रेलवे और पर्यटन पर कहीं भी विचार विमर्श होता है तो कई बाते हैं जो सदा ही सुनने को मिलती हैं। बहुधा बहुत अधिक सुनना पड़ता है, कभी सुझाव के रूप में, कभी उलाहना के रूप में, कभी शिकायत के रूप में, कभी उग्र तर्क के रूप में। सुनना कभी भी हानि नहीं करता है, यदि आप उसे हृदय तक न ले जायें। सुनना आपको भले ही व्यक्तिगत रूप से कचोटे पर एक संस्था को सुनने से लाभ ही होता है। जब भी मैं सुनता हूँ, एक संस्था के सदस्य के रूप में सुनता हूँ, ग्रहणीय सुझाव मस्तिष्क में वहन करता हूँ, क्रोध मन से सहन करता हूँ।
उन बातों में जो सार निकलता है, वह इस प्रकार का ही रहता है। सबसे पहली समस्या तो आरक्षण की, उसके बाद टिकट मिलने में व्यर्थ हुआ समय, सुविधाओं का अभाव, व्यवस्थाओं की कमी और संवेदनाओं का अभाव। अपेक्षाओं और प्रयासों में दूरी है, किसी तरह आवश्यकताओं तक ही प्रयास पहुँच पा रहे हैं, वह भी न्यूनतम आवश्यकताओं तक। प्रस्तुत पोस्ट में अन्य विषयों पर विस्तृत चर्चा न कर पर्यटन से संबंधित पक्ष ही उठाऊँगा। जितना संभव हो सके, चर्चा को आदर्शवादी स्थितियों से न जोड़कर व्यवहारिक ही रखूँगा।
इस बार की मुक्तकण्ठ से और त्वरित प्रशंसा होती है कि रेलवे में यात्रा करने से कभी भी जेब पर अधिक भार नहीं पड़ता है औऱ कम पैसों में एक जनसुलभ साधन दे पा रही है, भारतीय रेल। पर आरक्षित सीटों की उपलब्धता की कमी ही एकमात्र ऐसा कारक है जो बहुधा कृत्रिम माँग बढ़ाकर दलालों को अधिक धन उगाहने का अवसर दे देता है। बात सच है और अनुभव पक्ष कठिनाइयों से भरा रहता है।
वर्ष में तीन या चार ऐसे अवसर आते हैं, जब यात्रा सर्वाधिक होती है। उस समय सबको अवकाश मिलता है, बच्चों के विद्यालयों में भी तभी छुट्टी मिलती है, उसी समय सबको घर जाने की और घूमने जाने की सूझती है। यद्यपि उस समय रेलवे के सारे कोच सेवा में लगे होते हैं, फिर भी माँग बनी रहती है, बढ़ी रहती है। स्वाभाविक भी है, जब सारा देश घूमने पर उतर आयेगा तो संसाधन भी कम पड़ जायेंगे। किसी भी तन्त्र की योजना उसके अधिकतम भार के लिये नहीं बनाई जा सकती, यदि ऐसा होगा तो शेष समय संसाधन व्यर्थ पड़े रहेंगे।
इन तीन या चार अवसरों को छोड़ दिया जाये तो अधिकांश मार्गों में आरक्षण की उपलब्धता कोई समस्या नहीं है। यदि पर्यटन को वर्ष में अन्य समय के लिये भी किया जाये तो न केवल पर्यटकों को सुविधा रहेगी वरन रेलवे वर्ष में अधिक लोगों को सेवा दे पायेगी, अपनी व्यर्थ जा रही क्षमता का समुचित उपयोग कर पायेगी। जो सिद्धान्त रेलवे के लिये सच है, वही पर्यटन के अन्य अंगो के लिये भी सटीक बैठेगा। होटल हो, स्थानीय साधन हो, मनोरंजन के अंग हों, सबको ही पर्यटन का काल खंड बढ़ने से लाभ होगा।
यद्यपि जब किसी पर्यटन स्थल पर भीड़ होती है तो मन को वहाँ आने की और अपने निर्णय को सही ठहराने की संतुष्टि होती है, पर अधिक भीड़ में पर्यटन स्थल अपना आनन्द छिपा लेता है, पूर्ण प्रकट नहीं कर पाता है। यदि समुद्र तट में अधिक लोग हैं तो जहाँ प्रारम्भ में अच्छा लगेगा, वहीं बाद में एकान्त में समुद्र की लहरों को न देख पाने का दुख भी रह जायेगा। कई व्यवसायी परिवारों को जानता हूँ, जो अपने पर्यटन की योजना ऐसे समय में ही बनाते हैं जब भीड़ न हो। रेलवे में आरक्षण मिलता है, होटल सस्ते में मिल जाते हैं, खेल खिलाने वाले राह तकते रहते हैं और पूरे परिवार को पर्यटन का पूर्ण आनन्द भी आता है। नीरज भी ऐसे ही समय में पर्यटन पर निकलते है, अभी वह अकेले हैं, पर मुझे पूरा विश्वास है कि परिवार के साथ होने पर भी वह इस सिद्धान्त को नहीं छोड़ेंगे।
