मुझे साइकिल के आविष्कार ने विशेष प्रभावित किया है। सरल सा यन्त्र, आपके प्रयास का पूरा मोल देता है आपको, आपकी ऊर्जा पूरी तरह से गति में बदलता हुआ, बिना कुछ भी व्यर्थ किये। दक्षता की दृष्टि से देखा जाये तो यह सर्वोत्तम यन्त्र है। घर्षण में थोड़ी बहुत ऊर्जा जाती है, पर वह भी न के बराबर। कुल मिला कर चार स्थान ऐसे होते हैं जहाँ घर्षण हो सकता है, दो पहिये के संपर्क बिन्दु और दो चेन के धुरे। दक्षता प्रतिशत में नापी जाती है, जितना निष्कर्ष निकला, उसे लगे हुये प्रयास से भाग देकर सौ से गुणा कर दीजिये। जब व्यर्थ हुयी ऊर्जा न्यूनतम होती है तो दक्षता अधिकतम होती है। साइकिल के लिये यह लगभग ९८% तक होती है। एक नियत दूरी तय करने में, यातायात के अन्य साधनों में भी लगी ऊर्जा साइकिल की तुलना में कहीं अधिक होती है। यहाँ तक कि पैदल चलने में भी साइकिल से अधिक ऊर्जा लगती है।
पिछले सौ वर्षों में साइकिल की मौलिक डिज़ाइन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। जो भी विकास हुआ है, वह नयी और हल्की धातुओं से उसका ढाँचा बनाने में और गियर बॉक्स परिवर्धित करने में हुआ है। मैं कल ही बंगलौर में देख रहा था, पहाड़ों पर चलाने वाली २४ गियर की साइकिल का भार मात्र १२ किलो था। पहाड़ो पर चलने वाली सबसे हल्की साइकिल ६.४ किलो की है। सामान्य श्रेणी में सबसे हल्साइकिल २.७ किलो की है जो आपका छोटा सा बच्चा भी उठा लेगा।
पर्यटन की दृष्टि से देखा जाये तो इस प्रकार की हल्की साइकिलें साथ में ले जाने में असुविधाजनक है, कारण उनका बड़ा आकार है। यदि ऐसी साइकिलों को ट्रेन के सामान डब्बे में रखने और उतारने की सुविधा रहे तो ही लम्बी यात्राओं में इनका उपयोग किया जा सकता है। यदि ऐसी व्यवस्था नहीं हो पाती है तो उस स्थिति में ऐसी साइकिल हो जो सहजता से मोड़ कर सीट के नीचे रखा जा सके। इस दृष्टि से बिना उपयोगिता प्रभावित किये हुये, साइकिलों का ढाँचा बदल कर, उनका भार १० किलो तक लाया जा चुका है। घुमक्कड़ों के लिये ऐसी मोड़ कर रखी जा सकने वाली साइकिलें भविष्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाली हैं।
इण्टरनेट देखें तो साइकिल के गुणगान से अध्याय भरे पड़े हैं, हर दृष्टि में साइकिल धुँये उगलते राक्षसों से श्रेष्ठ है। यदि आस पास दृष्टि उठाकर देखें तो परिस्थितियाँ सर्वथा पलट हैं, सड़कों पर एक साइकिल नहीं दिखती है। हाँ, कॉलोनी या मुहल्लों में साइकिल दिखती है पर वह विशुद्ध मनोरंजन और खेलकूद के प्रायोजन से। बंगलोर को पिछले ४ वर्षों से देख रहा हूँ, दो समस्यायें नित ही दिखायी पड़ती हैं। एक तो सड़कें वाहनों से भरी पड़ी हैं और उसमें बैठे लोग अति बेडौल होते जा रहे हैं। यह विडम्बना ही कही जायेगी कि यहाँ पर वाहनों की औसत चाल १०-१५ किमी प्रतिघंटे से अधिक नहीं है। यातायात का बोझ यहाँ की सड़कें उठाने में अक्षम हैं और अपना बोझ उठाने में यहाँ के सुविधाभोगी नागरिक। काश ऐसा होता कि १० किमी के तक के कार्य स्थलों के लिये साइकिल अनिवार्य हो जाती, उसके अनुसार सुरक्षित मार्ग बन जाते, तो यहाँ का पर्यावरण, सड़कें और नागरिक सौन्दर्य, व्यवस्था और स्वास्थ्य से लहलहा उठते।
