ब्लॉग के लिये एक आधारभूत ढाँचा तैयार करने और उसके प्रवाह को सुनिश्चित करने के बाद उसके संवर्धन के प्रयास आवश्यक होने चाहिये। ऐसा हो रहा है, पर प्रयास संस्थागत न होकर पूरी तरह से व्यक्तिगत हैं। कुछ ब्लॉगर जिनके अन्दर सहायता करने की प्रवृत्ति रही है, जिन्हें अपने प्रारम्भिक काल में सहायता मिली है, उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति नवागुन्तकों को हर संभव सहायता पहुँचाने की रहती है। यदि यही प्रयास एक सांस्थानिक स्वरूप ले लें तो निश्चय ही ब्लॉग जगत में गुणात्मक परिवर्तन आ जायेंगे।
सामूहिकता और विकास |
उत्साहवर्धक, मार्गदर्शक और व्यावसायिक उत्प्रेरक, इन तीन स्तरों को मैं सांस्थानिक समर्थन के उन्नत पक्ष कहता हूँ। उन्नत पक्ष इसलिये क्योंकि इनके होने से ब्लॉग की आयु बढ़ती है। ब्लॉगरों के पिछले दस वर्षों के अनुभव में एक तत्व सदा ही उपस्थित रहा है और उस तत्व ने उनके ब्लॉगिंग के कालखण्ड का निर्धारण किया है। सभी लोग उत्साह के साथ ब्लॉगिंग प्रारम्भ करते हैं, सबके अन्दर अभिव्यक्ति की स्वाभाविक चाह भी होती है, सब चाहते हैं कि पाठक उन्हें पढ़ें भी। प्रारम्भ सदा ही पूरी ऊर्जा के साथ होता है, किसी लम्बी दौड़ की तरह। जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं, अपेक्षाओं को समुचित मान नहीं मिल पाता है। संवेदनशील ब्लॉगर इसे एक चुनौती के रूप में लेते हैं और अपने अनुभव का विस्तार करते हैं, विषयगत अध्ययन पर ध्यान देते हैं, अभिव्यक्ति को परिवर्धित करते हैं। कइयों के लिये यह संभव नहीं हो पाता है और तब ये तीन स्तर ब्लॉगिंग के लिये संजीवनी बन जाते हैं।
उत्साहवर्धक की आवश्यकता सबको होती है, शिखर तक पहुँचने में न जाने कितने हाथों का सहारा मिलता है। ब्लॉगजगत में टिप्पणियों को दिये अन्यथा महत्व को लेकर भले ही आलोचकों ने वक्र टिप्पणियाँ की हों, पर मेरे लिये उनका महत्व सदैव विशेष रहा है। प्रारम्भिक पोस्टों में विशेषकर एक एक टिप्पणियों को बड़े ध्यान से पढ़ता था और अभिव्यक्ति के स्तर में किस तरह और सुधार किया जा सकता है, यह जानने के लिये सदा ही लालायित रहता था। संभवतः यही कारण है कि अभी तक उन टिप्पणियों का ऋण कर्तव्य मानकर चुका रहा हूँ। किसी नवागन्तुक के लेख में छिपी भूलों को उजागर करने से कहीं अच्छा होता है उसमें किये गये प्रयास का उत्साहवर्धन करना। उत्साहवर्धन ब्लॉगिंग की अवधि को दुगना कर देता है। साहित्य और ब्लॉगिंग, दोनों में ही मैं भी अधिक अनुभवी नहीं हूँ पर निश्चय ही किसी के प्रयासों को समझना और उनकी प्रशंसा करने को एक मूलभूत कारण अवश्य मानता हूँ, जिसमें ब्लॉगिंग के विकास की अथाह संभावना छिपी है।
मार्गदर्शन उत्साहवर्धन से कहीं अधिक गहरा और व्यवस्थित कार्य है। जहाँ उत्साहवर्धन में किसी व्यक्ति की क्षमताओं का ज्ञान सतही रहता है, मार्गदर्शन में क्षमताओं को सही सही समझना होता है। मार्गदर्शन बड़ा ही व्यक्तिगत कार्य है और वह मार्गदर्शक का समय और ऊर्जा माँगता है। उत्साहवर्धन पीछे से ढकेलने जैसा है, मार्गदर्शन ऊँगली पकड़ कर चलने सा। लिखते रहने की पुकार उत्साहवर्धन है, कुछ विशेष लिखने का परामर्श देना मार्गदर्शन है। उत्साहवर्धन में किसी क्षमता का पूरा दोहन किया जाता है, मार्गदर्शन में क्षमताओं को विशिष्ट व उत्कृष्ट किया जाता है। सांस्थानिक समर्थन का एक अतिविशिष्ट स्तर है, मार्गदर्शन। मार्गदर्शन की क्षमता न केवल विषय के अनुभव से आती है, वरन उसके लिये सामने वाले के व्यक्तित्व का समुचित आकलन भी आवश्यक है।
उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन एक स्थान तक ही ले जा पाते हैं, उसके आगे का पंथ लेखक व ब्लॉगर को स्वयं ही नापना होता है। आगे की खोज नितान्त एकान्त है, उत्कृष्टता के सोपान किसी की प्रतिलिपि बनने में नहीं वरन स्वयं को सत्यता से पूर्ण स्थापित करने में है। पर इस राह में एक बाधा है। जब किसी को अपने श्रम और लगन का समुचित मोल नहीं मिलता है, तब उससे लगने लगता है कि उसके प्रयास व्यर्थ ही जा रहे हैं। पाठक आपको एक प्रतिष्ठित लेखक के रूप में जानने लगें, यह निश्चय ही एक महान उपलब्धि है, पर उपलब्धि का वह भाव शुष्क न रह जाये, इसके लिये आवश्यक है कि आपका कार्य आपकी जीविका में आपका हाथ बटाये।
सुदृढ़ और सक्षम |
ब्लॉग लेखन में व्यवसाय की संभावना तो दिखी है, पर बहुत अधिक नहीं। बाजारवाद तो यह कहता है कि माँग यदि अधिक हो तो आपूर्ति को सही मूल्य मिलता है। अच्छा साहित्य सब पढ़ना चाहते हैं, अच्छी पुस्तकों के लिये लोग धनव्यय को सम्मान और मानसिक विकास का अंग मानते हैं। परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर भी लेखकों को बाजार के अनुरूप अर्थप्राप्ति नहीं हो पा रही है। सांस्थानिक समर्थन का सर्वाधिक प्रभावी कार्य उस व्यावसायिक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना है, जिससे ब्लॉग स्वतः ही गतिमान बना रहे, सदा के लिये। किन्तु जब तक उस स्थिति तक हम नहीं पहुँच जाते हैं, सांस्थानिक समर्थन को बने रहना होगा। यह कालखण्ड एक दशक तक भी हो सकता है, पर उस पथ पर चलते चलते जब हम स्वावलम्बित हो जायेंगे, हमें हिन्दी की सुदृढ़ स्थिति पर गर्व होगा।
व्यावसायिक उत्प्रेरण ही सांस्थानिक समर्थन के महत प्रयासों का तार्किक निष्कर्ष हो सकता है, तब तक प्रयास की आवश्यकता बनी रहेगी। माता पिता अपने बच्चों को तब तक समर्थन देते रहते हैं, जब तक वे आर्थिक रूप से सक्षम न हो जायें, अपने पैरों पर स्वयं न खड़े हो जायें, अपनी संततियों को समर्थन देने की स्थिति में न पहुँच जायें। हिन्दी के जो पक्ष सक्षम होते जायें, उन्हें विकसित होने के लिये छोड़ दिया जाये। जिन पक्षों को आवश्कता हो, उन पर ध्यान दिया जाये, क्रमवार, एक के बाद एक। अभी जो भी प्रयास हो रहे हैं, उनकी तुलना मैं उस बच्चे से करूँगा जो वयस्क होने का अभिनय कर रहा हो। अभिनय होने तक तो विश्वास बना रहता है, पर जब परिवेश का बोध होता है, यथास्थिति समझ में आ जाती है।
