सूत्र - व्यसन या विवशता |
यद्यपि मैं ट्विटर में नहीं हूँ, पर यदि हमारे आदि सृजनकर्ता अपने समय में ट्विटर का उपयोग करते तो उनका प्रत्येक ट्वीट महत्वपूर्ण होता, किसी एक सिद्धान्त के सारे पक्ष व्यक्त करने में।
ज्ञान को संक्षिप्त में कह देना ज्ञानियों का व्यसन था या विवशता? व्यर्थता की परतें हटाने के बाद जो शेष रहता है, वह ज्ञान का मौलिक स्वरूप होता है। ज्ञान को उसके मौलिक स्वरूप में रखना ज्ञानियों का व्यसन था। उस समय लेखन सीमित था, लेखपत्र संरक्षित नहीं रखे जा सकते थे, सुनकर याद रख लेने की परंपरा थी। ज्ञान को इस परिवेश में संरक्षित रखने के लिये उन्हें संक्षिप्ततम रखना ज्ञानियों की विवशता थी।
आइये, तीनों माध्यमों का इस परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करते हैं। विमा आकार की है, सृजन की है, अस्तित्व के काल की हैं।
ट्विटर अभिव्यक्ति का लघुत्तम माध्यम है, आकार में और अस्तित्व के काल में। फेसबुक अभिव्यक्ति का मध्यम माध्यम है, आकार में और अस्तित्व के काल में। ब्लॉग अभिव्यक्ति का वृहद पटल है, आकार में और अस्तित्व के काल में। आपने देखा कि मैंने सृजन की विमा के आधार पर वर्गीकरण नहीं किया है, उसका एक कारण है।
अभिव्यक्ति तथ्यात्मक हो सकती है, सृजनात्मक हो सकती है, विश्लेषणात्मक भी हो सकती है। तथ्यों का आकार बड़ा नहीं होता है, यदि उसमें विश्लेषण न जुड़ा हो। समाचारों को देखिये, यदि विश्लेषण या राय हटा दी जाये तो समाचार पत्र अपने से दसवीं आकार में आ जायेंगे। तथ्यों में सृजनात्मकता नहीं होती है, तथ्य सपाट होते हैं। विश्लेषण या सृजन तर्क श्रंखला या विचार तरंगों के संग चलता है और बहुधा आकार में फैलने लगता है। बहुत कुछ वैदिक संदर्भ ग्रन्थों जैसा।
सृजन पर सदा फैलता ही नहीं रहता है, उसके कुछ निष्कर्ष होते हैं, उसके कुछ सूत्र होते हैं। आदि ऋषियों ने जो सूत्र रूप में ज्ञान प्रस्तुत किया, वह सृजन की पराकाष्ठा थी, ज्ञान का पूर्ण संश्लेषण था। आकार ट्वीट का पर अस्तित्व का काल अनन्त। प्रक्रिया वृहद, आकार में भी, आधार में भी।
वर्तमान ट्वीट जगत अभिव्यक्ति का माध्यम तो है, पर उसमें अपनी कहनी अधिक होती है, सुननी कम। राजनेताओं, अभिनेताओं व अन्य प्रसिद्धात्माओं की गतिविधि को जानने का अच्छा माध्यम है ट्वीट। किसी घटना पर अपने त्वरित और क्षणिक विचार व्यक्त कर निकल लेने का माध्यम है ट्वीट। विचार एकत्र हो जाते है, कोई शोध करे तो उसमें तत्व भी निकाला जा सकता है, पर उसके लिये न किसी के अन्दर धैर्य ही होगा और न ही सामर्थ्य। आजकल किसी विषय पर कितने लोग अनुसरण कर रहे हैं, इसकी भी संख्या जानने का माध्यम है ट्विटर।
हम जिस ट्वीट्स को देख रहे हैं और जिसकी बात कर रहे हैं, वह तथ्य का स्वरूप है, प्राथमिक है, सृजन और विश्लेषण में न्यून है। हमारे पूर्वज ट्वीट के स्वरूप में जिस ज्ञान को हमें दे गये हैं, उसमें सृजन और विश्लेषण अधिकतम है।
मैं 'शून्य से शून्य तक' के सिद्धान्त का मानने वाला हूँ और वही सिद्धान्त यहाँ पर भी सटीक बैठता है। जन्म से मृत्यु तक का मार्ग शून्य से शून्य तक रहता है। सारी प्रकृति इस सिद्धान्त पर चलती है, उद्भव होता है, विकास होता है और अन्त हो जाता है। उद्भव से अन्त तक या कहें शून्य से शून्य तक की इस यात्रा में हर वस्तु अपना आकार गढ़ती है, अपना काल निर्धारित करती है। अभिव्यक्ति भी उनमें से एक है। एक विचार जन्म लेता है, आकार पाता है, विस्तार पाता है, संश्लेषित होता है, निष्कर्ष रूप धरता है और सिद्धान्त के रूप में अभिव्यक्ति क्षेत्र से विलीन हो जाता है। यदि इस सिद्धान्त के आधार पर चर्चा करें तो ट्वीट उतनी निष्प्रभ नहीं लगेंगी।