आइये देखते हैं कि किस तरह से साइकिल अन्य माध्यमों से अधिक उन्नत है। यहाँ के यातायात की स्थिति लें तो एक साइकिल की तुलना में कार से जाने में ८० गुना अधिक ऊर्जा लगती है, जबकि इसमें ट्रैफिक सिग्नल में व्यर्थ किया गया तेल जोड़ा नहीं गया है। साइकिल की औसत गति १५ किमी प्रतिघंटा तक होती है, जबकि यातायात वाहनों को १५ किमी प्रतिघंटों से अधिक चलने नहीं देता है। यदि सड़कों पर वाहनों से चलने वाला यातायात साइकिल पर स्थानान्तरित कर दिया जाये तो सड़कें एक दो तिहाई स्थान रिक्त हो जायेगा। ८० गुना अधिक ऊर्जा व्यर्थ करने का दुख तो फिर भी सहा जा सकता है, पर उससे उत्पन्न प्रदूषण का क्या करें जो हमें कहीं अधिक हानि पहुँचा जाता है।
नगर अपने यातायात का चरित्र और स्वरूप जब बदलें, तब बदलें, पर पर्यटन की दृष्टि से हल्की और मोड़ कर रख सकी जाने वाली साइकिलों का महत्व अभी भी है। यह आपको दूरियों नापने में आत्मनिर्भर बनाती है। हो सकता है कि नगर के बाहर के क्षेत्रों में अन्य वाहनों की औसत गति साइकिल से अधिक हो, पर उस साधन की प्रतीक्षा करने में लगा समय यदि बचा लिया जाये तो संभव है कि साइकिल की उपयोगिता नगर के बाहर भी उतनी ही होगी जितनी किसी नगर के अन्दर।
साइकिल की उपयोगिता ऊर्जा, गति, भार, धन और समय की दृष्टि से यातायात के अन्य साधनों की तुलना में कहीं अधिक है। साइकिल के लिये भारी आधारभूत ढाँचे की आवश्यकता नहीं, एक पतली सी पगडंडी में भी साइकिल बिना किसी समस्या के चलायी जा सकती है। भारी वाहनों के लिये बनायी गयी सड़कों में लगे धन का एक चौथाई भी लगाया जाये तो साइकिल के लिये एक अलग गलियारा तैयार किया जा सकता है। यही नहीं भूमि का अधिग्रहण भी उसी अनुपात में कम किया जा सकता है, खेती योग्य भूमि बचायी जा सकती है।
इन सब गुणों के अतिरिक्त साइकिल की बनावट और परिवर्धन में विशेष रुचि भी रही है। आईआईटी में तृतीय वर्ष के ग्रीष्मावकाश में वहीं पर रह गया था। एक प्रोफ़ेसर उस समय साइकिल की नयी बनावटों पर कुछ शोध कर रहे थे। उनके सान्निध्य में रहकर साइकिल की यान्त्रिकी कार्यपद्धति के बारे में बहुत कुछ जाना। यही नहीं, किस तरह से नयी धातुओं या कार्बन फ़ाइबर का उपयोग कर भार कम किया जा सकता है, किस तरह उसके बल संचरण को बनावट में परिवर्तन कर साधा जा सकता है, किस तरह चेन के स्थान पर सीधे ही पहियों में ही पैडल लगाया जा सकता। इसी तरह के भिन्न प्रश्नों ने पहली बार साइकिल जैसी साधारण लगने वाले यन्त्रों में संभावनाओं की खिड़की खोली थी। सच मानिये ग्रीष्म की गर्मी और तीन माह के समय का पता ही नहीं चला था उस रोचकता में।
मोड़े जाने योग्य साइकिलों की बनावट अपने आप में एक पूर्ण विधा है। आप इण्टरनेट पर खोजना प्रारम्भ कीजिये, न जाने कितने प्रकार की तकनीक आपको दिख जायेंगी, सब की सब एक दूसरे से भिन्न और कई पक्षों में श्रेष्ठ। मुझे फिर भी एक बनावट की खोज है जिसमें एक साइकिल को न केवल मोड़ कर रखा जा सके, खोल कर चलाया जा सके, वरन आवश्यकता पड़ने पर व्हील चेयर के आकार में परिवर्तित कर हाथों से भी चलाया जा सके। इसके पीछे कारण बड़ा ही सरल है, कई बार ऐसा होता है कि लगातार एक दो घंटे तक साइकिल चलाते चलाते आपके पैर थक जायें तब आप बिना यात्रा बाधित करे बैठकर हाथों से साइकिल चलायें और पैरों को विश्राम दें। किसी न किसी साइकिल कम्पनी को यह विचार अवश्य ही भायेगा, तब निष्कर्ष निश्चय ही साइकिल के लिये अधिक उपयोगिता लेकर आयेंगे।