ब्लॉग लेखन में अधिकतम कितना धन है, इसकी गणना बहुत अधिक कठिन नहीं है। कितनी संभावना है, यह भी कठिन प्रश्न नहीं है। साहित्य के प्रति लगाव नैसर्गिक होता है। सामाजिक ढाँचे में संवाद की प्रमुखता रहती है, मन के भावों को व्यक्त करने में जितना उत्साह होता है, उतना ही उत्साह औरों के भावों को समझने में भी रहता है। हम यदि साहित्य की परम्परागत परिधि में बने रहे तो अपनी संभावनायें सीमित कर बैठेगें। ज्ञान के हर संभावित क्षेत्र में ब्लॉग की अभिव्यक्ति ले जाने के क्रम में न केवल ब्लॉग के लिये व्यावसायिकता के सूत्र मिलने लगेंगे, वरन साहित्य को भी अपना विस्तार दिखने लगेगा। सामान्य जन से जुड़ी विज्ञान की बातें साहित्य का विषय क्यों नहीं हो सकती, इतिहास से समझी गयी शासकों की भूलें साहित्य का अंग क्यों नहीं बन सकतीं। जब हम ज्ञान को विभागों में बाटने लगते हैं, हम यह मान बैठते हैं कि उनमें परस्पर कोई संबंध है ही नहीं, जबकि हमारे मस्तिष्क में ज्ञान का एकीकृत स्वरूप ही रहता है। उसी रूप में सृजन हो, उसी रूप में वह ग्रहण हो, उसी रूप में संवाद हो, वही साहित्य हो।
ब्लॉग को यदि विषयगत विस्तार मिलेगा तो व्यावसायिक संभावनायें स्वतः ही सिद्ध हो जायेंगी। ब्लॉग में अभी जितना भी धन है वह प्रचार के रूप में है, पर ब्लॉगतन्त्र में प्रचार कितना धन बटोर पायेगा, यह एक यक्ष प्रश्न है। वह धन क्या सांस्थानिक समर्थन के लिये या स्वावलम्बन के लिये पर्याप्त होगा, यह भी विचारणीय है। जब प्रचार केन्द्र में हो तो गुणवत्ता से अधिक संख्या महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रचार पर पूर्णतया निर्भर रहने से गुणवत्ता से कैसे समझौते करने होंगे? केन्द्रबिन्दु तब सृजन न होकर पाठकों की रुचि हो जायेगी, बाजारवाद तब गुणवत्ता को प्रभावित करने लगेगा। इन स्थितियों में व्यावसायिक उत्प्रेरक का स्वरूप ऐसा हो जो न केवल आत्मनिर्भर हो, वरन उसकी जड़ें साहित्य की धरती में ही हों, न कि प्रचार के अस्थिर आसमान में।
प्रश्न अनुत्तरित हैं, पर आशान्वित हैं, हिन्दी के सुधीजन और प्रेमीजन उत्तर लेकर अवश्य आयेंगे।
चित्र साभार - www.chumans.com, www.clinicalnutritioncenter.com
ब्लॉगिंग को प्रेरित करता सुन्दर आलेख ........... नव् वर्ष कि हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteसर अच्छे विचारों से सजी सुन्दर पोस्ट |नववर्ष की मंगल कामनाएं |
ReplyDeleteब्लॉग के अनेक ऐसे आयाम होगें जिसे हम नहीं जानते उन्हें हमें खोजना होगा और तभी ब्लॉग-लेखन स्तरीय भी होगा और जन-प्रिय भी । सुन्दर- सार्थक रचना ।
ReplyDeleteहो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
ReplyDeleteहों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||
शुभकामनायें आदरणीय
सुन्दर विचार और सार्थक आलेख..नववर्ष की मंगल कामनाएं |
ReplyDeleteआप को नव वर्ष 2014 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteकल 02/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
समुचित व्यवस्था की आवश्यकता है । नव वर्ष की शुभकामनाए।
ReplyDeleteआज की पोस्ट एक सार्थक ब्लॉग्गिंग के लिए उपयोगी है.
ReplyDelete२०१४ की राम राम स्वीकार करें.
यह ब्लॉग लेखन और उससे जुड़े कई पहलूओं पर प्रकाश डालता हुआ एक महत्वपूर्ण लेख है.
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें !
किसी नवागन्तुक के लेख में छिपी भूलों को उजागर करने से कहीं अच्छा होता है उसमें किये गये प्रयास का उत्साहवर्धन करना। उत्साहवर्धन ब्लॉगिंग की अवधि को दुगना कर देता है। साहित्य और ब्लॉगिंग, दोनों में ही मैं भी अधिक अनुभवी नहीं हूँ पर निश्चय ही किसी के प्रयासों को समझना और उनकी प्रशंसा करने को एक मूलभूत कारण अवश्य मानता हूँ, जिसमें ब्लॉगिंग के विकास की अथाह संभावना छिपी है।
ReplyDeleteसृजनातमक लेखन में सहायक आलेख। सुन्दर अप्रतिम।
आपको सपरिवार शुभ वर्ष ,शुभ भावनाएं समर्पित हैं नव वर्ष स्वागतार्थ।
उत्कृष्टता के सोपान किसी की प्रतिलिपि बनने में नहीं वरन स्वयं को सत्यता से पूर्ण स्थापित करने में है।......निश्चित रूप से एक अत्यन्त विचारणीय प्रश्न उठाया है आपने। ब्लॉग को सांस्थानिक समर्थन देने हेतु प्रस्तुत आपकी यह तीसरी रचना चीजों को भीतर तक खोलती है। आशा है सांस्थानिक, व्यावसायिक उत्प्रेरक इस कसक को समझें और सच्ची, सज्जन उत्प्रेरणा से इस दिशा में कुछ कार्य करें।
ReplyDeleteब्लॉग लेखन निष्चित ही भविष्य की साहित्यिक धरोहर होगी इसके अनछुए पहलुओ पर हम ध्यान नहीं दे पा रहें हैं
ReplyDeleteब्लॉगिंग को एक विधा के रूप स्थापित करता और उसकी वैज्ञानिक व्याख्या करता मेरी दृष्टि में प्रथम प्रयास!! साधुवाद!!
ReplyDeleteपूर्णता के शिखर पर आसीन एक लेखक की वाणी इसी तरह प्रगल्भ होते हुए भी विनम्र हो जाती है.......सुन्दर....
ReplyDelete'उत्साह-वर्धन' तथा 'मार्ग-दर्शन' की अच्छी विवेचना। ब्लोगीय साहित्य का भविष्य निस्संदेह उज्ज्वल है। एक और सार्थकलेख के लिये साधुवाद।
ReplyDeleteआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (1 जनवरी, 2014) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
-----सुन्दर विचार्वर्धक आलेख......
ReplyDelete"उत्साहवर्धन पीछे से ढकेलने जैसा है, मार्गदर्शन ऊँगली पकड़ कर चलने सा"....
-------सत्यबचन
"लेख में छिपी भूलों को उजागर करने से कहीं अच्छा होता है उसमें किये गये प्रयास का उत्साहवर्धन करना..."
-------- उचित है... परन्तु उजागर करना उदाहरण देने के सामान है जिससे उत्साहवर्धन को प्रामाणिकता मिलती है...एवं .आगे का पथ स्वयं ही नापने तथा स्वयं को सत्यता से पूर्ण स्थापित करने में सक्षमता प्रदान करता है......
ब्लोगिंग में उत्साह वर्धन ही अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है ...!
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...!
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
विचारणीय मंथन..
ReplyDeleteउत्साहवर्धन और मार्गदर्शन एक स्थान तक ही ले जा पाते हैं, उसके आगे का पंथ लेखक व ब्लॉगर को स्वयं ही नापना होता है
ReplyDeleteसारगर्भित आलेख ।नववर्षकी मंगलकामनाएं .
उम्दा विचार .. बलोग के बहुत सरे पक्ष से हमारे जैसे नव आगंतुक अभी ताका अनजान है थोडा बहुत मार्गदर्शन कही से मिलता है तो सुधर की कोसिस करते है ..आपका विचार उत्तम है अगर एक संस्था के हो तो हमें उचित मार्गदर्शन मिल सकेगा .. हार्दीक आभार
ReplyDeleteइस आलेख के माध्यम से बहुत ही अच्छे और विचारणीय प्रश्न उठाए हैं आपने आशा है लोग इस बात को समझेने और ब्लॉग की दिशा में कुछ सकारात्मक परिवर्तन आयेंगे। सारगर्भित आलेख...
ReplyDeleteब्लॉगिंग की प्रगति की दिशा पर सार्थक दृष्टि है आपकी !
ReplyDeleteईर्ष्या एवं हतोत्साहित किये जाने के साथ ही भरपूर उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन भी मिला। रचनात्मकता के लिए ब्लॉगजगत का आभारी होना ही होगा !
नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !
INSPIRING THOUGHT PRANAM
ReplyDeleteउम्मीद पर खरा, ब्लॉग जगत के लिए नयी सम्भावनाओं को सजाता लेख.
ReplyDeleteब्लाग विधा की बड़ी ही तथ्यपरक विवेचना ......
ReplyDelete'उत्साह-वर्धन' तथा 'मार्ग-दर्शन' की सम्यक विवेचना इस आलेख के माध्यम से हुई है
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट वर्ष के प्रारंभ में...
ReplyDelete