम करना चाहते हैं लोग? कैसे कुछ शब्द न लिख पाने की स्थिति में उसका प्रयोग छोड़ सकते हैं लेखकगण?

इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड
अनुभव से यही पाया कि हिन्दी में टाइप करने के पहले हम सब अंग्रेजी में ही टाइप करते आये थे। यही नहीं, अभी भी पर्याप्त समय हम अंग्रेजी लिखते भी हैं। इस स्थिति में एक ही वर्णमाला की टाइपिंग में सिद्धहस्त हो यदि हम हिन्दी भी टाइप कर सकें तो दूसरा कीबोर्ड सीखने के श्रम से बचा जा सकता है। यही सुविधा और गहराती जाती है और ब्लॉगर हिन्दी लिखने के लिये रोमन वर्णमाला की विवशता त्याग नहीं पाते हैं। गूगल ने भी इस विवशता को समझा और यथानुसार समर्थ फ़ोनेटिक सहायक भी प्रस्तुत कर दिया। यही नहीं शब्दकोष की सक्षम विकल्प प्रणाली से हर संभव शब्द उपस्थित भी हो जाता है, चुनने के लिये।

हिन्दी में लिखने के प्रारम्भिक काल में हमने भी फोनेटिक कीबोर्ड का उपयोग किया था। हिन्दी में टाइप करने की आवश्यकता थी और इन्स्क्रिप्ट के बारे में पता नहीं था। उस समय सभी ने बराह के उपयोग की सलाह भी दी थी। कुछ भी न होने से कुछ होना अच्छा था। प्रयोग करते करते कुछ ब्लॉगरों ने इन्स्क्रिप्ट के बारे में भी सुझाया, पर नये कीबोर्ड को याद कर सकने की असुविधा ने इन्स्क्रिप्ट को द्वितीय विकल्प के रूप में ही रखा। साथ में यह भी नहीं ज्ञात था कि इन्स्क्रिप्ट में यदि टाइप करेंगे भी तो उसमें गति बढ़ेगी या नहीं? वहीं दूसरी ओर अंग्रेज़ी टाइपिंग में सहजता थी, हिन्दी को भी उससे व्यक्त किया जा सकता था। जहाँ तक हिन्दी शब्दों को यथारूप अंग्रेज़ी शब्दों में बदलने का मानसिक कार्य था, वह प्रारम्भ में बड़ा कठिन तो था पर अभ्यास और भूलों के मार्ग से होते हुये कुछ न कुछ लिखा जा सकता था। 

इतना कोई कैसे याद करे
उस समय शब्दों के विकल्प भी नहीं होते थे, जो लिखना होता था, पूरा लिखना होता था। कई बार ऐसा भी होता था कि उपयुक्त शब्द यदि वर्तनी में कठिन होता था तो उसका कोई ऐसा विकल्प ढूँढ़ते थे जिससे मानसिक अनुवाद का कठिन कार्य कम किया जा सके। उस समय बहुधा चर्चा भी होती थी कि कोई शब्द विशेष कैसे लिखा जाये। कई बार किसी कठिन शब्द को संग्रह कर लिया जाता था, जिससे समय पड़ने पर उस कॉपी करके उतारा जा सके। सच कहा जाये तो हिन्दी में टाइप करना बड़ा रोमांचक कार्य था। उत्साह अधिक था और छपे जाने का आनन्द भी रोका नहीं जा सकता था, अतः इन्स्क्रिप्ट के विचार पर तात्कालिक ध्यान नहीं दिया गया।वह समय भौतिक कीबोर्ड का था और उनमें देवनागरी के स्टीकर भी नहीं थे। यदि वे सहज ही उपलब्ध होते तो संभवतः फोनेटिक अधिक समय तक न चल पाता। कठिनाई को बहुत होती थी क्योंकि अंग्रेज़ी वर्णमाला से हिन्दी में परिवर्तन करने वाले सारे नियम सहजता से याद रखना संभव भी नहीं था। शब्द सरल हुये तो गति अच्छी रही, शब्द कठिन हुये तो गतिरोध हुआ।

