जब कभी भी एप्पल का नया उत्पाद आने वाला होता है, अपेक्षाओं की एक लम्बी सूची बन जाती है। हो भी क्यों न, किसी भी क्षेत्र में नायकों से यह आशा अवश्य रहती है कि तकनीक के अग्रतम शोधों के निष्कर्ष हमारे हाथों में होंगे। हर बार बात घूम फिर के तीन चार मानकों पर ठहर जाती है। उन्हीं के आधार पर बहसें होती हैं, बहसें क्या विधिवत युद्ध होते हैं, दो तीन मुख्य पाले रहते हैं। अब १० सितम्बर को निष्कर्ष चाहे जो निकले, पर उत्पाद आने के एक माह पहले से ज्ञानचक्षु इतने खुलने लगते हैं कि मन करता है कि एक शोधपत्र ही लिख डालें। शोधपत्र तो नहीं पर उन मानकों की चर्चा अवश्य होनी चाहिये, जो हम सबको समझ में आते हैं और हमारे उपयोग को प्रभावित भी करते हैं।
डेक्सटॉप, लैपटॉप, टैबलेट और मोबाइल, यही चार प्रमुख श्रेणियाँ हैं। डेक्सटॉप अब बीते समय की चीज़ होने वाली है और उसका उपयोग सीमित और विशिष्ट रह गया है। उसमें तकनीकी विकास तो हो रहा है पर वह चर्चा का विशेष बिन्दु नहीं। लैपटॉप में मैकबुक एयर ने पहले ही हल्केपन और बैटरी समय के सशक्त मानक स्थापित कर दिये है और शेष लैपटॉप निर्माता उसी का अनुसरण कर रहे हैं। दो साल पहले एक किलो का मैकबुक एयर लिया था, अभी तक उस मूल्य में उतना हल्का और उतनी अधिक बैटरी समय का कोई और लैपटॉप नहीं दिखा है।
संघर्ष केवल दो श्रेणियों में रह जाता है, टैबलेट और मोबाइल। अपेक्षाओं के बादल इन्हीं दो के ऊपर सर्वाधिक मँडराते हैं। आईपैड मिनी आने के बाद आईपैड पर उत्सुकता कम हो चली है। बहस आईपैड मिनी और आईफ़ोन के नये मॉडलों पर केन्द्रित हो चुकी है। तकनीक की श्रेष्ठता वैसे भी छोटे आकार में अधिक क्षमता भरने की होती है। इस पोस्ट में उन क्षमताओं और उनके तकनीकी पक्ष पर ही चर्चा सीमित रहेगी।
एप्पल के उत्पाद गुणवत्ता के साथ ही साथ अपने अधिक मूल्य के लिये भी जाने जाते हैं, लोग चाहकर भी उन्हें नहीं ख़रीद पाते हैं, यही उसकी आलोचना और प्रतियोगी उत्पादों की ओर मुड़ जाने का प्राथमिक आधार है। खोजीं पत्रकार बताते हैं कि एप्पल इस बार आईफ़ोन ५सी के नाम से नया मॉडल लाने वाला है जिसकी काया प्लास्टिक की होगी। एप्पल अपनी गुणवत्ता की छवि को कितना खोयेगा, क़ीमत कितनी कम करेगा और किन किन मानकों पर समझौता करेगा, इस बारे में ढेरों संभावनायें व्यक्त की जा रही हैं। आईफ़ोन इस क़दम से कितनी पहुँच बढ़ा पायेगा, यह १० सितम्बर को ही पता चलेगा, पर श्रेष्ठता के अन्य मानकों पर एप्पल अपने आप को कितना सिद्ध करता है यह उसकी विशिष्ट तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा। पहले आईफ़ोन और फिर आईपैड मिनी का विश्लेषण करते हैं।
