यदि आप ईश्वर से पूर्ण मन से अपनी समस्याओं का समाधान चाहेंगे तो वह भेजेगा अवश्य। ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हो गया। कुछ दिन पहले सप्ताहान्त में कार्य की प्राथमिकताओं को लेकर तर्कों के पात्र उबाल पर थे, श्रीमतीजी के लिये गृहकार्य और हमारे लिये लेखकीय सत्कार्य महत्वपूर्ण थे। भौतिक और बौद्धिक कार्यों को एक समय में मेरे द्वारा कर पाना या श्रीमतीजी के द्वारा करवा पाना, दोनों ही संभव नहीं था। भौतिक और बौद्धिक कार्यों के बीच का यह संघर्ष पूर्णतया मानसिक हो चला था। एक महीने का राशन या एक महीने का लेखन, निर्णय असमंजस में था। मन ही मन पुकारा, हे प्रभु, कुछ तो संकेत या संदेश भेजो। लगता है कि सुन लिया गया है और घर का संवैधानिक संकट हल होने की प्रतीक्षा में है। जब पूर्णतया हल हो जायेगा और संभावित लाभ मिलने लगेगा, तब ही पता चलेगा कि किसको माध्यम बना कर कैसे समस्या सुलझायी प्रभुजी ने।
जब सप्ताहान्त के दो दिन, शनिवार और रविवार अत्यधिक दवाब में थे तो सप्ताह के किसी अन्य दिन को बचाव में आना ही था, सो मंगलवार मंगल करने आ पहुँचा। अब मंगलवार ही क्यों, यह समझने के लिये कुछ बाजार की महिमा समझनी होगी और कुछ मंगलवार की। आइये समझते हैं कि किसने किसको कैसे प्रभावित किया। मॉल के उदाहरण से स्थिति स्पष्ट करने में सरलता रहेगी।
सप्ताहान्त में मॉलों में अत्यधिक भीड़ रहती है, स्वाभाविक भी है, सबको वही समय मिलता है अपने कार्य निपटाने का, शेष दिन तो कार्यालय बाहर जाने का अवसर ही नहीं देता है। फिल्म देखना हो, मटरगस्ती करनी हो, मनोरंजन करना हो, कहीं बाहर खाना हो, खरीददारी करनी हो, सब के सब कार्य सप्ताहान्त को ही निकल पड़ते हैं। सड़कों में ट्रैफिक जाम को देखने के बाद बंगलोर की जनसंख्या का जो अनुमान लगता है, वह सप्ताहान्त में मॉलों में एकत्र हुये जनमानस को देखकर तुरन्त ही ढेर हो जाता है। मॉल के सबसे ऊपर वाले तल से नीचे देखने पर इतने नरमुण्ड दिखते हैं, मानो लगता हो कि गूगल मैप से काले वृक्षों के किसी वन को निहार रहे हों।
भीड़ का जहाँ अपना आनन्द है, वहाँ व्यवधान भी है। आनन्द उनको, जिनको अपने वहाँ होने की सामाजिक स्वीकृति चाहिये होती है। अच्छा किया यहाँ घूमने चले आये, देखो तो कितने लोग जुट आये हैं। आनन्द उनको भी, जिन्होने औरों को दिखाने के लिये अच्छे अच्छे कपड़े सिलवाये होते हैं। आनन्द उनको भी, जिन्हें अपने उत्पाद बेचने के लिये प्रचार कार्यक्रम करने होते हैं। आनन्द उनको भी, जिनके लिये अधिक भीड़ का होना उनकी प्रेमवार्ता के लिये किसी एकान्त कवच का कार्य करता है। किसी मेले में होने वाले आनन्दकारी भाव मॉल के सप्ताहन्त में आपको मिल जायेंगे। व्यवधान बस उनको रहता है, जो अपना कार्य कर परमहंसीय भाव से शीघ्र बाहर निकलना चाहते हैं। हम कभी आनन्द में तो कभी व्यवधान में जीते हैं, जिस दिन जैसा मनोभाव और परिवेश रहे।
