आज से दस वर्ष पहले आलोकजी ने पहला हिन्दी ब्लॉग नौ दो ग्यारह बनाया था। तब संभवतः किसी को अनुमान नहीं होगा कि डायरीनुमा ढाँचे में स्वयं को इण्टरनेट पर व्यक्त करने वाला यह माध्यम इतना व्यापक, सशक्त और लोकप्रिय होकर उभरेगा। अभावों से प्रारम्भ हुयी यात्रा संभावनाओं का स्रोत बन जायेगी, यह किसने सोचा था? हिन्दी ब्लॉग न केवल पल्लवित हो रहा है, वरन लाखों रचनाकारों के लिये एक आधारभूत मंच तैयार कर रहा है, जिस पर भविष्य के साहित्यिक विस्तार मंचित होंगे, भाषायी आकार संचित होंगे। अंग्रेजी की तुलना में देखा जाये तो हिन्दी ब्लॉगिंग अभी भी विस्तारशील है, पर उसका कारण हिन्दी रचनाकारों में उत्साह व प्रतिभा की कमी नहीं है। जैसे जैसे कम्प्यूटर और इण्टरनेट हिन्दी जनमानस को उपलब्ध होता जायेगा, हिन्दी ब्लॉगिंग का आकार बढ़ता जायेगा।
संख्या के पश्चात गुणवत्ता की सुध लेनी होती है। यह सत्य है कि गुणवत्ता के लिये प्रतिभा के साथ सतत श्रम की आवश्यकता होती है, श्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ आने में समय लेती हैं। इसके लिये आवश्यक है कि लोग ब्लॉगिंग में बने रहें। पहले वर्ष के बाद ही लगभग १५ प्रतिशत लोग ब्लॉगिंग छोड़ देते हैं, जो बने रहते हैं उन्हें रस आने लगता है। ब्लॉगिंग में रोचकता बनाये रखने के लिये सृजनात्मकता भी चाहिये और विषयात्मक गहराई भी, यही दो पक्ष गुणवत्ता के वाहक बनते हैं। गुणवत्ता से भरी अभिव्यक्तियाँ न केवल स्वयं को संतुष्ट करती हैं, वरन पाठकों को भी वांछित आहार देती हैं, एक बार नहीं, बार बार। मुझे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता तब होती है जब आज से चार वर्ष पूर्व लिखे गये किसी लेख पर पाठक की टिप्पणी आ जाती है। यहीं ब्लॉगिंग का सशक्त पक्ष है, यही ब्लॉगिंग का सौन्दर्य भी है, नहीं तो कौन चार वर्ष पुराने समाचार पत्रों या पत्रिकाओं को पढ़ता है, और न केवल पढ़ता है वरन लेखक को अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराता है।
कुछ ब्लॉगरों को जब मैं कहता हूँ कि उनकी कोई पोस्ट संग्रहणीय हैं तो वे बहुधा सकुचा जाते हैं। उन्हें लगता है कि स्वान्तः सुखाय के लिये लिखी गयी पोस्ट को इतना मान क्यों? विनम्रता एक अच्छा गुण है पर वह साहित्यिक प्रभातों को प्रकाश फैलाने देने में सकुचाने क्यों लगता है। प्रतिभा अपना आकार, प्रभावक्षेत्र और कालक्षेत्र स्वयं निर्धारित करती है, रचनाकार को उसे विनम्र भाव से ही फैलने देना चाहिये। स्वान्तः सुखाय में यदि तुलसीदास भी सकुचाये रहते तो रामचरितमानस का अमृत कोटि कोटि कण्ठों में कैसे पहुँचता? हमने जो भी साहित्य पढ़ा है, वह इसलिये संभव हो सका कि हमारे पूर्वजों ने केवल संग्रहणीय लिखा वरन उसे आगामी पीढ़ियों के लिये संग्रहित रखा। हमारा भी दायित्व बनता है कि हम भी आगामी पीढ़ियों के लिये पढ़ी जा सकने योग्य गुणवत्ता बनाये और साथ ही साथ यह प्रयास भी करें कि ज्ञानसंग्रह यथारूप बना रहे।