अधिक नहीं, बस विद्यालय और कार्यालयों की ओर से पर्यटन के महत्व और इस सिद्धान्त को समझा जाये। ५ दिन की छुट्टी और दो सप्ताहान्त मिला कर ९ दिन का पर्यटन अवकाश का अवसर मिलना चाहिये, जिससे लोग सपरिवार पर्यटन पर जा सकें, बिना किसी समस्या के, वर्ष में किसी भी समय। विद्यालयों की ओर से सामूहिक यात्रा भी वर्ष के कम व्यस्त माहों में करनी चाहिये, हो सके तो हर कक्षा के लिये अलग माह में। देश जानने के लिये और ज्ञान बढ़ाने की दृष्टि से हर विद्यालय के लिये ९ दिवसीय पर्यटन अनिवार्य हो, और न केवल अनिवार्य हो, वरन उसका शैक्षणिक विभाग व मन्त्रालय उसमें अपना अनुदान दें, कम से कम ८० प्रतिशत। इससे विद्यार्थियों को एक वर्ष में पर्यटन के दो अवसर मिलेंगे, एक बार मित्रों के साथ, एक बार परिवार के साथ। उस पर्यटनीय अनुभव में उन्हें आनन्द भी आयेगा और साथ ही साथ रेलवे की आय में वृद्धि भी होगी।
तनिक सोचिये, यदि हम व्यस्त समय की विवशताओं को मात देकर किसी अन्य समय में घूमने की योजना बना सकें तो रेलवे के पास एक सीट क्या, पूरे के पूरे कोच की उपलब्धता रहेगी। तनिक सोचिये, तब कितना आनन्द आयेगा, जब सारे मित्र एक पूरे कोच में आनन्द मनाते, गीत गाते, साथ में खेल खेलते पर्यटन का प्रारम्भ और अन्त करेंगे। यह अनुभव पर्यटन को एक अविस्मरणीय स्थिति पर ले जायेगा। व्यस्त समय की समस्यायें, अन्य समय का आनन्द भी बन सकती हैं।
रेलवे यात्रा के समय अच्छा व स्वास्थ्यकारी भोजन एक बड़ा प्रश्न रहता है और बहुधा रुष्ट चर्चाओं का केन्द्र भी। लम्बी यात्राओं में यह प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि चार या पाँच बार भोजन आदि करना होता है। कुछ के लिये भोजन अधिक चटपटा, कुछ के लिये अधिक फीका, कुछ के लिये स्वाद रहित, कुछ के लिये अपौष्टिक, कुछ के लिये शुचिता और स्वच्छता से न बना। मुझे कम मसाले का सादा भोजन अच्छा लगता है, मिर्च तो जैसे भय उत्पन्न कर देती हो। लगभग हर बार ही भोजन की पूरी थाली में चावल और दही में संतोष करना पड़ जाता है क्योंकि पैन्ट्रीकारों के रसोइयों को बिना चटपटा खाना बनाये अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का मार्ग नहीं मिलता है। अपने सहयात्रियों को भी देखता हूँ, यद्यपि छुट्टी के भाव में सभी रहते हैं पर उल्टा सीधा खाकर कोई भी अपना स्वास्थ्य बिगाड़ना नहीं चाहता है। यात्रा में एक ही स्थान पर तैयार हुआ खाना सबको अच्छा लगेगा, इस बात की प्रायिकता बहुत ही कम है। स्वाद और स्वास्थ्य के मानक में हर एक की भोजनीय अभिरुचि भिन्न है।
जिस भोजन में आप स्वाद या स्वास्थ्य ढूंढ़ते हैं, उसी भोजन में व्यवसायी अपना आर्थिक लाभ भी ढूँढता है। यद्यपि भोजन की मात्रा आदि सब निर्धारित होता है, पर अधिक आर्थिक लाभ निचोड़ लेने की मानसिकता गुणवत्ता से समझौता करवा देती है। वहाँ भोजन बाँटने का अधिकार एक ठेकेदार के ही पास है, विवशता का यथा संभव आर्थिक लाभ लेने की प्रवृत्ति इतनी सरलता से जाने वाली नहीं। शिकायतों के निस्तारण में भोजन के स्वाद, स्वास्थ्य और गुणवत्ता संबंधी मानक असिद्ध ही रह जाते हैं।