४ इंच की स्क्रीन, ११२ ग्राम भार, ३२६ पीपीआई की स्क्रीन स्पष्टता और लगभग ८ घंटे की बैटरी पर पहुँचने के बाद आईफ़ोन ५ के मॉडल में कुछ अधिक जोड़ पाने की संभावना नहीं दिखती है। प्रतियोगिता में सैमसंग का गैलैक्सी एस४ (५ इंच की स्क्रीन, १३० ग्राम भार, ४४१ पीपीआई और १६ घंटे की बैटरी) है और एचटीसी वन(४.७ इंच की स्क्रीन, १४३ ग्राम भार, ४६९ पीपीआई और १२ घंटे की बैटरी) है। जहाँ दोनो प्रतियोगी स्क्रीन की आकार, स्पष्टता और बैटरी में श्रेष्ठ हैं, वहीं उनका आकार और भार भी बढ़ा हुआ है। प्रश्न यह है कि एप्पल को अपने प्रतियोगियों की नक़ल करनी चाहिये या अपने मानक स्वयं नियत करने चाहिये, विशेषकर उन क्षेत्रों में जिसमें वह सशक्त है।
यदि स्क्रीन का आकार बड़ा होगा तो अधिक बैटरी खायेगी, यदि स्पष्टता अधिक होगी तब भी अधिक बैटरी का उपयोग होगा। अधिक बैटरी के लिये न केवल भार बढ़ेगा वरन आकार भी बढ़ेगा। यदि स्क्रीन का आकार और पीपीआई आवश्यकतानुसार निर्धारित कर दें तो मोबाइल का भार न्यूनतम किया जा सकता है। तीनों फ़ोन उठाकर देखे हैं, उपयोग की सहजता में आईफ़ोन५ का कोई प्रतियोगी नहीं। उसे एक हाथ से न केवल पकड़ सकते हैं वरन अँगूठे से टाइप भी कर सकते हैं। साथ ही वह पतला इतना है कि कहीं पर भी सरलता से समा जाता है।
मुझे नहीं लगता है कि एप्पल अपने प्रतियोगियों की नक़ल करने में अपने इस सशक्त पक्ष को खोना चाहेगी। स्क्रीन के आकार में ४ इंच के ऊपर जाने में कोई विशेष लाभ नहीं दिखता है, बड़े आकार के फ़ोन न केवल भद्दे लगते हैं वरन अनुभव में भी कुछ लाभ नहीं देते हैं। फ़ोन के प्राथमिक कार्यों के अतिरिक्त वेब के पेज बड़े देखने में, गेम खेलने में और वीडियो देखने में ही बड़ी स्क्रीन का उपयोग है। शेष सारे कार्य ४ इंच की स्क्रीन से भलीभाँति सम्पादित होते हैं। २८७ पीपीआई की स्पष्टता जिसे रेटिना डिस्प्ले भी कहते हैं, उसके ऊपर की स्पष्टता को आँख अन्तर नहीं कर पाती है। मुझे नहीं लगता है कि आईफ़ोन को वर्तमान ३२६ पीपीआई से ऊपर ले जाने का कोई भी प्रयास होगा।
अब शेष रहे भार और बैटरी, एप्पल अपनी तकनीकी शोधों और श्रेष्ठता का उपयोग या तो आईफ़ोन का भार कम करने में या बैटरी बढ़ाने में करेगा। वह जो भी करेगा और जितना करेगा, अपने प्रतियोगियों से उतनी बढ़त बना लेगा।
चार क्षेत्र हैं, जिनमें किये गये तकनीकी शोध एप्पल को लाभ पहुँचा सकते हैं। पहला है स्क्रीन की मोटाई और कम करना, दूसरा है नये तरह की बैटरी की तकनीक लेकर आना, तीसरा है प्रोसेसर और रेडियो एन्टेना की ऊर्जा की खपत कम करना और चौथा है सॉफ़्टवेयर को सरलीकृत कर व्यर्थ होने वाला समय और ऊर्जा बचाना। चारों का उपयोग कर भार कम किया जा सकता है और बैटरी का समय बढ़ाया जा सकता है। इन शोधों से न केवल आईफ़ोन लाभान्वित होगा वरन आईपैड मिनी भी अपने प्रतियोगियों से आगे निकलेगा।
आईपैड मिनी का प्रमुख प्रतियोगी नेक्सस७ है। ७.९ इंच की स्क्रीन, ३०८ ग्राम भार, १६५ पीपीआई और १२ घंटे की बैटरी पर आईपैड मिनी के पास अपनी स्क्रीन की स्पष्टता बढ़ाने का अवसर भी है। मुझे डर है कि कहीं पीपीआई बढ़ाने के व्यग्रता में एप्पल अपने तकनीकी लाभ न गँवा बैठे। बड़े आकार की स्क्रीनों में स्पष्टता अधिक महत्व नहीं रखती है और एप्पल को सारा तकनीकी लाभ इसी पर न्योछावर नहीं कर देना चाहिये। मैं पिछले आठ माह से आईपैडमिनी उपयोग में ला रहा हूँ, सारा कार्य इसी में करता हूँ, पर कभी ऐसा लगा नहीं कि इसमें स्पष्टता बढ़ाने की कोई आवश्यकता है। यहाँ पर भी एप्पल का प्रयास भार कम करने का और बैटरी समय बढ़ाने का होना चाहिये।