एक सूत्र जो रहा समाहित |
अभिव्यक्ति का कार्य पर अपना विस्तार पाकर समाप्त नहीं हो जाता है। ज्ञान के निष्कर्षों को और मथना होता है, शाब्दिक कोलाहल के परे मर्म तक पहुँचना होता है। मर्म जब मथते मथते गाढ़ा हो जाये तो फेसबुकीय आकार में कहा जा सकता है। इस प्रक्रिया में बढ़ते बढ़ते जब मर्म में सत्य या सिद्धान्त दिखने लगे तो वह सूत्र रूप में संघनित हो जाता है। ज्ञान की पराकाष्ठा और आकार ट्वीट का। विचार से प्रारम्भ हुये एक ट्वीट से, सिद्धान्त तक विकसित हुये एक ट्वीट तक।
अभिव्यक्ति के रहस्य को माध्यमों में खोजना और उसे भिन्न कोष्ठकों में बाँट देना, अभिव्यक्ति की सततता और एकलयता के साथ अन्याय है। सृजनात्मकता अपना आकार भी ढूँढ लेती है, अपना आधार भी। तीनों माध्यम न भिन्न हैं, न एक दूसरे के प्रेरक हैं, न एक दूसरे के पूरक हैं। तीनों ही अभिव्यक्ति की तीन शारीरिक अवस्थायें हैं जो शून्य से शून्य तक पहुँच जाती है, जो प्रकृति की गति पर चली जाती है।
(हिन्दी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा में 'ब्लॉग, फेसबुक व ट्विटर' के विषय पर व्यक्त मत)
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ReplyDelete'शून्य से शून्य तक' के सिद्धान्त के साथ अद्भुत विश्लेषण अभिव्यक्ति व उसकी अवस्थाओं की!
ReplyDelete***
सारगर्भित संग्रहणीय मत!!!
तथ्यों में सृजनात्मकता नहीं होती है, तथ्य सपाट होते हैं
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
शुभ दिन
"Brevity is the soul of wit " यही सिद्धांत ,यही है ट्वीट.
ReplyDeleteनई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड
सही विश्लेषण।
ReplyDeleteसही विश्लेषण।
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के तीन सोपानों पर सुलझी दृष्टि !
ReplyDeleteचौ चौं चीं चीं ,हो या मुख चिठ्ठा ,या फिर वृहद् चिठ्ठा बोले तो ब्लॉग यह वैसे ही है जैसे -ब्रह्म ,जीव ,माया ,गुरु संत ,भगत ,... अलग अलग भी हैं और इन सबको मिलाकर एक भगवान् भी बनता है।
ReplyDeleteगुणवत्ता और लोकप्रियता का आधार "लाइक्स "नहीं हो सकता ,विस्तार या सार भी नहीं ,गुणवता बस होती है ,स्वत : मुखरित प्रवीण जी के आलेख सी। चिठ्ठे के विस्तार सी ,ट्विट सी द्रुत और मुख चिठ्ठे की सामाजिकता सी ,लोकप्रियता सी। बेहतरीन निबंधातमक सार संक्षेपण वर्धा का।
बहुत ही सारगर्भित और विश्लेष्णात्मक आलेख ।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति। विश्लेषण के तो क्या कहने...!
ReplyDeleteNice post next post data recovery pc or pen drive techink ki duniya www.hinditechtrick.blogspot.com
ReplyDeleteआपको पढने से ज्ञान मिलता है .....
ReplyDeleteस्वस्थ रहें!
उद्भव से अन्त तक या कहें शून्य से शून्य तक की इस यात्रा में हर वस्तु अपना आकार गढ़ती है, अपना काल निर्धारित करती है। अभिव्यक्ति भी उनमें से एक है।
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के तीनों माध्यमों का सुंदर सार्थक विश्लेषण ......!!बहुत बारीकी से सभी तथ्यो को समझाया .....!!निश्चय ही संग्रहणीय आलेख है .....!!
सारगर्भित सुन्दर विश्लेषण !!
ReplyDeleteachhi prekshan
ReplyDeletepranam.
बढ़िया और सारगर्भित ..
ReplyDeleteबधाई !
