दिन के कार्य दिवंगत कर के,
देखा सम्मुख उतरे आते,
मित्र हमें जो मन से भाते,
पीछे आये दो सेवकगण,
वाहन में कुछ करके अर्पण,
ठिठके पग, जब देखा जाकर,
आँखे फैली दृश्य समाकर,
भर भर घर फ़ाइल के बक्से,
हम पूछे तो बोले हँस के,
शेष रहा जो कार्य करेंगे,
घर जाकर वह रिक्त भरेंगे,
काम बहुत है, समय बहुत कम,
इसी विवशता में डूबे हम।
प्रश्न चिन्ह जब रहा उपस्थित,
खोले मन के द्वार अनिश्चित,
हम औरों के जैसे ही थे,
किन्तु आज तक बड़े जतन से,
इस स्थिति को पाला पोसा,
सबका हम पर पूर्ण भरोसा,
चाहें, अब कितना भी चाहें,
चक्रव्यूह से निकल न पायें,
जब भी दिन कुछ हल्का दिखता,
ईश्वर ढेरों उलझन लिखता,
सब जन आते, कहते आकर,
गहन समस्या सम्मुख लाकर,
दर्शनीय हों मार्ग हमारे,
आये हम सब द्वार तुम्हारे,
सुनते हम भी तत्पर होकर,
समयचक्र की सब सुध खोकर,
समाधान की राह निकलती,
पहियों की गति आगे बढ़ती,
मन में भाव जगें करने के,
तन्त्र व्याप्त कंटक हरने के,
उनसे निपटे तो ऊपर से,
आते बारम्बार संदेशे,
अनुभव की है हानि निरन्तर,
पकड़े जाते समय समय पर,
सम्बंधित या आरम्भिक ही,
संशय किंचित, सामूहिक भी,
कार्य सभी उलझाये रहते,
बैठक में बैठाये रहते,
कार्यक्षेत्र में कभी निरीक्षण,
मानकता के गहन परीक्षण,
इतने विस्तारों में जीना,
गतिमयता, विश्राम कभी ना,
कार्यालय में क्षणभर को ही,
दिन पूरा हो जाता यों ही,
फाइल रहें दर्शन की प्यासी,
महत प्रतीक्षा, और अभिलाषी,
नहीं छोड़ तब जाना होता,
यह संबंध निभाना होता,
सुने शब्द, मन नम हो आया,
किन्तु बुद्धि ने तुरत चेताया,
बोले हम, हमको संवेदन,
किन्तु आप से एक निवेदन,
घर में रहते तीन जीव हैं,
उनके भी सपने सजीव हैं,
कर्तव्यों के मौन पढ़ रहे,
किन्तु अघोषित मौन गढ़ रहे,
जितना आवश्यक कार्यालय,
उतना आवश्यक हृदयालय,
तनिक देर यदि हो भी जाये,
शेष कार्य पर घर न आये,
घर में बस घर का गुंजन हो,
संबंधों का अभिनन्दन हो,
सच पूछो अच्छा लगता है,
कर्मशील सच्चा लगता है,
किन्तु नहीं वंचित रह जाये,
कर्मठ भी शीतलता पाये,
द्वन्द्व सदैव विशेष रहेगा,
रिक्त मनुज का शेष रहेगा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (21-12-13) को "हर टुकड़े में चांद" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1468 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
किन्तु अघोषित मौन गढ़ रहे,
ReplyDeleteजितना आवश्यक कार्यालय,
उतना आवश्यक हृदयालय,
तनिक देर यदि हो भी जाये,
शेष कार्य पर घर न आये,
घर में बस घर का गुंजन हो,
संबंधों का अभिनन्दन हो,
मूल मंत्र यही है :-)
घर में बस घर का गुंजन हो,
ReplyDeleteसंबंधों का अभिनन्दन हो,
सही सलाह , शुभकामनायें !!
अति सुन्दर...
ReplyDeleteकब ख़त्म होता जीवन का संघर्ष
ReplyDeleteस्मृतियां ही तो रह जाती है शेष
बीत ही तो जाता है जीवन पल प्रति पल
देकर अत्रिप्ता का संदेष
कब ख़त्म होता है जीवन का संघर्ष
ReplyDeleteरह जाती है स्मृतियाँ ही शेष
बीत ही जाता है जीवन
देकर अत्रिप्ताता का सन्देश
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteजय हो !
