कुछ दिन पहले एक डाटा कार्ड लिया था। उसके लिये दो प्रमाणपत्रों की आवश्यकता थी, पहचान के लिये और निवास के लिये। यद्यपि मेरे पास कार्यालय द्वारा प्रदत्त पहचान पत्र और निवास प्रमाण पत्र था पर एयरटेल वालों ने दोनों ही मानने से मना कर दिया। समझाया कि यह एक सरकारी प्रपत्र है तो कहने लगे कि कोई भी संस्था अपने कर्मचारियों को इस तरह के काग़ज़ बाँटती रहती है। भंगिमाओं से देखा जाता तो उनका प्रतिनिधि एक न्यायविद की तरह बात कर रहा था और मुझे एक संदिग्ध आतंकवादी की तरह समझ रहा था। विकल्प था अतः पैन कार्ड का प्रस्ताव रखा, उस पर भी मना कर दिया, कहा कि उसमें निवास प्रमाण पत्र नहीं रहता है। चुनाव पहचान पत्र था तो उसमें गृहनगर का पता था, ड्राइविंग लाइसेन्स पर अन्य नगर का पता था। लगा कि, सुरक्षा के नाम पर जितना कवच चढ़ा रखा है, उसके अनुसार तो हमें डाटाकार्ड मिलने से रहा। एयरटेल की फाइलों में संभवतः मेरे केस का निस्तारण मेरे ऊपर प्रतिकूल टिप्पणी करने जैसा हो। मेरे डाटा कार्ड को न देने का कारण संभवतः यह लिख दिया जाये, कि वैध पहचान व निवास प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में असमर्थ, भारतीय नागरिक होने में सन्देह। इतने कड़े नियम बने रहे तो हम जैसे सरकारी नौकर भी बांग्लादेशी घुसपैठिये मान लिये जायेंगे। अपने देश में ही हमारे साथ परायों सा व्यवहार हो रहा है, हम निराशा में डूब गये।
तब सोचा कि नियम अंधे हो सकते हैं, मानवीय संवेदनायें नहीं। हमने कहा कि हम तो भारत सरकार की कार्यनदी में डूबते उतराते तत्व हैं और हर दो तीन वर्ष में अपना स्थान बदलते रहते हैं। अपने कार्यालय के अतिरिक्त कोई और प्रमाण पत्र तो ला भी नहीं सकते हैं। आप ही अपने आप में संतुष्ट हो लो, दयादृष्टि कर दो। पता नहीं तर्क ने अपना काम किया या उसे सद्बुद्धि आयी या उसका अहं संतुष्ट हुआ, पर वह मान गया। एक दो दिन में घर के पते पर सत्यापन करने आया और अगले दो दिनों में फ़ोन के द्वारा पुनर्सत्यापन कर डाटा कार्ड प्रारम्भ कर दिया।
बैंक वाले भी पहचान पूरी जानने के लिये लालायित रहते हैं, पर उनके लिये पैन कार्ड ही सब कुछ है, संभवतः उन्हें व्यक्ति के आर्थिक पक्ष से ही सारोकार है। पैन कार्ड वाले व्यक्ति के लिये बैंक में कुछ भी करवा पाना कठिन नहीं है। हर छोटी सी चीज़ के लिये एक फोटो माँग लेते हैं और पैन कार्ड की फोटोकापी।
इसी कड़ी में अभी कुछ दिन पहले आधार कार्ड के लिये एक कैम्प रेलवे परिसर में ही लगा। सबने कहा बनवा लीजिये, इतने जटिल अनुभव पाने के बाद अपना आधार स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है। हम भी सहमत हो गये कि चलो, इसी बहाने ठोस सरकारी आधार मिल जायेगा। यहाँ भी डाटाकार्ड की तरह दो प्रमाणपत्र माँगे गये, मैंने तुरन्त ही रेलवे प्रदत्त पहचान और निवास प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर दिये। ठेके पर आधारकार्ड बनवाने वाले युवा के चेहरे से लगा कि वह भी एयरटेल के प्रतिनिधि की तरह न्यायविद की कुर्सी पर सत्तासीन है, पर नीचे रेलवे की मुहर देख कर तनिक ठंडा पड़ गया। जिस संस्था की भूमि पर उसे आधार कार्ड बनाने की सुविधा मिली थी, वह उसके मुहर की अवहेलना नहीं कर सकता था। संतुष्टि के भाव आंशिक अवश्य थे पर कोई हठधर्मिता नहीं दिखी। मेरे पूरे हाथ के प्रिण्ट और आँखों की छाप ले ली गयी और प्रक्रिया पूरी होने के बाद एक पावती पकड़ा दी गयी।
जब श्रीमतीजी और बच्चों की बारी आयी तो मेरे प्रमाणपत्रों के आधार पर उनका आधारकार्ड बनाने से वह नियमों के अध्याय पढ़ने लगा। कहा कि पहले तो आप यह सिद्ध कीजिये कि ये वही हैं जो आप कह रहे हैं। साथ ही साथ उनके साथ अपने संबंध का प्रमाणपत्र भी लाइये। हमें लग गया कि इस ठेके के एजेण्ट ने हमारा सर तो किसी विवशतावश निकल जाने दिया पर हमारे धड़ को नियमों के पाश से जकड़ लिया।
