कुछ दिन पहले टाटा स्काई के कुछ चैनलों का प्रसारण बाधित होने लगा। पहले तो लगा कि अधिक वर्षा इसका कारण रहा होगा। किन्तु जब धूप छिटक आयी और फिर भी चैनल बाधित रहे तो टाटा स्काई वालों को फ़ोन किया गया। फ़ोन पर समस्या बताने पर उनके प्रतिनिधि ने बताया कि वे प्रसारण की अधिक उन्नत तकनीक की ओर जा रहे हैं, सेट टॉप बॉक्स बदलने से सारे चैनल पूर्ववत आने लगेंगे। यदि आप अभी बदलवाना चाहें तो तीन घंटे के अन्दर हमारे कार्यकर्ता आकर बदल देंगे। साथ ही साथ उन्होंने मुझे दो और सेट टॉप बाक्सों का प्रस्ताव भी दिया। पहला टाटा स्काई एचडी का और दूसरा टाटा स्काई प्लस एचडी का। एचडी में कुछ चैनल अधिक स्पष्टता में आयेंगे, प्लस में आपके पास कार्यक्रमों को रिकार्ड करने की व्यवस्था रहेगी जिससे वे बाद में सुविधानुसार देखें जा सकें। मात्र एचडी में हज़ार रुपये लग रहे थे, प्लस में पाँच हज़ार।
कार्यक्रमों को अधिक स्पष्टता से देखने का अधिक मोह नहीं रहा है, पर अपने एक मित्र के यहाँ पर एचडी चैनल देखकर प्रभावित अवश्य हुआ था। एक क्रिकेट मैच चल रहा था और लग रहा था कि मैदान के अन्दर खड़े होकर मैच देख रहे हैं। यद्यपि हमें तीसरे अम्पायर का कार्य नहीं करना था पर क्रिकेट का आनन्द एचडी में और बढ़ जाता है। साथ ही साथ एचडी फ़िल्मों में भी डायरेक्टर द्वारा छिटकाये रंगों को आप मल्टीप्लेक्स के समकक्ष स्पष्टता में देख पाते हैं। डिस्कवरी और हिस्ट्री आदि चैनल जो हमें अत्यन्त भाते है, वे भी एचडी में ही अपने पूरे रंग में आते हैं। उत्सुकता मन में थी ही, प्रस्ताव आते ही मन के अनुकूल हो गया, हज़ार रुपये जेब से निकल भागने को तत्पर हो गये।
तभी मन ने कहा, जब चिन्तन द्वार खोले ही हैं तो प्लस के प्रस्ताव पर भी विचार कर लो। कार्यक्रम को रिकार्ड कर बाद में देखने की व्यवस्था में टीवी अधिक देखे जाने की संभावना दिख रही थी और प्रथम दृष्ट्या प्लस घर के लिये उपयोगी नहीं लग रहा था। यही नहीं, उसमें एक हज़ार के स्थान पर पाँच हज़ार रुपये लग रहे थे। पर पता नहीं क्या हुआ, पूरे टीवी प्रकरण को समग्रता से सोचने लगा, निर्णय प्रक्रिया में श्रीमतीजी और बच्चों की सहमति लेने का मन बन आया।
बच्चे सदा से ही प्लस से अभिभूत रहे हैं, कॉलोनी में एक दो घरों में होने के कारण पुराने छूट गये कार्यक्रमों को मित्रों के साथ निपटा आने की कला में सिद्धहस्त रहे हैं दोनों बच्चे। इस सुविधा के लिये वे कुछ भी करने को तैयार थे, अधिक टीवी न देखने के लिये तो तुरन्त ही तैयार हो गये दोनों। मेरी एक और समस्या थी उनसे, रात में टीवी देखने की। रात में सबकी पसन्द के कार्यक्रम देखने के क्रम में सोने में देर हो जाती थी, सो सुबह उठने में कठिनाई। रात भर के कार्यक्रमों का प्रभाव यह होता था कि सुबह सब कुछ आपाधापी में होता था। दोपहर में बच्चे इसलिये नहीं पढ़ते हैं कि विद्यालय से पढ़कर आये हैं, रात में इसलिये नहीं पढ़ते हैं कि उनके पसन्द के कार्यक्रम आ रहे होते हैं। बीच