स्वप्न बड़े हैं, अड़े खड़े हैं |
कुछ लोगों को संशय हो सकता है कि जो भी हिन्दी ब्लॉगों में लिखा जा रहा है, वह स्तरीय नहीं है। माना जा सकता है कि स्थापित मानकों पर पहुँचने के लिये वर्षों लग जायेंगे। यह भी माना जा सकता है कि ब्लॉग के माध्यम से सबको लेखन का अधिकार मिल जाने से कोई भी अपने मन की कह सकता है, बिना स्तर पर ध्यान दिये। किन्तु यह प्रक्रिया तो सदा से होती आयी है। जब ब्लॉग नहीं भी होते थे तब भी ढेरों ऐसी पुस्तकें प्रकाशित होती थीं जिन्हें लेखक के अतिरिक्त कोई पढ़ता भी नहीं था। कोई पुस्तक पठनीय है या नहीं, इसके पीछे अनुभवी संपादकों का संचित ज्ञान और विवेकपूर्ण निर्णय रहा करते थे। पुस्तकालय में शोभायमान और अपना एकान्तवास झेल रही ऐसी पुस्तकों से कहीं अधिक व्यावहारिक है ब्लॉग में व्यक्त किसी नवल किशोर का प्रयास, जिसके माध्यम से वह शब्दों में स्वयं को ढूँढता है।
जैसा भी हो, जो भी है, उसी स्तर के आगे सोचना प्रारम्भ करना है और प्रवाह की मात्रा और गति बनाये रखनी है। आने वाले दशकों में लोग आश्चर्य करेंगे कि किस तरह से हिन्दी ब्लॉगिंग ने लाखों की संख्या में साहित्यकारों का निर्माण किया है, किस तरह से हिन्दी पढ़ने वालों की संख्या बढ़ायी है, किस प्रकार से लेखन ली गुणवत्ता बढ़ाने में सहयोग दिया है और किस प्रकार से साहित्योत्तर अन्यान्य विषयों को हिन्दी से जोड़ा है। यदि इस स्वप्न को साकार करने की इच्छा को फलीभूत होते देखना है तो हमें निकट भविष्य की कम, दूरस्थ भविष्य की संरचना सजानी होगी। दूरस्थ भविष्य, जिसमें लाखों की संख्या में साहित्यकार होंगे, करोड़ों की संख्या में पाठक होंगे, सैकड़ों की संख्या में विषय होंगे, विषयवस्तु इतनी स्तरीय कि उन पर शोधकार्य किया जा सके। यदि वह दूरस्थ भविष्य पाना है तो ब्लॉग के माध्यम को न केवल स्वीकारना होगा वरन उसके हर पक्ष को सशक्त करना होगा। यह महतकर्म वैयक्तिक स्तर पर संभव नहीं है, इसमें संस्थागत प्रयास लगेंगे, और इन प्रयासों को कोई नाम देना हो तो उसे सांस्थानिक समर्थन कहा जायेगा। वर्धा में भी सांस्थानिक समर्थन पर प्रारम्भिक चर्चा हुयी थी।
हिन्दी के साथ दुर्भाग्य यह रहा है कि उसे प्रेम तो व्यापक मिला है, सदा मिला है, भावनात्मक मिला है। किन्तु जो ढाँचा विस्तार और विकास के लिये तैयार होना था, उसे यह मान कर प्रमुखता नहीं दी गयी कि जब इतने बोलने वाले हैं तो स्वतः ही यह भाषा विकसित हो चलेगी। ऐसा पर है नहीं, यदि ऐसा होता तो दशा चिन्तनीय न होती। मेरा यह स्थिर विचार है कि बिना सांस्थानिक ढाँचे के हिन्दी अपने सुदृढ़ व सुगढ़ आकार में नहीं आ सकती है। पारम्परिक ढाँचे पारम्परिक माध्यमों के लिये तो ठीक थे पर ब्लॉग के प्रवाह को सम्हालने के लिये एक विशेष और सुव्यवस्थित ढाँचा चाहिये, एक ढाँचा जो कई दिशाओं से आने वाले महत प्रवाह को अपने में समेट सके।