श्रीमतीजी के साथ हमारे संबंध का प्रमाण पत्र एक वह फोटो भर थी, जिसमें हम मुस्कुराने का प्रयास करते हुये उनके गले में वरमाला डाल रहे थे। विवाह के पंजीकरण को करोड़ों भारतीयों की तरह अनिवार्य न मानते हुये, उसी फोटो की स्मृतिविधा में जिये जा रहे थे। फोटोशॉप के आगमन के बाद तो ऐसी न जानी कितनी फोटुयें संदेह के घेरे में आ जायें। श्रीमतीजी जिस तरह प्यार से हमें घर में समझाती हैं, उस तरह समझाकर वह अपनी पत्नी होने के संबंध को सिद्ध कर सकती थीं, पर भरी भीड़ में ऐसा करने में वह सकुचा गयी होंगी। श्रीमतीजी ने अपना पैनकार्ड और चुनाव पहचान पत्र तो दिखा दिया, पर वे दोनों ही विवाह के पहले के थे और दोनों में ही उनके पिताजी का नाम अभिभावक के रूप में लिखा था। संबंध सिद्ध करने का फिर भी कोई प्रमाणपत्र नहीं था। यद्यपि वहाँ पर खड़े दो बच्चे हम दोनों को माताजी और पिताजी कह रहे थे और यह तथ्य हमारे पति पत्नी के संबंधों को सिद्ध करता था, पर नियमों के सामने भावनाओं का कोई मोल नहीं।
बच्चों के साथ तो समस्या और गहरी थी। उनके पास न तो पहचान पत्र ही था और न ही संबंध सिद्ध करने का प्रमाणपत्र। यदि संबंध के नाम पर कुछ था तो वह कई वर्ष पहले बनवा लिया जन्म प्रमाण पत्र, जिसमें पिता के रूप में मेरा नाम लिखा था. पर वह यह सुनिश्चित नहीं करता था कि उसमें लिखा पता मेरा ही है, किसी और प्रवीण पाण्डेय का नहीं। साथ ही साथ उसमें लिखा पता मेरा स्थायी पता था, न कि वर्तमान। एक और बात थी कि जन्म प्रमाण पत्र में बच्चों की फोटो नहीं लगी थी, तो यह भी सिद्ध नहीं हो पा रहा था कि जो बच्चे वहाँ पर खड़े हैं, वे उन्हीं के जन्म प्रमाण पत्र है। जन्म प्रमाण पत्र इस प्रकार एक चौथाई भी पहचान सिद्ध नहीं कर पा रहा था। दूसरा था, विद्यालय प्रदत्त पहचान पत्र। विद्यालय पहचान पत्र में फोटो तो लगी थी पर घर का पता नहीं था और साथ ही साथ माता पिता का नाम नहीं था। अत: वह पहचान पत्र भी पूर्ण नहीं माना गया। हाँ, यदि दोनों को मिला कर तार्किक निष्कर्ष निकाले जाते तो पहचान और संबंध पूर्ण सिद्ध हो रहे थे, पर अधिक बुद्धि लगाना ठेके पर आये एजेण्टों के अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
अब क्या किया जाये, हमारा आधार बन जाये और यदि औरों का न बने तो घर में विद्रोह निश्चित था। लगा कि नियमों से परे कोई देशी तोड़ निकालना पड़ेगा। थोड़ा और गहराई में उतरा गया तो पता लगा कि कोई सांसद, विधायक या राजपत्रित अधिकारी प्रमाणपत्र दे दे तो वह उन्हे मान्य है। एक राजपत्रित अधिकारी होने को आधार पर जब मैंने सबका प्रमाणपत्र देने को कहा तो मुझको कहा गया कि आप अपने संबंधी के लिये प्रमाणपत्र नहीं दे सकते। मैंने कहा कि आप उन्हें मेरा संबंधी मान ही नहीं रहे हैं तो प्रमाणपत्र देने दीजिये। यह भी तर्क भैंस के सामने बीन बजाने जैसा सिद्ध हुआ।
अब मेरा कार्याल़य मेरी श्रीमतीजी और बच्चों के लिये पहचान पत्र और संबंध प्रमाणपत्र कैसे दे? यह बड़ी समस्या थी और उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर भी। कार्यालय तो मेरे लिये तो यह कार्य कर सकता था, बच्चों और श्रीमतीजी का सत्यापन उसकी परिधि के बाहर था। यह दोनों ही विषय राज्य सरकार की अधिकार सूची में थे और हम ठहरे केन्द्र सरकार के नौकर, कोई किसी की सुध क्यों ले। कार्यालय को यह भी भय था कि कहीं हम उन प्रमाण पत्रों को किसी और उपयोग में न ले आयें। अन्ततः एक सरकारी उपाय निकाला गया। हमने अपने वरिष्ठ अधिकारी को लिख कर दिया कि आधार कार्ड बनवाने के लिये मुझे संलग्न प्रमाणपत्रों की आवश्यकता है, जिसके आधार पर हमें केवल इसी हेतु और एक बार उपयोग में लाने के लिये प्रमाणपत्र दे दिया गया। आधारकार्ड वाले भी उन प्रमाण पत्रों को मान गये और श्रीमतीजी और बच्चों के लिये भी आधारकार्ड की प्रक्रिया पूरी हो गयी। अब तीन माह बाद हम सबके आधारकार्ड बनकर मिल जायेंगे।