के समय में सायं आती है, तो उसमें किसी का इतना साहस कि उन्हें खेलने से मना कर दे। पढ़ाई समयाभाव में तरसती रहती है। पढ़ाई कभी आधे घंटे के लिये, कभी डाँट से, कभी चिरौरी कर के, घर में सबसे बेचारी सी। उनकी उत्सुकता देख कर मेरे अन्दर का स्नेहिल और अनुशासनात्मक पिता एक साथ जाग उठा। संतुलन की संभावना देखकर एक व्यापारी की तरह बोला, ठीक है, रात के कार्यक्रम रिकार्ड कर दोपहर में देखना होगा, खेलने के बाद पढ़ाई और समय से सुलाई। हाँ, सहर्ष मान गये दोनों बच्चे, वचन दे बैठे। वैसे रात में टीवी देखना तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता है, न ढंग से लेखन हो पाता है और न ढंग से नींद आ पाती है। अच्छा हुआ एक तीर में दोनों ध्येय सध गये।
पिछली गर्मी की छुट्टी में एक और समस्या हुयी थी। मेरे पिताजी को समाचार आदि देखने में रुचि रहती है और बच्चों को कार्टून आदि में। एक टीवी रहने पर दोनों पीढ़ियों के बीच घर्षण बना रहता था। हम और हमारी श्रीमतीजी के द्वारा टीवी से वनवास लेने के बाद भी बहुधा समस्या उलझ जाती थी। या तो बच्चे क्रोधित हो जाते या पिताजी बच्चों को बिगाड़ने के दोष मढ़ने लगते। अनुशासन व प्यार के द्वन्द्व में मस्तिष्क पूरी तरह घनघना गया था। दूसरा टीवी और दूसरा कनेक्शन लेना तो पूरी तरह व्यर्थ था, वांछित शान्ति तब आयी जब पिताजी को अपने मित्रों की याद आने लगी। लगा कि प्लस लेने से यह समस्या भी सुलझ जायेगी। जिसको देखना होगा, देखेगा, दूसरे का कार्यक्रम रिकार्ड हो जायेगा, बाद में देखने के लिये।
मेरी पसन्द के कई कार्यक्रम या तो ऑफ़िस के समय में आते हैं या तो सोने के समय में। डीडी भारती, डिस्कवरी, हिस्ट्री आदि के कई कार्यक्रम ऐसे होते हैं जो बार बार देखने का मन करता है। न रात में जगना हो पाता है और न ही उसके पुनर्प्रसारण की प्रतीक्षा करना। सायं और रात को जो समय मिलता, उसमें टीवी या तो बच्चे हथियाये रहते या तो श्रीमतीजी। हमें भी लगने लगा कि हमें भी इस डब्बे से अपनी पसन्द के गुणवत्ता भरे कार्यक्रम देखने को मिल जायेंगे। साथ ही साथ कई नई फ़िल्में भी टीवी पर आती रहती हैं, एचडी में उन्हें घर में ही देख लेने से मल्टीप्लेक्स जाने का व्यय भी कम होने की संभावना भी दिखने लगी।
श्रीमतीजी घर का सारा काम करने के बाद घर में भी खाली रहती हैं, उनसे भी कहा कि यदि हम प्लस लेते हैं तो आप भी अपने कार्यक्रम दोपहर में देख लिया करें और सायं का समय परिवार के साथ और रात का भोजन टीवी के बिना, गुणवत्ता भरा। एक तरह से घर के सारे लोगों के लिये लाभकारी होने वाली थी, प्लस की यह अवधारणा।
एक और लाभ होता है रिकॉर्डेड कार्यक्रम देखने का, बीच में आये प्रचारों को आप बढ़ा सकते हैं। यदि गणना की जाये तो हर कार्यक्रम में लगभग ३० प्रतिशत समय उन प्रचारों से भरा रहता है जिन्हें हम देखना ही नहीं चाहते हैं। इस प्रकार हमारे समय की बहुत बचत हो सकती है। यदि आप एक दिन में एक घंटे भी टीवी देखें तो पूरे वर्ष में लगभग १०० घंटे की बचत निश्चित है। पूरे परिवार के लिये एक वर्ष में ४०० घंटे की बचत के लिये एक बार दिये अतिरिक्त ४००० रुपये अधिक नहीं हैं।