ReplyDeleteयह नवगीत स्टायल बढ़िया है।
शेष कार्य पर घर न आये,
ReplyDeleteघर में बस घर का गुंजन हो,
संबंधों का अभिनन्दन हो,
सार्थक सीख देती रचना ......सहज मुस्कान तभी खिलती है ...!!
घर में न खुल जाये दफ्तर..याद रहे यह सीख है बेहतर
ReplyDeleteअच्छा संदेश देती कविता।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteबेहतरीन अनुभव का लेखा जोखा
ReplyDeleteघर में बस घर का गुंजन हो,
ReplyDeleteसंबंधों का अभिनन्दन हो,
sabhi ka apana apna auchitya hota hai phir sambandh hon ya karya ...........bahut sundar prerak rachna
कार्यालय का बोझ घर तक ! ऊफ!
ReplyDeleteसार्थक सन्देश ..... बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteऔर जब कार्यालय ही घर पर हो तो.. सांसत में आ जाती है जान..
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ReplyDeleteबहुत सुंदर बन पडी है,काव्यावली
नौकरशाही की.
दफ्तर पुराण -बहुत अच्छा
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
I had this problem before the internet era.
ReplyDeleteI worked in an engineering design office.
Instead of files, I would take engineering drawings home.
By the time I retired, two years ago, the problem was not drawings or files.
It was emails.
At least 150 emails per day, on an average to be read, noted, stored, replied, forwarded, acted upon or deleted.
Even to decide what to do with each email required time and effort.
Times change.
What will it be in future?
Regards
GV
Absolutely right !
DeleteI am in the same situation. Sometimes it is impossible to deal with these emails. Even if you don't bring any files at home, you just can not avoid these emails and they are more than enough to give you sleepless nights.
घर का काम होवे घर में
ReplyDeleteदफ्तर का होवे दफ्तर में
घाल-मेल ना करना भैया
वर्ना पड़ जाओगे चक्कर में
आप एक अच्छे बॉस हैं, अपने सबोर्डिनेट्स को अच्छा सन्देश दे दिया आपने :)
एक फोटो याद आ रही है आपकी, इस कविता पर ...वत्सल की ली हुई आपके घर पर ...
ReplyDeletea very true observstion... kabhi kabhi lgta hai ki kaam karte karte hum kabhi apni zammedaari bhol jaate hai jo ghar parivar ke prati hone chaheye
ReplyDeleteअति सुन्दर...सार्थक सन्देश ......
ReplyDeleteहमारी दैनन्दिन व्यथा का सही चित्रण!!
ReplyDeleteशानदार रचना
ReplyDeleteसमुचित समाधान ।
ReplyDeleteजुटे रहो काम में, बस यही जीवन है।
ReplyDeleteअच्छा सन्देश देती सुंदर पंक्तियाँ ...!
ReplyDelete=======================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
जितना आवश्यक कार्यालय,
ReplyDeleteउतना आवश्यक हृदयालय,
आज सबों को इसी संतुलन को तो समझने की अति आवश्यकता है..
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteWaah bahut hi laybadh evam sundar kavita ..
ReplyDeleteकमाल का प्रवाह ... और शब्दों की बंदिश ... छिपे सन्देश को उजागर करती रचना ...
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २४/१२/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी,आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteघर में बस घर का गुंजन हो,
ReplyDeleteसंबंधों का अभिनन्दन हो,
घर में दफतर ,
दफ्तर में घर ,कभी कभी ऐसा भी तो हो
दफ्तर का परिवार हो मीठा ,
घर में बस घर का गुंजन हो,
ReplyDeleteसंबंधों का अभिनन्दन हो!!
घर तो वही होता जहाँ गुंजन होता है , फाईलों का नहीं !
काश सबको आप सा बॉस मिलजाता :) :)
ReplyDeleteकविता में कुछ शब्दों का प्रयोग बेहद अनूठा है।
ReplyDeleteजैसे- दिन के कार्य 'दिवंगत करके।
यह पक्तियां भी शब्द शिल्प की अच्छी उदाहरण हैं।
घर में रहते तीन जीव हैं
उनके भी सपने सजीव हैं।
और समापन हमेशा की तरह बेहद अर्थपूर्ण-
रिक्त मनुज का शेष रहेगा।
छोटी पंक्तियों की गीतनुमा कविता लिखना आसान नहीं होता। श्रम, समय और साधना की मांग करती है।
प्रवाहपूर्ण सुन्दर कविता
ReplyDeletewah...aap to kavitaaon me baat karne lage hain...ati sundar.
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