इसके विपरीत सप्ताह के अन्य दिनों में एक शान्ति व्यापी रहती है, लगता है कोई प्रेमी प्रतीक्षा में है, अपने प्रियतम की, जो पाँच दिन बाद पुनः आने वाला है।
यही वे दिन होते हैं, जब मॉल की दुकानों में होने वाला व्यवसाय न्यून होता है। ऐसा नहीं है कि उन दिनों कोई नहीं आता है। लोग आते हैं, पर सायं और रात में और वह भी मुख्यतः दो कारणों से, फिल्म देखने और भोजन करने। अनुभव यह भी बताता है कि लोग जब भी आते हैं, बहुधा दोनों ही कार्य करते हैं और यदि समय मिल सके तो खरीददारी भी कर लेते हैं। अगले दिन कार्यालय जाने की शीघ्रता में तीनों कार्य सुपरमैन के जैसे लगते हैं। जब बंगलोर में यातायात के प्रकोप को देखते हुये मॉल तक आना जाना भी एक कार्य के जैसा ही है, तो यह मानकर चला जा सकता है कि लोगों को दो कार्यों से अधिक निपटाने का समय नहीं मिल पाता है।
उस पर भी मंगलवार का दिन और विशेष है। इस दिन लोगों की धार्मिकता जागृत अवस्था में रहती है और अधिकांश लोग मांसाहार नहीं करते हैं। दक्षिण में लोक व्यंजन मुख्यतः शाकाहारी होने पर भी सप्ताह मेंं एक दो बार स्वाद के लिये मांसाहार करने की जनसंख्या भी पर्याप्त लगती है। वे लोग भी अपने एक दो दिन के स्वाद के लिये मंगलवार को क्रुद्ध नहीं करना चाहते हैं, उसे पवित्र बनाये रखने के लिये हर संभव प्रयास करते हैं। यह जनसंख्या मंगलवार को मॉल में नहीं दिखायी पड़ती है। इसके अतिरिक्त धार्मिकता के प्रभावक्षेत्र में अग्रणी होने के कारण कई लोग मंगलवार का व्रत रखते हैं, ये लोग भी मंगलवार को मॉल में नहीं दिखायी पड़ते हैं।
सप्ताह के सात दिनों में संभवतः मंगलवार ही ऐसा होगा जब मॉल में आने वालों की संख्या न्यूनतम होती होगी। यह तथ्य मॉल वालों को भली भाँति ज्ञात होगा। किसी दिन विशेष में ही क्यों, किस समय मॉल के अन्दर कितने लोग थे, इसकी भी संख्या आधुनिक तकनीक के माध्यम से मॉल संचालकों को ज्ञात रहती होगी।
अब सप्ताह में एक दिन बिक्री शून्य हो जाये तो १५ प्रतिशत हानि तो पक्की है। यही कारण रहा होगा कि मॉल स्थित एक विशेष मल्टीप्लेक्स सिनेमाघर ने फिल्म की टिकटें केवल मंगलवार के लिये १०० रु की कर दी हैं। ये टिकटें सप्ताहन्त में ३०० और सप्ताह के अन्य दिनों में २५० रु तक की रहती हैं। हाँ, भीड देखकर ये फिल्म टिकट भी कुप्पा हो जाते हैं। अब जितने धन में सप्ताहन्त में एक व्यक्ति फिल्म देख सकता है, उतने में मंगलवार के दिन तीन लोग देख सकते हैं। यही तथ्य हमारे लिये वरदान बन कर आया।