अब पता नहीं कि आने वाले समय में आधारकार्ड ही एकमात्र पहचान रहेगी कि अन्य पहचानों का सहारा भी लिया जायेगा? आज आकर मैंने अपने सारे पहचान प्रमाणपत्र व बैंक आदि के कार्ड निकाल कर देखे, छोटे बड़े मिलाकर १०-१२ निकले, सब के सब एक दूसरे से असंबद्ध। हर कार्ड के लिये कोई न कोई पहचान प्रस्तुत की गयी होगी पर किसी में भी कोई संदर्भ नहीं था। क्या आने वाले समय में पहचान के सारे बिखरे तन्तुओं को एक सूत्र में पिरोया जायेगा? क्या निश्चय समयाविधि में आधारकार्ड सबके लिये अनिवार्य होगा और सारे कार्डों में आधारकार्ड का संदर्भ देना आवश्यक किया जायेगा? क्या अमेरिका की तरह कोई एक ही पहचान पत्र को सभी प्रकार के सामाजिक व आर्थिक प्रक्रियाओं के लिये मान्यता दी जायेगी?
मेरे इस जन्म में तो यह सब होता असंभव दिखता है। सुना है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को सहज ही पहचान मिल जाती है और इसी देश में जन्मे और बढ़े हुये न जाने कितनों को अपनी पहचान सिद्ध करने में संशय और संदेह के कितने अपमानों से होकर निकलना पड़ता है। अगले जन्म में यदि पुनः भारत आने का आदेश मिलता है तो ईश्वर से कहूँगा कि कर्ण की तरह ही कवच और कुण्डल चढ़ा कर भेजना। कर्ण की तरह अपमान और तिरस्कार झेलने की शक्ति भी आ जायेगी और कवच और कुण्डल दिखा कर अपनी पहचान भी बताता रहूँगा।
पहचान सिद्ध करने के लिये पहचानें |
बैंक वाले भी पहचान पूरी जानने के लिये लालायित रहते हैं, पर उनके लिये पैन कार्ड ही सब कुछ है, संभवतः उन्हें व्यक्ति के आर्थिक पक्ष से ही सारोकार है। पैन कार्ड वाले व्यक्ति के लिये बैंक में कुछ भी करवा पाना कठिन नहीं है। हर छोटी सी चीज़ के लिये एक फोटो माँग लेते हैं और पैन कार्ड की फोटोकापी।
इसी कड़ी में अभी कुछ दिन पहले आधार कार्ड के लिये एक कैम्प रेलवे परिसर में ही लगा। सबने कहा बनवा लीजिये, इतने जटिल अनुभव पाने के बाद अपना आधार स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है। हम भी सहमत हो गये कि चलो, इसी बहाने ठोस सरकारी आधार मिल जायेगा। यहाँ भी डाटाकार्ड की तरह दो प्रमाणपत्र माँगे गये, मैंने तुरन्त ही रेलवे प्रदत्त पहचान और निवास प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर दिये। ठेके पर आधारकार्ड बनवाने वाले युवा के चेहरे से लगा कि वह भी एयरटेल के प्रतिनिधि की तरह न्यायविद की कुर्सी पर सत्तासीन है, पर नीचे रेलवे की मुहर देख कर तनिक ठंडा पड़ गया। जिस संस्था की भूमि पर उसे आधार कार्ड बनाने की सुविधा मिली थी, वह उसके मुहर की अवहेलना नहीं कर सकता था। संतुष्टि के भाव आंशिक अवश्य थे पर कोई हठधर्मिता नहीं दिखी। मेरे पूरे हाथ के प्रिण्ट और आँखों की छाप ले ली गयी और प्रक्रिया पूरी होने के बाद एक पावती पकड़ा दी गयी।
जब श्रीमतीजी और बच्चों की बारी आयी तो मेरे प्रमाणपत्रों के आधार पर उनका आधारकार्ड बनाने से वह नियमों के अध्याय पढ़ने लगा। कहा कि पहले तो आप यह सिद्ध कीजिये कि ये वही हैं जो आप कह रहे हैं। साथ ही साथ उनके साथ अपने संबंध का प्रमाणपत्र भी लाइये। हमें लग गया कि इस ठेके के एजेण्ट ने हमारा सर तो किसी विवशतावश निकल जाने दिया पर हमारे धड़ को नियमों के पाश से जकड़ लिया।
श्रीमतीजी के साथ हमारे संबंध का प्रमाण पत्र एक वह फोटो भर थी, जिसमें हम मुस्कुराने का प्रयास करते हुये उनके गले में वरमाला डाल रहे थे। विवाह के पंजीकरण को करोड़ों भारतीयों की तरह अनिवार्य न मानते हुये, उसी फोटो की स्मृतिविधा में जिये जा रहे थे। फोटोशॉप के आगमन के बाद तो ऐसी न जानी कितनी फोटुयें संदेह के घेरे में आ जायें। श्रीमतीजी जिस तरह प्यार से हमें घर में समझाती हैं, उस तरह समझाकर वह अपनी पत्नी होने के संबंध को सिद्ध कर सकती थीं, पर भरी भीड़ में ऐसा करने में वह सकुचा गयी होंगी। श्रीमतीजी ने अपना पैनकार्ड और चुनाव पहचान पत्र तो दिखा दिया, पर वे दोनों ही विवाह के पहले के थे और दोनों में ही उनके पिताजी का नाम अभिभावक के रूप में लिखा था। संबंध सिद्ध करने का फिर भी कोई प्रमाणपत्र नहीं था। यद्यपि वहाँ पर खड़े दो बच्चे हम दोनों को माताजी और पिताजी कह रहे थे और यह तथ्य हमारे पति पत्नी के संबंधों को सिद्ध करता था, पर नियमों के सामने भावनाओं का कोई मोल नहीं।