अधिकांश यात्री कम से कम एक समय का भोजन और एक समय का नाश्ता अपने साथ लेकर चलते हैं। घर का खाना ट्रेन यात्रा में अच्छा लगता है। मैँ भी यही करता हूँ। रेलयात्रा में ही क्यों वरन हवाईयात्रा में लोग अपने घर से लाये पराँठे और अचार खाते हैं। देश के हर क्षेत्र में यात्रा करने वालों के पास अपने अपने व्यंजन हैं जो दो तीन दिन से अधिक संरक्षित किये जा सकते हैं। बिहार में लिट्टी चोखा, उत्तर भारत में सत्तू, राजस्थान और गुजरात में तो दसियों ऐसे व्यंजन हैं, जो स्वादिष्ट हैं, पौष्टिक हैं और संरक्षित भी किये जा सकते हैं। उन्हें यात्रा में ले जाने से बाहर के खाने पर निर्भरता बहुत कम रहेगी। इसके अतिरिक्त रेलवे को भी यह चाहिये कि ट्रेनों में प्रस्तावित भोजन की सूची में उन ही व्यंजनों को ही रखा जाये, जो न केवल बनाने में सरल हों वरन स्वाद और स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम हों। यही नहीं, मोबाइल या इण्टरनेट आधारित साधन भी विकसित किये जा सकते हैं, जिससे बाहर के भी भोजन बनाने वालों को किसी ट्रेन में भोजन आपूर्ति की सुविधा मिल सके। इन उपायों से पर्यटन का अनुभव पक्ष और भी सुखद व रुचिकर होगा।
नीरज अपने साथ कुछ बिस्कुट आदि सदा लेकर चलते हैं, यदि कहीं भोजन न मिले तो उस पर आश्रित रह लिया जाये। व्यवसायियों के लिये भी पर्यटन-व्यंजन एक संभावनाओं का क्षेत्र है। एक पूरी की पूरी फ़ूड चेन बनायी जा सकती है, इसके ऊपर। आप चिन्तन में जुटिये, अगली पोस्ट में स्टेशनों पर उन सुविधाओं की चर्चा जो पर्यटन के स्थानीय पक्षों को सुदृढ़ करने में सक्षम हैं।
उन बातों में जो सार निकलता है, वह इस प्रकार का ही रहता है। सबसे पहली समस्या तो आरक्षण की, उसके बाद टिकट मिलने में व्यर्थ हुआ समय, सुविधाओं का अभाव, व्यवस्थाओं की कमी और संवेदनाओं का अभाव। अपेक्षाओं और प्रयासों में दूरी है, किसी तरह आवश्यकताओं तक ही प्रयास पहुँच पा रहे हैं, वह भी न्यूनतम आवश्यकताओं तक। प्रस्तुत पोस्ट में अन्य विषयों पर विस्तृत चर्चा न कर पर्यटन से संबंधित पक्ष ही उठाऊँगा। जितना संभव हो सके, चर्चा को आदर्शवादी स्थितियों से न जोड़कर व्यवहारिक ही रखूँगा।
इस बार की मुक्तकण्ठ से और त्वरित प्रशंसा होती है कि रेलवे में यात्रा करने से कभी भी जेब पर अधिक भार नहीं पड़ता है औऱ कम पैसों में एक जनसुलभ साधन दे पा रही है, भारतीय रेल। पर आरक्षित सीटों की उपलब्धता की कमी ही एकमात्र ऐसा कारक है जो बहुधा कृत्रिम माँग बढ़ाकर दलालों को अधिक धन उगाहने का अवसर दे देता है। बात सच है और अनुभव पक्ष कठिनाइयों से भरा रहता है।
वर्ष में तीन या चार ऐसे अवसर आते हैं, जब यात्रा सर्वाधिक होती है। उस समय सबको अवकाश मिलता है, बच्चों के विद्यालयों में भी तभी छुट्टी मिलती है, उसी समय सबको घर जाने की और घूमने जाने की सूझती है। यद्यपि उस समय रेलवे के सारे कोच सेवा में लगे होते हैं, फिर भी माँग बनी रहती है, बढ़ी रहती है। स्वाभाविक भी है, जब सारा देश घूमने पर उतर आयेगा तो संसाधन भी कम पड़ जायेंगे। किसी भी तन्त्र की योजना उसके अधिकतम भार के लिये नहीं बनाई जा सकती, यदि ऐसा होगा तो शेष समय संसाधन व्यर्थ पड़े रहेंगे।
इन तीन या चार अवसरों को छोड़ दिया जाये तो अधिकांश मार्गों में आरक्षण की उपलब्धता कोई समस्या नहीं है। यदि पर्यटन को वर्ष में अन्य समय के लिये भी किया जाये तो न केवल पर्यटकों को सुविधा रहेगी वरन रेलवे वर्ष में अधिक लोगों को सेवा दे पायेगी, अपनी व्यर्थ जा रही क्षमता का समुचित उपयोग कर पायेगी। जो सिद्धान्त रेलवे के लिये सच है, वही पर्यटन के अन्य अंगो के लिये भी सटीक बैठेगा। होटल हो, स्थानीय साधन हो, मनोरंजन के अंग हों, सबको ही पर्यटन का काल खंड बढ़ने से लाभ होगा।
