नेहा |
वत्सल |
(वत्सल अर्चना चावजी के सुपुत्र हैं, मृदुल, सौम्य और विलक्षण प्रतिभा के धनी, न जाने कितने क्षेत्रों में। नेहा उनकी धर्मपत्नी हैं। स्नेहिल वत्सल ने नेहा के कई चित्रों का मोहक स्वरूप जब फेसबुक में पोस्ट किया तो आनन्द में अनायास ही शब्द बह चले)
भाव उभारें, अमृत भर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें,
किन शब्दों में ढूँढ़े उपमा,
कैसे व्यक्त करें मन सपना,
कहना मन का रह न जाये,
अलंकार में बह न जाये,
ऊर्जान्वित उन्माद उकेरण,
शब्दों में शाश्वत उत्प्रेरण,
सघन सान्ध्रता प्लावित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
रंग हजारों, रूप समाये,
इन्द्रधनुष आकार बनाये,
जितने छिटके, उतने विस्तृत,
जितने उड़ते, उतने आश्रित,
हो जाये विस्मृत विश्लेषण,
रंगों में संचित संप्रेषण,
मूर्तमान संभावित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
कुछ हँसते से चित्र उतारूँ,
यथारूप, मैं यथा बसा लूँ,
जितना देखूँ, उतना बढ़ती,
आकृति सुखमय घूर्ण उमड़ती,
धूप छाँव का हर पल घर्षण,
दृष्टिबद्ध अधिकृत आकर्षण,
किरण अरुण अनुनादित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
भावजनित मन आग्रह पढ़ता,
रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
चित्रानंदम शब्दानंदम।
ReplyDeleteकैमरे से खूबसूरती को संचित किया जा सकता...अन्यथा ये तो रूप बदलती रहती है...सुन्दर रचना...
ReplyDeleteऐसी परिभाषा की अभिलाषा कौन न करे । अद्भुत / सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteप्रेम अपरिभाषेय है । शब्द बेचारे बौने पड जाते हैं उसकी व्याख्या करते-करते । यही उसकी विशेषता है ।सुन्दर रचना । मुझे तो " मेरी बिटिया सुना करो " आज भी याद है ।
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteसुप्रभात संग प्रणाम आपने वत्सल के चित्रों को शब्दों से जीवंत कर दिया
ReplyDeleteवास्तव में ऐसे ही संतान माँ बाप को गौरवान्वित करते हैं अर्चना के चित्र प्रेम
वत्सल के धमनी में समाया नज़र आया लेकिन पहली बार इस विधा को आपने
शब्दों की माला दी बधाई सचमुच आनंद आ गया
चलो रूप परिभाषित कर दें।
ReplyDeleteहै तो असंभव लेकिन आपका प्रयास सतुत्य है ....वत्सल जी का तो कहना ही क्या ?
रूप की कोई भी परिभाषा नहीं है,
ReplyDeleteपर प्रयासों की कोई सीमा कहाँ है |
रूप सबकी दृष्टि मन की भावना -
दृष्टि एवं दृश्य की सीमा कहाँ है |
हम भी गुलाबजल छलका दें
ReplyDeleteसुंदरता परिभाषित कर दें !
अनुठे शब्दावली से रूप परिभाषित कर दिया.. सुन्दर..
ReplyDeleteसुंदर नहीं अति सुंदर...रूप भी और परिभाषित करने के तरीके भी...
ReplyDeleteअद्भुत .... सुन्दर...... कविता ....
ReplyDeleteजो अन्तः प्रेम प्रभासित कर दे वही सौन्दर्य है ...उत्कृष्ट ,बहुत सुंदर कविता ....!!
ReplyDeleteअति सुंदर ......
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteमृदुल मनभावन।
ReplyDeleteकर दिया आपने 'रूप परिभाषित'
ReplyDeleteअब भला इसे सुंदर रूप की और क्या परिभाषा हो सकती है। बहुत सुंदर ....
चित्रों को शब्दों से भी जीवन्तता मिल जाती है
ReplyDeleteरूप की भाषा ही आदमी को निशब्द कर जाती है
चित्रों को शब्दों से भी जीवन्तता मिल जाती है
ReplyDeleteरूप की भाषा ही आदमी को निशब्द कर जाती है
बहुत खूब
ReplyDeleteवत्सल ने प्रेम को तस्वीर का रूप दिया और आपने उसे एक कविता दी!! प्रेम की सुगन्ध इसी को कहते हैं!!