बच्चों के साथ तो समस्या और गहरी थी। उनके पास न तो पहचान पत्र ही था और न ही संबंध सिद्ध करने का प्रमाणपत्र। यदि संबंध के नाम पर कुछ था तो वह कई वर्ष पहले बनवा लिया जन्म प्रमाण पत्र, जिसमें पिता के रूप में मेरा नाम लिखा था. पर वह यह सुनिश्चित नहीं करता था कि उसमें लिखा पता मेरा ही है, किसी और प्रवीण पाण्डेय का नहीं। साथ ही साथ उसमें लिखा पता मेरा स्थायी पता था, न कि वर्तमान। एक और बात थी कि जन्म प्रमाण पत्र में बच्चों की फोटो नहीं लगी थी, तो यह भी सिद्ध नहीं हो पा रहा था कि जो बच्चे वहाँ पर खड़े हैं, वे उन्हीं के जन्म प्रमाण पत्र है। जन्म प्रमाण पत्र इस प्रकार एक चौथाई भी पहचान सिद्ध नहीं कर पा रहा था। दूसरा था, विद्यालय प्रदत्त पहचान पत्र। विद्यालय पहचान पत्र में फोटो तो लगी थी पर घर का पता नहीं था और साथ ही साथ माता पिता का नाम नहीं था। अत: वह पहचान पत्र भी पूर्ण नहीं माना गया। हाँ, यदि दोनों को मिला कर तार्किक निष्कर्ष निकाले जाते तो पहचान और संबंध पूर्ण सिद्ध हो रहे थे, पर अधिक बुद्धि लगाना ठेके पर आये एजेण्टों के अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
अब क्या किया जाये, हमारा आधार बन जाये और यदि औरों का न बने तो घर में विद्रोह निश्चित था। लगा कि नियमों से परे कोई देशी तोड़ निकालना पड़ेगा। थोड़ा और गहराई में उतरा गया तो पता लगा कि कोई सांसद, विधायक या राजपत्रित अधिकारी प्रमाणपत्र दे दे तो वह उन्हे मान्य है। एक राजपत्रित अधिकारी होने को आधार पर जब मैंने सबका प्रमाणपत्र देने को कहा तो मुझको कहा गया कि आप अपने संबंधी के लिये प्रमाणपत्र नहीं दे सकते। मैंने कहा कि आप उन्हें मेरा संबंधी मान ही नहीं रहे हैं तो प्रमाणपत्र देने दीजिये। यह भी तर्क भैंस के सामने बीन बजाने जैसा सिद्ध हुआ।
अब मेरा कार्याल़य मेरी श्रीमतीजी और बच्चों के लिये पहचान पत्र और संबंध प्रमाणपत्र कैसे दे? यह बड़ी समस्या थी और उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर भी। कार्यालय तो मेरे लिये तो यह कार्य कर सकता था, बच्चों और श्रीमतीजी का सत्यापन उसकी परिधि के बाहर था। यह दोनों ही विषय राज्य सरकार की अधिकार सूची में थे और हम ठहरे केन्द्र सरकार के नौकर, कोई किसी की सुध क्यों ले। कार्यालय को यह भी भय था कि कहीं हम उन प्रमाण पत्रों को किसी और उपयोग में न ले आयें। अन्ततः एक सरकारी उपाय निकाला गया। हमने अपने वरिष्ठ अधिकारी को लिख कर दिया कि आधार कार्ड बनवाने के लिये मुझे संलग्न प्रमाणपत्रों की आवश्यकता है, जिसके आधार पर हमें केवल इसी हेतु और एक बार उपयोग में लाने के लिये प्रमाणपत्र दे दिया गया। आधारकार्ड वाले भी उन प्रमाण पत्रों को मान गये और श्रीमतीजी और बच्चों के लिये भी आधारकार्ड की प्रक्रिया पूरी हो गयी। अब तीन माह बाद हम सबके आधारकार्ड बनकर मिल जायेंगे।
एक देश में एक ही पहचान हो |
मेरे इस जन्म में तो यह सब होता असंभव दिखता है। सुना है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को सहज ही पहचान मिल जाती है और इसी देश में जन्मे और बढ़े हुये न जाने कितनों को अपनी पहचान सिद्ध करने में संशय और संदेह के कितने अपमानों से होकर निकलना पड़ता है। अगले जन्म में यदि पुनः भारत आने का आदेश मिलता है तो ईश्वर से कहूँगा कि कर्ण की तरह ही कवच और कुण्डल चढ़ा कर भेजना। कर्ण की तरह अपमान और तिरस्कार झेलने की शक्ति भी आ जायेगी और कवच और कुण्डल दिखा कर अपनी पहचान भी बताता रहूँगा।
नियमों की कठोरता में ही चोर-सरलता घुस आती है.