शत द्वार हमारे घर में हों |
हिन्दी ब्लॉग का सौभाग्य यह भी है कि इसमें न जाने कितनी दिशाओं से लोग आ रहे हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता हर ओर छिटकी है, यही नहीं पाठक भी नये विषयों को पढ़ना चाहता है, अपना ज्ञानवर्धन विभिन्न विमाओं में ले जाना चाहता है। सोचिये कितना ही अच्छा होगा कि कोई वैज्ञानिक अपने विषय की विशेष विमा ब्लॉगिंग के माध्यम से व्यक्त करेगा, कितना ही अच्छा होगा कि कोई खिलाड़ी, कोई घुमक्कड़, कोई प्रशासक, कोई संगीतज्ञ ब्लॉग के माध्यम का आधार लेकर पाठक के लिये नयापन लेकर आयेगा। यही नहीं ब्लॉगिंग सीखने का भी माध्यम बनकर उभर रहा है। लोगों का इस प्रकार जुटना सबके लिये लाभप्रद रहेगा।
हमें न केवल नये विषयों को समाहित करना है, वरन उनको विस्तारित और गुणवत्तापूर्ण करने के लिये भी करने के लिये प्रेरित करना है। केवल साहित्य तक ही केन्द्रित न रह जाये हिन्दी का विस्तार, ज्ञान के सभी नये क्षेत्रों को समझने और व्यक्त करने की क्षमता हो हिन्दी में। इसके लिये ब्लॉग सा माध्यम सहज ही मिला जा रहा हो तो उसे छोड़ना नहीं चाहिये, वरन त्वरित अपनाना चाहिये।
हमने जिस स्तर पर सफलता को पूजा है, उसे जितना मान दिया है, उसका शतांश भी यदि संघर्ष और असफलता के ऊपर खपाया होता तो हमारे पास प्रतिभाओं का समुद्र होता। सांस्थानिक समर्थन न केवल सफलता को उभारेगी वरन संघर्ष को सहलायेगी और असफलता को पुनः उठ खड़ा होने के लिये प्रेरित भी करेगी। हमें सफल तो दिखते हैं पर असफल नहीं। यह उपक्रम सफल की चर्चा का न होकर उस असफलता के विश्लेषण का हो जिसके माध्यम से लाखों को जोड़ा जा सके।
कभी कभी सांस्थानिक समर्थन के नाम पर बड़े और सक्षम संस्थान एक लाठी का सहारा टिका कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। इस बात में संशय न हो कि प्रभाव प्रयास से लेशमात्र भी अधिक नहीं होगा। व्यापक प्रभाव की अपेक्षा है तो प्रयास भी वृहद हों। ऐसा नहीं है कि कोई आधार ही उपस्थित नहीं है, पर जो है वह निश्चय ही अपर्याप्त और अस्थिर है।
आने वाली कड़ियों में इस बात की चर्चा करेंगे कि सांस्थानिक समर्थन का आकार, आधार और रूपरेखा क्या हो। यह विषय हम सबको न केवल प्रिय है वरन हमारी ब्लॉगिंग के भविष्य की रीढ़ भी है। चलें, अपनी राह समझने के क्रम में थोड़ा और चलें।
"हमने जिस स्तर पर सफलता को पूजा है, उसे जितना मान दिया है, उसका शतांश भी यदि संघर्ष और असफलता के ऊपर खपाया होता तो हमारे पास प्रतिभाओं का समुद्र होता।"
ReplyDeleteसत्य है...!
सुन्दर आलेख...!!