सम्पत्ति में हो रहे शोधों ने यदि किसी ने बहुत प्रभावित किया है तो वह है, याइक बाइक। यद्यपि यह परम्परागत पैडल वाली साइकिल नहीं है और इसमें एक छोटी सी मोटर भी लगी है, पर बनावट के दृष्टि से आधुनिक शोधों के लिये एक दिशा है। एक पहिये में मोटर लगी है जो बिजली से चार्ज हो जाती है और एक चार्ज में १४ किमी की दूरी तय कर लेती है। यही नहीं, ब्रेक लगाने से साइकिल की ऊर्जा वापस बैटरी में चली जाती है। १२ किलो की यह साइकिल बड़ी सुगमता से मोड़ी जा सकती है और नियमित कार्यालय जाने वालों के लिये यह एक वरदान सिद्ध हो सकती है। यद्यपि इसे मानवीय रूप ये चार्ज करने का प्रावधान नहीं है और बैटरी समाप्त होने की स्थिति में पैडल मारने की भी व्यवस्था नहीं है। यदि इन बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाये तो यह जनसाधारण और जनपदों के लिये एक वरदान हो सकती है।
साइकिल एक शताब्दी देख चुकी है पर अब भी संघर्षरत है। उसका संघर्ष तेल से है, तेल भरे और धुँआ उगलते राक्षसों से है, उसे निम्न समझने वालों की मानसिकता से है और साथ ही साथ उन सड़कों से भी है जहाँ पर उनको अपनी संरक्षा का भय है। पर्यटन और नगर यातायात में साइकिल के इस संघर्ष को हमें अपनाना होगा और उसे समुचित स्थान दिलाना होगा। यदि ऐसा हम नहीं करते हैं तो संभव है कि कल डॉलर और तेल मिल कर हमारा कॉलर पकड़ें और तेल निकाल दें।
चित्र साभार - singletrackworld.com, Yike Bike
पिछले सौ वर्षों में साइकिल की मौलिक डिज़ाइन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। जो भी विकास हुआ है, वह नयी और हल्की धातुओं से उसका ढाँचा बनाने में और गियर बॉक्स परिवर्धित करने में हुआ है। मैं कल ही बंगलौर में देख रहा था, पहाड़ों पर चलाने वाली २४ गियर की साइकिल का भार मात्र १२ किलो था। पहाड़ो पर चलने वाली सबसे हल्की साइकिल ६.४ किलो की है। सामान्य श्रेणी में सबसे हल्साइकिल २.७ किलो की है जो आपका छोटा सा बच्चा भी उठा लेगा।
पर्यटन की दृष्टि से देखा जाये तो इस प्रकार की हल्की साइकिलें साथ में ले जाने में असुविधाजनक है, कारण उनका बड़ा आकार है। यदि ऐसी साइकिलों को ट्रेन के सामान डब्बे में रखने और उतारने की सुविधा रहे तो ही लम्बी यात्राओं में इनका उपयोग किया जा सकता है। यदि ऐसी व्यवस्था नहीं हो पाती है तो उस स्थिति में ऐसी साइकिल हो जो सहजता से मोड़ कर सीट के नीचे रखा जा सके। इस दृष्टि से बिना उपयोगिता प्रभावित किये हुये, साइकिलों का ढाँचा बदल कर, उनका भार १० किलो तक लाया जा चुका है। घुमक्कड़ों के लिये ऐसी मोड़ कर रखी जा सकने वाली साइकिलें भविष्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाली हैं।
हल्की साइकिलें, सहयोगी |