ReplyDeleteएक आलेख में बहुत सारे
ReplyDeleteविषय वस्तु को
दिखला देना एक कला है
जिसमें आप पारंगत हैं
हार्दिक शुभकामनायें
चिकित्सा-कार्ड दिखा देते।
ReplyDelete.
.वैसे इतना झाम कोई -कोई ही करता है,बनानेवाला मूर्ख था।
बहुत सही बात |सहमत हूँ |
ReplyDeleteबहुत तामझाम करना पड़ता हैं |
वैसे हमारे यूनिवर्सिटी रोड {इलाहाबाद}में पैसे के लालच में बिना आई डी के सिम/डाटा कार्ड दे दिए जाते रहें हैं |
सिस्टम बड़ा अजीब हैं |
सुना है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को सहज ही पहचान मिल जाती है और इसी देश में जन्मे और बढ़े हुये न जाने कितनों को अपनी पहचान सिद्ध करने में संशय और संदेह के कितने अपमानों से होकर निकलना पड़ता है।
ReplyDeleteबिलकुल ऐसे ही हम सबको पल पल झेलना पड़ता हैं |
एयरसेल के डाटा कार्ड के लिए ड्राईविंग लाईसेंस दिया था ,बाद में सर्विस बंद कर डी गयी|सर्विस सेंटर वालों ने बोला वलिद आई डी प्रूफ लाओ ,अब DL से वलिद क्या होता ?मैंने उन्हें यातायात पुलिस लोगों लगा ग्रीन कार्ड दिया ,जिसकी वैधता वर्षों पहले समाप्त हों चूँकी थी |पुलिस का लोगों देखते ही उन लोगों ने चुपचाप आई डी रखकर चालू कर दिया ,पढ़ा तक नही |
पहचान पत्र तो ईमानदार लोगो के लिए है ,असामाजिक तत्व या घुसपेतिये के लिए नहीं | आपका आलेख रोचक है |
ReplyDeleteनई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
latest post महिषासुर बध (भाग २ )
नियम अंधे हो सकते हैं, मानवीय संवेदनायें नहीं।
ReplyDelete****
कितनी सुन्दर बात...!
बहुत सुन्दर आलेख!
"अगले जन्म में यदि पुनः भारत आने का आदेश मिलता है तो ईश्वर से कहूँगा कि कर्ण की तरह ही कवच और कुण्डल चढ़ा कर भेजना। कर्ण की तरह अपमान और तिरस्कार झेलने की शक्ति भी आ जायेगी और कवच और कुण्डल दिखा कर अपनी पहचान भी बताता रहूँगा।"
:)
आपकी जगह बांग्लादेशी घुसपैठिये होते तो बिना किसी प्रमाण पत्र के कुछ गाँधी छाप प्रमाणों के बदले सब कुछ बनवा लेते :)
ReplyDeleteहंसी भी आई और क्षोभ भी हुआ -बहरहाल सपरिवार आधार कार्ड के गर्वित स्वामित्व की बधाई ! और हाँ विवाह प्रमाण पत्र अपने तहसील से बनवा लीजिये नहीं तो आगे बड़ी मुसीबत आयेगी~
ReplyDeleteपासपोर्ट नहीं था क्या? व्यथा जायज है।
ReplyDeleteयहाँ चोर उचक्कों को सभी किस्म के पहचान पत्र मिल जाते हैं परन्तु हम आप परेशान होते हैं।
ReplyDeleteइसी लफड़े के चक्कर में मैं अभी इसमें हाथ नहीं डाल रहा। जब आधार कार्ड वाले शतप्रतिशत लक्ष्य के करीबे पहुँचने वाले होंगे और छूटे हुओं को खोजना शुरू करेंगे तब सामने आऊंगा। इस बीच मैंने अपने राजपत्रित अधिकार से कुछ मित्रों की समस्त सूचनाओं से युक्त पहचान का प्रमाण पत्र बनाकर समस्या सुलझाने की कोशिश जरूर की है।
ReplyDeleteकानून के हिसाब से चलने वालों के लिए बड़ी अडचनें है , वर्ना कैसा आधार , कहाँ का आधार ! इस देश की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा बेहिसाब नियमों का होना ही है , जिसके कारण लोग पतली गली ढूँढने लग जाते हैं !
