संसाधन हैं,
तन्त्र बने हैं,
घर पलते हैं,
आदि व्यवस्था,
देश बह रहा,
मध्यम मध्यम,
जीवन धो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
मत इतने हैं,
मति जितने हैं,
तर्क घिस रहे,
धुँआ धुँआ जग,
सबकी सुनकर,
सबकी गुनकर,
भाव न खोलो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
क्षुब्ध तथ्य यह,
बात ज्ञात है,
आज रात है,
कल दिन कैसा,
जैसा भी हो,
अभी नींद का,
मोह न छोड़ो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
कल की चिन्ता,
महाकाय सी,
आज ठिठुरता,
घबराया सा,
मस्तक फिर भी,
धीरज पाले,
चुपके रो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
परिवर्तन हो,
आवश्यक है,
स्थिरता में,
कहाँ लब्ध क्या,
अपना अपना,
सोंधा सपना,
कल ही बो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो जय हो।
जिसका जितना,
भाग्य लिखा हो,
उसकी उतनी,
जय तो होगी,
किन्तु हृदय यह,
बात न होगी,
सबके हो लो,
सबकी बोलो,
जय हो, जय हो।
जय हो !अच्छी कविता |
ReplyDeleteजय हो, जय हो.......
ReplyDeleteजय हो जय हो ।।।। किन्तु दुर्भाग्य कि जय चंद सत्तालोलुपों की ही हो रही है
ReplyDelete" अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यानर्थं च चिन्तयेत् ।
ReplyDeleteगृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥"
सुभाषित
मत इतने हैं,
ReplyDeleteमति जितने हैं,
तर्क घिस रहे,
धुँआ धुँआ,
सबकी सुनकर,
सबकी गुनकर,
भाव न खोलो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
अच्छी लगी कविता। पिछले पोस्टों के कुछ भाव इसमें भी छनकर आ गये लगते हैं.!
मिल कर बोलो,
ReplyDeleteजय हो, जय हो।
जय हो, जय हो।
उत्कृष्ट कविता ....जय यानि कि सकारात्मक परिवर्तन मिलकर कदम उठाने पर ही सम्भव हैं.....
ReplyDeleteबेबसी का इन्तहां , जय हो जय हो !
ReplyDelete... जय, जय, जय, जय हे!
ReplyDelete......कविता बहुत ही पसंद आई परवीन जी .....जय हो !
ReplyDeleteमत बोलो बस
ReplyDeleteहुआं हुआं सा ;
सच की बात,
उदय तो होगी ,
जय हो, जय हो।
जय हो जय हो..
ReplyDeleteमीठी कविता मीठी बोली!!
ReplyDeleteजय तो होगी ,
ReplyDelete"जय बोलो" के पहले
सब एक होलो
फिर जय बोलो !
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
Good.
ReplyDeleteजय हो जय हो ... सुन्दर .
ReplyDeleteनींद का मोह मत छोड़ो। जय हो।
ReplyDeleteगज़ब का व्यंग्य है, आज की सच्ची तस्वीर। जय हो कलम की।
ReplyDeleteकल की चिन्ता,
ReplyDeleteमहाकाय सी,
आज ठिठुरता,
घबराया सा,
मस्तक फिर भी,
धीरज पाले,
चुपके रो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
बेहद शानदार प्रवीणजी...मौजूदा हालातों की अच्छे से धुलाई की है आपकी कविता ने...सलमान ख़ान को इस कविता को पढ़वाया जाना चाहिये जो 'जय हो' लेकर सिल्वर स्क्रीन पर आ रहे हैं...
जय हो जय हो :)
ReplyDeleteवाह ! जय ही हो !
ReplyDeleteजय हो जय हो ...
ReplyDeleteसमय के त्रासद, उसकी भावी आशाओं का बेहतरीन प्रकटीकरण।
ReplyDeleteसचमुच जय हो जय हो !
ReplyDeleteजो मिलना है सो मिलेगा ही ...जयघोष करते बढ़े चलो ....!!सुंदर उद्गार ....!!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ६६ वां सेना दिवस और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-01-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत अच्छे .. जय हो
ReplyDeleteअच्छी बात है,
ReplyDeleteचढ़ती रात है
अब तो सो लो
मिलकर बोलो
जय हो जय हो
रचना का मिजाज मस्त कर रहा है। एक अलग सी बानगी....
ReplyDeleteक्या बात है...जय हो...
ReplyDeleteजय शिव-शम्भो! जय-जय बम-बम
ReplyDeleteक्या कहने जी मित्र प्रवीणम
तुमने पढ़वाया है उत्तम
काव्य अनोखा और मनोरम
ऐसे ही गिरहों को खोलो
ऐसे ही सब सच-सच बोलो
इस के उस के सब के हो लो
रस वारिधि में शब्द भिगो कर
दिल से बोलो जय हो जय हो
सबकी गुनकर,
ReplyDeleteभाव न खोलो,
मिल कर बोलो,
जय हो, जय हो।
सही कहा प्रवीण भाई , मस्त रचना है !
जय हो।
ReplyDeleteप्रवाहमय धार ... लाजवाब भाव ...
ReplyDeleteउत्कृष्ट......बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
जिसका जितना भाग्य लिखा , उतनी जय तो होगी !
ReplyDeleteजय जय है भई जय जय !
परिवर्तन हो,
Deleteआवश्यक है,
स्थिरता में,
कहाँ लब्ध क्या,
अपना अपना,
सोंधा सपना,
कल ही बो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो जय हो।
PARIVARTAN KAMI UDGAR SUNDAR MANOHAR
परिवर्तन हो,
Deleteआवश्यक है,
स्थिरता में,
कहाँ लब्ध क्या,
अपना अपना,
सोंधा सपना,
कल ही बो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो जय हो।
PARIVARTAN KAMI UDGAR SUNDAR MANOHAR
परिवर्तन हो,
Deleteआवश्यक है,
स्थिरता में,
कहाँ लब्ध क्या,
अपना अपना,
सोंधा सपना,
कल ही बो लो,
मिल कर बोलो,
जय हो जय हो।
PARIVARTAN KAMI UDGAR SUNDAR MANOHAR
बढिया ...परिवर्तन आवश्यक है...जय,हो,
ReplyDeleteअच्छी बात है मुश्किलो को छोडकर आशाओ की जय हो
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