१० सितम्बर पर न केवल मेरी वरन एप्पल के प्रतियोगियों की पूर्ण दृष्टि रहेगी। जो भी निष्कर्ष हों, लाभ उपभोक्ता का होगा। मानकों की एक स्वस्थ प्रतियोगिता में, तकनीक का विकास ही होता है, नहीं तो किसने सोचा था कि अपने प्रथम कम्प्यूटर पूर्वज से लाख गुना छोटा और लाख गुना अधिक शक्तिशाली मोबाइल हमारी पीढ़ी को देखने को मिलेगा। आइये १० सितम्बर की प्रतीक्षा करते है।
डेक्सटॉप, लैपटॉप, टैबलेट और मोबाइल, यही चार प्रमुख श्रेणियाँ हैं। डेक्सटॉप अब बीते समय की चीज़ होने वाली है और उसका उपयोग सीमित और विशिष्ट रह गया है। उसमें तकनीकी विकास तो हो रहा है पर वह चर्चा का विशेष बिन्दु नहीं। लैपटॉप में मैकबुक एयर ने पहले ही हल्केपन और बैटरी समय के सशक्त मानक स्थापित कर दिये है और शेष लैपटॉप निर्माता उसी का अनुसरण कर रहे हैं। दो साल पहले एक किलो का मैकबुक एयर लिया था, अभी तक उस मूल्य में उतना हल्का और उतनी अधिक बैटरी समय का कोई और लैपटॉप नहीं दिखा है।
संघर्ष केवल दो श्रेणियों में रह जाता है, टैबलेट और मोबाइल। अपेक्षाओं के बादल इन्हीं दो के ऊपर सर्वाधिक मँडराते हैं। आईपैड मिनी आने के बाद आईपैड पर उत्सुकता कम हो चली है। बहस आईपैड मिनी और आईफ़ोन के नये मॉडलों पर केन्द्रित हो चुकी है। तकनीक की श्रेष्ठता वैसे भी छोटे आकार में अधिक क्षमता भरने की होती है। इस पोस्ट में उन क्षमताओं और उनके तकनीकी पक्ष पर ही चर्चा सीमित रहेगी।
एप्पल के उत्पाद गुणवत्ता के साथ ही साथ अपने अधिक मूल्य के लिये भी जाने जाते हैं, लोग चाहकर भी उन्हें नहीं ख़रीद पाते हैं, यही उसकी आलोचना और प्रतियोगी उत्पादों की ओर मुड़ जाने का प्राथमिक आधार है। खोजीं पत्रकार बताते हैं कि एप्पल इस बार आईफ़ोन ५सी के नाम से नया मॉडल लाने वाला है जिसकी काया प्लास्टिक की होगी। एप्पल अपनी गुणवत्ता की छवि को कितना खोयेगा, क़ीमत कितनी कम करेगा और किन किन मानकों पर समझौता करेगा, इस बारे में ढेरों संभावनायें व्यक्त की जा रही हैं। आईफ़ोन इस क़दम से कितनी पहुँच बढ़ा पायेगा, यह १० सितम्बर को ही पता चलेगा, पर श्रेष्ठता के अन्य मानकों पर एप्पल अपने आप को कितना सिद्ध करता है यह उसकी विशिष्ट तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा। पहले आईफ़ोन और फिर आईपैड मिनी का विश्लेषण करते हैं।