ReplyDeleteतब सोचा कि नियम अंधे हो सकते हैं, मानवीय संवेदनायें नहीं।
ReplyDeleteप्रबल ....बहुत सुंदर बात लिखी है ....रोचक आलेख ....!!
नियमानुसार तो सच में ,अपनी ही पहचान सिद्ध करना चक्रव्यूह सा लगता है ....
ReplyDeleteHm bhi isi Identity Crisis ;) ke shikaar hain....Indore ka mool nivasi na hone ke kaaran mobile connection lene me bhi dikkatein aa chuk hain.. ... 3 idiots ka dialog yaad aata hai...." bol wo rahe hain...par shabd hamare hain"
ReplyDeleteवाकई अपनीं जगह से दूसरी जगह नौकरी के लिए जाना भी पड़ता है और निराशाजनक है लेकिन वहाँ पर ऐसी समस्याओं का सामना करना ही पड़ता है !
ReplyDeleteजुगाड़ वाले तो इन सब झमेलों में पड़े बिना ही पार पा लेते हैं हाँ आम आदमी के लिए यह सब किसी तीज त्यौहार से कम नहीं ...मेला लग जाता है बार बार ......सच अपनी एक पहचान हो ही नहीं सकती अपने देश में ...आज कुछ कल कुछ ...इसमें किस किस की नैया पार होती है मत पूछिए ..
ReplyDelete....जागरूक प्रस्तुति
सहमत हूँ |
ReplyDeleteहमारे देश में सब काम जुगाड़ से चलता है सर, हर जगह नियम अपनी सुविधा के हिसाब से बदलते रहते हैं।
ReplyDeleteroj naya naya niyam lago hote rahta hai ab aadhar card
ReplyDeleteA presentation, through which many of us have already gone through. unfortunately true n honest people use to face humiliation and difficulty in such incident. We should follow American pattern to simplify the identity of our citizen.
ReplyDeleteऐसी समस्या आती है कई बार ...... जाने ऐसे कठोर नियमों के बावजूद आसामजिक तत्वों को कैसे नहीं पहचाना जाता है .....
ReplyDeleteनियम अंधे हो सकते हैं, मानवीय संवेदनायें नहीं।
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त बात कही आपने ....
,बहुत सही कहा...रोचक आलेख ...
ReplyDeleteयदि सरकार के राजपत्रित अधिकारी नियमों की चपेट में आ गये, तो सामान्य व्यक्ति का क्या हाल होता होगा। मुझे तो एक बार सिर्फ राशन कार्ड न होने के कारण बैंक ने कर्ज देने से मना कर दिया।
ReplyDeleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (20-10-2013) के चर्चामंच - 1404 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअपनी पहचान को पहचान दिलाना बहुत कठिन हो गया है, हमने आधारकार्ड के लिये ५ माह पहले आवेदन किया था, अभी तक नहीं आया, परंतु २ माह पहले श्रीमती जी का आधार कार्ड आवेदन किया था, वह आ भी गया, अब सोच रहे हैं कि एक RTI कर दी जाये, एक अनुभव यह भी हो जाये ।
ReplyDeleteअभिलेख में अगर आप मुर्दा घोषित हो गये तो जिंदा रहते हुए भी पहचान बता पाना मुश्किल हो जाता है। आपका अनुभव और लेखन बेहद यथार्थ है। बहुत अच्छा लगा। बधाई और शुभकामना।
ReplyDeleteवाकई अपने ही देश में अपनी पहचान सिद्ध करना कितने अपमान और तिरस्कार का कार्य है। बांग्लादेशी पाकिस्तानी और रिफ्यूजी सबको यहां के मूल निवासी न होने के बावजूद भी आसनी से पहचान पत्र उपलब्ध हो जाते हैं। तंत्र खून के घूंट पीने पर मजबूर कर रहा है और कुछ नहीं।
ReplyDeleteआधार की कहानी तो वैसे ही विवादास्पद है.. मगर इन मोबाइल कंपनियों की एक एक अजीब कहानी है.. यदि आपके पास एक कनेक्शन है और दूसरा कनेक्शन चाहिए तो आपको सारी प्रक्रिया से पुनः गुजरना होगा.. मेरा एक पोस्ट-पेड कनेक्शन था और दूसरा कनेक्शन लेने के लिये उनके फोन के बिल की कॉपी काम नहीं आती.. तब आपको बी एस एन एल का ही सहारा लेना पडता है..
ReplyDeleteहम तो रोज झेल रहे हैं यही सब!!
