जब तक मन में कुछ शेष है, कहने को,
जब तक व्यापित क्लेश है, सहने को,
जब तक छिद्रमयी विश्व, रह रह कर रिसता है,
जब तक सत्य अकेला, विष पाटों में पिसता है,
तब तक छोड़ एक भी पग नहीं जाना है,
समक्ष, प्रस्तुत, होने का धर्म निभाना है,
उद्धतमना, अवशेष यदि किञ्चित बलम्,
गुञ्जित इदम्, न दैन्यं, न पलायनम्।
न दैन्यं, न पलायनम्।
ReplyDeleteअनुष्ठित सत्य..
ReplyDelete"न दैन्यं, न पलायनम्।"
ReplyDeleteतारीफी सुविचारित भावपूर्ण पंक्तियां
ReplyDelete"मन के हारे हार है मन के जीते जीत पार-ब्रह्म को पाइये मन के ही परतीत ।" कबीर
ReplyDeleteSatya vachan!!
ReplyDeleteचाह कर भी कुछ कह नहीं पाते
ReplyDeleteसब कुछ चुपचाप सहना है
जीवन है जीते जाना है
इस दुनिया में ही तो रहना है
उत्तम रचना
प्रकाशवान है सत्य ....... उद्दीप्त विजयी भाव ,सुदृढ़ सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteन दैन्यं, न पलायनम्। सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकम शब्द , बड़ी बात |
ReplyDeleteसादर
न दैन्यं, न पलायनम्
ReplyDelete.........सुन्दर रचना !!!
जब तक सत्य अकेला, विष पाटों में पिसता है,
ReplyDeleteतब तक छोड़ एक भी पग नहीं जाना है,
समक्ष, प्रस्तुत, होने का धर्म निभाना है,
बहुत सुन्दर पंक्तियां...सुन्दर भाव....
मंगलकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteकल 05/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
समस्या के समक्ष प्रस्तुत हो कर उसे साधने की प्रेरणा मिले।
ReplyDeleteयही सत्य है ... यही शिव हैं ... यही सुंदर भी है ....
ReplyDeletemiles to go before i sleep...very nice...
ReplyDeleteसत्यम् शिवम् सुन्दरम्।
ReplyDeleteसच को दिए उत्कृष्ट शब्द .....
ReplyDeleteवाह! बेहतरीन..
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ReplyDeleteधर्म के आगे कहाँ टिकेगा ,छिपेगा अ -धर्म ,कभी न कभी मारा जाएगा धर्म के हाथों। वैसे जो अधर्म के साथ हैं मरे हुए ही हैं। बहुत बढ़िया प्रस्तुति दर्शन तत्व लिए कलियुगी रूपक लिए।
उचित कथन
ReplyDeleteवाह ! बहुत बढ़िया,बेहतरीन अभिव्यक्ति...!
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उच्च विचार और संकल्प । सचमुच जीवन और जगत के प्रति उत्तरदायित्त्व समझने पर ही यह भाव आ सकता है ।
ReplyDeleteसूक्तिमय हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत विचार !
ReplyDeleteनई पोस्ट वो दूल्हा....
latest post कालाबाश फल
सुन्दर..
ReplyDeleteन दैन्यं, न पलायनम् , हाल में इसी शीर्षक पर अटल बिहारी बाजपेई की एक पुस्तक पढ़ी.
बहुत खूब...इस धर्म को निभाते रहें।
ReplyDeleteKya baat kya baat kya baat
ReplyDeleteपलायन बिल्कुल नहीं।
ReplyDeleteसत्य है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
उद्धतमना, अवशेष यदि किञ्चित बलम्,
ReplyDeleteगुञ्जित इदम्, न दैन्यं, न पलायनम्।
....शाश्वत सत्य...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह...बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
गहन भाव ।
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