आइये देखते हैं कि किस तरह से साइकिल अन्य माध्यमों से अधिक उन्नत है। यहाँ के यातायात की स्थिति लें तो एक साइकिल की तुलना में कार से जाने में ८० गुना अधिक ऊर्जा लगती है, जबकि इसमें ट्रैफिक सिग्नल में व्यर्थ किया गया तेल जोड़ा नहीं गया है। साइकिल की औसत गति १५ किमी प्रतिघंटा तक होती है, जबकि यातायात वाहनों को १५ किमी प्रतिघंटों से अधिक चलने नहीं देता है। यदि सड़कों पर वाहनों से चलने वाला यातायात साइकिल पर स्थानान्तरित कर दिया जाये तो सड़कें एक दो तिहाई स्थान रिक्त हो जायेगा। ८० गुना अधिक ऊर्जा व्यर्थ करने का दुख तो फिर भी सहा जा सकता है, पर उससे उत्पन्न प्रदूषण का क्या करें जो हमें कहीं अधिक हानि पहुँचा जाता है।
नगर अपने यातायात का चरित्र और स्वरूप जब बदलें, तब बदलें, पर पर्यटन की दृष्टि से हल्की और मोड़ कर रख सकी जाने वाली साइकिलों का महत्व अभी भी है। यह आपको दूरियों नापने में आत्मनिर्भर बनाती है। हो सकता है कि नगर के बाहर के क्षेत्रों में अन्य वाहनों की औसत गति साइकिल से अधिक हो, पर उस साधन की प्रतीक्षा करने में लगा समय यदि बचा लिया जाये तो संभव है कि साइकिल की उपयोगिता नगर के बाहर भी उतनी ही होगी जितनी किसी नगर के अन्दर।
साइकिल की उपयोगिता ऊर्जा, गति, भार, धन और समय की दृष्टि से यातायात के अन्य साधनों की तुलना में कहीं अधिक है। साइकिल के लिये भारी आधारभूत ढाँचे की आवश्यकता नहीं, एक पतली सी पगडंडी में भी साइकिल बिना किसी समस्या के चलायी जा सकती है। भारी वाहनों के लिये बनायी गयी सड़कों में लगे धन का एक चौथाई भी लगाया जाये तो साइकिल के लिये एक अलग गलियारा तैयार किया जा सकता है। यही नहीं भूमि का अधिग्रहण भी उसी अनुपात में कम किया जा सकता है, खेती योग्य भूमि बचायी जा सकती है।
इन सब गुणों के अतिरिक्त साइकिल की बनावट और परिवर्धन में विशेष रुचि भी रही है। आईआईटी में तृतीय वर्ष के ग्रीष्मावकाश में वहीं पर रह गया था। एक प्रोफ़ेसर उस समय साइकिल की नयी बनावटों पर कुछ शोध कर रहे थे। उनके सान्निध्य में रहकर साइकिल की यान्त्रिकी कार्यपद्धति के बारे में बहुत कुछ जाना। यही नहीं, किस तरह से नयी धातुओं या कार्बन फ़ाइबर का उपयोग कर भार कम किया जा सकता है, किस तरह उसके बल संचरण को बनावट में परिवर्तन कर साधा जा सकता है, किस तरह चेन के स्थान पर सीधे ही पहियों में ही पैडल लगाया जा सकता। इसी तरह के भिन्न प्रश्नों ने पहली बार साइकिल जैसी साधारण लगने वाले यन्त्रों में संभावनाओं की खिड़की खोली थी। सच मानिये ग्रीष्म की गर्मी और तीन माह के समय का पता ही नहीं चला था उस रोचकता में।
मोड़े जाने योग्य साइकिलों की बनावट अपने आप में एक पूर्ण विधा है। आप इण्टरनेट पर खोजना प्रारम्भ कीजिये, न जाने कितने प्रकार की तकनीक आपको दिख जायेंगी, सब की सब एक दूसरे से भिन्न और कई पक्षों में श्रेष्ठ। मुझे फिर भी एक बनावट की खोज है जिसमें एक साइकिल को न केवल मोड़ कर रखा जा सके, खोल कर चलाया जा सके, वरन आवश्यकता पड़ने पर व्हील चेयर के आकार में परिवर्तित कर हाथों से भी चलाया जा सके। इसके पीछे कारण बड़ा ही सरल है, कई बार ऐसा होता है कि लगातार एक दो घंटे तक साइकिल चलाते चलाते आपके पैर थक जायें तब आप बिना यात्रा बाधित करे बैठकर हाथों से साइकिल चलायें और पैरों को विश्राम दें। किसी न किसी साइकिल कम्पनी को यह विचार अवश्य ही भायेगा, तब निष्कर्ष निश्चय ही साइकिल के लिये अधिक उपयोगिता लेकर आयेंगे।
हल्की, उन्नत याइक बाइक |