ReplyDeleteएक दूजे पर आश्रय अनुपम,
ReplyDeleteरूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें
lajbab rachana pandey ji .......poora vatavaran premmay kr diya apne
चित्र और कविता दोनों का अद्भुत समावेश किया है .........
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-12-2013 को चर्चा मंच पर टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में दिया गया है
ReplyDeleteकृपया पधारें
आभार
कितनी सुन्दर परिभाषा।
ReplyDeleteरूप की परिभाषा इतनी मर्यादित , मृदु , पावन !
ReplyDeleteमन प्रसन्न हुआ !
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आप कविता भी सुन्दर लिखते हैं ..
ReplyDeleteबढिया है जी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !!!!
ReplyDeleteरूप का यह सात्विक रू.प। अति सुन्दर।
ReplyDeleteअति सुन्दर ..प्रभासित प्रेम हुआ..
ReplyDeleteइतने प्रभावी भाव सम्प्रेषण पर कितनी भी अच्छी प्रतिक्रिया दी जाए वो भी बहुत कम लगेगी ......
ReplyDeleteकैमरा तो है ही ... पर आपके शब्द भी वो सब कुछ कह रहे हैं ...
ReplyDeleteमुक्त प्रेमभाव ...
वाह! तारीफ़ के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे - बस यही -चित्रानंदम शब्दानंदम के आगे रिश्तानन्दम .... आपसे भी..... वत्सल- नेहा तो खैर हैं ही .......
ReplyDeleteऔर कविता मे भाव समा गए हैं...अद्भुत!
आभार ....
अद्भुत
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति , ...!
ReplyDeleteRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
ReplyDeleteभावजनित मन आग्रह पढ़ता,
रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान ,
तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो
---------राष्ट्रकवि
मेरे लिए तो बस वही,पल हैं हंसी बहार के
तुम सामने बैठी रहो ,मैं गीत गाऊँ प्यार के।
जितनी सुंदर छवि है उतनी ही सुथरी उज्जल रचना है। इसे कहते हैं तदानुभूति।
प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
ReplyDeleteभावजनित मन आग्रह पढ़ता,
रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान ,
तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो
---------राष्ट्रकवि दिनकर
मेरे लिए तो बस वही,पल हैं हंसी बहार के
तुम सामने बैठी रहो ,मैं गीत गाऊँ प्यार के।
जितनी सुंदर छवि है उतनी ही सुथरी उज्जल रचना है। इसे कहते हैं तदानुभूति।
प्रेम रूप के विग्रह गढ़ता,
भावजनित मन आग्रह पढ़ता,
रूप प्रेम पाकर संवर्धित,
कांति तरंगें अर्पित अर्जित,
एक दूजे पर आश्रय अनुपम,
रूप प्रेममय, पूर्ण समर्पण,
अन्तः प्रेम प्रभासित कर दें,
चलो रूप परिभाषित कर दें।
सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान ,
तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो
---------राष्ट्रकवि दिनकर
मेरे लिए तो बस वही,पल हैं हंसी बहार के
तुम सामने बैठी रहो ,मैं गीत गाऊँ प्यार के।
जितनी सुंदर छवि है उतनी ही सुथरी उज्जल रचना है। इसे कहते हैं तदानुभूति।
साहित्य में इसे ही रस अवस्था कहते हैं जब रूप रचना एक रस हो जाएँ।
Neha ji ki smile behaad khoobsurat hai :)
ReplyDeletewhat a pic and what a poetry...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव .....
ReplyDeleteरूप परिभाषित करने में तो कोई भी कवि ईर्ष्या करनेलगेगा आपसे।
ReplyDeleteअद्भुत ..
ReplyDeletewww.bhannaat.com
ReplyDeleteशुद्ध हिंदी, अलंकारपूर्ण शैली और शब्दों का गंभीर मगर सुखद और सुन्दर चुनाव जो अव्यक्त को व्यक्त सा करता जान पड़ता है वाह क्या शैली है लेखक महोदय!
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