यद्यपि जब किसी पर्यटन स्थल पर भीड़ होती है तो मन को वहाँ आने की और अपने निर्णय को सही ठहराने की संतुष्टि होती है, पर अधिक भीड़ में पर्यटन स्थल अपना आनन्द छिपा लेता है, पूर्ण प्रकट नहीं कर पाता है। यदि समुद्र तट में अधिक लोग हैं तो जहाँ प्रारम्भ में अच्छा लगेगा, वहीं बाद में एकान्त में समुद्र की लहरों को न देख पाने का दुख भी रह जायेगा। कई व्यवसायी परिवारों को जानता हूँ, जो अपने पर्यटन की योजना ऐसे समय में ही बनाते हैं जब भीड़ न हो। रेलवे में आरक्षण मिलता है, होटल सस्ते में मिल जाते हैं, खेल खिलाने वाले राह तकते रहते हैं और पूरे परिवार को पर्यटन का पूर्ण आनन्द भी आता है। नीरज भी ऐसे ही समय में पर्यटन पर निकलते है, अभी वह अकेले हैं, पर मुझे पूरा विश्वास है कि परिवार के साथ होने पर भी वह इस सिद्धान्त को नहीं छोड़ेंगे।
अधिक नहीं, बस विद्यालय और कार्यालयों की ओर से पर्यटन के महत्व और इस सिद्धान्त को समझा जाये। ५ दिन की छुट्टी और दो सप्ताहान्त मिला कर ९ दिन का पर्यटन अवकाश का अवसर मिलना चाहिये, जिससे लोग सपरिवार पर्यटन पर जा सकें, बिना किसी समस्या के, वर्ष में किसी भी समय। विद्यालयों की ओर से सामूहिक यात्रा भी वर्ष के कम व्यस्त माहों में करनी चाहिये, हो सके तो हर कक्षा के लिये अलग माह में। देश जानने के लिये और ज्ञान बढ़ाने की दृष्टि से हर विद्यालय के लिये ९ दिवसीय पर्यटन अनिवार्य हो, और न केवल अनिवार्य हो, वरन उसका शैक्षणिक विभाग व मन्त्रालय उसमें अपना अनुदान दें, कम से कम ८० प्रतिशत। इससे विद्यार्थियों को एक वर्ष में पर्यटन के दो अवसर मिलेंगे, एक बार मित्रों के साथ, एक बार परिवार के साथ। उस पर्यटनीय अनुभव में उन्हें आनन्द भी आयेगा और साथ ही साथ रेलवे की आय में वृद्धि भी होगी।
तनिक सोचिये, यदि हम व्यस्त समय की विवशताओं को मात देकर किसी अन्य समय में घूमने की योजना बना सकें तो रेलवे के पास एक सीट क्या, पूरे के पूरे कोच की उपलब्धता रहेगी। तनिक सोचिये, तब कितना आनन्द आयेगा, जब सारे मित्र एक पूरे कोच में आनन्द मनाते, गीत गाते, साथ में खेल खेलते पर्यटन का प्रारम्भ और अन्त करेंगे। यह अनुभव पर्यटन को एक अविस्मरणीय स्थिति पर ले जायेगा। व्यस्त समय की समस्यायें, अन्य समय का आनन्द भी बन सकती हैं।
रेलवे यात्रा के समय अच्छा व स्वास्थ्यकारी भोजन एक बड़ा प्रश्न रहता है और बहुधा रुष्ट चर्चाओं का केन्द्र भी। लम्बी यात्राओं में यह प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि चार या पाँच बार भोजन आदि करना होता है। कुछ के लिये भोजन अधिक चटपटा, कुछ के लिये अधिक फीका, कुछ के लिये स्वाद रहित, कुछ के लिये अपौष्टिक, कुछ के लिये शुचिता और स्वच्छता से न बना। मुझे कम मसाले का सादा भोजन अच्छा लगता है, मिर्च तो जैसे भय उत्पन्न कर देती हो। लगभग हर बार ही भोजन की पूरी थाली में चावल और दही में संतोष करना पड़ जाता है क्योंकि पैन्ट्रीकारों के रसोइयों को बिना चटपटा खाना बनाये अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का मार्ग नहीं मिलता है। अपने सहयात्रियों को भी देखता हूँ, यद्यपि छुट्टी के भाव में सभी रहते हैं पर उल्टा सीधा खाकर कोई भी अपना स्वास्थ्य बिगाड़ना नहीं चाहता है। यात्रा में एक ही स्थान पर तैयार हुआ खाना सबको अच्छा लगेगा, इस बात की प्रायिकता बहुत ही कम है। स्वाद और स्वास्थ्य के मानक में हर एक की भोजनीय अभिरुचि भिन्न है।