४ इंच की स्क्रीन, ११२ ग्राम भार, ३२६ पीपीआई की स्क्रीन स्पष्टता और लगभग ८ घंटे की बैटरी पर पहुँचने के बाद आईफ़ोन ५ के मॉडल में कुछ अधिक जोड़ पाने की संभावना नहीं दिखती है। प्रतियोगिता में सैमसंग का गैलैक्सी एस४ (५ इंच की स्क्रीन, १३० ग्राम भार, ४४१ पीपीआई और १६ घंटे की बैटरी) है और एचटीसी वन(४.७ इंच की स्क्रीन, १४३ ग्राम भार, ४६९ पीपीआई और १२ घंटे की बैटरी) है। जहाँ दोनो प्रतियोगी स्क्रीन की आकार, स्पष्टता और बैटरी में श्रेष्ठ हैं, वहीं उनका आकार और भार भी बढ़ा हुआ है। प्रश्न यह है कि एप्पल को अपने प्रतियोगियों की नक़ल करनी चाहिये या अपने मानक स्वयं नियत करने चाहिये, विशेषकर उन क्षेत्रों में जिसमें वह सशक्त है।
यदि स्क्रीन का आकार बड़ा होगा तो अधिक बैटरी खायेगी, यदि स्पष्टता अधिक होगी तब भी अधिक बैटरी का उपयोग होगा। अधिक बैटरी के लिये न केवल भार बढ़ेगा वरन आकार भी बढ़ेगा। यदि स्क्रीन का आकार और पीपीआई आवश्यकतानुसार निर्धारित कर दें तो मोबाइल का भार न्यूनतम किया जा सकता है। तीनों फ़ोन उठाकर देखे हैं, उपयोग की सहजता में आईफ़ोन५ का कोई प्रतियोगी नहीं। उसे एक हाथ से न केवल पकड़ सकते हैं वरन अँगूठे से टाइप भी कर सकते हैं। साथ ही वह पतला इतना है कि कहीं पर भी सरलता से समा जाता है।
मुझे नहीं लगता है कि एप्पल अपने प्रतियोगियों की नक़ल करने में अपने इस सशक्त पक्ष को खोना चाहेगी। स्क्रीन के आकार में ४ इंच के ऊपर जाने में कोई विशेष लाभ नहीं दिखता है, बड़े आकार के फ़ोन न केवल भद्दे लगते हैं वरन अनुभव में भी कुछ लाभ नहीं देते हैं। फ़ोन के प्राथमिक कार्यों के अतिरिक्त वेब के पेज बड़े देखने में, गेम खेलने में और वीडियो देखने में ही बड़ी स्क्रीन का उपयोग है। शेष सारे कार्य ४ इंच की स्क्रीन से भलीभाँति सम्पादित होते हैं। २८७ पीपीआई की स्पष्टता जिसे रेटिना डिस्प्ले भी कहते हैं, उसके ऊपर की स्पष्टता को आँख अन्तर नहीं कर पाती है। मुझे नहीं लगता है कि आईफ़ोन को वर्तमान ३२६ पीपीआई से ऊपर ले जाने का कोई भी प्रयास होगा।
अब शेष रहे भार और बैटरी, एप्पल अपनी तकनीकी शोधों और श्रेष्ठता का उपयोग या तो आईफ़ोन का भार कम करने में या बैटरी बढ़ाने में करेगा। वह जो भी करेगा और जितना करेगा, अपने प्रतियोगियों से उतनी बढ़त बना लेगा।
चार क्षेत्र हैं, जिनमें किये गये तकनीकी शोध एप्पल को लाभ पहुँचा सकते हैं। पहला है स्क्रीन की मोटाई और कम करना, दूसरा है नये तरह की बैटरी की तकनीक लेकर आना, तीसरा है प्रोसेसर और रेडियो एन्टेना की ऊर्जा की खपत कम करना और चौथा है सॉफ़्टवेयर को सरलीकृत कर व्यर्थ होने वाला समय और ऊर्जा बचाना। चारों का उपयोग कर भार कम किया जा सकता है और बैटरी का समय बढ़ाया जा सकता है। इन शोधों से न केवल आईफ़ोन लाभान्वित होगा वरन आईपैड मिनी भी अपने प्रतियोगियों से आगे निकलेगा।
आईपैड मिनी का प्रमुख प्रतियोगी नेक्सस७ है। ७.९ इंच की स्क्रीन, ३०८ ग्राम भार, १६५ पीपीआई और १२ घंटे की बैटरी पर आईपैड मिनी के पास अपनी स्क्रीन की स्पष्टता बढ़ाने का अवसर भी है। मुझे डर है कि कहीं पीपीआई बढ़ाने के व्यग्रता में एप्पल अपने तकनीकी लाभ न गँवा बैठे। बड़े आकार की स्क्रीनों में स्पष्टता अधिक महत्व नहीं रखती है और एप्पल को सारा तकनीकी लाभ इसी पर न्योछावर नहीं कर देना चाहिये। मैं पिछले आठ माह से आईपैडमिनी उपयोग में ला रहा हूँ, सारा कार्य इसी में करता हूँ, पर कभी ऐसा लगा नहीं कि इसमें स्पष्टता बढ़ाने की कोई आवश्यकता है। यहाँ पर भी एप्पल का प्रयास भार कम करने का और बैटरी समय बढ़ाने का होना चाहिये।