फोनेटिक टाइपिंग का सर्वाधिक दुष्प्रभाव चिन्तन पर पड़ता था। एक तो विषय के बारे में सोचना और दूसरा इस बारे में सोचना कि अभिव्यक्ति को किस प्रकार अंग्रेज़ी शब्दों से व्यक्त किया जाये। एक साथ मस्तिष्क यदि दो कार्य करना पड़े तो गति बाधित होना स्वाभाविक है। कठिन शब्दों से खेलते समय यदि भूल हो जाये तो सारी सृजनात्मकता उसी क्षण धाराशायी हो जाती थी। लगता था कि अभिव्यक्ति के दो चरण एक साथ नापने के प्रयास में हाँफे जा रहे हैं।

यह क्रम लगभग ६ माह चला, किसी तरह घिसटते हुये हिन्दी टाइपिंग हो रही थी। उस समय हम केवल पाठक हुआ करते थे और टाइपिंग का कार्य कुछ चुने हुये ब्लॉगों पर टिप्पणी देने तक ही सीमित था। किसी तरह सरल शब्दों में मन के भाव व्यक्त कर लेते थे, समय फिर भी लगता था, पर साधा जा सकता था।

ब्लॉग के प्रति प्रतिबद्धता तनिक और बढ़ी और हमें ज्ञानदत्तजी ने लिखने के लिये उकसाया, सप्ताह में एक ब्लॉग, वह भी उनके ब्लॉग पर अतिथि ब्लॉगर के रूप में। स्वलेखन की मात्रा बढ़ी, साथ ही साथ अन्य ब्लॉगों पर भी अधिक जाने से टिप्पणियों में भी अधिक लिखना हुआ। अब बराह पैड में लिखकर उसे काट कर टिप्पणी बॉक्स में चिपकाने के झंझट ने टिप्पणी देना एक उबाऊ कार्य बना दिया। कई बार चाह कर भी लिखना नहीं हो पाया, कभी आलस्य में कम में कह कर कार्य चला लिया। अन्ततः मन में अधिक गति से टाइप करने की चाह उत्कट होती गयी।

तब बैठकर शोध किया गया कि यदि इन्स्क्रिप्ट सीखी जाये तो कितना समय लगेगा और इन्स्क्रिप्ट में टाइप करने से कितना समय बचेगा? गणना की कि एक शब्द को टाइप करने में फोनेटिक विधि में लगभग ढाई गुना अधिक की दबानी पड़ती हैं। मन में अनुवाद की सतत प्रक्रिया से सृजन के बाधित प्रवाह से गति दो तिहाई ही रह जाती है। हर एक वाक्य में हुयी भूलों से लगभग २० प्रतिशत समय अधिक लगता था। साथ ही साथ कठिनता से बचने के लिये उपयुक्त शब्द न लिख पाये के दुख की गणना संभव भी नहीं थी। तय किया कि इन्स्क्रिप्ट टाइपिंग में गति यदि एक तिहाई भी रह जाये तो भी समय व्यर्थ नहीं होगा।

एक काग़ज़ में इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड का प्रारूप सजाकर सीखने का शुभारम्भ किया। सीखना जितना सरल सोचा था, उससे कहीं कठिन लगा। बार बार काग़ज़ पर कीबोर्ड को देखना और उससे संबंधित की को दबाना बड़ा ही श्रमसाध्य लगा। प्रारम्भिक दो दिन में लगा कि फोनेटिक ही अच्छा था, पर प्रयोग की अवधि को दो सप्ताह तक जीवित रखने के संकल्प ने निष्कर्ष देने प्रारम्भ कर दिये। दो सप्ताह में कीबोर्ड ८० प्रतिशत तक याद हो गया और फोनेटिक के समक्ष टाइपिंग गति भी आ गयी। उस समय लगा कि यदि कहीं से हिन्दी के स्टीकर मिल जायें तो गति और बढ़ायी जा सकती है। अमेजन में स्टीकर देखें, वे न केवल मँहगे थे, वरन उनको बाहर से मँगाने में बहुत समय लगने वाला था। तभी बेंगलोर के एक पर्यवेक्षक ने प्रिंटिग प्रेस से स्तरीय स्टीकर बनवा दिये। वह दिन मेरे लिये फोनेटिक कीबोर्ड पर कभी न वापस देखने का दिन था।