जिस भोजन में आप स्वाद या स्वास्थ्य ढूंढ़ते हैं, उसी भोजन में व्यवसायी अपना आर्थिक लाभ भी ढूँढता है। यद्यपि भोजन की मात्रा आदि सब निर्धारित होता है, पर अधिक आर्थिक लाभ निचोड़ लेने की मानसिकता गुणवत्ता से समझौता करवा देती है। वहाँ भोजन बाँटने का अधिकार एक ठेकेदार के ही पास है, विवशता का यथा संभव आर्थिक लाभ लेने की प्रवृत्ति इतनी सरलता से जाने वाली नहीं। शिकायतों के निस्तारण में भोजन के स्वाद, स्वास्थ्य और गुणवत्ता संबंधी मानक असिद्ध ही रह जाते हैं।
अधिकांश यात्री कम से कम एक समय का भोजन और एक समय का नाश्ता अपने साथ लेकर चलते हैं। घर का खाना ट्रेन यात्रा में अच्छा लगता है। मैँ भी यही करता हूँ। रेलयात्रा में ही क्यों वरन हवाईयात्रा में लोग अपने घर से लाये पराँठे और अचार खाते हैं। देश के हर क्षेत्र में यात्रा करने वालों के पास अपने अपने व्यंजन हैं जो दो तीन दिन से अधिक संरक्षित किये जा सकते हैं। बिहार में लिट्टी चोखा, उत्तर भारत में सत्तू, राजस्थान और गुजरात में तो दसियों ऐसे व्यंजन हैं, जो स्वादिष्ट हैं, पौष्टिक हैं और संरक्षित भी किये जा सकते हैं। उन्हें यात्रा में ले जाने से बाहर के खाने पर निर्भरता बहुत कम रहेगी। इसके अतिरिक्त रेलवे को भी यह चाहिये कि ट्रेनों में प्रस्तावित भोजन की सूची में उन ही व्यंजनों को ही रखा जाये, जो न केवल बनाने में सरल हों वरन स्वाद और स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम हों। यही नहीं, मोबाइल या इण्टरनेट आधारित साधन भी विकसित किये जा सकते हैं, जिससे बाहर के भी भोजन बनाने वालों को किसी ट्रेन में भोजन आपूर्ति की सुविधा मिल सके। इन उपायों से पर्यटन का अनुभव पक्ष और भी सुखद व रुचिकर होगा।
नीरज अपने साथ कुछ बिस्कुट आदि सदा लेकर चलते हैं, यदि कहीं भोजन न मिले तो उस पर आश्रित रह लिया जाये। व्यवसायियों के लिये भी पर्यटन-व्यंजन एक संभावनाओं का क्षेत्र है। एक पूरी की पूरी फ़ूड चेन बनायी जा सकती है, इसके ऊपर। आप चिन्तन में जुटिये, अगली पोस्ट में स्टेशनों पर उन सुविधाओं की चर्चा जो पर्यटन के स्थानीय पक्षों को सुदृढ़ करने में सक्षम हैं।
विदेशों की रेल में घूम लेने के बाद , भारतीय रेल से अपेक्षाएं तो हवाई जहाज सरीखी रखते हैं पर ... कुछ नी हो सक्ता
ReplyDeleteदिल्ली की एअरपोर्ट मेट्रो एक नख़लिस्तान सा है बस ....
Deleteमैं भारतीय रेल को डाक द्वारा २-३ बार एक सुझाव भेज चूका हूँ हर प्लेटफोर्म पर न सही लेकिन हर एक स्टेशन पर कम से कम एक मेडिकल स्टोर होना चाहिए... खैर, हम सुझाव भेजते रहते हैं.. कभी न कभी किसी कि तो नज़र पड़ेगी हमारी चिट्ठियों पर...
ReplyDeleteबाकी सुविधाएं ठीक हैं लेकिन इमरजेंसी में इंसान अगर दवाई कि दुकान खोजे तो उसे निराश न होना पड़े...
कम से कम बंगलोर के कई स्टेशनों पर मेडिकल की सुविधा हो ही गयी है।
Deleteनई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी 'Book stall cum Chemist corner' कल ही देखा है, आशा करनी चाहिये ये सुविधा अधिक से अधिक स्टेशन पर उपलब्ध होगी।
Deleteहम तो आज भी घर का एक दो समय का खाना बनवा कर ले जाना ही पसंद करते हैं, फ़िर भले ही वह ट्रेन हो या प्लेन.. और रही बात सुविधाओं की तो.. पहले ट्रेन में भी असुविधा लगती थी.. अब प्लेन में भी असुविधा लगती है.. केवल सोचने भर की बात है.. व्यक्ति को अगर कमी निकालने के लिये कहा जाये तो वह कहीं भी कमी निकाल सकता है.. इसलिये जितनी सुविधा उपलब्ध है.. हम तो उसी में आनंद लेने की कोशिश करते हैं..
ReplyDeleteव्यवहारिक दृष्टि डाली है आपने. खानपान की गुणवत्ता से समझौता ट्रेन यात्रा का कृष्ण पक्ष है .