एक कुशल गृहणी और धन बचाने के हर अवसर को न गँवाने वाली भारतीय नारी के रूप में हमारी श्रीमतीजी ने फिल्म देखने के लिये मंगलवार का दिन नियत कर दिया। हमें कोई आपत्ति नहीं। उस दिन कार्यालय के पश्चात और सोने के पहले चार पाँच घंटे का समय निकल ही आता है, जिसमें फिल्म देखी और बाहर भोजन किया जा सकता है। यही नहीं, भोजन के प्रतीक्षा समय में हम और पृथु जाकर थोड़ी बहुत खरीददारी भी कर आते हैं। यदि खरीददारी तनिक अधिक होती है तो श्रीमतीजी फिल्म प्रारम्भ होने के पहले जाकर खरीददारी कर लेती हैं, जिससे फिल्म और भोजन बिना किसी व्यवधान के बीते।
ऐसा नहीं है कि हर मंगलवार को ही जाना हो, पर अब हमारे सप्ताहान्त विशुद्ध लेखकीय सत्कार्य में लग रहे हैं। यदा कदा बाहर जाना भी होता है पर वह श्रम नहीं लगता, उसे लेखन के बीच में मध्यान्तर के रूप में भी देखा जा सकता है। जहाँ तक मंगलवार का प्रश्न है, वह वैसे भी कार्यालय से आने के बाद टीवी आदि के सामने बीतता था। कार्यालय से आने के बाद भला मन में इतनी शक्ति कहाँ रहती है कि कुछ नया सोचा जा सके। अब बाहर जाकर सारे कार्य निपटा आने से संतुष्टि की अनुभूति अलग होती है।
यह सुखद स्थिति बहुत भा रही है, बहुत काम आ रही है, पर लगता नहीं है कि यह टिकी रह पायेगी। बाजार के संतुलन में उसका भी स्थायित्व टिका हुआ है। यदि ऐसा हुआ कि हम जैसे परिवार पर्याप्त मात्रा में हो गये और मॉल में मंगलवार को भी चहल पहल रहने लगी तो संभवतः मल्टीप्लेक्स वाले अपना निर्णय बदल दें, तब संभवतः टिकट १०० रु का न रह जाये, तनिक मँहगा हो जाये। तब हमारी श्रीमतीजी संभवतः अपनी रणनीति बदल दें।
हम यह सब क्यों सोचें, जो हो गया है और जो होने वाला है, उसके बारे में विद्वान शोक नहीं करते हैं, हम नहीं कहते, गीता के द्वितीय अध्याय में लिखा है। हम वर्तमान से अत्यन्त प्रसन्न हैं, हमारी पारिवारिक उलझन सुलझाने में बाजार का और मंगलवार का बहुत बड़ा योगदान है। जय संकटमोचक मंगलवार।
जब सप्ताहान्त के दो दिन, शनिवार और रविवार अत्यधिक दवाब में थे तो सप्ताह के किसी अन्य दिन को बचाव में आना ही था, सो मंगलवार मंगल करने आ पहुँचा। अब मंगलवार ही क्यों, यह समझने के लिये कुछ बाजार की महिमा समझनी होगी और कुछ मंगलवार की। आइये समझते हैं कि किसने किसको कैसे प्रभावित किया। मॉल के उदाहरण से स्थिति स्पष्ट करने में सरलता रहेगी।
सप्ताहान्त में मॉलों में अत्यधिक भीड़ रहती है, स्वाभाविक भी है, सबको वही समय मिलता है अपने कार्य निपटाने का, शेष दिन तो कार्यालय बाहर जाने का अवसर ही नहीं देता है। फिल्म देखना हो, मटरगस्ती करनी हो, मनोरंजन करना हो, कहीं बाहर खाना हो, खरीददारी करनी हो, सब के सब कार्य सप्ताहान्त को ही निकल पड़ते हैं। सड़कों में ट्रैफिक जाम को देखने के बाद बंगलोर की जनसंख्या का जो अनुमान लगता है, वह सप्ताहान्त में मॉलों में एकत्र हुये जनमानस को देखकर तुरन्त ही ढेर हो जाता है। मॉल के सबसे ऊपर वाले तल से नीचे देखने पर इतने नरमुण्ड दिखते हैं, मानो लगता हो कि गूगल मैप से काले वृक्षों के किसी वन को निहार रहे हों।
