हम कहेंगे, तुम कहोगे, तथ्य जो है,
तभी निकलेगा हृदय से, सत्य जो है।
रंग पक्षों के चढ़ाये घूमना था,
क्यों बताओ सूर्य का शासन चुना था?
मूढ़ से मुण्डी हिलाते, हाँ या ना,
सीखनी थी मध्य की अवधारणा।
गुण रहे आधार, चिन्तन-मूल के,
तब नहीं हम व्यक्ति को यूँ पूजते।
भय सताये, प्रीति आकुल, भ्रम-मना,
मिल रही है सत्य को बस सान्त्वना।
मन बहे निष्पक्ष हो, निर्भय बहे,
तार झंकृत, स्वरित लहरीमय बहे।
नियत कर निष्कर्ष, बाँधे तर्क शत,
बुद्धिरथ दौड़ा रहे, आश्वस्त मत।
हो सके तो सत्य को भी बाँट लो,
यथासुविधा, हो सके तो छाँट लो।
या तो फिर निर्णय करो, मिल बैठ कर,
तथ्य के आधार, गहरे पैठ कर।
त्यक्त संशय, धारणा, मन व्यक्त हो,
जूझना, जब तक न एकल सत्य हो।
साधनारत बुद्धि का उत्पाद जग को चाहिये,
एक सम्मिलित सार्थक संवाद जग को चाहिये।
कहें पीड़ा और की हम, कथ्य जो है,
आज सब मिलकर कहेंगे, सत्य जो है।
सत्य की जय हो ....
ReplyDeleteअभिव्यक्त क्या हम कर सकें वे तथ्य जो हैं सत्य पूरित
ReplyDeleteसत्य तो जीवन हृदय और भावना को सहज मौन करता
अभिव्यक्त क्या हम कर सकें वे तथ्य जो हैं सत्य पूरित
ReplyDeleteसत्य तो जीवन हृदय और भावना को सहज मौन करता
हम कहेंगे, तुम कहोगे, तथ्य जो है,
ReplyDeleteतभी निकलेगा हृदय से, सत्य जो है।
रंग पक्षों के चढ़ाये घूमना था,
क्यों बताओ सूर्य का शासन चुना था?
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति |
"सत्यमेवजयतेनानृतम् ।" सत्य की ही विजय होती है असत्य की नहीं ।
ReplyDeleteपर कितना भी मुलम्मा चढाया जाये रहेगा सत्य ही
ReplyDeleteदुर्भाग्य हम सत्य कहने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे
ReplyDeleteअपनी इच्छा को रोज ही दबा रहे
हर अच्छे बुरे को नियती मानकर
अपनी ही लुटिया नित दुबा रहे
दुर्भाग्य हम सत्य कहने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे
ReplyDeleteअपनी इच्छा को रोज ही दबा रहे
हर अच्छे बुरे को नियती मानकर
अपनी ही लुटिया नित दुबा रहे
सत्य ही शाश्वत है।
ReplyDeleteरचना बहुत पसन्द आई ।
ReplyDeleteसाधनारत बुद्धि का उत्पाद जग को चाहिये,
ReplyDeleteएक सम्मिलित सार्थक संवाद जग को चाहिये।.. बहुत खूब .. सुन्दर रचना
ReplyDeleteसत्य अटल , अडिग , अविजित ।सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति ।
कल 19/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
"सत्यमेवजयतेनानृतम् ।सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअति सुंदर...... सत्य कहाँ छुपता है....