जब अंग्रेज़ी में टाइप करते थे तो दो उँगलियाँ ही उपयोग में आती थीं और देखकर ही टाइपिंग हो पाती थी। हिन्दी स्टीकर लगाने से वह गति अगले दो तीन दिन में ही आ गयी। जब दोनों में ही गति समान हो गयी तो उतने ही समय में लगभग दुगना लिखने लगे और भूलें भी नगण्य हो गयीं। हिन्दी टाइपिंग में आनन्द आने लगा, अभिव्यक्ति सहज होने लगी और मस्तिष्क का सारा कार्य विचार प्रक्रिया और सृजनात्मकता को समर्पित हो गया।

स्क्रीन पर आये हिन्दी कीबोर्ड ने मेरी इन्स्क्रिप्ट टाइपिंग को मोबाइल और टैबलेट में गति दी और यही कारण है कि मेरा अधिक लेखन आइपैड और मोबाइल पर ही होता है। उस पर किया हुआ अभ्यास कम्प्यूटर पर भी टाइपिंग के लिये लाभदायक हुआ। धीरे धीरे विचार की गति टाइपिंग की गति से मेल खा रही है, अभिव्यक्ति निर्बाध और प्रवाहमान होती जा रही है। वहीं दूसरी ओर गूगल टूल में आयी विकल्प की सुविधा ने निश्चय ही फोनेटिक की गति बढ़ायी होगी, पर यदि वही सुविधा इन्स्क्रिप्ट में भी आ जाये तो इन्स्क्रिप्ट पर टाइपिंग की गति में गुणात्मक सुधार हो जायेगा।

वर्तमान में एक ब्लॉगर, जिन्हें मैं नियमित पढ़ता हूँ, जिनका लेखन ब्लॉग जगत के लिये संग्रहणीय निधि है और जिनको भविष्य अधिकता से लिखने के लिये बाध्य करेगा, उन्होंने जब फोनेटिक पर टिके रहने की बाध्यता जताई तो मन बिना विश्लेषण किये न रह पाया। मैं मानता हूँ कि कुछ प्रयास अवश्य लगेगा, कुछ समय अवश्य लगेगा, पर वर्षों की आगामी साधना में जो समय बचेगा उसकी तुलना में इन्स्क्रिप्ट सीखने में लगा श्रम और समय नगण्य है। अंग्रेज़ी के प्रति किसी दुर्भाव से नहीं वरन पूर्ण वैज्ञानिकता और अनुभव की दृष्टि से इन्स्क्रिप्ट ही श्रेष्ठ है। इन्स्क्रिप्ट में ही टाइप करें।

40 comments:

  1. हमारे लिये भी इन्स्क्रिप्ट पर जाना बहुत कठिन साबित हुआ, और हम ४-५ दिन में ही वापिस से फ़ोनोटिक पर आ गये, विचारों के प्रवाह में अवरोध सहन नहीं हुआ और अंग्रेजी में अच्छी टायपिंग की रफ़्तार फ़ोनोटिक को सहज कर देती है, पर आपके इस पोस्ट से वापिस से हम इन्स्क्रिप्ट पर लिखने के लिये प्रेरित हो रहे हैं, हम भी ३ सप्ताह की समय सीमा रख लेते हैं, फ़िर इसी पोस्ट पर टिप्पणी करके बतायेंगे ।

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  2. प्रोत्साहित करता ज्ञानवर्धक आलेख ...

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  3. ठीक कहा है आदरणीय आपने...
    सादर।

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  4. फिलहाल आवश्यकतानुसार मैं दोनों का प्रयोग करता हूँ ....और दोनों में बेहतर ....लेकिन पहले तो मैंने इन्स्क्रिप्ट ही आपकी विधि से सीखा था ....!!! बेहतर और प्रेरक पोस्ट ...!!!

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  5. हम तो प्रारम्‍भ से ही रेमिग्‍टन की-बोर्ड का प्रयोग करते आए हैं इसलिए जब से यूनिकोड आया है हम IME सेटअप के द्वारा ही लिख रहे है। आई फोन पर अब इन्स्क्रिप्‍ट है तो वहां वैसे ही लिखा जा रहा है। आपको जानकर सुखद आश्‍चर्य होगा कि मेरी जितनी भी पुस्‍तके हैं, वे सब मेरे द्वारा ही कम्‍पोज की गयी हैं।

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  6. उपयोगी जानकारी !