साइकिल एक शताब्दी देख चुकी है पर अब भी संघर्षरत है। उसका संघर्ष तेल से है, तेल भरे और धुँआ उगलते राक्षसों से है, उसे निम्न समझने वालों की मानसिकता से है और साथ ही साथ उन सड़कों से भी है जहाँ पर उनको अपनी संरक्षा का भय है। पर्यटन और नगर यातायात में साइकिल के इस संघर्ष को हमें अपनाना होगा और उसे समुचित स्थान दिलाना होगा। यदि ऐसा हम नहीं करते हैं तो संभव है कि कल डॉलर और तेल मिल कर हमारा कॉलर पकड़ें और तेल निकाल दें।
चित्र साभार - singletrackworld.com, Yike Bike
इस तरह की साइकिल आना भी क्रांति से कम नहीं होगा। ऊर्जा का भरपूर उपयोग कर सकेंगे।
ReplyDeleteइस तरह की साइकिल आना भी क्रांति से कम नहीं होगा। ऊर्जा का भरपूर उपयोग कर सकेंगे।
ReplyDeleteप्रदूषण से मुक्ति और नागरिकों के सेहत के लिए आज साईकल ही बेहतरीन साधन है
ReplyDeleteसायकिल चलाना दुबारा सीखना पडेगा क्योंकि सडकें गाडियों से भरी हुई हैं । रोचक आलेख।
ReplyDeleteबचपन में खूब चलाई है पर महानगर में साइकल की जगह बहुत कम है।
ReplyDeleteजब हम सायकिल चलाते थे तब सीधा तनकर बैठते थे लेकिन अब सायकिल झुककर चलानी पड़ती है, हैण्डल को नीचे क्यों किया गया, इसका कारण क्या है?
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (24-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 155" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteवाह क्या बात है! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसमझो बहार आई
आज सायकिल लोग मजबूरी में चलाते ,,,!बाइक,कार लोगों का स्टेट्स सिम्बल बन गया है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
जाने क्यों हमने सायकिल को बिल्कुल भुला ही दिया जबकि ये बहुत काम का यन्त्र है हम सब जानते हैं ..... बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteसाइकिल जिंदगी ही नहीं, जीने लायक माहौल बनाने में भी सक्षम है।
ReplyDeleteसाइकिल ही घर के कुछ कामो को जिन्दा दिली से
ReplyDeleteनिपटाती है-- ताजा हो गयीं बचपन की यादें
क्या खूब आलेख लिखा है साइकिल पर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है---
करवा चौथ का चाँद ------
साइकिल की उत्कृष्ट प्रस्तुति......
ReplyDeleteआज के युग में साईकिल को लोगों ने भुला ही दिया है ,या यह मजबूरी में चलाने का साधन मात्र बन गया है.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-24/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -33 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
aapke blog par hamesha hee rochak jaankaaree miltee hai ..par aapka blog join nahee kar paa raha hoon ,,join kaise karoon ..
ReplyDeleteसारगर्भित रोचक आलेख ...आपकी सोच डेवेलपमेंट की अगली स्टेज पर जा रही है ...!!हमने विदेश में देखा है लोग साइकिल को हीन दृष्टि से नहीं देखते ...!!शौक से चलते हैं क्योंकि वे इसके फायदे जानते हैं और मानते हैं !!बहुत अच्छा लिखा है ....
ReplyDeleteबात तो सही है, मगर आज के जमाने में साइकिल चालने की जगह भी तो होनी चाहिए...
ReplyDeleteयुरोप में साइकिल का चलन अभी भी है.. कई बड़े बड़े पदस्थ भी साइकिल से ऑफिस आया जाया करते हैं. और सड़क पर साइकिलों के लिए अलग लेन होती है.
