कभी लगता, आज बढ़कर सिद्ध कर दूँ योग्यता,
कभी लगता, व्यग्र क्यों मन, है ठहर जाना उचित,
कभी लगता, व्यर्थ क्षमता, क्यों रहे यह विवशता,
कभी लगता, करूँ संचित, और ऊर्जा, कुछ समय,
यूँ तो यह विश्राम का क्षण, किन्तु मन छिटका पृथक,
तन रहा स्थिर जहाँ भी, मन सतत, भटका अथक,
ढूढ़ता है, समय सीमित, कहीं कुछ अवसर मिले,
लक्ष्य हो, संधान का सुख, रिक्त कर को शर मिले,
पर न जानूँ, क्या अपेक्षित, क्या जगत की योजना,
नहीं दिखता, काल क्रम क्या, क्या भविष्यत भोगना,
एक संरचना व्यवस्थित, व्यर्थ क्यों विकृत करूँ,
रिक्तता आकाश का गुण या क्षितिज विस्तृत भरूँ,
सोचता हूँ, क्या है जीवन, जीव का उद्योग क्या,
है यहाँ किस हेतु आना, विश्व रत, उपयोग क्या,
बूँद से हम, विश्व सागर, दे सकें क्या ले सकें,
खेलने का समय पाकर ठेलते रहते थकें,
या प्रकृति को मूल्य देना, जन्म जो पाया यहाँ,
अर्ध्य अर्पित ऊर्जा का, कर्म गहराया यहाँ,
मौन धारण, जड़ प्रकृति यह, बोलती कुछ क्यों नहीं,
चाहती क्या, मर्म अपने, खोलती कुछ क्यों नहीं,
काश, थोड़े ही सही, संकेत कुछ जीवन गहे,
दौड़ना कब, कब ठहरना, एक समुचित क्रम रहे,
विश्व सबका व्यक्त एकल या सभी का मेल है,
यह अथक प्रतियोगिता है या परस्पर खेल है,
जब नहीं कुछ ज्ञात, पथ पर कौन से हम पग धरें,
चाल मध्यम, गतिमयी या शून्यवत ठहरे रहें,
कर्म क्या, किस पर नियन्त्रण या स्वयं की मुक्ति का,
किस तरह गणना करें, अनुमान इस आसक्ति का।