भीड़ का जहाँ अपना आनन्द है, वहाँ व्यवधान भी है। आनन्द उनको, जिनको अपने वहाँ होने की सामाजिक स्वीकृति चाहिये होती है। अच्छा किया यहाँ घूमने चले आये, देखो तो कितने लोग जुट आये हैं। आनन्द उनको भी, जिन्होने औरों को दिखाने के लिये अच्छे अच्छे कपड़े सिलवाये होते हैं। आनन्द उनको भी, जिन्हें अपने उत्पाद बेचने के लिये प्रचार कार्यक्रम करने होते हैं। आनन्द उनको भी, जिनके लिये अधिक भीड़ का होना उनकी प्रेमवार्ता के लिये किसी एकान्त कवच का कार्य करता है। किसी मेले में होने वाले आनन्दकारी भाव मॉल के सप्ताहन्त में आपको मिल जायेंगे। व्यवधान बस उनको रहता है, जो अपना कार्य कर परमहंसीय भाव से शीघ्र बाहर निकलना चाहते हैं। हम कभी आनन्द में तो कभी व्यवधान में जीते हैं, जिस दिन जैसा मनोभाव और परिवेश रहे।
इसके विपरीत सप्ताह के अन्य दिनों में एक शान्ति व्यापी रहती है, लगता है कोई प्रेमी प्रतीक्षा में है, अपने प्रियतम की, जो पाँच दिन बाद पुनः आने वाला है।
यही वे दिन होते हैं, जब मॉल की दुकानों में होने वाला व्यवसाय न्यून होता है। ऐसा नहीं है कि उन दिनों कोई नहीं आता है। लोग आते हैं, पर सायं और रात में और वह भी मुख्यतः दो कारणों से, फिल्म देखने और भोजन करने। अनुभव यह भी बताता है कि लोग जब भी आते हैं, बहुधा दोनों ही कार्य करते हैं और यदि समय मिल सके तो खरीददारी भी कर लेते हैं। अगले दिन कार्यालय जाने की शीघ्रता में तीनों कार्य सुपरमैन के जैसे लगते हैं। जब बंगलोर में यातायात के प्रकोप को देखते हुये मॉल तक आना जाना भी एक कार्य के जैसा ही है, तो यह मानकर चला जा सकता है कि लोगों को दो कार्यों से अधिक निपटाने का समय नहीं मिल पाता है।
उस पर भी मंगलवार का दिन और विशेष है। इस दिन लोगों की धार्मिकता जागृत अवस्था में रहती है और अधिकांश लोग मांसाहार नहीं करते हैं। दक्षिण में लोक व्यंजन मुख्यतः शाकाहारी होने पर भी सप्ताह मेंं एक दो बार स्वाद के लिये मांसाहार करने की जनसंख्या भी पर्याप्त लगती है। वे लोग भी अपने एक दो दिन के स्वाद के लिये मंगलवार को क्रुद्ध नहीं करना चाहते हैं, उसे पवित्र बनाये रखने के लिये हर संभव प्रयास करते हैं। यह जनसंख्या मंगलवार को मॉल में नहीं दिखायी पड़ती है। इसके अतिरिक्त धार्मिकता के प्रभावक्षेत्र में अग्रणी होने के कारण कई लोग मंगलवार का व्रत रखते हैं, ये लोग भी मंगलवार को मॉल में नहीं दिखायी पड़ते हैं।