संस्थानिक समर्थन और उसके उत्तरदायित्तव के रूप में बिभिन्न संगठनो का प्रयास हिंदी के प्रचार -प्रसार के लिए किये गए कार्यो का अवलोकन से यही दृष्टिगोचर होता है की वर्त्तमान में भी स्थिति ठोस न होकर भी सांकेतिक ही है। इन भूमिका में संलग्न अधिकतर सक्रिय कार्यक्रम के बनिस्पत प्रयास खानापूर्ति के ही माध्यम प्रथम दृष्टया लगते है।
ReplyDeleteस्वाभाविक रूप से हिंदी ब्लोगिग एक स्वतः अभिप्रेरणा है जहाँ विभिन्न विषयो का समालोचना हिंदी भाषा में उपलब्ध है और इसका अध्यन भी अपनी भाषाई प्रेम और निष्ठां के तहत किया जाता है। संस्थागत ढांचा से कितना संवर्धन होगा ये तो विचार के तथ्य है किन्तु ब्लॉगिंगि का वर्त्तमान स्वरुप हिंदी के विकास में अहम् भूमिका दे रहा है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।
आपके सुन्दर आलेख से ये विचार संवर्धित होगा।
ब्लॉगिंग के लिए शुभकामनायें....यदि पुराने लोग निष्क्रिय होते हैं तो नये आते हैं। यह यूँ ही चलता रहेगा।
ReplyDeleteकुछ लोगों को संशय हो सकता है कि जो भी हिन्दी ब्लॉगों में लिखा जा रहा है, वह स्तरीय नहीं है।
ReplyDelete@ ब्लॉग सम्मेलनों में ऐसी बातें पत्रकारिता और साहित्यिक क्षेत्र के लोगों के मुंह से कई बार सुनी है, पर यह बात कहने वाले अपने अन्दर नहीं झांकते कि -क्या साहित्त्य व पत्रकारिता में स्थापित लोग जो लिखते है वह सब कुछ स्तरीय है ?
मेरी नजर में ब्लॉग लेखन लोक लेखन है और इसे पढने वाले को वैसे ही परम आनंद आता है जैसे किसी छोटे कलाकार या आम व्यक्ति द्वारा गाया कोई लोक गीत सुनने में आता है !
आज ताऊ रामपुरिया, राजीव तनेजा आदि द्वारा लिखे जा रहे हास्य ब्लॉग पढने पर टीवी के किसी भी हास्य प्रोग्राम से ज्यादा मजा आता है !
आपके ब्लॉग सहित बहुत से ब्लॉग है जिनकी भाषा के स्तर के आगे अच्छे अच्छे साहित्यकारों व लेखकों की भाषा पानी भरती है !
नीरज जाट के ब्लॉग पर पर्यटन सम्बन्धी जो जानकारियां मिल सकती है वह और कहीं नहीं मिल सकती!
हमारा भी दायित्व बनता है कि हम भी आगामी पीढ़ियों के लिये पढ़ी जा सकने योग्य गुणवत्ता बनाये और साथ ही साथ यह प्रयास भी करें कि ज्ञानसंग्रह यथारूप बना रहे।
ReplyDeleteसुंदर सार्थक सकारात्मक आलेख ।
ब्लाग पर पाठकों का अभाव लेखन में उत्साह की कमी लाता है। जहां पहले नियमित लिखने का मन करता था अब ना लिखने का मन करता है।
ReplyDeleteसपनों का बड़ा अड़ा और खड़ा होना ही तो जीवन है लेकिन उनके टूटने का गम कितने झेल पाते है तभी किसी कवि का कथन याद आता है
ReplyDelete"अच्छा हुआ जो आपने सपने चुरा लिए
मेरे पास रहते तो टुटते ज़रूर"
आज एक रहस्य खोल दूं ,जब बहुत दिनों से कुछ लिखना नहीं हो पता फिर अचानक आपकी पोस्ट पढ़ कर पुनः नई ऊर्जा आ जाती है कुछ नया लिखने को । आपका सतत और उत्कृष्ट लेखन हमारे जैसों को बहुत प्रेरित कर जाता है ,निरंतरता बनाये रखने को ।
ReplyDeleteआपका यह आशावाद लोगों को प्रेरित करता रहे !