ReplyDeleteपर्यटन के एक संसाधन के रूप में रेलवे का अतुलनीय योगदान है ही लेकिन अन्य सुविधाओं को विस्तारित कर दिया जाय और भी अच्छा .
ReplyDeleteरेल्वे यात्रा यदि रिजर्वेशन (आपके सुझाये गये उपाय के अनुसार सुगमता से मिल सकता है) मिल जाये और कोच साफ़ सुथरा मिल जाये तो बहुत आनंद दायक है.
ReplyDeleteकोच मे गंदगी एक अलग ही समस्या है. भोजन तो घर से ही ले जाना बेहतर है.
इतने सबके बावजूद एक रेल्वे ही है जिसके भरोसे हिंदूस्तान की जनता इधर से उधर हो लेती है. सिर्फ़ पर्यटन ही नही बल्कि शादी व्याह, रिश्तेदारी में आना जाना, इसी से संभव हो पाता है.
अत्यंत सुंदर आलेख.
रामराम.
रेल पर्यटन बेहतर है ,परन्तु इसको और बेहतर बनाने की आवश्यकता है .इसे सुलभ और बेहतर सेवा सुलभ बनाना होगा
ReplyDeletelatest post: यादें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
ReplyDeleteग्रहणीय सुझाव मस्तिष्क में वहन करना, क्रोध मन से सहन करना: कितना सुन्दर सिद्धांत है, हम भी जीवन के विभिन्न सन्दर्भों में इसे अपनाने का प्रयास करेंगे.
ReplyDeleteआभार!
हम खुद पर्यटन के लिये व्यस्त-सीज़न से अलग समय में जाना पसंद करते हैं लेकिन बच्चों की छुट्टियाँ जैसी कुछ बाध्यतायें लगभग हर परिवार के साथ होती है जो व्यस्त-सीज़न में रिज़र्वेशन की माँग-आपूर्ति को प्रभावित करती हैं। आपके सुझाव के अनुसार अगर स्कूल स्तर पर ही पर्यटन को बढ़ावा मिले तो पर्यटन-सीज़न को वर्षपर्यंत विस्तार दिया जा सकता है। ऑफ़-सीज़न का अपना अलग चार्म होता है। खाने-पीने के मामले में ज्यादा दिक्कत परहेज वालों के साथ ही होती हैं, ये तो जानी हुई बात है। बेहतर है कि साथ में कुछ सामान एइरजेंसी कोटे का हो, शेष लोकल उपलब्धताओं का सहारा लिया जाये।
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत व्यवहारिक अनुकरणीय सुझाव आयें हैं इस पोस्ट की मार्फ़त। यदि रेलवे एक संतान (लड़का या लड़की वालों को )नौकरी देने लगे तो भावी संततियों की रेल यात्रा सुखद हो जाए फिल वक्त हर मार्ग पे भीड़ है दिल्ली -मुंबई तो एक मिसाल भर है।
पर्यटन क्षेत्र में बहुत सुधार बाकी है ..
ReplyDeleteबहुत से सार्थक सुधार संभव हैं वशर्ते हम इस विषय में गंभीरता, ईमानदारी व व्यावसायिक दृष्टिकोण रखकर प्रयास करें व आवश्यक कदम उठायें।दुर्भाग्य से प्रायः हमारे निर्णय का व्यावसायिक पक्ष राजनैतिक व व्यूरोक्रेटिक स्वार्थ व हितों के नीचे ही दब जाता है ।
ReplyDeleteबहुत अच्छे सुझाव .... रेल यात्रा सभी को लुभाती है यदि सुविधाएँ थोड़ी और बेहतर हों तो सभी के के लिए अच्छा है ....
ReplyDeleteसार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
ReplyDeleteताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
हम तो अधिकतर यात्राएं और किसी पर्यटन स्थल पर जाने का कार्यक्रम ,छुट्टियाँ से इतर दिनों में ही बनाते हैं ..... मुझे रेल - यात्रा में एकमात्र चीज़ जो कष्ट देती है वो सफ़ाई की अनदेखी है ......
ReplyDeleteसाफ़ सुथरा डिब्बा, अच्छे साफ़ टोइलेट ओर आसानी से बुकिंग ... अगर ये बुनियादी सुविधाएँ ठीक हो जाएं तो रेल से बेहतर यात्रा/सेवा कोई नहीं है ...
ReplyDeleteआपके एक ही आलेख में कई गूढ बाते विस्तार लिए होती है
ReplyDeleteरोचक और सार्थक अभिव्यक्ति
प्राञ्जल -प्रवाह-पूर्ण प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteMy wish list:
ReplyDelete1)Cleaner toilets and elimination of foul smells from stations.
2)A fleet of buses owned and run by the Railways (or City Corporation) , running from the Railway station to the extreme outer limits of the city and back, along popular and trunk routes to protect passengers from being fleeced by Taxi drivers and autorickshaw drivers.