सप्ताह के सात दिनों में संभवतः मंगलवार ही ऐसा होगा जब मॉल में आने वालों की संख्या न्यूनतम होती होगी। यह तथ्य मॉल वालों को भली भाँति ज्ञात होगा। किसी दिन विशेष में ही क्यों, किस समय मॉल के अन्दर कितने लोग थे, इसकी भी संख्या आधुनिक तकनीक के माध्यम से मॉल संचालकों को ज्ञात रहती होगी।
अब सप्ताह में एक दिन बिक्री शून्य हो जाये तो १५ प्रतिशत हानि तो पक्की है। यही कारण रहा होगा कि मॉल स्थित एक विशेष मल्टीप्लेक्स सिनेमाघर ने फिल्म की टिकटें केवल मंगलवार के लिये १०० रु की कर दी हैं। ये टिकटें सप्ताहन्त में ३०० और सप्ताह के अन्य दिनों में २५० रु तक की रहती हैं। हाँ, भीड देखकर ये फिल्म टिकट भी कुप्पा हो जाते हैं। अब जितने धन में सप्ताहन्त में एक व्यक्ति फिल्म देख सकता है, उतने में मंगलवार के दिन तीन लोग देख सकते हैं। यही तथ्य हमारे लिये वरदान बन कर आया।
एक कुशल गृहणी और धन बचाने के हर अवसर को न गँवाने वाली भारतीय नारी के रूप में हमारी श्रीमतीजी ने फिल्म देखने के लिये मंगलवार का दिन नियत कर दिया। हमें कोई आपत्ति नहीं। उस दिन कार्यालय के पश्चात और सोने के पहले चार पाँच घंटे का समय निकल ही आता है, जिसमें फिल्म देखी और बाहर भोजन किया जा सकता है। यही नहीं, भोजन के प्रतीक्षा समय में हम और पृथु जाकर थोड़ी बहुत खरीददारी भी कर आते हैं। यदि खरीददारी तनिक अधिक होती है तो श्रीमतीजी फिल्म प्रारम्भ होने के पहले जाकर खरीददारी कर लेती हैं, जिससे फिल्म और भोजन बिना किसी व्यवधान के बीते।
ऐसा नहीं है कि हर मंगलवार को ही जाना हो, पर अब हमारे सप्ताहान्त विशुद्ध लेखकीय सत्कार्य में लग रहे हैं। यदा कदा बाहर जाना भी होता है पर वह श्रम नहीं लगता, उसे लेखन के बीच में मध्यान्तर के रूप में भी देखा जा सकता है। जहाँ तक मंगलवार का प्रश्न है, वह वैसे भी कार्यालय से आने के बाद टीवी आदि के सामने बीतता था। कार्यालय से आने के बाद भला मन में इतनी शक्ति कहाँ रहती है कि कुछ नया सोचा जा सके। अब बाहर जाकर सारे कार्य निपटा आने से संतुष्टि की अनुभूति अलग होती है।
यह सुखद स्थिति बहुत भा रही है, बहुत काम आ रही है, पर लगता नहीं है कि यह टिकी रह पायेगी। बाजार के संतुलन में उसका भी स्थायित्व टिका हुआ है। यदि ऐसा हुआ कि हम जैसे परिवार पर्याप्त मात्रा में हो गये और मॉल में मंगलवार को भी चहल पहल रहने लगी तो संभवतः मल्टीप्लेक्स वाले अपना निर्णय बदल दें, तब संभवतः टिकट १०० रु का न रह जाये, तनिक मँहगा हो जाये। तब हमारी श्रीमतीजी संभवतः अपनी रणनीति बदल दें।
हम यह सब क्यों सोचें, जो हो गया है और जो होने वाला है, उसके बारे में विद्वान शोक नहीं करते हैं, हम नहीं कहते, गीता के द्वितीय अध्याय में लिखा है। हम वर्तमान से अत्यन्त प्रसन्न हैं, हमारी पारिवारिक उलझन सुलझाने में बाजार का और मंगलवार का बहुत बड़ा योगदान है। जय संकटमोचक मंगलवार।
बढियां सामंजस्य और समंजन -जय हनुमतवीर!