इन लाभों को देखते हुये सामूहिक और पारिवारिक निर्णय यह लिया गया कि टाटा स्काई प्लस एचडी लिया जाये और परिवार की जीवनशैली को एक नया रूप दिया जाये। एक ऐसा स्वरूप जिसमें टीवी कार्यक्रम का समय हमें आदेश न दे, बच्चों को पढ़ाई के लम्बे कालखण्ड मिले, घर को लम्बी शान्तिकाल मिले, ठूँसे गये कार्यक्रम के स्थान पर गुणवत्ता भरे कार्यक्रम मिलें, कार्यक्रमों के दृश्य अधिक स्पष्ट दिखें, सप्ताहन्त में साथ बैठ कोई फ़िल्म देखी जाये, साथ बैठ बिना टीवी के व्यवधान के रात में खाना खाया जाये, और ऐसे न जाने सुधरते जीवन के कितने आकार गढ़ें।
मेरे दो ऐसे मित्र हैं जिन्होंने अपने घर में टीवी को धँसने नहीं दिया है। हम उनके दृढ़ निश्चय से प्रभावित तो रहे हैं पर उन जैसा साहस नहीं कर पाये हैं। टीवी से होने वाले लाभों को अधिकतम उपयोग कर सके और साथ ही होने वाली हानियों को न्यूनतम कर सके, यही बस प्रयास रहा है।
टाटा स्काई के प्रतिनिधि को फ़ोन करके हमने अपना निर्णय बता दिया। उनकी त्वरित सेवा देख कर मैं दंग रह गया, तीन घंटे के अन्दर हम एक एचडी चैनल देख रहे थे और दूसरे को रिकॉर्ड कर रहे थे। श्रीमतीजी बड़ी प्रसन्न थीं, करवा चौथ वाले दिन उन्हें रंगभरा उपहार मिल गया था। उन्होंने अपने उपहार का त्याग कर परिवार के लिये टाटा स्काई प्लस एचडी को वरीयता दी है। परिवार का वातावरण और भी रंग बिरंगा हो गया है।
हाई डेफिनिशन, गजब की क्वालिटी |
तभी मन ने कहा, जब चिन्तन द्वार खोले ही हैं तो प्लस के प्रस्ताव पर भी विचार कर लो। कार्यक्रम को रिकार्ड कर बाद में देखने की व्यवस्था में टीवी अधिक देखे जाने की संभावना दिख रही थी और प्रथम दृष्ट्या प्लस घर के लिये उपयोगी नहीं लग रहा था। यही नहीं, उसमें एक हज़ार के स्थान पर पाँच हज़ार रुपये लग रहे थे। पर पता नहीं क्या हुआ, पूरे टीवी प्रकरण को समग्रता से सोचने लगा, निर्णय प्रक्रिया में श्रीमतीजी और बच्चों की सहमति लेने का मन बन आया।
प्लस में रिकार्डिंग की व्यवस्था |
पिछली गर्मी की छुट्टी में एक और समस्या हुयी थी। मेरे पिताजी को समाचार आदि देखने में रुचि रहती है और बच्चों को कार्टून आदि में। एक टीवी रहने पर दोनों पीढ़ियों के बीच घर्षण बना रहता था। हम और हमारी श्रीमतीजी के द्वारा टीवी से वनवास लेने के बाद भी बहुधा समस्या उलझ जाती थी। या तो बच्चे क्रोधित हो जाते या पिताजी बच्चों को बिगाड़ने के दोष मढ़ने लगते। अनुशासन व प्यार के द्वन्द्व में मस्तिष्क पूरी तरह घनघना गया था। दूसरा टीवी और दूसरा कनेक्शन लेना तो पूरी तरह व्यर्थ था, वांछित शान्ति तब आयी जब पिताजी को अपने मित्रों की याद आने लगी। लगा कि प्लस लेने से यह समस्या भी सुलझ जायेगी। जिसको देखना होगा, देखेगा, दूसरे का कार्यक्रम रिकार्ड हो जायेगा, बाद में देखने के लिये।