ReplyDeleteआज मैं यह कह रहा हूँ कि यह एक संग्रहणीय आलेख है!!
ReplyDeleteसार्थक विचार है आपके!! आपका ये लेख पढ़कर ब्लॉगिंग के प्रति मेरे अंदर फिर से उत्साह बढ़ गया है। :-)
ReplyDeleteतुलसी बाबा ने कहा था न ’सकल पदारथ सब जग माहीं.......’ तो यहाँ भी बहुत कुछ है। बहुत से लोगों को देखा है जो गिरे स्तर, गिरते स्तर को लेकर चिंतित रहते हैं लेकिन अपनी पसंद बनाये रखने के लिये हर कोई स्वतंत्र है। सलिल भाई की तरह हम भी आपकी इस पोस्ट को(भी) संग्रहणीय मान रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया विवेचन .... ब्लॉग्गिंग के सभी विचारणीय पहलुओं पर सोचा जाना आवश्यक है | सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteअभ्यास और निरन्तरता ही गुणवता बनाये रखने में सक्षम हो सकते हैं।
ReplyDeleteहमने जिस स्तर पर सफलता को पूजा है, उसे जितना मान दिया है, उसका शतांश भी यदि संघर्ष और असफलता के ऊपर खपाया होता तो हमारे पास प्रतिभाओं का समुद्र होता। सांस्थानिक समर्थन न केवल सफलता को उभारेगी वरन संघर्ष को सहलायेगी और असफलता को पुनः उठ खड़ा होने के लिये प्रेरित भी करेगी। हमें सफल तो दिखते हैं पर असफल नहीं। यह उपक्रम सफल की चर्चा का न होकर उस असफलता के विश्लेषण का हो जिसके माध्यम से लाखों को जोड़ा जा सके।
ReplyDeleteसांस्थानिक समर्थन सोने पे सुहागा।
हमने जिस स्तर पर सफलता को पूजा है, उसे जितना मान दिया है, उसका शतांश भी यदि संघर्ष और असफलता के ऊपर खपाया होता तो हमारे पास प्रतिभाओं का समुद्र होता। सांस्थानिक समर्थन न केवल सफलता को उभारेगी वरन संघर्ष को सहलायेगी और असफलता को पुनः उठ खड़ा होने के लिये प्रेरित भी करेगी। हमें सफल तो दिखते हैं पर असफल नहीं। यह उपक्रम सफल की चर्चा का न होकर उस असफलता के विश्लेषण का हो जिसके माध्यम से लाखों को जोड़ा जा सके।
सार्थक आलेख
ReplyDeleteहिन्दी का साहित्य यहॉ है सभी विधा की जान है ब्लॉग । कथा गीत आलेख गज़ल है सबको लेकर चलता ब्लॉग । वेद -पुराण उपनिषद भी है अनुपम पोथी-घर है ब्लॉग । जीवन का हर रँग भरा है ज्ञान और विज्ञान है ब्लॉग । लोक-सभा की राज्य-सभा की सबकी बातें करता ब्लॉग । देश-धर्म है सबसे ऊपर यही सोचता हिन्दी ब्लॉग । विधि की रचना में षड् - रस है पर दस-रस से सना है ब्लॉग । जिस रस का आस्वादन चाहें तत्पर रहता हिन्दी ब्लॉग । यहीं दिग्विजय यहीं है मोदी हास्य-व्यंग्य से भरा है ब्लॉग । यहीं हैं अन्ना -रामदेव हैं सबका अपना-अपना ब्लॉग। यह ही गुरु है यही पडोसी मन का मीत है हिन्दी ब्लॉग । संवदिया है सबसे अच्छा शुभ-दायक है हिन्दी ब्लॉग ।
ReplyDeleteयह शुभ है हिंदी के लिए .. हमारे लिए भी..