ReplyDeleteमंगलवार और भीड़ का सटीक विश्लेषण ,कुछ भी हों ध्यान तो पाजिटीविती पर ही रखना हैं |
ReplyDelete“सफल होना कोई बडो का खेल नही बाबू मोशाय ! यह बच्चों का खेल हैं”!{सचित्र}
यह मंगलवार की मॉल में शांति व कम भीड़ भाड़ का सार्थक उपयोग बड़ा अनूठा है ।मुझे तो लगता है हनुमान जी भी अपने मंदिरों में मंगलवार की साप्ताहिक भीड़ भाड़ और केंचो पेचों से घबराकर कर आपकी तरह बुद्धिमानी से किसी मॉल में खिसक लेते होंगे और शांति से मूवी सूवी और बढ़िया वेज खाना साना खाकर रिलेक्स होते होंगे ।पांडेय जी आपकी पारखी निगाह हनुमान जी से आपकी मुलाकात व दर्शन शीघ्र ही किसी मॉल में मंगलवार को करायेगी, आप और आपका परिवार इसी प्रकार आनंद से हर मंगलवार मनायें, शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteमंगल से मंगल होता रहे जीवन में !
ReplyDeleteईश्वर पर आस्था,श्रद्धा और विश्वास अपने कर्म पर सहज और सरल हो जाता है जीवन ।
ReplyDeleteरोचक एवं प्रभावी आलेख ।
'मॉल के सबसे ऊपर वाले तल से नीचे देखने पर इतने नरमुण्ड दिखते हैं, मानो लगता हो कि गूगल मैप से काले वृक्षों के किसी वन को निहार रहे हों।'
ReplyDeleteबढ़िया कम्पैरिजन है:)
संकटमोचक प्रभु यूँ ही मंगलवार को मंगल करते रहे, और आपका लेखन निर्बाध चलता रहे!
मंगलवार को किसी की नजर ना लगे, इसी में भलाई है.
ReplyDeleteरामराम.
यही सार है कि मंगल को अमंगल नहीं होता है, सब मंगल ही होता है ।
ReplyDeleteMangal hi magal accha vishleshan .
ReplyDeleteसही है ..
ReplyDeleteकुल मिलाकर आनंदम आनंदम, मंगल मुखी, सदा सुखी :)
ReplyDeleteबहुत कुछ समझने को मिला फिर भी मंगल को मंगल हो ......सादर
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसब मंगलमय हो !
ReplyDeleteमंगल को मंगल हो
ReplyDeleteहर दिन मंगलमय हो
बहुत सुंदर पोस्ट
हार्दिक शुभकामनायें
अच्छा है एक दिन नियत कर लिया तो काम भी समयानुसार हो जाते होंगें .... बाकि तो तैयार रहिये रणनीति कभी भी बदलनी पड़ सकती है :)
ReplyDeleteबस जरा प्रसाद भी बांट दिया करो, मंगलवार को।
ReplyDeleteमंगल मंगलकारी हो..
ReplyDeleteहमारी ख़ुफ़िया एजेंसी के मुताबिक़ वोडा फोन और icici बैंक जैसे कुछ गिनी चुने साधनों का इस्तेमाल कर के एक पर एक टिकट मुफ्त मिलता है, शायद मंगलवार को ही ; मार्केटिंग फंडे है सब , जो जब तक चल जाए :)
ReplyDeleteलिखते रहिये
I am using this strategy for last 4-5 years.