ReplyDeleteबढ़िया लेख.
सच कहा है .. पूरे यूरोप में जहां भी मैं गया हूं वहां साइकल का उपयोग देखा है ... जहां बर्फ बेतहाशा पड़ती है वहां पर भी ... ओर आज जब भारत में देखता हूं तो इसका उपयोग कम से कम होता जा रहा है ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteNice post computer and internet ke naye tips and tools ke liye hamare blog ko bhi dhekhe www.hinditechtrick.blogspo.com
ReplyDeleteरोचक आलेख
ReplyDeleteसाइकिल पर उत्कृष्ट प्रस्तुति
१) Segway को Google कीजिए।
ReplyDeleteयहाँ कैलिफ़ोर्निया में पहली बार देखा था।
समस्या यही है कि बहुत ही महँगा है।
२)यहाँ कैलिफ़ोर्निया में कुछ कारों के पीछे एक bracket लगा रहता है जिसपर cycle fix करके लोग उसे अपने साथ ले जाते हैं
३)Cycle के लिए अलग Lane यहाँ आम बात है।
४)एक और बात हमने नोट की थी। लोग cycle चलाते समय helmet पहनते है।
६)By the way, छ: साल प्रयोग करने के बाद, यहाँ कैलिफ़ोर्निया आने से कुछ दिन पहले, हमने अपनी Reva गाडी बेच दी! बहुत दुख हुआ पर मजबोरी थी। लंबे समय से उसे उपयोग न करने से, गाडी खराब हो रही थी। पिछली बार अपने भतीजे के पास छोड गया था, मेरी अनुप्स्थिति में प्रयोग करने के लिए। इस बार वह यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं हुआ था।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
अनूठा विषय लिया है , चाइना वाले हम से इस विषय में भी बहुत आगे हैं , उन्होंने साइकिल का प्रयोग कर बहुत पैसा बचाया है !
ReplyDeleteसादर प्रणाम |बहुत दिनों से साईकिल खरीदने कों सोच रहा था |पिता जी से कहा तो बोले "समय बचाओ ,मेडिकल की पढाई कों वक्त दो"....समझाया मान गए ,साईकिल ..हलकी साईकिल खरीद दी ....उसको रोज सुबह चलाता हूँ चेहरे पर चमक और हेल्थ काफी इम्रुव हों गया हैं, |
ReplyDeleteआपका लेख ...बहुत ही यथार्थ हैं |इस ब्लॉग की हर रचना ,मेरे दिल के बहुत करीब हैं |
पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का ऑप्शन अब साइकिल ही रह जाएगा।
ReplyDeleteशौक़िया तो ठीक है परंतु दोपहिया सवारी खतरों से खाली नहीं . सुनीता नारायण का मामला बिल्कुल ताज़ा है .
ReplyDeleteआज की बुलेटिन भैरोंसिंह शेखावत, आर. के. लक्ष्मण और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
ReplyDeleteहमारे शहर में सायकिल मेला लगा है ...देश में अगर राजकोषीय घाटा कम करना है ...तो सायकिल चलायें ....
ReplyDeleteसाईकिल पर्यावरण स्वच्छ रखने में बहुत उपयोगी है!
ReplyDeleteरोचक !
साईकिल बेहद महत्वपूर्ण यंत्र है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता जैसे ... वैसे ही इस आलेख की उत्कृष्टता से भी इंकार नहीं किया जा सकता .... बेहद सार्थक एवं सशक्त आलेख्ा
ReplyDeleteआभार
सदैव की भाँति रोचक एवं रसपूर्ण..
ReplyDeleteसेहत का रामबाण नुस्खा ......