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteअरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
अब तो तुझे आवाज़ लगाते भी जी डरे
जीवन की सुबह और सांझ की तरह ब्लोगेर भी सक्रीय निष्क्रिय होते रहते हैं ... पर ब्लोगिंग निरंतर बढ़ रही है .. ये एक अच्छी बात है ...
ReplyDeleteएक संग्रहणीय आलेख ………इस ओर ध्यान देना जरूरी है ताकि ब्लोगिंग का स्वरूप और संवर व निखर सके।
ReplyDeleteपहले माध्यम से परिचित होना आवश्यक होता है...धीरे-धीरे गुणवत्ता बढ़ती जाती है...ब्लॉग हमीं दूसरों के विचारों से अवगत करता है...बौद्धिक डाइवर्सिटी का भरपूर आनंद आता है...
ReplyDeleteब्लॉगिंग में नये-नये विषय जुड़ते जा रहे हैं। यह माध्यम आगे और सार्थक होगा इसमें संदेह नहीं। स्थायी आनंद के लिए यहाँ से गये लोगों को भी फिर लौटकर यहीं आना होगा।
ReplyDelete“मेरी क्रिसमस!!”
ReplyDeleteब्लोगिंग एक दूसरों के विचारों से अवगत करता ...! और ये सिलसिला निर्बाध यूँ ही चलता रहेगा,,,
ReplyDeleteRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (25 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
मुझे भी विश्वास है कि ब्लोगिंग के कारण कई स्तरीय लेखक हिंदी को मिलेंगे ! मंगलकामनाएं ब्लोगिंग को . .. .
ReplyDeleteI endorse your idea of the need for organisational support for blogging.
ReplyDeleteWhen cricket, films, music etc receive it, why not blogging which is also an art form.
For a start the Central Govt could initiate this.
State governments could promote blogs in regional languages too.
A system of awards for the best blogs of the month can be one of ways to promote blogging.
However, who will be the judges? What will be the criteria for selection?
There is considerable homework to do before this can be flagged off.
The wheels of the Govt move slowly.
Maybe some private organisation like the Tatas or Ambanis could consider stepping in?
I wish this idea all success.
Regards
GV
बहुत अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteयह उन सभी का उत्साह बढ़ा रहा है जो अभी तक यहाँ टिके हैं और लिख रहे हैं.
यह बात सही कही कि जब किसी पुराने लेख पर कोई टिप्पणी आती है तो ख़ुशी होती है .
ब्लोगिंग से साहित्य के ज्ञानी , सीखने वाले और उसमें रूचि रखने वालों के बीच दूरी कम हुई है .
आपने सच कहा उत्कृष्ट सेवा चिर वन्दनीय
ReplyDeleteसांस्थानिक उपाय की आधारशिलाएं शक्तिशाली हों, ताकि इन पर खड़े भवन लम्बे समय तक टिके रहें।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगिंग को प्रोत्साहित करता सार्थक आलेख !
ReplyDeleteसार्थक आलेख....
ReplyDeleteबढ़िया विवेचन .
ReplyDeleteहिंदी ब्लागिंग को लेकर लम्बे समय बाद एक शानदार विश्लेषण और अभिमत पढ़ा । वाकई ब्लागिंग का कोई जवाब नहीं।
ReplyDeleteबहुत बढिया..सार्थक आलेख....
ReplyDeleteआज 28/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बढ़िया गम्भीर चिंतन भरी प्रेरक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक लेख !
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग्गिंग के प्रति आपका लगाव प्रेरक है. इसे नई दिशा , नए क्षितिज की ओर ले जाने की कोशिश स्वागत योग्य है.
ReplyDeleteआपके विचार से शत प्रतिशत सहमत, इस दिशा में और बात होनी चाहिए, मेरी तरफ से छोटा सा शुक्रिया !
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