ReplyDeleteSuccessfully. As I am not a person who can handle too much crowd. :)
हमारे यहाँ हैप्पी वैडनसडे चलता है! :)
ReplyDeleteमंगलवार ने सुपरमैन की तरह कार्य निपटाने की शक्ति और सामंजस्य प्रदान किया है, इस हेतु कृतज्ञता तो दर्शानी ही होगी।
ReplyDeleteरोचक आलेख..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (04-08-2013) के चर्चा मंच 1327 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteजबलपुर में वुधवार को टिकट सौ रुपये में मिलता है।
ReplyDeletebahut acche
ReplyDeleteहम यह सब क्यों सोचें, जो हो गया है और जो होने वाला है, उसके बारे में विद्वान शोक नहीं करते हैं, हम नहीं कहते, गीता के द्वितीय अध्याय में लिखा है। हम वर्तमान से अत्यन्त प्रसन्न हैं, हमारी पारिवारिक उलझन सुलझाने में बाजार का और मंगलवार का बहुत बड़ा योगदान है। जय संकटमोचक मंगलवार।
ReplyDeleteये सच है जो है वह नहीं है। क्योंकि यह सृष्टि दूसरे ही पल बदल जाती है हमारी काया भी तो हर क्षण बदल रही है कितनी कोशायें हर पल मर रहीं हैं २८ दिनों में हमारी चमड़ी का नवीकरण हो जाता है। ॐ शान्ति जय मंगलवार। अगले मंगलवार तक माल का परिदृश्य भी बदला होगा।
tuesday tale was awesome.. :)
ReplyDeletemaza aagya..
मॉल के सबसे ऊपर वाले तल से नीचे देखने पर इतने नरमुण्ड दिखते हैं, मानो लगता हो कि गूगल मैप से काले वृक्षों के किसी वन को निहार रहे हों।
best :P
मंगल मंगल मंगल मंगल :)
ReplyDeleteमंगल माल अमंगल हारी। .....
ReplyDeleteसर आपका आभार |मंगलमय पोस्ट |इधर कुछ दिनों से लिखना और कमेंट्स दोनों नहीं हो पा रहा था ,लेकिन अब कुछ सक्रियता रहेगी |
ReplyDeleteसब मंगलमय हो ....!!!
ReplyDeleteसब हनुमान जी की माया है ... सब कुछ मंगलमय हो जाता है ...
ReplyDeleteमंगलवार को मंगल ..मंगल ....मंगल .....होगा।
ReplyDeleteॐ शांति। दिल कहे बाबा तेरा शुक्रिया।
ReplyDeleteमुबारक मित्रता और मित्रता दिवस। ॐ शान्ति। ऐसे ही रचनात्मक बने रहो खिलते रहो ब्लॉग गगन पर।
भण्डार गृह बने रहो क्लाउड की तरह दोस्ती दिवस पर। ॐ शान्ति।
ReplyDeleteभण्डार गृह बने रहो क्लाउड की तरह दोस्ती दिवस पर। ॐ शान्ति। हाँ जी यह क्लाउड कम्प्यूटिंग आला स।
सत्यवचन । यह पल गंवाना ना, यह पल जो तेरा है ।
ReplyDeleteमंगल से आखिर मंगल हो ही गया!
ReplyDeleteमुझे लगता है, आपने अथवा भाभी जी ने बजरंगबली के नाम के व्रत कभी रखें होंगे, जिसका फल आपको इस रूप में १५०/- से २००/- प्रति सप्ताह के तौर पर मिल रहा है :)
ReplyDeleteजय हो!!!मंगल में मंगल हो ही गया शुभकामनायें तो बनती है। :)
ReplyDeleteईश्वर आपकी प्रसन्नता को बनाये रखें।
ReplyDeleteकई बार बड़ा आश्चर्य होता है कि इस तरह के साधारण से विषयों पे आप इतना असाधारण और मार्मिक कैसे लिख लेते हैं..मंगलमय आलेख।।।
ReplyDeleteमुझ जैसे लोगों के लिए तो यह दिन कोई माने नहीं रखता । अपना हर दिन रविवार होता है और घर से बाहर का खाना पसंद नहीं और फ़िल्में तो पता नहीं कब से नहीं देखीं ।
ReplyDeleteमुझ जैसे लोगों के लिए तो यह दिन कोई माने नहीं रखता । अपना हर दिन रविवार होता है और घर से बाहर का खाना पसंद नहीं और फ़िल्में तो पता नहीं कब से नहीं देखीं ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा विश्लेष्ण किया माल में भीड़ का आपने
ReplyDeleteSab Mangal ho...accha hai. :)
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
Nice article!!! Looking for more interesting articles from you.
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