3)Wifi hotspots at all important junctions, if not at all stations.
4)Availability of a list of essential medicines in the train
5)More Wheel chairs at all stations for the elderly
6)Reservations and purchase of tickets from one's mobile phone after opening an account with the Railways
7)Drastic increase in Railway retiring room facilities and budget hotels/lodges at all important stations, owned and run by the Railways for bonafide Rail passengers only.
8)An emergency medical center at all important Railway Junctions, equipped with some basic equipment and drugs and staffed by Railway doctors and nurses who can at least give preliminary medical aid and treatment to Railway passengers on priority.
9)A direct link by a bus from every Railway station to the airport/central interstate bus stand of the city, run by the Railways for Railway passengers only.
The Indian Railways with its amazing country wide network, is in my opinion one of the nation's few unique assets along with the P&T and Air/Doordarshan and our Telephone networks. While the other named assets may lose to competition from the private sector, the Railways will never yield place to any competitor. It never needs to fear any competition from Air travel or Road travel. Air travel can never compete with Railways for coverage of the country and economy, and road travel can never compete with the Railways on costs, comfort and safety.
You can justifiably feel proud of being a Railway employee.
I look forward to your future postings on this subject.
Regards
G Vishwanath
आपके कई विचार मेरी भी अपेक्षाओं में सम्मिलित हैं, धीरे धीरे आकार लेंगी।
Deleteबहुत सुन्दर पर्यटन में काम आने वाली उपयोगी बातें ..
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति सर थैंक्स।
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति 12-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
एक छोटी सी बात पर ध्यान दिलाना चाहूँगा जो बाकी समस्याओं की तुलना में ज्यादा प्राथमिकता वाली नहीं है फिर भी वातानुकूलित दर्जे में यात्रा करने वाले अक्सर महसूस करते हैं। ये समस्या है खिड़की के शीशों के गंदा रहने की। ज्यादातर दो शीशों की परत के बीव वाष्प घुस जाने से बाहर दिखने वाले अच्छे दृश्यों को कैमरे में क़ैद करने के लिए गेट खोल कर खतरनाक ढंग से फोटो लेने पड़ते हैं। शीशों में गंदगी की ठीक से सफाई भी नहीं होती हालांकि कुछ ट्रेनों में बड़े स्टेशनों पर बाहर से शीशा पोछने की क़वायद मैंने देखी है।
ReplyDeleteजी, मुझे भी मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। निश्चय ही इस ओर अपने सहयोगियों का ध्यान आकर्षित करूँगा।
Deleteकिसी भी तन्त्र की योजना उसके अधिकतम भार के लिये नहीं (की जा सकती) के बजाय (बनाई जा सकती) कर लें। बढ़िया सुन्दर बात।
ReplyDeleteजी, कर लिया।
Deleteरेलवे की अपेक्षा को भी आमजन को वहन करने की कोशिस करना चाहिए……………. सुन्दर आलेख
ReplyDeleteआज बुलेटिन टीम के सबसे युवा ब्लॉग रिपोर्टर हर्षवर्धन जी का जन्मदिवस है , उन्हें अपना स्नेह और आशीष दीजिये साथ ही साथ पढिए उनके द्वारा तैयार की गई आज की ब्लॉग बुलेटिन ........
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जन्मदिन और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बेशक रेल्वे की सुविधाओं को लोग कितना ही कोसे, हमें तो सबसे ज्यादा रेल यात्रा ही सुखद लगती है, और रेल यात्रा में नीरज के टिप्स हो तो सोने पे सुहागा :)
ReplyDeleteअच्छे सुझाव हैं
ReplyDeleteट्रेन के डिब्बे में चढ़ने के बाद लगता है हिन्दुस्तान हमारे साथ सफर कर रहा है। डिब्बा भी किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं होता। तरह तरह के भाषा भाषी ,घर से लाया भोजन खोलके खाते लोग ,अपनापा दिखलाते लोग एक दूसरे पर भरोसा करते उसे चौकीदार सा सम्मान देते लोग। आबालवृद्ध नर -नारी ,कहलाते सभी सवारी।
ReplyDeleteअच्छे सुझाव
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
सार्थक लेख ......दीवाली के बाद राजस्थान जाना है लेकिन टिकिट्स ही नहीं मिल रहे,दलाल मुंहमांगा दाम वसूल रहे है.....कुछ कर भी नहीं सकते । आपने ये बात बिल्कुल सही कही कि घर का खाना रेल में ज्यादा अच्छा लगता है .....