ReplyDeleteकिस तरह चेन के स्थान पर सीधे ही पहियों में ही पैडल लगाया जा सकता।
ReplyDeleteएक तो सड़कें वाहनों से भरी पड़ी हैं और उसमें बैठे लोग अति बेडौल होते जा रहे हैं। यह विडम्बना ही कही जायेगी कि यहाँ पर वाहनों की औसत चाल १०-१५ किमी प्रतिघंटे से अधिक नहीं है। यातायात का बोझ यहाँ की सड़कें उठाने में अक्षम हैं और अपना बोझ उठाने में यहाँ के सुविधाभोगी नागरिक। काश ऐसा होता कि १० किमी के तक के कार्य स्थलों के लिये साइकिल अनिवार्य हो जाती, उसके अनुसार सुरक्षित मार्ग बन जाते, तो यहाँ का पर्यावरण, सड़कें और नागरिक सौन्दर्य, व्यवस्था और स्वास्थ्य से लहलहा उठते।
साइकिल एक शताब्दी देख चुकी है पर अब भी संघर्षरत है। उसका संघर्ष तेल से है, तेल भरे और धुँआ उगलते राक्षसों से है, उसे निम्न समझने वालों की मानसिकता से है और साथ ही साथ उन सड़कों से भी है जहाँ पर उनको अपनी संरक्षा का भय है। पर्यटन और नगर यातायात में साइकिल के इस संघर्ष को हमें अपनाना होगा और उसे समुचित स्थान दिलाना होगा। यदि ऐसा हम नहीं करते हैं तो संभव है कि कल डॉलर और तेल मिल कर हमारा कॉलर पकड़ें और तेल निकाल दें।
यहाँ अमरीका में प्रवीण जी एक पहिया साइकिल वाशिन्गटन डीसी की चौड़ी साइकिल पट्टियों पर सरपट दौड़तीं हैं। टोरंटो(कनाडा ) और यहाँ भी रिक्शा भी बहुत सज्जित और लोकलुभाऊ हैं।
टोरंटो नगर में मेट्रो की शान निराली है हर डिब्बे में गार्ड निगरानी करता है देखता है सब चढ़ गए ठीक से बैठे हैं तब गाड़ी आगे बढ़ती है।दिल्ली की तरह गैर ज़रूरी रोशनियाँ यहाँ आपको हतप्रभ नहीं करती हैं। भीड़ का तो कोई मतलब ही नहीं है एक डिब्बे में २० -२२ लोग होते हैं बस।
साइकिलें कारों की छत पे शोभित रहतीं हैं पूरे अमरीका में। वीकएंड में साइकिल ही साइकिलें सैर सपाटे के स्थानों पर दिखाई देंगी। इनपे हेलमेट लगाए सवार भी होंगें। यहाँ हेलमेट पहनना ज़रूरी है आबाल्विद्धों के लिए साइकिल आप तभी चला सकते हैं। हेलमेट भी बड़ा क्यूट।
एक और शान है साइकिल की साइकिल के पीछे फेमिली रिक्शा जुड़ा रहता है जिसमें प्यारे प्यारे बच्चे बैठे आपको बराबर हाथ हिलाकर रहते हैं।
यहाँ नजर मिलते ही एक दूसरे का लोग हाल चाल पूछते हैं काले गोर का कोई भेद नहीं। हाई !हाउ युडूइन !हेव ए ग्रेट डे !यु टू !
आबाल वृद्धों की शान है साइकिल। हमारे एक साथी और पूर्व छात्र थे। बात उन दिनों की है जब हम यूनिवर्सिटी कालिज ,रोहतक(हरियाणा )में पढ़ाने साइकिल पर जाते थे। एक दिन ये सज्जन अपनी कार कार स्टें पर खड़ी करके मेरे पास आये बोले -शर्मा जी हमारा भी बड़ा जी करता है हम साइकिल से आयें। हमने कहा आ जाया करो इसमें संकट क्या है।
ReplyDelete"शर्म आती है "-ज़वाब मिला। गिनती के हम दो व्याख्याता थे जो साइकिल से ही आते थे। एक मनमौजी श्रीवास्तव साहब थे जो कभी कभार बच्चे की साइकिल से ही चले आते थे। एक घर में दो दो कारें थीं पति की अलग पत्नी की अलग अपने अपने समय पर पीरियड के हिसाब से निकलते थे।
पद प्रतिष्ठा का विषय माने बैठे हैं वहां कई लोग आज भी कार को (S.U.V)को। यहाँ आके देखो ऐसी कारें हैं बस चाबी लेके बैठ जाओ कार चलेगी चाबी कहीं लगानी नहीं है। हर कार में GPS पद प्रतिष्ठा कैसी यहाँ तो घास काटने वाला अपनी घास काटने वाली गाडी को एक बड़ी जीप के पीछे लगी ट्राली में रखे लाता है।
हर मजदूर जो रीअल्टर्स के साथ काम करता है कार से आता है। साइकिल पे तो मस्ती का आलम यहाँ देखते ही बनता है। रन बिरंगी पोशाकें और बहु रंगी लोग मनभावन परिधानों में।
साइकिल सबसे उपयोगी साधन है ..किन्तु महानगरों में साइकिल चलाना अब खतरे से खाली नहीं...'सुनीता नारायण 'अपने इसी साइकिल प्रेम की कीमत चुका रही हैं...रविवार की सुबह वे साइकिल चला रही थीं और एक कार ने पीछे से टक्कर मार दी. उन्हें शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteवैसे भी कुदरती ईधन के समाप्त होते भण्डार के चलते साईकिल युग की वापसी तय लगती है ! एक समग्र साईकिल गाथा !
