लुटे तभी थे,
और आज भी,
लुटे जा रहे।
जो जीते थे,
अब रीते हैं,
जीत रहे जो,
वे भी भर भर,
मन में, मनभर,
अधिकारों को,
घुटे जा रहे।
दूल्हा, दुल्हन,
अपनी धुन में,
हम सब दर्शक,
बेगाने से,
बने बराती,
जुटे जा रहे।
इसमें मुझे तो दिल्ली नज़र आ रही है ।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteसटीक .....सुन्दर .....
ReplyDeleteबढियां है :-)
ReplyDeleteकर्म-मात्र हम किए जा रहे....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहम सब दर्शक,
ReplyDeleteबेगाने से,
बने बराती,
जुटे जा रहे।
वाकई !!
जब दर्शक ही रहना है तो देखें..आगे आगे होता है क्या...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
very creative Praveen ji.
ReplyDeleteSundar vichar sundar prastuti....
ReplyDeleteमोहरे सभी आजमाए हैं,
Deleteबारी बारी पिटे जा रहे।
जुटे हैं और पता नहीं कब तक जुटे रहेंगे।
ReplyDeleteबिलकुल सही है, जुटे जा रहे हैं और पिटे भी जा रहे हैं मगर सिलसिला रुकता नहीं है.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!
ReplyDeleteजुट रहे है लुट रहे है,,कुछ बचा नही है बाकी....
ReplyDeleteसटीक सुन्दर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
जुट रहे हैं ....लुट रहे हैं ...फिर भी कर्म तो करते ही चलना है ....गहन अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteek achchha sutra aapne kheench nikala hai is chhoti si kavita se !
ReplyDeleteयही मज़ा है ज़िन्दगी का...बेगानी शादी में अब्दुल्ला वाला हाल...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन राज कपूर, शैलेन्द्र और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर.....
ReplyDeleteजो जीते थे,
ReplyDeleteअब रीते हैं,
जीत रहे जो,
वे भी भर भर,
मन में, मनभर,
अधिकारों को,
घुटे जा रहे।
एकदम यथार्थ...
अनवरत एक तमाशे के तमाशाई बने जा रहे ,
ReplyDeleteअपनी ही धुन
में जिए जा रहे। सुन्दर रचना है। काल चक्र को खंगालती।
बेगानी शादी में दीवाने जैसे !
ReplyDeleteबढ़िया !
विकल्प भी क्या है ?
ReplyDeleteगजब की सार्थकता लिए मन कि दौड़
ReplyDeleteराजनीति सब पर बढ़-चढ़ कर बोल रहा है.. :)
ReplyDeleteचलो दिल्ली :)
ReplyDeleteये जीवन है ... जुटना बस और जुटना ... कभी न खत्म होने वाला सफर ...
ReplyDeletesadar pranam,Very nice sir.very creative.
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