ReplyDeleteरेल से यात्रा करने के लिए आरक्षण के लिए बहुत पहले से प्लैनिंग करनी होती है हालांकि तत्काल सेवा भी शुरू की गयी है लेकिन टिकट आसानी से उपलब्ध नहीं होता । अपनी सुविधा के लिए लोग एजेंट पर निर्भर हो जाते हैं ।
ReplyDeleteपर्यटन के लिए समय पर आपने सही सुझाव रखे हैं लेकिन जिनके बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हों वो तो स्कूल की जब छुट्टियाँ होंगी तब ही जा पाएंगे ।
साफ सफाई की बात कहें तो यात्रियों की भी ज़िम्मेदारी है कि यात्रा करते हुये डिब्बे में सफाई का ध्यान रखें ।
वाह क्या बात!
ReplyDeleteचाहे कोई कुछ भी कहे,रेल दवारा यात्रा सबसे सुगम और सस्ता है,,,
ReplyDelete!!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
Being the biggest organisation in our country, I hope it improves with time. I haven't travelled in train much.
ReplyDeleteइसमें कोई दो राय नही कि रेल यात्रा सब से सुगम और सस्ती है परंतु सफाई का काम तो एक साल के ठेके पर दिया जाना चाहिये ताकि ठीक काम ना करने पर
ReplyDeleteफिर से काम न मिल सकने का डर बना रहे। रेल्वे प्लेटफॉर्मस पर बैठने के लिये बेन्च इतने कम होते हैं कि हम जैसे वयस्क और आरथ्राइटिस के पीजित भी खडे रहने को मजबूर हैं।
अच्छी बात ये हैं कि आप जैसे रेल्वे विभाग के वरिष्र्ठ कर्मचारी इस बात पर सोच-विचार कर रहे हैं तो सुधार की आशा तो है।
इसमें कोई दो राय नही कि रेल यात्रा सब से सुगम और सस्ती है परंतु सफाई का काम तो एक साल के ठेके पर दिया जाना चाहिये ताकि ठीक काम ना करने पर
ReplyDeleteफिर से काम न मिल सकने का डर बना रहे। रेल्वे प्लेटफॉर्मस पर बैठने के लिये बेन्च इतने कम होते हैं कि हम जैसे वयस्क और आरथ्राइटिस के पीजित भी खडे रहने को मजबूर हैं।
अच्छी बात ये हैं कि आप जैसे रेल्वे विभाग के वरिष्र्ठ कर्मचारी इस बात पर सोच-विचार कर रहे हैं तो सुधार की आशा तो है।
इसमें कोई दो राय नही कि रेल यात्रा सब से सुगम और सस्ती है परंतु सफाई का काम तो एक साल के ठेके पर दिया जाना चाहिये ताकि ठीक काम ना करने पर
ReplyDeleteफिर से काम न मिल सकने का डर बना रहे। रेल्वे प्लेटफॉर्मस पर बैठने के लिये बेन्च इतने कम होते हैं कि हम जैसे वयस्क और आरथ्राइटिस के पीजित भी खडे रहने को मजबूर हैं।
अच्छी बात ये हैं कि आप जैसे रेल्वे विभाग के वरिष्र्ठ कर्मचारी इस बात पर सोच-विचार कर रहे हैं तो सुधार की आशा तो है।
kitanii mehnat karate hain sabhi rail karmchari hamsab ko ek sukhad yatra dene ke liye ......kitani hi samasyaon se joojhate hue .....varna itani jansankhya ko suvidhayen de pana itana aasaan bhi nahin ....
ReplyDeletescope to bahut hai improvement ka ,aur nirantar improvement hota bhi jaa raha hai ....... hame to rail yatra badi sukhad lagati hai ....
sarthak aalekh .
उपयोगी और सुविधायुक्त सुझाव!! आभार
ReplyDeleteपर्यटन में काम आने वाली उपयोगी सुझाव
ReplyDelete---अच्छे सुधार के सुझाव हैं---- एक यह भी ....
ReplyDeleteरेल -
देश में,
एकीकरण की भूमिका निभाती है ;
लखनऊ का कूड़ा-
बेंगलोर तक फैलाती है|
भारतीय रेलवे जैसी सुविधाजनक और सस्ता यातायात का कोई साधन नही हैं ,साफ़ सफाई एक मुद्दा हों सकता हैं ,किन्तु पब्लिक कों भी चाहिए की अनावश्यक रूप से मानसिक और कूड़े वाली गंदगी ना फैलाए ,
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का।
ReplyDeleteआसानी से बुकिंग बेहतर हों तो सभी के के लिए अच्छा है .
ReplyDeleteवाह आपने साथ साथ रेलवे की आय का साधन भी ढूढ लिया है।
ReplyDeletereally liked the wishlist of Vishwanath Ji..
ReplyDeletetraveling from rail is modest of all.. its improved version will attract more n more
आपके सुझाव उपयोगी हैं .
ReplyDeleteआप ने बिलकुल सही लिखा है. लेकिन रेलवे में कुछ ऐसे रूट भी हैं जो सालभर व्यस्त रहते हैं. वेटिंग टिकेट भी नहीं मिलता है. क्या ऐसे रूट पर जल्द से जल्द न्यू लाइन बिछया नहीं जाना चाहिए।
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