बड़ा दुख दीन्हा। जब मूढ़ों को ही पहचान सुनिश्चित करने की छूट दे दी जाती है तो वे ठेके वाले अपनी भड़ास निकाल लेते हैं।
Deleteसार्थक ,सटीक और वर्तमान व्यवस्था में कुव्यवस्था कों इंगित करती पोस्ट |
ReplyDeleteबेईमान अपना रास्ता निकाल ही लेते हैं !
ReplyDeleteमुझे और मेरी पत्नि को कोई परेशानी नहीं हुई थी।
ReplyDeleteमैंने अपना पास्पोर्ट दिखा दिया और एक कॉपी दे दी।
उसमें वह सब सूचना है, जिनकी जरूरत होती है (फ़ोटो, नाम, जन्मतिथी, जन्म स्थल और पूरा पता)
मेरा सुझाव है कि आप भी पास्पोर्ट, अपने लिए, और अपने पूरे परिवार के लिए बनवा लीजिए।
आजकल बेंगळूरु में पासपोर्ट बनवाना मुश्किल नहीं है।
बहुत उपयोगी साबित होगा, आप विदेश जाएं या न जाएं।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
(आजकल फ़िर कैलिफ़ोर्निया में)
पासपोर्ट भी २० वर्ष पुराना है, उसे भी नया करने के लिये कठिनाई उठानी होगी।
Deleteबेचारे पेन्शन-भोगियों को साल में एक बार जीवित होने का प्रमाण-पत्र देना होता है ।
ReplyDeleteIs desh me bhale logo ko hazar mushkile hain.
ReplyDeleteबस एक बेईमान कार्ड की जरूरत है इस देश में उसके लिये कुछ नहीं चाहियेगा सरल और आसान कहीं भी कैसे भी मिल जायेगा !
ReplyDeleteमेरा भारत महान ! एक ही कार्ड चले इसी लिये तो आधार कार्ड बना पर........................
ReplyDeleteहमारी पहचान तो आसानी से हो गई थी लेकिन प्रमाण पत्र अभी तक नहीं मिला ! सब गोरख धंधा है !
ReplyDeleteबेहतरीन संग्रहणीय
ReplyDeleteअपनी पहचान साबित करना भी समस्या है .... न जाने कितने कार्ड बनेंगे .... बेकार का सरकारी खर्च ...जिसमें न जाने कितने लोग गंगा नहा जाएंगे ... पेंशन पाने के लिए आदमी को जब यह सबूत देना होता है की वो ज़िंदा है ...कितना हताहत करता होगा ...
ReplyDeleteतंत्र ऐसी बातों में न उलझाए तो आप प्रश्न करने लगेंगे ... इसलिए सरकार उलझा के रखना चाहती है सब को ...
ReplyDeleteहर नई बात के लिए नया पहचानपत्र ..
ऐसे ही छोटे छोटे काम बड़े हो जाते हैं।
Delete"सुना है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को सहज ही पहचान मिल जाती है और इसी देश में जन्मे और बढ़े हुये न जाने कितनों को अपनी पहचान सिद्ध करने में संशय और संदेह के कितने अपमानों से होकर निकलना पड़ता है।"
ReplyDeleteसच सुना बांग्ला देशी एक अदद "वोट" का नाम है।
प्रवीण जी नियम क़ानून में फंसी निर्विवेकी व्यवस्था पर इस से बढ़िया व्यंग्य विनोद और क्या हो सकता है। भारत के हर पढ़े लिखे व्यक्ति की खासकर सरकारी नौकर की आज यही नियति है। बतादें आपको आधार कार्ड के मुगालते में न रहना वह केवल यह प्रमाणित करता है आप वह प्रवीण पांडे हैं जिसके ऊँगली के निशाँ ऐसे हैं। बस और कुछ नहीं। इससे आपकी पते वाली स्थिति कभी भी पुष्ट नहीं होगी।
मेरे पास पास- पोर्ट भी है आधार कार्ड भी ,पैन नम्बर तो खैर है ही।लेकिन इसी आधार कार्ड को मैं यदि दिल्ली में आकर अपना आवासीय पता बताना चाहूँ तो मुमकिन नहीं होगा (इस पर पता मुंबई काहै )पास पोर्ट मेरे पास दो हैं पुराना दिल्ली से ज़ारी हुआ था ,दस साल बाद नया बनवाया वह मुंबई से ज़ारी हुआ है। यहाँ हम अपने बेटे के आवासी हैं वही हमारा धाम है वही हमारे मालिक -ए - मकान हैं पनाहगार हैं। जो उनका है वह हमारा है और वह कमांडर हैं भारतीय नौ सेना में ,मुंबई गोदीवाड़ा में बड़ी हैसियत है उनकी।
हमें अपनी हैसियत के बारे में कोई मुगालता नहीं है। भले हम एचईएस -I सेवा निवृत्त हैं। लेकिन ला -वारिश हैं इस तंत्र में मुंबई से बाहर। मकान हमने कहीं बनवाया नहीं। इसलिए हमारा कोई मुकम्मिल पता ही नहीं है। स्थाई आवास माँ -बाप का था अब न वो ही हैं और न वो आवास। हम हैं परिपूर्ण लावारिश। कभी यहाँ विदेश में कभी वहां विदेश (देश ?)में। भले यहाँ पहचान का कोई संकट नहीं है। हमारे पास वैधानिक पास पोर्ट है भारत सरकार का। ज़िंदा रहने के लिए काफी है।
आवास भी अब उनका बदल गया पास पोर्ट में अनुराधा ,नोफ्रा था और अब डी ब्लाक ,नोफ्रा है। तो साहब वह भी गया काम से। यहाँ लफड़े ही लफड़े हैं कोई सोशल सिक्युरिटी ही नहीं फिर सोशल सिक्युरिटी कार्ड अमरीका जैसा कहाँ से आयेगा ?