१० सितम्बर पर न केवल मेरी वरन एप्पल के प्रतियोगियों की पूर्ण दृष्टि रहेगी। जो भी निष्कर्ष हों, लाभ उपभोक्ता का होगा। मानकों की एक स्वस्थ प्रतियोगिता में, तकनीक का विकास ही होता है, नहीं तो किसने सोचा था कि अपने प्रथम कम्प्यूटर पूर्वज से लाख गुना छोटा और लाख गुना अधिक शक्तिशाली मोबाइल हमारी पीढ़ी को देखने को मिलेगा। आइये १० सितम्बर की प्रतीक्षा करते है।
शुभप्रभात
ReplyDeleteवाद-विवाद के लिए
ज्ञान वर्द्धक आलेख
सुन्दर ज्ञानवर्धक आलेख |आभार सर जी |
ReplyDeleteतकनिकी लेख काफी ज्ञानवर्धक होता है तथा समय के साथ होने वाले बदलाव से हम भी वाकिफ हो जाते है ……. धन्यवाद आपका।।।।।
ReplyDeleteमेरे पास htc है पर मैं उसका समुचित उपयोग नहीं कर पाती । पिछले दिनों जब मेरा मोबाइल गुम गया था उसके बाद इसे खरीदी हूँ । दो-तीन दिनों तक तो मैं उसे लैण्ड-लाइन की तरह यूज़ करती रही फिर अब किसी तरह अपना काम चला रही हूँ । पता नहीं लोग कैसे इतना अच्छा आलेख लिख लेते हैं ?
ReplyDeleteहमें उत्पाद से अधिक आपके मूल्यांकन की प्रतीक्षा है.
ReplyDeleteNice to read about it!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 8/09/2013 को मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर ....ललित चाहार
ReplyDeleteहम तो अभी खरीद नहीं रहे, लेकिन जो खरीदने वाले हैं उनके लिए ये बहुत उपयोगी है!!!कुछ लोग तो आपके इस पोस्ट का इंतजार कर रहे होंगे :) :)
ReplyDeleteनिश्चय ही मोबाइल व टैबलेट जगत में विगत कुछ वर्षों से कड़ी व्यावसायिक प्रतियोगिता के फलस्वरूप इनके विभिन्न ब्रांड के प्रोडक्ट, एप्पल या सैमसंग या एचटीसी या कोई अन्य, सभी में चमत्कारी व उच्चकोटि की गुणवत्ता व उपभोक्ता की सहूलियत में सुधार हुआ है, जो निश्चय ही अंततः उपभोक्ताओं हेतु सुखद व फायदेमंद है। मेरे समझ में तो अब सभी प्रांतों के लिए ही आगे की और सबसे कठिन चुनौती है बैटरी की ड्यूरेबिलिटी व प्रोडक्ट की वीयर व टीयर क्षमता,जैसे उपकरण के अचानक फर्श पर गिर जाने अथवा इसके दुर्घटना वश पानी में गिर जाने पर भी न्यूनतम हानि की अंदरूनी क्षमता ताकि मेरे जैसे लापरवाह उपभोक्ता, जो अपने उपकरण की हैंडलिंग में थोड़ा लापरवाह हैं, भी बेझिझक उपयोग कर सकें। मेरी समझ में नोकिया का अपने उपकरणों में इन पक्ष की मजबूती का अनुभव, नये प्रोडक्ट के डिजाइन सुधार में निश्चय ही काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन जानकारी दी है आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बेहतरीन शोधपूर्ण आलेख।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी..... इनके अपने मानक हैं पर बाज़ार के हिसाब से शायद कुछ बदलाव करें भी ....