ReplyDeleteकाश ऐसा होता कि १० किमी के तक के कार्य स्थलों के लिये साइकिल अनिवार्य हो जाती, उसके अनुसार सुरक्षित मार्ग बन जाते, तो यहाँ का पर्यावरण, सड़कें और नागरिक सौन्दर्य, व्यवस्था और स्वास्थ्य से लहलहा उठते।.......................वैसे तो इस वाक्य के अलावा आलेख का अन्तिम पैरा तथा कई अन्य पैरे देश और दुनिया को ईंधन बचत का प्रभावी सुझाव दे रहे हैं। साथ ही यह पूरा आलेख भारी मोटरगाड़ियों के दुष्प्रभावों, यातायात के अनियन्त्रण से देश-दुनिया को बचाने के लिए जो 'वक्त जरुरत' का संदेश दे रहा है उससे ईंधन, मोटरगाड़ियों, यातायात, शहरों-नगरों, देश-विदेशों की प्रत्यक्ष भौतिक समस्या ही नहीं जुड़ी हुई है बल्कि देखा जाए तो यह भौतिक समस्या समाज, रिश्तों की समस्याओं का गोपनीय कारण भी है।......काश आपके इस आलेख की महत्ती उपयोगिता को देश-दुनिया के कर्ताधर्ता समझ पाते और साइकिल जैसी सवारी को फौरन से पेशतर सबके लिए जरुरी कर देते। ....................मेरा भी बहुत मन करता है साइकिल चलाने का पर वही बात है ना कि साइकिल चालकों के लिए कोई जगह तो हो अनियन्त्रित यातायात के बीच। अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteDiwali mubarak ho!
ReplyDeleteसाइकिल में गुण बहोत हैं सदा राखिए संग ,
ReplyDeleteघुटनों को अपने सदा रखिये चाक मलंग।
मित्रा पर्यावरण साइकिल कभी न करती दंग ,
सेहत की सिरमौर रहे साइकिल अपनी चंग।
बढ़िया प्रस्तुति और सुझाव कार्बन फुट प्रिंट घटाने के एक से बढ़के एक आपने दिए हैं जो सहज अनुकरणीय हैं इच्छा हो बस अंदर से सेहत सचेत रहने होने की।
good for both environment and heath
ReplyDeleteसाइकिल का रिसाइकिल .........बहुत खूब
ReplyDeleteअभी हरक्यूलिस कम्पनी की साईकिल ली थी पहाडो पर जाने के लिये । वजन तो मैने चैक नही किया कि कितना है पर हां इन साईकिलो में अलाय फ्रेम या रिम होने के कारण हल्की हो गयी हैं
ReplyDeleteसाईकिल के विषय में आपका यह विष्लेषण और विचार एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है बशर्ते हम सुझायी गई दिशा में कदम उठायें. बहुत आभार.
ReplyDeleteरामराम.
Government has imposed more taxes now on imported cycles. till 15-20 kms it doesn't matter what kind of cycle you are using once you start going beyond that you will really start to feel paddle & weight of cycle. it really gives you time which you never realize that you have. may be for music or may be for light thinking.
ReplyDeleteBangalore is such a small city and supporting weather. A perfect place to do regular cycling. I saw people driving motor vehicles are sympathetic towards cyclists & let them pass but not Bus drivers.
An online club, where you will meet cycle enthusiasts: http://www.cyclists.in/
A really good article. साधुवाद!!
एक बार फ़िर से साइकिल चलाने के लिये मन ललकने लगा! :)
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