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  7. पिछली पोस्ट पर कमेंट में मैने जो आपको वेबसाइट का नाम बताया था www.krutidevunicode.com वो हिंदी टाईपिंग जानने वालो के लिये वरदान है । उन्होने अपना एक आफलाइन भी बनाया जिससे हम आफलाइन रहकर या फेसबुक कहीं भी गूगल आई एम ई की तरह लिख सकते हैं । उसकी कीमत भी कम ही थी कुछ 500 रूपये के करीब पर जब उनकी शर्त पढी तो दिमाग खिसक गया ।

    ये 500 रूपये एक बार व एक सिस्टम के लिये थे । यानि अगर गलती से विंडो भी उड जाये तो भी दोबारा ये फीस देनी होगी । इसलिये इससे कन्नी काट ली और इनकी मुफत की सुविधा पर ही दो साल से हाथ आजमा रहे हैं । ऐसा मेरे साथ ही नही हुआ बल्कि सबने इसको नही लिया , नतीजा इन्होने उसे बेचना ही छोड दिया लेकिन अगर इस वेबसाइट के कर्ताधर्ता इस टूल को हिंदी के विकास के लिये उपलब्ध करा दें तो जो लोग टाइपिंग पुराने तरीके से करना जानते हैं वे अपनी तेज स्पीड की खातिर इससे बेहतर टूल नही पायेंगें

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  8. बहुत खूब अद्यतन लिखा है।नै पहल नै जानकारी।

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  9. बहुत खूब अद्यतन लिखा है।नै पहल नै जानकारी।

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  10. कल 09/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  11. मैं तो हिन्‍दी इंडिक इनपुट में टाइप करता हूँ। अच्‍छा ज्ञान है उनके लिए जो हिन्‍दी टाइपिंग के संघर्ष से घिरे हुए हैं।

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  12. इन्स्क्रिप्ट आपके द्वारा ही पता चला, उसी का प्रयोग करता हूं।

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  13. बहुत लेखन से जुडी जानकारी मिली |आभार

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  14. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह, हेमराज और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  15. आपकी प्रस्तुति गुरुवार को चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है |
    आभार

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  16. शायद हिंदी लिखने की परेशानी कुछ ब्लोगेर्स को लिखना छोड़ने पर विवश कर देती है

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  17. यह जानकारी बहुतों को प्रेरित करने वाली है!! लोगों को लाभ उठाना चाहिये!!

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  18. हिंदी टाइपिंग से जुड़ी उपयोगी जानकारी ...आभार

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  19. कोशिश कर रहे हैं हम भी :)

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  20. Useful piece of information :)

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  21. मुझे नहीं लगता कि फोनेटिक में टाइप करने में, आप अंग्रेजी में सोचते हैं। फोनेटिक में टाइप करने में मुझे यह अच्छा लगता है कि एक कीबोर्ड में दो भाषाओं (अंग्रेजी और हिन्दी) को टाइप कर पा रहा हूं।

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  22. हम इन्स्क्रिप्ट से परिचित हैं।
    तीन बार कोशिश की इसे अपनाने की।
    हर बार विफल हुआ।
    क्या करें, अंग्रेजी में हम कुशल touch टाइपिस्ट हैं और ८० शब्द प्रति मिनट टाईप कर लेते हैं बिना कीबोर्ड देखे।
    बरहा में phonetic typing हमारे लिए सबसे ठीक लगा और अब पाँच साल से इसका इतना अभ्यास हो गया है, कि अब इन्स्क्रिप्ट आजमाने में मन नहीं लगता।
    मानता हूँ कि phonetic typing में ढाई गुणा ज्यादा अक्षर टाइप करना पढता है पर हम अब अभ्यस्त हो चुके हैं और इस बात का ध्यान ही नहीं रहता.
    कभी कभी इन्स्क्रिप्ट का नशा फिरसे चढ जाता है (जैसा कि आज, आपका लेख पढने का बाद) और हम फिर से कोशिश करते हैं पर जब तक हमें कोई मजबूर नहीं करता हम शायद इसमें कुशल और त्वरित टाइपिंग कभी नहीं कर पाएंगे। मानता हूँ कि यह अफ़सोस की बात है!
    आप सीख गए हैं, यह सुनकर अच्छा लगा। बधाई!
    क्या पता कभी भविष्य में हम भी सीख जाएंगे और यदि सफ़ल हुआ, तो हम आपको ही इसका श्रेय देंगे, हमें उतसाहित और प्रोत्साहित करने के लिए।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  23. हम मोबाइल में तो इनस्क्रिप्ट से काम चला लेते हैं पर pc में वही गूगल ट्रांसलिट्रेशन !
    अब तो रोमन से भी हिंदी लिखने का अच्छा-खासा अनुभव हो गया है,हालाँकि अभी बभी की-बोर्ड याद नहीं हुआ.