काश सारे विश्व में एक पहचान होती..
Deleteबधाई ..चलिए अंततः आधार बन ही गया .....
ReplyDeletean actual presentation of day-to-day illogical problems! formalities and formalities everywhere! can one find any positive support of so called welfare plans of the nation ? An appropriate question you have raised. Good article.
ReplyDeleteऔरों का क्या हाल होता होगा, यह सोचकर पसीना आता है।
Deleteचलो इतनी माथा पच्ची के बाद काम हो ही गया यही बहुत है वरना अपने देश में तो देशवासी संदिग्ध दृष्टि से देखा जाता है और शरणार्थी को यूं ही सब मिल जाता है।
ReplyDelete.रोचक आलेख .......
ReplyDeleteमेरी व्यथा आपको शायद और रोचक लगे.
ReplyDelete१. मेरे DL में उस जगह का पता है जहाँ आज से दस वर्ष पूर्व पापा पोस्टेड थे. सो पता तो छोडिये, सिर्फ चेहरा मिलाने के लिए भी वह उपयुक्त नहीं है, क्योंकि उन दिनों सर पर घने बाल हुआ करते थे.
२. PAN कार्ड पर कोई पता नहीं लिखा होता है, और उस पर भी घने बालों वाली ही तस्वीर है. सन २००५ में बनवाया था.
३. पासपोर्ट पर फोटो तो आज के जैसा ही है(शुक्र है की मैंने बाल उड़ने के बाद बनवाया). मगर टेम्पररी पता कालेज होस्टल का है, और परमानेंट एड्रेस गाँव का है, क्योंकि उन दिनों पटना में कोई पक्का ठिकाना नहीं था. अब गाँव का पता मेरे किसी काम का नहीं है, सो वह भी पता बताने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है.
४. वोटर कार्ड का तो अजीब ही मसला है. वहां पता तो सही है मगर नाम "प्रशांत पियासी" है.. और जेंडर फिमेल. जैसे मैं किसी के खून का प्यासा हूँ... उम्र 14 वर्ष, मैरिटल स्टेटस मैरिड है और पति का नाम के जगह पर मेरे पिता का नाम..
५. पटना वाले परमानेंट एड्रेस के लिए अब क्या किया जाए? तो SBI के पासबुक पर वह पता और पापा का नाम है. पापा के नाम पर बिजली बिल आती है सो वह पता हुआ. और पासपोर्ट पर पापा का नाम और मेरा फोटो दोनों है. और तीनों को मिलकर मैं सिद्ध करता हूँ की वही मेरा पक्का पता है.
६. अब यहाँ के पते के लिए मेरे पास मकानमालिक के साथ किया गया अग्रीमेंट है, जो सरकारी होते हुए भी किसी सरकारी अथवा गैर-सरकारी जगहों पर मान्य नहीं है.
कुल मिलकर यह की मैं दो बार आधार कार्ड बनवाने की कोशिश करने के बाद छोड़ दिया हूँ.. जब जरुरत होगी तब देखा जायेगा.
मगर अब सोच रहा हूँ की आप राजपत्रित अधिकारी हैं ही और आपसे एक बार प्रयोग में आने वाला प्रमाणपत्र ले कर आधार कार्ड बनवाने का एक और जातां कर ली लूँ.. :-)
हे भगवान, आपकी स्थिति तो हम से भी जटिल है। आप आ जाइये, हम आपकी सहायता सहर्ष कर देंगे।
Deleteपहचान के लिये लफ़ड़े हैं।
ReplyDeleteहे भगवान !
ReplyDeleteहमारे अब तक आई आई टी कानपुर का एड्रेस चल रहा है कुछ डोक्युमेन्ट्स में :) ऐसा ही कुछ हुआ था.. जब पास होने के एक साल बाद. वोडाफोन वाले ने कहा था कि आप कहीं रहते हों आई आई टी वाला एड्रेस लिखिए !
मेरे कई डाक्यूमेंट्स में अब भी आई आई टी का एड्रेस चल रहा है.
ReplyDeleteऐसा ही कुछ हुआ था जब पास होने के एक साल बाद फ़ोन वाले ने कहा था... आप कहीं रहते हों. आई आई टी लिखिए हम आपको तभी सिम दे पायेंगे :)