यदि कहीं अन्याय लक्षित जगत में,
जूझना था शेष, निश्चय विगत में,
स्वर उठें, निश्चय उठे, अधिकार बन,
सुप्त कर्णों पर टनक हुंकार सम,
पथ तकेंगे, कभी न लंका जलेगी,
बद्ध सीता, कमी हनुमत की खलेगी,
राम की होगी प्रतीक्षा, मर्म क्यों क्षत,
सेतु सागर पर बनाना, कर्म विस्तृत,
हो अभी प्रस्तावना, हम सब जुटें,
प्रबल है संभावना, मिल कर डटें।
हो अभी प्रस्तावना, हम सब जुटें,
ReplyDeleteप्रबल है संभावना, मिल कर डटें। ...ये भाव सभी में जगे ......
चोरी करती तोंदों को
ReplyDeleteनेताओं के धन्धों को
नियम बेचते,दल्लों को
देश के रिश्वतखोरों को
पुलिस में बेईमानों को, संसद के गद्दारों को !
सीधी जेल जरूरी है !
अब विद्रोह जरूरी है !
मानव रूपी, कुत्तों से
ReplyDeleteरात में जगे,भेड़ियों से
राजनीति के दल्लों से
खादी की, पोशाकों से
बदन के भूखे मालिक से, सम्पादकी तराजू से !
अब संघर्ष जरूरी है !
साधू बने , डकैतों को
ReplyDeleteनफरत के हरकारों को
बेसिर की अफवाहों को
धर्म के ठेकेदारों को !
नक़ल मारते लड़कों को, जमाखोर गद्दारों को !
थप्पड़ एक जरूरी है !
भीष्म पितामह चुप बैठे रहे इसलिए चीर-हरण हुआ ।
ReplyDeleteप्रेरणादायी..... सार्थक आव्हान लिए हैं भाव
ReplyDeleteहो अभी प्रस्तावना, हम सब जुटें,
ReplyDeleteप्रबल है संभावना, मिल कर डटें।
सार्थक आह्वान ....!!
समय पर किया गया प्रयत्न सफलता देता ही है .........कर्म करने को प्ररित करती रचना ...
होचुकी प्रस्तावना ,
ReplyDeleteअब क्या डटें |
अब तो बस मिलकर-
उठें आगे बढ़ें |
सुन्दर प्रस्ताव- हम सब जुटे , सुन्दर रचना .
ReplyDeleteकाश !!
ReplyDeleteआह्वान का अनुसरण हो।
ReplyDeleteकल 12/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
मिल कर डटें।..हम ड्टे है..प्रेरणादायी..... सार्थक आव्हान
ReplyDeleteकाश !!
ReplyDeleteसार्थक आह्वान का अनुसरण हो .........
शब्दों, अभिव्यक्ति और भावों की सम्मिलित प्रेरणादायी अभिव्यक्ति!!
ReplyDeletebehad khoob!
ReplyDeleteसंभावनाएं तो अनेक हैं ... पर डटे ही नहीं रहते हम ...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ....
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
ReplyDeleteप्रेरक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteक्या बात!
ReplyDeleteबहुत खूब ,उत्तम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
वाह ! भाई साहब बेहतरीन अंदाज़ की रचना है। रूपक है सशक्त भावनाओं का। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।
ReplyDeleteराम की होगी प्रतीक्षा, मर्म क्यों क्षत,
सेतु सागर पर बनाना, कर्म विस्तृत,
सुन्दर मनोहर निश्चय।
बहुत ही बढ़िया प्रेरक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteप्रेरक सार्थक आह्वान !
ReplyDeleteडट तो जाते हैं फिर हौसला खो देते हैं ..... संभावनाओं को क्रियान्वित करने का आह्वान करती सार्थक रचना
ReplyDeleteराम की होगी प्रतीक्षा, मर्म क्यों क्षत,
ReplyDeleteसेतु सागर पर बनाना, कर्म विस्तृत,
हो अभी प्रस्तावना, हम सब जुटें,
प्रबल है संभावना, मिल कर डटें।
rom rom ko aahwan karati nihshabd
रचना में भाषा का आवेग और शब्द विधान ,रूप विधान बहुत सुन्दर बन पड़ा है रूपक तत्व भी अप्रतिम है।
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