ReplyDeleteसही बात कहनेवालों की सुषुप्तावस्था ने ही बुरी बात कहनेवालों का दुस्साहस बढ़ाया है। आपकी कविता सुषुप्त बैठे हुओं को अवश्य जागृत करेगी, ऐसी शुभकामनाएं हैं।
ReplyDeleteकुछ पल अपने,
Deleteदिन तो बीता आपाधापी,
यथारूप हर चिंता व्यापी,
अब निद्रा हो, अपने सपने,
कुछ पल अपने। ......................मेरी नई ब्लॉग रचना पर इतनी महत्वपूर्ण पंक्तियां मात्र टिप्पणी के रूप में खर्च न हों। आपसे अनुरोध इनके आधार पर एक कविता का सृजन करें और उसे ब्लॉग पर प्रसारित करें।
जी निश्चय ही यह कविता पूरी करेंगे।
Deleteहोते नहीं निर्णय कभी, मिल बैठ कर,
ReplyDeleteवे तो बस हैं साझा कारोबार ही |
स्वार्थवश या बल से नत हर पक्ष होता,
और कभी दृड़ , दूरगामी नहीं होता |
नीति-निर्धारण सदा ही 'व्यक्ति' करता |
एक निश्चित मत व क्रिया-ज्ञान देता |
व्यक्ति जब होते हैं परशुराम से ,
अथवा गांधी,बुद्ध कृष्ण व राम से |
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteइन दिनों कविता के ज़रिये आपकी भावाभिव्यक्ति काफी प्रभावित कर रही है इनमें भी आपके लेखों की तरह काफी गहराई है।।।
ReplyDeleteसत्यं शिवं सुंदरम ...
ReplyDeleteसत्य तो कह लेंगे हम सहजता से
ReplyDeleteअकुलाएँगे फिर भी कह जायेंगे
तुम मान पाओगे उस सत्य को सहजता से
या ऐंठ कर रह जाओगे ! नहीं होता सत्य का तथ्य आसान
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ReplyDeleteकविता अब झर-झर बहती
Deleteकवि का अंतस् फूट रहा।
बँधा हुआ जो युगों युगों से,
वह बंधन अब छूट रहा।
कब तक थामोगे प्रवाह को,
वो वेगवान है,चंचल जल सा।
रोके कभी रुका अरुणोदय,
भीष्म पितामह के प्रण सा।
अहा, कविता का उत्साह जगाती आपकी कविता।
Deleteयह भी आपने निकाली।डिलीट करना भी शुभ रहा:-)
Deleteउत्तर देने के प्रयास में धोखे से दब गया था, निष्कर्ष अच्छे ही रहे।
Delete:-)
Delete@सीखनी थी मध्य की अवधारणा।
ReplyDeleteसही है , सामयिक है !!
कहें पीड़ा और की हम, कथ्य जो है,
ReplyDeleteआज सब मिलकर कहेंगे, सत्य जो है ...
कविता के माध्यम से दिल के गहरे भाव अभिव्यक्ति हुए हैं ... लाजवाब अभिव्यक्ति ...
सुंदर सशक्त सृजन बेहतरीन प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
हमेशा की तरह सुन्दर विचार ।
ReplyDeleteत्यक्त संशय, धारणा, मन व्यक्त हो,
ReplyDeleteजूझना, जब तक न एकल सत्य हो।
....एक शाश्वत सन्देश...बहुत प्रभावी...
पहली दो पंक्तियाँ बहुत शानदार हैं !
ReplyDeleteसीखनी थी मध्य की अवधारणा !
ReplyDeleteहा और ना के मध्य में ही व्यक्ति समझ पायेगा सत्य को !!
एकम सद विप्राः बहुधा वदन्ति! :-)
ReplyDeleteसाधनारत बुद्धि का उत्पाद जग को चाहिये,
ReplyDeleteएक सम्मिलित सार्थक संवाद जग को चाहिये।
कहें पीड़ा और की हम, कथ्य जो है,
आज सब मिलकर कहेंगे, सत्य जो है
काश ऐसा ही होङम सत्य कह पायें बिना डरे।
bahut sundar...dharapravah...
ReplyDeleteहर शेर अपने आप में मुकम्मल।
ReplyDeleteऔर इस शेर का तो क्या कहना। हासिल-ए-ग़ज़ल शेर है.
त्यक्त संशय, धारणा, मन व्यक्त हो,
जूझना, जब तक न एकल सत्य हो।
प्रवीण भाई आप अपने कवि को उभरने दीजिये
ReplyDeleteसत्यमेवजयते।
ReplyDeleteसत्य वचन
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