आत्मीय हमारा है सम्प्रेषण शुभ-चिन्तक है सखा हमारा । घोर पराजय में भी जो देता रहता है साथ हमारा । प्रिय-जन जब अपमानित करते आश्वासन सम्प्रेषण देता अश्रु-भरे आर्द्र-अँखियों का दुख क्षण-भर में ही हर लेता । व्यवहृत होता सम्प्रेषण से नर-निरीह जी लेता है । प्रेम-प्रसंगों को पीता है सुख-शावक को सेता है ।कल्पवृक्ष है यह सम्प्रेषण वाणी का रूप अगोचर है । मात्र वैखरी को हम जानें सम्प्रेषण परा-सहोदर है ।
ReplyDelete(:(:(:
Deletepranam.
(:(:(:
Deletepranam.
sunder abhivyakti par sutra shaily me likhane ki koi vivasta nahi thee kyon ki vyas shaily to thi hi
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 29/09/2013 को
ReplyDeleteक्या बदला?
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः25 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteसंग्रहनीय लेखन सुन्दर विश्लेषण !!
ReplyDeleteसटीक अवलोकन और प्रभावी विवेचन .....
ReplyDelete----सुन्दर व सटीक विश्लेषण .....जगत समाना सुन्न में ....
ReplyDelete---- सही कहा हमारे शास्त्रकार शानदार ट्विटरिया थे .. .. चार महान वैदिक ट्विटर हैं ..... अहं ब्रह्मास्म ... तत्वमसि ...खंब्रह्म ...सोsहं......
बहुत सुंदर ,सटीक विचार अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteसुन्दर विभेदीकरण..
ReplyDeleteतथ्यों में सृजनात्मकता नहीं होती है, तथ्य सपाट होते हैं। विश्लेषण या सृजन तर्क श्रंखला या विचार तरंगों के संग चलता है और बहुधा आकार में फैलने लगता है। बहुत कुछ वैदिक संदर्भ ग्रन्थों जैसा।.........................निश्चय ही अभिव्यक्ति के माध्यम परस्पर प्रेरक, पूरक और भिन्न नहीं हो सकते। अभिव्यक्ति के केन्द्र से जो प्रसारित होना चाहिए आवश्यकता और अपेक्षा उस जीवन मर्म, सिद्धांत पर चलने और मानव कल्याण के लिए उसे व्यवहार बनाने की होनी चाहिए।
ReplyDeleteसूत्र, सूक्त और उक्त से होते हुए मैं उक्तियों तक पहुंचा हूँ। यह कुछ-कुछ उसी दिशा में किया गया प्रयास है जो आप इस आलेख में कह रहे हैं। इतना है कि यह टि्वटरीय नहीं है। इस लिंक (vbadola.blogspot.in) पर जा कर अवलोकन करें और अपने प्रत्युत्तर से अवगत कराएं।
Deleteसंचार के इन तीन माध्यमो को जिस खूबसूरती से जिन्दगी से जोड़ा है...वो कमाल है.. शुक्रिया इस ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही सारवान अभिमत.
ReplyDeleteरामराम.
वो अंग्रेजी कहावत है न ,ब्रेविटी इज द आफ विट - हमारे यहाँ शब्द को ब्रह्म कहा गया है -और उसका अपव्यय निश्चित ही अनुचित -यह विमर्श वर्धा से याद है !
ReplyDelete*Brevity is the soul of wit!
ReplyDeleteसुन्दर व सटीक विश्लेषण.
ReplyDeleteनई पोस्ट : भारतीय संस्कृति और कमल
सही कहा है आपने अभिव्यक्ति पारट्विटर ,पारमुख चिठ्ठा तथा पार -चिठ्ठा है। ये सभी माध्यम मिलकर भी सदैव अभ्व्यक्ति को पूर्णता न दे सकेंगें। शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का।
ReplyDeleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी यह रचना आज सोमवारीय चर्चा(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) में शामिल की गयी है, आभार।
ReplyDeleteतीनों माध्यमों का सूक्ष्म विश्लेषण ... हर किसी का अपना महत्त्व ...
ReplyDeleteतीनों माध्यम स्वतंत्र प्रभार लिये हुए हैं। किन्तु पाणिनि की तरह स्पष्ट और सक्षम नहीं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व सटीक विश्लेषण...आभार
ReplyDeleteउम्दा विश्लेषण
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का पार न पावा ,
ReplyDeleteइसका है विस्तार अपारा।
कोई रूप न कोई आकारा ,
कभी दोहरा सतसैया का ,
महाभारत कभी आकारा।
व्यास वेद भी पार न पावा
विशद काय हर शब्द अपारा।
शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का।
बहुत सारगर्भित विश्लेषण...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का अच्छा विश्लेषण।
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के माध्यम तो तीनों ही हैं लेकिन मुझे ब्लॉग ही पसंद है .... आपने बहुत सुंदर विश्लेषण किया
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