ReplyDeleteस्मार्ट वाच मुझे भी लेनी है :)
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !!
ReplyDeleteबढिया जानकारी दी है..लगता है बहुत उपयोगी होगा..आभार
ReplyDeleteमैं तो आज ही लेने जा रही हूँ. अपने आई फ़ोन का मोह वैसे भी नहीं छोड़ पा रही थी. आपने और बड़ा दिया:) अब आई फ़ोन ५ ही ले आते हैं.
ReplyDelete१० सितम्बर तक क्या इंतज़ार करना , वैसे भी 5c आएगा तो बहुत महंगा ही होगा.
जानकारीप्रद आलेख को छोटे-छोटे वाक्यों में आकर्षक तरीके से डाला है। तकनीक के प्रति आपके प्रेम को भी अभिव्यक्त करता प्रतीत होता है यह आलेख।
ReplyDeleteBahut acchi jaankari...
ReplyDeleteबढिया आलेख ...
ReplyDeleteकई बार एप्पल खाते-खाते करेला खा गया :)
ReplyDeleteनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-09-2013) के चर्चा मंच -1362 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteघँणी टक्निकल पोस्ट हैंजी। :)
ReplyDeleteप्रवीण भाई इस बार का टाइटल पढ़ कर बचपन में गलियों में जो नारे लगाया करते थे, वो याद आ गया
ReplyDelete"हमारा नेता कैसा हो " :)
इंतजार मुझे भी है , देखते हैं उम्मीद पर खरा उतरता है या नहीं .
ReplyDeleteI'm waiting for that too. Apple is Apple :)
ReplyDeleteकितनी जल्दी टेक्नालोजी बदल जाती है !
ReplyDeleteअद्यतन मायाजाल सूचना सम्प्रेषण प्रोद्योगिकी का बेहतरीन तुलनात्मक अध्ययन विश्लेषण। अद्यतन सूचना लाये हैं प्रवीण भाई।
ReplyDeleteसुंदर आलेख ,,,लेकिन सही जानकारी के लिए १० तारीख तक इन्तजार करना होगा|
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
हमें भी ओंत्जार है नए एप्पल का ... बहुत सी तुलनात्मक बातें समझ आयीं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 09/09/2013 को
ReplyDeleteजाग उठा है हिन्दुस्तान ... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः15 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
अपने यहाँ कोई भी नई तकनीक वैश्विक बाजारों में पुरानी हो जाने के बाद ही आती है .
ReplyDeleteआज की बुलेटिन विश्व साक्षरता दिवस, भूपेन हजारिका और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआपकी द्वारा दी गयी तकनीकी जानकारी महत्वपूर्ण है । हमें भी नया मोबाइल लेना है पर बजट बीस हजार रूपए का है ।
ReplyDeleteआपकी द्वारा दी गयी तकनीकी जानकारी महत्वपूर्ण है । हमें भी नया मोबाइल लेना है पर बजट बीस हजार रूपए का है ।
ReplyDeletebadhiya aalekh takniki gyan me aap samarth ho...
ReplyDeleteअत्यन्त मार्गदर्शक ज्ञानवर्धक आलेख,जिसकी प्रतीक्षा में दो दिन पहले से था |आभार ..
ReplyDeleteJitne saral shabdon me aap samjhaate hain utna aur kam hii dekhne ko milta hai...bahut badhiya post.