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  24. हिंदी टाइपिंग से जुड़ी उपयोगी जानकारी ...आभार

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  25. सादर प्रणाम |विल्कुल सहमत हूँ आपसे |

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  26. मेरे विचार में जिन लोगों की टाइपिंग गति उनके अपने वर्तमान सुविधा (जैसे कि अंग्रेज़ी फ़ोनेटिक या रेमिंगटन आदि) में अच्छी है, उन्हें इनस्क्रिप्ट पर आना नहीं चाहिए.

    अलबत्ता नए लोगों को और जिनकी टाइपिंग गति अभी भी 10-15 शब्द प्रतिमिनट पर अटकी है, उन्हें अवश्य ही इनस्क्रिप्ट अपनाना चाहिए.

    और, जिन्हें लगता है कि इनस्क्रिप्ट सीखना कठिन है तो यह बिलकुल कठिन नहीं है. आपको हिंदी वर्णमाला क्रम याद रहना चाहिए चूंकि यह हिंदी वर्णमाला क्रम में ही जमा है. यदि याद नहीं है तो कीबोर्ड स्टीकर लगा लें या फिर कीबोर्डमें मार्कर पेन से लिख लें (यह विधि मैंने अपनाई थी) - इनस्क्रिप्ट सीखना अत्यंत सुगम हो जाएगा.

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  27. अभी तो फोनेटिक से ही काम करते हैं, लेकिन इनस्क्रिप्ट अपनाने की कोशिश करेंगे...बहुत सुन्दर जानकारी...

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  28. बहुत बढ़िया ...सर..पूरी तरह से सहमत हूँ ...मै भी अभी फ़ोनेटिक से ही काम चला रहा हूँ |

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  29. बढ़िया...जानकारी से परिपूर्ण आलेख

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  30. हिंदी टाइपिंग में गहन शोध और अभ्यास का परिणाम प्रकट हो रहा है और हम प्रेरित हो रहे हैं..

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  31. ज्ञानवर्धक उपयोगी जानकारी...बढिया आलेख ...

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  32. बहुत बढ़िया शोधपरक उपयोगी जानकारी .....

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  33. एक सार्थक चर्चा जिससे इंटरनेट की हिंदी का विकास होगा।

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  34. रोचक आलेख...हिन्दी टाइपिंग निश्चित रूप से सीखने वाली क्रिया है...

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  35. प्रोद्योगिकी अनेक विकल्प लिए आ रही है। अपनाने की कुशलता तो हो। शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का।

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  36. प्रोद्योगिकी अनेक विकल्प लिए आ रही है। अपनाने की कुशलता तो हो। शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का।

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  37. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (3 से 9 जनवरी, 2014) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

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  38. मैं इनस्क्रिप्ट में ही टाइप करता हूँ। अब तो आदत बन गई है। ब्लॉगिंग के लिए तो यह ठीक है मगर जब मैं इसका उपयोग पत्र लिखने के लिए करता हूँ। तो हिंदी kurtidev फंट में इसका लिखा परिवर्तित नहीं हो पाता। उसमें mangal लिख कर आता है। ऑफिस के कम्प्यूटर में हिंदी kurtidev का प्रयोग होता है। इस mangal को kurtidev में कैसे बदला जा सकता है?

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