मेरी पसन्द के कई कार्यक्रम या तो ऑफ़िस के समय में आते हैं या तो सोने के समय में। डीडी भारती, डिस्कवरी, हिस्ट्री आदि के कई कार्यक्रम ऐसे होते हैं जो बार बार देखने का मन करता है। न रात में जगना हो पाता है और न ही उसके पुनर्प्रसारण की प्रतीक्षा करना। सायं और रात को जो समय मिलता, उसमें टीवी या तो बच्चे हथियाये रहते या तो श्रीमतीजी। हमें भी लगने लगा कि हमें भी इस डब्बे से अपनी पसन्द के गुणवत्ता भरे कार्यक्रम देखने को मिल जायेंगे। साथ ही साथ कई नई फ़िल्में भी टीवी पर आती रहती हैं, एचडी में उन्हें घर में ही देख लेने से मल्टीप्लेक्स जाने का व्यय भी कम होने की संभावना भी दिखने लगी।
श्रीमतीजी घर का सारा काम करने के बाद घर में भी खाली रहती हैं, उनसे भी कहा कि यदि हम प्लस लेते हैं तो आप भी अपने कार्यक्रम दोपहर में देख लिया करें और सायं का समय परिवार के साथ और रात का भोजन टीवी के बिना, गुणवत्ता भरा। एक तरह से घर के सारे लोगों के लिये लाभकारी होने वाली थी, प्लस की यह अवधारणा।
एक और लाभ होता है रिकॉर्डेड कार्यक्रम देखने का, बीच में आये प्रचारों को आप बढ़ा सकते हैं। यदि गणना की जाये तो हर कार्यक्रम में लगभग ३० प्रतिशत समय उन प्रचारों से भरा रहता है जिन्हें हम देखना ही नहीं चाहते हैं। इस प्रकार हमारे समय की बहुत बचत हो सकती है। यदि आप एक दिन में एक घंटे भी टीवी देखें तो पूरे वर्ष में लगभग १०० घंटे की बचत निश्चित है। पूरे परिवार के लिये एक वर्ष में ४०० घंटे की बचत के लिये एक बार दिये अतिरिक्त ४००० रुपये अधिक नहीं हैं।
इन लाभों को देखते हुये सामूहिक और पारिवारिक निर्णय यह लिया गया कि टाटा स्काई प्लस एचडी लिया जाये और परिवार की जीवनशैली को एक नया रूप दिया जाये। एक ऐसा स्वरूप जिसमें टीवी कार्यक्रम का समय हमें आदेश न दे, बच्चों को पढ़ाई के लम्बे कालखण्ड मिले, घर को लम्बी शान्तिकाल मिले, ठूँसे गये कार्यक्रम के स्थान पर गुणवत्ता भरे कार्यक्रम मिलें, कार्यक्रमों के दृश्य अधिक स्पष्ट दिखें, सप्ताहन्त में साथ बैठ कोई फ़िल्म देखी जाये, साथ बैठ बिना टीवी के व्यवधान के रात में खाना खाया जाये, और ऐसे न जाने सुधरते जीवन के कितने आकार गढ़ें।
मेरे दो ऐसे मित्र हैं जिन्होंने अपने घर में टीवी को धँसने नहीं दिया है। हम उनके दृढ़ निश्चय से प्रभावित तो रहे हैं पर उन जैसा साहस नहीं कर पाये हैं। टीवी से होने वाले लाभों को अधिकतम उपयोग कर सके और साथ ही होने वाली हानियों को न्यूनतम कर सके, यही बस प्रयास रहा है।
टाटा स्काई के प्रतिनिधि को फ़ोन करके हमने अपना निर्णय बता दिया। उनकी त्वरित सेवा देख कर मैं दंग रह गया, तीन घंटे के अन्दर हम एक एचडी चैनल देख रहे थे और दूसरे को रिकॉर्ड कर रहे थे। श्रीमतीजी बड़ी प्रसन्न थीं, करवा चौथ वाले दिन उन्हें रंगभरा उपहार मिल गया था। उन्होंने अपने उपहार का त्याग कर परिवार के लिये टाटा स्काई प्लस एचडी को वरीयता दी है। परिवार का वातावरण और भी रंग बिरंगा हो गया है।