ReplyDeleteअद्यतन प्रोद्योगिकी की यह जंग ज़ारी रहने वाली है विकास की रफ़्तार ही कुछ ऐसी है।
ReplyDeleteमैंने हाल में ही सैमसंग का गैलेक्सी s d u o s 7 5 6 2 खरीदा है . इसमें हिंदी में टाइप करना संभव नहीं हैं
ReplyDeleteऔर इसकी कीमत मेरे खरीदने के बाद से ही लगातार घट रही है. शायद इस रेंज (1 0 -1 2 0 0 0 ) में हिंदी में टाइप करने की सुविधा देनेवाले मोबाइल नहीं है।
अरे संतोष जी आप किसी भी एंड्राइड फ़ोन में हिंदी में लिख सकते हैं बस आपको उसमे गूगल हिंदी इनपुट नामक एक एप्प डालनी होगी.. सर्च करें मिल जाएगा आराम से...
Deleteहम तो डेस्कटॉप पर ही अटके हैं ...
ReplyDeleteइंतजार के पल तो अब समाप्त हो चुके हैं ..... आने में कुछ विलम्ब हुआ
ReplyDeleteनई तकनीक की जानकारी सबसे पहले आपसे ही मिलती है
बहुत बेहतरीन जानकारी दी है आपने....अत्यन्त ज्ञानवर्धक आलेख शुभकामनाएं....!!!
ReplyDeleteuttam
ReplyDeletesukriya uttam bhaiya
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमैंने अपना पहला स्मार्ट फोन लिया था वह भी ५ इंच के साथ था(लेने के ५-६ दिनों के भीतर ही आपसे मिला भी था, आपको याद होगा). अभी भी जो उपयोग में ला रहा हूँ वह भी ५ इंच का ही है. मुझे कभी भी इसका आकर परेशान नहीं किया. संभवतः मेरी हथेली का आकर सामान्य लोगों से अधिक होना इसका कारण हो.
ReplyDeleteखैर, मेरे मुताबिक़ सिर्फ दाम ही एकमात्र कारक नहीं है एप्पल ना लेने का. एक समूह मेरे जैसे लोगों का भी है जो एप्पल के कई तरह के टर्म्स एंड कंडीशंस के चलते नहीं लेना चाहता है. जैसे की मैं अपना खुद का कोई एप्प डेवेलप करूँ तो उसे उतनी आसानी से एप्पल के उत्पादों पर इंस्टाल नहीं कर सकता हूँ जितना की किसी एंड्राइड बेस्ड उपकरण पर.
हार्डवेयर के अलावा भी एक जंग छिड़ा हुआ है जो प्लेटफार्म आधारित है. उसका जिक्र आपने नहीं किया. और अब तो माइक्रोसोफ्ट भी उतर चुका है इस मैदान में, उसका दम-ख़म देखना बाकी है अभी. स्टीव जॉब की मृत्यु के बाद मेरे वे मित्र जो एप्पल में काम करते हैं अथवा जो इन उत्पादों पर कड़ी नजर रखे हैं, वे बेहद निराश हैं. कारण मात्र इतना की फिलहाल कोई नवीन आइडिया पर एप्पल में काम नहीं चल रहा है जिसके लिए वह हाल के वर्षों में जाना गया है.
इधर एंड्राइड भी मुझे अभी लगभग अपने चरम पर पहुंचा दिख रहा है. उसमें और बेहतरी की संभावना को ढूंढना बेहद मुश्किल होगा गूगल के लिए. iOS का भी वही हाल दिख रहा है, और माइक्रोसोफ्ट का दम देखना बाकी है. बाज़ार हमेशा से USP का ही होता है. देखना है की भविष्य में वह कौन लेकर आता है. कुछ भी साफ़ नहीं है फिलवक्त, धुंध चहुँओर है.
कभी लगता है कि ५ इंच की स्क्रीन मोबाइल और टैबलेट, दोनों का ही कार्य कर लेगी, कभी लगता है कि दोनों के लिये ही बेकार है यह। मुझे मोबाइल में ३.५ स्क्रीन के ऊपर जाने में कोई रुचि नहीं है। जो कार्य मैं मोबाइल से करना चाहता हूँ, बड़े आराम से करता हूँ। अधिक बड़ा या भारी होने पर सम्हालने में समस्या आती है। अभी २ स्क्रीन हैं, ३.५ का आईफोन और ७.९ इंच का आईपैड मिनी, सारे कार्य ढंग से होते हैं। बस सप्ताह में एक बार मैकबुक एयर पर बैठना पड़ता है।
Deleteकेसा भी हो एपल को सेब समझ कर खा जायेंगे
ReplyDelete